विसदृश: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/328 <span class="SanskritGatha">यदि वा तदिह ज्ञानं परिणामः परिणमन्न तदिति यतः। स्वावसरे यत्सत्त्वं तदसत्त्वं परत्र नययोगात्।328।</span> = <span class="HindiText">ज्ञानरूप परिणाम परिणमन करता हुआ ‘यह पूर्व ज्ञानरूप नहीं है’ यह विसदृश का उदाहरण है। क्योंकि विवक्षित परिणाम का अपने समय में जो सत्त्व है दूसरे समय में पर्यायार्थिक नय से उसका वह सत्त्व नहीं है। </span> | <span class="GRef"> पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/328 </span><span class="SanskritGatha">यदि वा तदिह ज्ञानं परिणामः परिणमन्न तदिति यतः। स्वावसरे यत्सत्त्वं तदसत्त्वं परत्र नययोगात्।328।</span> = <span class="HindiText">ज्ञानरूप परिणाम परिणमन करता हुआ ‘यह पूर्व ज्ञानरूप नहीं है’ यह विसदृश का उदाहरण है। क्योंकि विवक्षित परिणाम का अपने समय में जो सत्त्व है दूसरे समय में पर्यायार्थिक नय से उसका वह सत्त्व नहीं है। </span> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 8: | Line 8: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 13:27, 31 January 2023
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/328 यदि वा तदिह ज्ञानं परिणामः परिणमन्न तदिति यतः। स्वावसरे यत्सत्त्वं तदसत्त्वं परत्र नययोगात्।328। = ज्ञानरूप परिणाम परिणमन करता हुआ ‘यह पूर्व ज्ञानरूप नहीं है’ यह विसदृश का उदाहरण है। क्योंकि विवक्षित परिणाम का अपने समय में जो सत्त्व है दूसरे समय में पर्यायार्थिक नय से उसका वह सत्त्व नहीं है।