द्रव्य आस्रव: Difference between revisions
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देखें [[ आस्रव#1 | आस्रव - 1]]। | <span class="GRef">नयचक्रवृहद् गाथा 153</span> <p class="PrakritText">लद्धूण तं णिमित्तं जोगं जं पुग्गले पदेसत्थं परणमदि कम्मभावं तं पि हु '''दव्वासवं''' बीजं ॥153॥</p> | ||
<p class="HindiText">= अपने-अपने निमित्त रूप योग को प्राप्त करके आत्म प्रदेशों मे स्थित पुद्गल कर्म भाव रूप से परिणमित हो जाते हैं, उसे '''द्रव्यास्रव''' कहते हैं ॥153॥</p> | |||
<span class="GRef">द्रव्यसंग्रह/मूल 31</span> <p class="PrakritText">णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि। '''दव्वासवो''' स णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो ॥31॥</p> | |||
<p class="HindiText">= ज्ञानावरणादि कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है उसको '''द्रव्यास्रव''' जानना चाहिए। वह अनेक भेदों वाला है, ऐसा जिनेंद्र देव ने कहा है ॥31॥</p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ आस्रव#1 | आस्रव - 1]]।</p> | |||
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Latest revision as of 10:19, 9 August 2023
नयचक्रवृहद् गाथा 153
लद्धूण तं णिमित्तं जोगं जं पुग्गले पदेसत्थं परणमदि कम्मभावं तं पि हु दव्वासवं बीजं ॥153॥
= अपने-अपने निमित्त रूप योग को प्राप्त करके आत्म प्रदेशों मे स्थित पुद्गल कर्म भाव रूप से परिणमित हो जाते हैं, उसे द्रव्यास्रव कहते हैं ॥153॥
द्रव्यसंग्रह/मूल 31
णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि। दव्वासवो स णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो ॥31॥
= ज्ञानावरणादि कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है उसको द्रव्यास्रव जानना चाहिए। वह अनेक भेदों वाला है, ऐसा जिनेंद्र देव ने कहा है ॥31॥
अधिक जानकारी के लिये देखें आस्रव - 1।