वीर्याचार: Difference between revisions
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<p class="HindiText">= उसी शुद्धात्म स्वरूप में अपनी शक्ति को प्रकट कर आचरण परिणमन करना वह निश्चय '''वीर्याचार''' है।..अपनी शक्ति प्रकट कर मुनिव्रत का आचरण वह व्यवहार '''वीर्याचार''' है।</p> | |||
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<p> मुनियों के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच अक्षरों में पांचवां आचार । सामर्थ्य के अनुसार आचार का पालन करना वीर्याचार कहलाता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 20.173, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23. 59 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मुनियों के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच अक्षरों में पांचवां आचार । सामर्थ्य के अनुसार आचार का पालन करना वीर्याचार कहलाता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_20#173|हरिवंशपुराण - 20.173]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 23. 59 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
परमात्मप्रकाश / मूल या टीका अधिकार 7/14
तत्रैव शुद्धात्मस्वरूपे स्वशक्त्यानवगूहनेनाचरणं परिणमनं वीर्याचारः।...बाह्यस्वशक्त्यनवगूहनरूपो बाह्यवीर्याचारः।
= उसी शुद्धात्म स्वरूप में अपनी शक्ति को प्रकट कर आचरण परिणमन करना वह निश्चय वीर्याचार है।..अपनी शक्ति प्रकट कर मुनिव्रत का आचरण वह व्यवहार वीर्याचार है।
देखें आचार ।
पुराणकोष से
मुनियों के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पाँच अक्षरों में पांचवां आचार । सामर्थ्य के अनुसार आचार का पालन करना वीर्याचार कहलाता है । हरिवंशपुराण - 20.173, पांडवपुराण 23. 59