उदराग्नि प्रशमन वृत्ति: Difference between revisions
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<p>देखें [[ भिक्षा#1.7 | भिक्षा - 1.7]]।</p> | <span class="GRef"> रयणसार/ मूल/116</span> <span class="PrakritGatha">उदरग्गिसमणक्खमक्खण गोयारसब्भपूरणभमरं। णाऊण तत्पयारे णिच्चेवं भंजए भिक्खु।116।</span> = <span class="HindiText">मुनियों की चर्या पाँच प्रकार की बतायी गयी है–'''उदराग्निप्रशमन''', अक्षम्रक्षण, गोचरी, श्वभ्रपूरण और भ्रामरी।116। <span class="GRef">( चारित्रसार/78/3 )</span>।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/6/16/597/20 </span><span class="SanskritText">..... यथा भांडागारे समुत्थितमनलमशुचिना शुचिना वा वारिणा शमयति गृही तथा यतिरपि '''उदराग्निं प्रशमयतीति''' उदराग्निप्रशमनमितिच निरुच्यते। ....।</span> = <span class="HindiText">यह लाभ और अलाभ तथा सरस और विरस में समान संतोष होने से भिक्षा कही जाती है। </span> | |||
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<li class="HindiText"><strong> उदराग्निप्रशमन</strong>–जैसे भंडार में आग लग जाने पर शुचि या अशुचि कैसे भी पानी से उसे बुझा दिया जाता है, उसी तरह यति भी उदराग्नि का प्रशमन करता है, अतः इसे उदराग्निप्रशमन कहते हैं।</li> | |||
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Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
रयणसार/ मूल/116 उदरग्गिसमणक्खमक्खण गोयारसब्भपूरणभमरं। णाऊण तत्पयारे णिच्चेवं भंजए भिक्खु।116। = मुनियों की चर्या पाँच प्रकार की बतायी गयी है–उदराग्निप्रशमन, अक्षम्रक्षण, गोचरी, श्वभ्रपूरण और भ्रामरी।116। ( चारित्रसार/78/3 )।
राजवार्तिक/9/6/16/597/20 ..... यथा भांडागारे समुत्थितमनलमशुचिना शुचिना वा वारिणा शमयति गृही तथा यतिरपि उदराग्निं प्रशमयतीति उदराग्निप्रशमनमितिच निरुच्यते। ....। = यह लाभ और अलाभ तथा सरस और विरस में समान संतोष होने से भिक्षा कही जाती है।
- उदराग्निप्रशमन–जैसे भंडार में आग लग जाने पर शुचि या अशुचि कैसे भी पानी से उसे बुझा दिया जाता है, उसी तरह यति भी उदराग्नि का प्रशमन करता है, अतः इसे उदराग्निप्रशमन कहते हैं।
देखें भिक्षा - 1.7।