योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 147: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
व्यवहार चारित्र से मुक्ति नहीं - | <p class="Utthanika">व्यवहार चारित्र से मुक्ति नहीं -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन्नपि ।<br> | पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन्नपि ।<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन् अपि कषायेन (सह) वर्तमान: (आत्मा) कल्मषेभ्य: न मुच्यते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन् अपि कषायेन (सह) वर्तमान: (आत्मा) कल्मषेभ्य: न मुच्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- हिंसादि पाँच पाप और पापजनक आरम्भ को छोड़कर (२८ मूलगुणरूप) पुण्यमय आचरण करता हुआ भी (मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि) यदि (पुण्य-पाप को उपादेय माननेरूप) कषाय (मिथ्यात्व) के साथ वर्त रहा है तो वह मिथ्यात्वरूप पाप से नहीं छूटता । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- हिंसादि पाँच पाप और पापजनक आरम्भ को छोड़कर (२८ मूलगुणरूप) पुण्यमय आचरण करता हुआ भी (मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि) यदि (पुण्य-पाप को उपादेय माननेरूप) कषाय (मिथ्यात्व) के साथ वर्त रहा है तो वह मिथ्यात्वरूप पाप से नहीं छूटता । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 146 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 146 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:39, 15 May 2009
व्यवहार चारित्र से मुक्ति नहीं -
पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन्नपि ।
वर्तमान: कषायेन कल्मषेभ्यो न मुच्यते ।।१४७।।
अन्वय :- पापारम्भं परित्यज्य शस्तं वृत्तं चरन् अपि कषायेन (सह) वर्तमान: (आत्मा) कल्मषेभ्य: न मुच्यते ।
सरलार्थ :- हिंसादि पाँच पाप और पापजनक आरम्भ को छोड़कर (२८ मूलगुणरूप) पुण्यमय आचरण करता हुआ भी (मिथ्यादृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि) यदि (पुण्य-पाप को उपादेय माननेरूप) कषाय (मिथ्यात्व) के साथ वर्त रहा है तो वह मिथ्यात्वरूप पाप से नहीं छूटता ।