सुषमा-सुषमा: Difference between revisions
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<p> अवसर्पिणी का प्रथम काल । इसका समय चार | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अवसर्पिणी का प्रथम काल । इसका समय चार कोड़ाकोड़ी सागर है । इस समय मनुष्यों की आयु तीन पल्य और शरीर की ऊंचाई छ: हजार धनुष की होती है । मनुष्यों के शरीर वज्र के समान सुदृढ़ एवं अस्थि बंधनों से मुक्त होते हैं । उनके शरीर का वर्ण तपाये हुए सोने के समान होता है । वे मुकुट, कुंडल, हार, करधनी, कड़ा, बाजूबंद और यज्ञोपवीत सदा धारण किये रहते हैं । ये तीन दिन बाद कल्पवृक्षों से प्राप्त बदरीफल के बराबर आहार लेते हैं । इन्हें रोग, मल-मूत्र आदि की बाधा एवं मानसिक पीड़ा नहीं होती । इन्हें पसीना नहीं आता । इनका अकालमृत्यु नहीं होती । इच्छा करते ही इन्हें समस्त भोगोपभोग की सामग्री कल्पवृक्षों से प्राप्त हो जाती है । इस काल में मद्यांग, तूर्यांग, विभूषांग, स्रगांग, ज्योतिरंग, दीपांग, गुहांग, भोजनांग, पात्रांग और वस्त्रांग ये दस प्रकार के कल्पवृक्ष रहते हैं । पुरुषों का मरण जिम्हाई पूर्वक और स्त्रियों का मरण छींक लेकर होता है । पति-पत्नी दोनों एक साथ उत्पन्न होते और एक साथ ही मरकर स्वर्ग जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 3. 22-43 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#80|पद्मपुराण - 20.80]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.85-93 </span></p> | ||
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अवसर्पिणी का प्रथम काल । इसका समय चार कोड़ाकोड़ी सागर है । इस समय मनुष्यों की आयु तीन पल्य और शरीर की ऊंचाई छ: हजार धनुष की होती है । मनुष्यों के शरीर वज्र के समान सुदृढ़ एवं अस्थि बंधनों से मुक्त होते हैं । उनके शरीर का वर्ण तपाये हुए सोने के समान होता है । वे मुकुट, कुंडल, हार, करधनी, कड़ा, बाजूबंद और यज्ञोपवीत सदा धारण किये रहते हैं । ये तीन दिन बाद कल्पवृक्षों से प्राप्त बदरीफल के बराबर आहार लेते हैं । इन्हें रोग, मल-मूत्र आदि की बाधा एवं मानसिक पीड़ा नहीं होती । इन्हें पसीना नहीं आता । इनका अकालमृत्यु नहीं होती । इच्छा करते ही इन्हें समस्त भोगोपभोग की सामग्री कल्पवृक्षों से प्राप्त हो जाती है । इस काल में मद्यांग, तूर्यांग, विभूषांग, स्रगांग, ज्योतिरंग, दीपांग, गुहांग, भोजनांग, पात्रांग और वस्त्रांग ये दस प्रकार के कल्पवृक्ष रहते हैं । पुरुषों का मरण जिम्हाई पूर्वक और स्त्रियों का मरण छींक लेकर होता है । पति-पत्नी दोनों एक साथ उत्पन्न होते और एक साथ ही मरकर स्वर्ग जाते हैं । महापुराण 3. 22-43 पद्मपुराण - 20.80, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.85-93