वचन विनय: Difference between revisions
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<span class="GRef">मूलाचार/381-383</span> <span class="PrakritGatha">अह ओपचारिओ खलु विणओ तिविहो समासदो भणिओ। सत्त चउब्विह दुविहो बोधव्वो आणुपुव्वीए।381। अव्भुट्ठाणं सण्णादि आसणदाणं अणुप्पदाणं च। किदियम्मं पडिरूवं आसणचाओ य अणुव्वजणं।382। हिदमिदपरिमिदभासा अणुवीचीभासणं च बोधव्वं। अकुसलमणस्स रोधो कुसलमणपवत्तओ चेव।383।</span> = <span class="HindiText">संक्षेप से कहें तो तीनों प्रकार की उपचार विनय क्रम से 7, 4 व 2 प्रकार की हैं। अर्थात् कायविनय 7 प्रकार की, '''वचन विनय''' 4 प्रकार की और मानसिक विनय दो प्रकार की है।581। आदर से उठना, मस्तक नमाकर नमस्कार करना, आसन देना, पुस्तकादि देना, यथा योग्य कृति कर्म करना अथवा शीत आदि बाधा का मेटना, गुरुओं के आगे ऊँचा आसन छोड़के बैठना, जाते हुए के कुछ दूर तक साथ जाना, ये सात <strong>कायिक विनय के भेद</strong> हैं।382। हित, मित व परिमित बोलना तथा शास्त्र के अनुसार बोलना ये चार भेद '''वचन विनय''' के हैं। पाप ग्राहक चित्त को रोकना और धर्म में उद्यमी मन की प्रवर्तांना ये दो भेद <strong>मानसिक विनय</strong> के हैं। <span class="GRef">(अनगारधर्मामृत/7/71-73/707-709)</span>। </span><br /> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ विनय#1.8 | विनय - 1.8]]।</p> | |||
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मूलाचार/381-383 अह ओपचारिओ खलु विणओ तिविहो समासदो भणिओ। सत्त चउब्विह दुविहो बोधव्वो आणुपुव्वीए।381। अव्भुट्ठाणं सण्णादि आसणदाणं अणुप्पदाणं च। किदियम्मं पडिरूवं आसणचाओ य अणुव्वजणं।382। हिदमिदपरिमिदभासा अणुवीचीभासणं च बोधव्वं। अकुसलमणस्स रोधो कुसलमणपवत्तओ चेव।383। = संक्षेप से कहें तो तीनों प्रकार की उपचार विनय क्रम से 7, 4 व 2 प्रकार की हैं। अर्थात् कायविनय 7 प्रकार की, वचन विनय 4 प्रकार की और मानसिक विनय दो प्रकार की है।581। आदर से उठना, मस्तक नमाकर नमस्कार करना, आसन देना, पुस्तकादि देना, यथा योग्य कृति कर्म करना अथवा शीत आदि बाधा का मेटना, गुरुओं के आगे ऊँचा आसन छोड़के बैठना, जाते हुए के कुछ दूर तक साथ जाना, ये सात कायिक विनय के भेद हैं।382। हित, मित व परिमित बोलना तथा शास्त्र के अनुसार बोलना ये चार भेद वचन विनय के हैं। पाप ग्राहक चित्त को रोकना और धर्म में उद्यमी मन की प्रवर्तांना ये दो भेद मानसिक विनय के हैं। (अनगारधर्मामृत/7/71-73/707-709)।
अधिक जानकारी के लिये देखें विनय - 1.8।