लगी लो नाभिनंदनसों: Difference between revisions
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'''लगी लो नाभिनंदनसों | (राग सोरठ)<br> | ||
(राग सोरठ) | लगी लो नाभिनंदन सों ।<br> | ||
जपत जेम चकोर चकई, चन्द भरता को ।।<br> | |||
जाउ तन-धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों ।<br> | |||
एक प्रभु की भक्ति मेरे, रहो ज्यों की त्यों।।१ ।।<br> | |||
< | और देव अनेक सेवे, कछु न पायो हौं ।<br> | ||
लगी लो नाभिनंदन सों । | ज्ञान खोयो गाँठिको, धन करत कुवनिज ज्यों ।।२ ।।<br> | ||
जपत जेम चकोर चकई, चन्द भरता को ।। | पुत्र-मित्र कलत्र ये सब, सगे अपनी गों ।<br> | ||
जाउ तन-धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों । | नरक कूप उद्धरन श्रीजिन, समझ `भूधर' यों।।३ ।।<br> | ||
एक प्रभु की भक्ति मेरे, रहो ज्यों की त्यों।।१ ।। | |||
और देव अनेक सेवे, कछु न पायो हौं । | |||
ज्ञान खोयो गाँठिको, धन करत कुवनिज ज्यों ।।२ ।। | |||
पुत्र-मित्र कलत्र ये सब, सगे अपनी गों । | |||
नरक कूप उद्धरन श्रीजिन, समझ `भूधर' यों।।३ ।। | |||
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Latest revision as of 11:16, 29 February 2008
लगी लो नाभिनंदनसों
(राग सोरठ)
लगी लो नाभिनंदन सों ।
जपत जेम चकोर चकई, चन्द भरता को ।।
जाउ तन-धन जाउ जोवन, प्रान जाउ न क्यों ।
एक प्रभु की भक्ति मेरे, रहो ज्यों की त्यों।।१ ।।
और देव अनेक सेवे, कछु न पायो हौं ।
ज्ञान खोयो गाँठिको, धन करत कुवनिज ज्यों ।।२ ।।
पुत्र-मित्र कलत्र ये सब, सगे अपनी गों ।
नरक कूप उद्धरन श्रीजिन, समझ `भूधर' यों।।३ ।।