योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 79: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- धूै: कुम्भ: इव लोक: अभित: सूक्ष्मै: सूक्ष्मतरै: स्थूलै: स्थूलतरै: अनन्तै: चित्रै: पुद्गलै: चित: (अस्ति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- धू से ठसाठस भरे हुए घट के समान लोकाकाश सर्व ओर से अनेक प्रकार के सूक्ष्म-सूक्ष्मतर, स्थूल-स्थूलतर अनन्त पुद्गलों से ठसाठस भरा हुआ है । </p> | ||
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पुद्गलों से लोक भरा है -
सूक्ष्मै: सूक्ष्मतरैर्लोक: स्थूलै: स्थूलतरैश्चित: ।
अनन्तै: पुद्गलैश्चित्रै: कुम्भो धूैरिवाभित: ।।७९।।
अन्वय :- धूै: कुम्भ: इव लोक: अभित: सूक्ष्मै: सूक्ष्मतरै: स्थूलै: स्थूलतरै: अनन्तै: चित्रै: पुद्गलै: चित: (अस्ति) ।
सरलार्थ :- धू से ठसाठस भरे हुए घट के समान लोकाकाश सर्व ओर से अनेक प्रकार के सूक्ष्म-सूक्ष्मतर, स्थूल-स्थूलतर अनन्त पुद्गलों से ठसाठस भरा हुआ है ।