त्रिलोक कंटक: Difference between revisions
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<p> एक हाथी । रावण ने इसे वश में कर इसका यह नाम रखा था । इसके तीनों लोक | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक हाथी । रावण ने इसे वश में कर इसका यह नाम रखा था । इसके तीनों लोक मंडित हुए थे अत: दशानन ने बड़े हर्ष से इसका त्रिलोकमंडन नाम रखा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_8#432|पद्मपुराण -8. 432]], 85. 163 </span>पूर्वभव में यह पोदनपुर के निवासी अग्निमृख ब्राह्मण का मृदुमति नामक पुत्र था । इसने शशांकमुख गुरु से जिनदीक्षा धारण कर ली थी । एक दिन यह आलोक नगर आया यहाँ लोगों ने इसे मासोपवासी चारण ऋद्धिधारी मुनि समझकर इसकी बहुत पूजा की । यह अपनी झूठी प्रशंसा को चुपचाप सुनता रहा । इस माया के फलस्वरूप इसे अगले जन्म में हाथी होना पड़ा था । मुनि देशभूषण से इसी हाथी ने अणुव्रत धारण किये थे । इसने एक मास का उपवास किया था । अपने आप गिरे हुए सूखे पत्तों से दिन में एक बार पारणा की थी । चार वर्ष तक उग्र तप करने के पश्चात् सल्लेखना पूर्वक मरण करने से यह ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_85#118|पद्मपुराण - 85.118-152]], 87.1-7 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
एक हाथी । रावण ने इसे वश में कर इसका यह नाम रखा था । इसके तीनों लोक मंडित हुए थे अत: दशानन ने बड़े हर्ष से इसका त्रिलोकमंडन नाम रखा था । पद्मपुराण -8. 432, 85. 163 पूर्वभव में यह पोदनपुर के निवासी अग्निमृख ब्राह्मण का मृदुमति नामक पुत्र था । इसने शशांकमुख गुरु से जिनदीक्षा धारण कर ली थी । एक दिन यह आलोक नगर आया यहाँ लोगों ने इसे मासोपवासी चारण ऋद्धिधारी मुनि समझकर इसकी बहुत पूजा की । यह अपनी झूठी प्रशंसा को चुपचाप सुनता रहा । इस माया के फलस्वरूप इसे अगले जन्म में हाथी होना पड़ा था । मुनि देशभूषण से इसी हाथी ने अणुव्रत धारण किये थे । इसने एक मास का उपवास किया था । अपने आप गिरे हुए सूखे पत्तों से दिन में एक बार पारणा की थी । चार वर्ष तक उग्र तप करने के पश्चात् सल्लेखना पूर्वक मरण करने से यह ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ था । पद्मपुराण - 85.118-152, 87.1-7