नियमसार: Difference between revisions
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<li><strong class="HindiText" name="1" id="1">नियमसार का लक्षण</strong> <br> नियमसार/3 <span class="PrakritGatha">णियमेण य जं कज्जं तण्णियमं णाणदंसणचरित्तं। विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणम् ।</span> =<span class="HindiText">नियम से जो करने योग्य हो अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र को नियम कहते हैं। इस रत्नत्रय से विरुद्ध भावों का त्याग करने के लिए वास्तव में ‘सार’ ऐसा वचन कहा है। </span><br> | <li><strong class="HindiText" name="1" id="1">नियमसार का लक्षण</strong> <br><span class="GRef"> नियमसार/3 </span><span class="PrakritGatha">णियमेण य जं कज्जं तण्णियमं णाणदंसणचरित्तं। विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणम् ।</span> =<span class="HindiText">नियम से जो करने योग्य हो अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र को नियम कहते हैं। इस रत्नत्रय से विरुद्ध भावों का त्याग करने के लिए वास्तव में ‘सार’ ऐसा वचन कहा है। </span><br> | ||
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<br>आ. | <br>आ.कुंदकुंद (ई.127-179) कृत, अध्यात्म विषयक, 170 प्राकृतगाथा बद्ध शुद्धात्मस्वरूप प्रदर्शक, एक ग्रंथ। इस पर केवल एक टीका उपलब्ध है–मुनि पद्मप्रभ मल्लधारीदेव (1140-1185) कृत संस्कृत टीका। (ती./2/114)। | ||
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Latest revision as of 11:36, 18 September 2022
- नियमसार का लक्षण
नियमसार/3 णियमेण य जं कज्जं तण्णियमं णाणदंसणचरित्तं। विवरीयपरिहरत्थं भणिदं खलु सारमिदि वयणम् । =नियम से जो करने योग्य हो अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र को नियम कहते हैं। इस रत्नत्रय से विरुद्ध भावों का त्याग करने के लिए वास्तव में ‘सार’ ऐसा वचन कहा है।
नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/1 नियमसार इत्यनेन शुद्धरत्नत्रयस्वरूपमुक्तम् । =’नियमसार’ ऐसा कहकर शुद्धरत्नत्रय का स्वरूप कहा है। - नियमसार नामक ग्रंथ
आ.कुंदकुंद (ई.127-179) कृत, अध्यात्म विषयक, 170 प्राकृतगाथा बद्ध शुद्धात्मस्वरूप प्रदर्शक, एक ग्रंथ। इस पर केवल एक टीका उपलब्ध है–मुनि पद्मप्रभ मल्लधारीदेव (1140-1185) कृत संस्कृत टीका। (ती./2/114)।