द्रव्य पूजा: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/47/159/21 </span><span class="SanskritText">गंधपुष्पधूपाक्षतादिदानं अर्हदाद्युद्दिश्य द्रव्यपूजा। अभ्युत्थानप्रदक्षिणीकरण-प्रणमनादिका-कायक्रिया च। वाचा गुणसंस्तवनं च।</span> = <span class="HindiText">अर्हदादिकों के उद्देश्य से गंध, पुष्प, धूप, अक्षतादि समर्पण करना, यह द्रव्यपूजा है। तथा उठ करके खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना वगैरह शरीर क्रिया करना, वचनों से अर्हदादिक के गुणों को स्तवन करना, यह भी '''द्रव्य-पूजा''' है। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> वसुनंदी श्रावकाचार/448-451 </span><span class="PrakritGatha">दव्वेण य दव्वस्स य जा पूजा जाण दव्वपूजा सा। दव्वेण गंध-सलिलाइपुव्वभणिएण कायव्वा। 448। तिविहा दव्वे पूजा सच्चित्ताचित्तमिस्सभेएण। पच्चक्खजिणाईणं सचित्तपूजा जहाजोग्गं। 449। तेसिं च सरीराणं दव्वसुदस्सवि अचित्तपूजा सा। जा पुण दोण्हं कीरइ णायव्वा मिस्सपूजा सा। 450। अहवा आगम-णोआगमाइभेएण बहुविहं दव्वं। णाऊण दव्वपूजा कायव्वा सुत्तमग्गेण। 451।</span> =<span class="HindiText"> जलादि द्रव्य से प्रतिमादि द्रव्य की जो पूजा की जाती है, उसे '''द्रव्य पूजा''' जानना चाहिए। वह द्रव्य से अर्थात् जल गंधादि पूर्व में कहे गये पदार्थ समूह से करना चाहिए। 448। <span class="GRef">( अमितगति श्रावकाचार/1213 )</span> द्रव्यपूजा, सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार की है। प्रत्यक्ष उपस्थित जिनेंद्र भगवान और गुरु आदि का यथायोग्य पूजन करना सो सचित्तपूजा है। उनके अर्थात् जिन तीथकर आदि के शरीर की और द्रव्यश्रुत अर्थात् कागज आदि पर लिपिबद्ध शास्त्र की जो पूजा की जाती है, वह अचित्त पूजा है और जो दोनों की पूजा की जाती है, वह मिश्रपूजा जानना चाहिए। 449-450। अथवा आगमद्रव्य और नोआगमद्रव्य आदि के भेद से अनेक प्रकार के द्रव्य निक्षेप को जानकर शास्त्र प्रतिपादित मार्ग से '''द्रव्य पूजा''' करना चाहिए। 451। <span class="GRef">( गुणभद्र श्रावकाचार/219-221 )</span>। <br /> | |||
<span class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ पूजा#4 | पूजा - 4]]। | |||
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भगवती आराधना / विजयोदया टीका/47/159/20 पूजा द्विप्रकारा द्रव्यपूजा भावपूजा चेति। = पूजा के द्रव्य पूजा और भाव पूजा ऐसे दो भेद हैं।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/47/159/21 गंधपुष्पधूपाक्षतादिदानं अर्हदाद्युद्दिश्य द्रव्यपूजा। अभ्युत्थानप्रदक्षिणीकरण-प्रणमनादिका-कायक्रिया च। वाचा गुणसंस्तवनं च। = अर्हदादिकों के उद्देश्य से गंध, पुष्प, धूप, अक्षतादि समर्पण करना, यह द्रव्यपूजा है। तथा उठ करके खड़े होना, तीन प्रदक्षिणा देना, नमस्कार करना वगैरह शरीर क्रिया करना, वचनों से अर्हदादिक के गुणों को स्तवन करना, यह भी द्रव्य-पूजा है।
वसुनंदी श्रावकाचार/448-451 दव्वेण य दव्वस्स य जा पूजा जाण दव्वपूजा सा। दव्वेण गंध-सलिलाइपुव्वभणिएण कायव्वा। 448। तिविहा दव्वे पूजा सच्चित्ताचित्तमिस्सभेएण। पच्चक्खजिणाईणं सचित्तपूजा जहाजोग्गं। 449। तेसिं च सरीराणं दव्वसुदस्सवि अचित्तपूजा सा। जा पुण दोण्हं कीरइ णायव्वा मिस्सपूजा सा। 450। अहवा आगम-णोआगमाइभेएण बहुविहं दव्वं। णाऊण दव्वपूजा कायव्वा सुत्तमग्गेण। 451। = जलादि द्रव्य से प्रतिमादि द्रव्य की जो पूजा की जाती है, उसे द्रव्य पूजा जानना चाहिए। वह द्रव्य से अर्थात् जल गंधादि पूर्व में कहे गये पदार्थ समूह से करना चाहिए। 448। ( अमितगति श्रावकाचार/1213 ) द्रव्यपूजा, सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार की है। प्रत्यक्ष उपस्थित जिनेंद्र भगवान और गुरु आदि का यथायोग्य पूजन करना सो सचित्तपूजा है। उनके अर्थात् जिन तीथकर आदि के शरीर की और द्रव्यश्रुत अर्थात् कागज आदि पर लिपिबद्ध शास्त्र की जो पूजा की जाती है, वह अचित्त पूजा है और जो दोनों की पूजा की जाती है, वह मिश्रपूजा जानना चाहिए। 449-450। अथवा आगमद्रव्य और नोआगमद्रव्य आदि के भेद से अनेक प्रकार के द्रव्य निक्षेप को जानकर शास्त्र प्रतिपादित मार्ग से द्रव्य पूजा करना चाहिए। 451। ( गुणभद्र श्रावकाचार/219-221 )।
अधिक जानकारी के लिये देखें पूजा - 4।