विसदृश प्रत्यभिज्ञान
From जैनकोष
न्यायदीपिका/3/9/56/9 तदिदमेकत्व सादृश्य तृतीये तु पुनः वैसा दृश्यम् ... प्रत्यभिज्ञानम् । एवमन्येऽपि प्रत्यभिज्ञाभेदा यथाप्रतीति स्वयमुत्पेक्ष्या । = वस्तुओं में रहने वाली
- एकता
- सादृशता और
- विसदृशता प्रत्यभिज्ञान के विषय हैं । इसी प्रकार और भी प्रत्यभिज्ञान के भेद अपने अनुभव से स्वयं विचार लेना ।
देखें प्रत्यभिज्ञान ।