जयंत: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) जंबूद्वीप में पश्चिम विदेहक्षेत्र के गंधमालिनी देश की वीतशोका नगरी के राजा वैजयंत और उसकी रानी सर्वश्री का पुत्र । यह संजयंत का अनुज था । इसने पिता और भाई के साथ स्वयंभू तीर्थंकर से दीक्षा ले ली थी । पिता को केवलज्ञान होने पर उसकी वंदना के लिए आये धरणेंद्र को देखकर मुनि अवस्था में ही इसने धरणेंद्र होने का निदान किया जिससे मरकर यह धरणेंद्र हुआ । यह अपने भाई संजयंत के उपसर्गकारी विद्युद्दंष्ट्र को समुद्र में गिराना चाहता था किंतु आदित्याभ देव के समझाने से यह ऐसा नहीं कर सका था । <span class="GRef"> महापुराण 19.109-115,131-143, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#5|हरिवंशपुराण - 27.5-9]] </span></p> | |||
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<p id="5" class="HindiText">(5) आकाशस्फटिक मणि से बने समवसरण भूमि के तीसरे कोट में पश्चिमी द्वार के आठ नामों मे प्रथम नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_57#59|हरिवंशपुराण - 57.59]] </span></p> | |||
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<p id="9" class="HindiText">(9) पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और उसकी रानी श्रीकांता का पुत्र, वज्रनाभि का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण 10.9-10 </span></p> | |||
<p id="10">(10) जयकुमार का अनुज । इसने जयकुमार के साथ ही दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 47.280-283 </span></p> | |||
<p id="11">(11) धातकीखंड के ऐरावत क्षेत्र में तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी स्वर्णतिलका का पुत्र । यह विजय का अनुज था । <span class="GRef"> महापुराण 63.168-169 </span></p> | |||
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Latest revision as of 17:25, 30 January 2024
सिद्धांतकोष से
- कल्पातीत देवों का एक भेद–देखें स्वर्ग - 2.1
- इन देवों का लोक में अवस्थान–देखें स्वर्ग - 5.4
- एक ग्रह–देखें ग्रह ।
- एक यक्ष–देखें यक्ष ।
- जंबूद्वीप की वेदिका का पश्चिम द्वार–देखें लोक - 3.1
- विजयार्ध की दक्षिण व उत्तर श्रेणी के दो नगर–देखें विद्याधर ।
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप में पश्चिम विदेहक्षेत्र के गंधमालिनी देश की वीतशोका नगरी के राजा वैजयंत और उसकी रानी सर्वश्री का पुत्र । यह संजयंत का अनुज था । इसने पिता और भाई के साथ स्वयंभू तीर्थंकर से दीक्षा ले ली थी । पिता को केवलज्ञान होने पर उसकी वंदना के लिए आये धरणेंद्र को देखकर मुनि अवस्था में ही इसने धरणेंद्र होने का निदान किया जिससे मरकर यह धरणेंद्र हुआ । यह अपने भाई संजयंत के उपसर्गकारी विद्युद्दंष्ट्र को समुद्र में गिराना चाहता था किंतु आदित्याभ देव के समझाने से यह ऐसा नहीं कर सका था । महापुराण 19.109-115,131-143, हरिवंशपुराण - 27.5-9
(2) दुर्जय नामक वन से मुक्त एक गिरि । प्रद्युम्न को यहाँ ही विद्याधर वायु की पुत्री रति प्राप्त हुई थी । हरिवंशपुराण - 47.43
(3) एक अनुत्तर विमान । यह नव ग्रैवेयकों के ऊपर वर्तमान है । महापुराण 70.59, पद्मपुराण - 105.170-171 हरिवंशपुराण - 6.65,34.150
(4) तीर्थंकर मल्लिनाथ दारा दीक्षा के समय व्यवहृत यान । महापुराण 66.46-47
(5) आकाशस्फटिक मणि से बने समवसरण भूमि के तीसरे कोट में पश्चिमी द्वार के आठ नामों मे प्रथम नाम । हरिवंशपुराण - 57.59
(6) विजयार्ध की उत्तरश्रेणी का पंद्रहवाँ नगर । हरिवंशपुराण - 22.87
(7) जंबूद्वीप की जगती के चार द्वारों में एक द्वार । हरिवंशपुराण - 5.390
(8) इंद्र विद्याधर का पुत्र । इसने भयंकर युद्ध में श्रीमाली का वध किया था । पद्मपुराण - 12.224-242
(9) पुंडरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और उसकी रानी श्रीकांता का पुत्र, वज्रनाभि का सहोदर । महापुराण 10.9-10
(10) जयकुमार का अनुज । इसने जयकुमार के साथ ही दीक्षा ली थी । महापुराण 47.280-283
(11) धातकीखंड के ऐरावत क्षेत्र में तिलकनगर के राजा अभयघोष और रानी स्वर्णतिलका का पुत्र । यह विजय का अनुज था । महापुराण 63.168-169