रजत
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- माल्यवान पर्वतस्थ एक कूट−देखें लोक 5.4.14;
- मानुषोत्तर पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.10;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट - देखें लोक - 5.13 ।
पुराणकोष से
(1) कुंडलगिरि की दक्षिण दिशा का प्रथम कूट । यहाँ पद्म देव रहता है । (हरिवंशपुराण - 5.691)
(2) मेरु के नंदनवन का पांचवां कटू । तोयधारा-दिक्कुमारी देवी यहाँ रहती हैं । (हरिवंशपुराण - 5.329-333) देखें रजक - 2
(3) रुचकगिरि की उत्तरदिशा का पाँचवाँ कूट । यहाँ आशा दिक्कुमारी देवी रहती है । (हरिवंशपुराण - 5.716)
(4) मानुषोत्तर पर्वत की पश्चिम दिशा का कूट । यहाँ मानुष देव रहता है । (हरिवंशपुराण - 5.605)