योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 66: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- अखिल: भाव: पर्याय-अपेक्षया नश्यति उत्पद्यते । पुन: द्रव्य-अपेक्षया न कश्चित् नश्यति (न) उत्पद्यते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- द्रव्य समूह को पर्याय की अपेक्षा से देखा जाय तो द्रव्य नष्ट होता है और द्रव्य ही उत्पन्न भी होता है ;परन्तु अनादि-अनंत अर्थात् अविनाशी द्रव्य की अपेक्षा से देखा जाय तो कोई भी द्रव्य न नष्ट होता है और न उत्पन्न होता है । </p> | ||
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द्रव्य का उत्पाद-व्यय, पर्याय अपेक्षा से -
नश्यत्युत्पद्यते भाव: पर्यायापेक्षयाखिल: ।
नश्यत्युत्पद्यते कश्चिन्न द्रव्यापेक्षया पुन: ।।६६।।
अन्वय :- अखिल: भाव: पर्याय-अपेक्षया नश्यति उत्पद्यते । पुन: द्रव्य-अपेक्षया न कश्चित् नश्यति (न) उत्पद्यते ।
सरलार्थ :- द्रव्य समूह को पर्याय की अपेक्षा से देखा जाय तो द्रव्य नष्ट होता है और द्रव्य ही उत्पन्न भी होता है ;परन्तु अनादि-अनंत अर्थात् अविनाशी द्रव्य की अपेक्षा से देखा जाय तो कोई भी द्रव्य न नष्ट होता है और न उत्पन्न होता है ।