त्रिलोक कंटक
From जैनकोष
एक हाथी । रावण ने इसे वश में कर इसका यह नाम रखा था । इसके तीनों लोक मंडित हुए थे अत: दशानन ने बड़े हर्ष से इसका त्रिलोकमंडन नाम रखा था । पद्मपुराण -8. 432, 85. 163 पूर्वभव में यह पोदनपुर के निवासी अग्निमृख ब्राह्मण का मृदुमति नामक पुत्र था । इसने शशांकमुख गुरु से जिनदीक्षा धारण कर ली थी । एक दिन यह आलोक नगर आया यहाँ लोगों ने इसे मासोपवासी चारण ऋद्धिधारी मुनि समझकर इसकी बहुत पूजा की । यह अपनी झूठी प्रशंसा को चुपचाप सुनता रहा । इस माया के फलस्वरूप इसे अगले जन्म में हाथी होना पड़ा था । मुनि देशभूषण से इसी हाथी ने अणुव्रत धारण किये थे । इसने एक मास का उपवास किया था । अपने आप गिरे हुए सूखे पत्तों से दिन में एक बार पारणा की थी । चार वर्ष तक उग्र तप करने के पश्चात् सल्लेखना पूर्वक मरण करने से यह ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ था । पद्मपुराण - 85.118-152, 87.1-7