रजत: Difference between revisions
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<li>मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.10 | लोक - 5.10]]; </li> | <li>मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.10 | लोक - 5.10]]; </li> | ||
<li> रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13 ]]। </li> | <li> रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13 ]]। </li></div> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा का प्रथम कूट । यहाँ पद्म देव रहता है । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#691|हरिवंशपुराण - 5.691]]) </span></p> | ||
<p id="2">(2) मेरु के | <p id="2" class="HindiText">(2) मेरु के नंदनवन का पांचवां कटू । तोयधारा-दिक्कुमारी देवी यहाँ रहती हैं । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#329|हरिवंशपुराण - 5.329-333]]) </span>देखें [[ रजक#2 | रजक - 2]]</p> | ||
<p id="3">(3) रुचकगिरि की उत्तरदिशा का पाँचवाँ कूट । यहाँ आशा दिक्कुमारी देवी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.716 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) रुचकगिरि की उत्तरदिशा का पाँचवाँ कूट । यहाँ आशा दिक्कुमारी देवी रहती है । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#716|हरिवंशपुराण - 5.716]]) </span></p> | ||
<p id="4">(4) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा का कूट । यहाँ मानुष देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.605 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा का कूट । यहाँ मानुष देव रहता है । <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#605|हरिवंशपुराण - 5.605]]) </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- माल्यवान पर्वतस्थ एक कूट−देखें लोक 5.4.14;
- मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.10;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.13 ।
पुराणकोष से
(1) कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा का प्रथम कूट । यहाँ पद्म देव रहता है । (हरिवंशपुराण - 5.691)
(2) मेरु के नंदनवन का पांचवां कटू । तोयधारा-दिक्कुमारी देवी यहाँ रहती हैं । (हरिवंशपुराण - 5.329-333) देखें रजक - 2
(3) रुचकगिरि की उत्तरदिशा का पाँचवाँ कूट । यहाँ आशा दिक्कुमारी देवी रहती है । (हरिवंशपुराण - 5.716)
(4) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा का कूट । यहाँ मानुष देव रहता है । (हरिवंशपुराण - 5.605)