उत्तराध्ययन: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/1/20/14/78/6 </span><span class="SanskritText">तदंगबाह्यमनेकविधम् -कालिकमुत्कालिकमित्येवमादिविकल्पात् । स्वाध्यायकाले नियतकालं कालिकम् । अनियतकालमुत्कालिकम् । तद्भेदा उत्तराध्ययनादयोऽनेकविधा:। </span> = <span class="HindiText">कालिक, उत्कालिक के भेद से अंग बाह्य अनेक प्रकार के हैं। स्वाध्याय काल में जिनके पठन-पाठन का नियम है उन्हें कालिक कहते हैं, तथा जिनके पठन पाठन का कोई नियत समय न हो वे उत्कालिक हैं। '''उत्तराध्ययन''' आदि ग्रंथ अंगबाह्य अनेक प्रकार हैं। <span class="GRef">( सर्वार्थसिद्धि/1/20/123/2 )</span>।</span></p> | |||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अंग बाह्यश्रुत के चौदह भेदों में आठवाँ अंगबाह्य श्रुत । इसमें भगवान महावीर के निर्वाण का वर्णन है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#103|हरिवंशपुराण - 2.103]], 10. 134 </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
द्वादशांग श्रुतज्ञान का 8वाँ अंगबाह्य
राजवार्तिक/1/20/14/78/6 तदंगबाह्यमनेकविधम् -कालिकमुत्कालिकमित्येवमादिविकल्पात् । स्वाध्यायकाले नियतकालं कालिकम् । अनियतकालमुत्कालिकम् । तद्भेदा उत्तराध्ययनादयोऽनेकविधा:। = कालिक, उत्कालिक के भेद से अंग बाह्य अनेक प्रकार के हैं। स्वाध्याय काल में जिनके पठन-पाठन का नियम है उन्हें कालिक कहते हैं, तथा जिनके पठन पाठन का कोई नियत समय न हो वे उत्कालिक हैं। उत्तराध्ययन आदि ग्रंथ अंगबाह्य अनेक प्रकार हैं। ( सर्वार्थसिद्धि/1/20/123/2 )।
- देखें श्रुतज्ञान - III।
पुराणकोष से
अंग बाह्यश्रुत के चौदह भेदों में आठवाँ अंगबाह्य श्रुत । इसमें भगवान महावीर के निर्वाण का वर्णन है । हरिवंशपुराण - 2.103, 10. 134