अव्याबाध सुख: Difference between revisions
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Latest revision as of 10:49, 29 December 2022
द्रव्यसंग्रह टीका/14/43/5 सहजशुद्धस्वरूपानुभवसमुत्पन्नरागादिविभावरहितसुखामृतस्य यदेकदेशसंवेदनं कृतं पूर्वं तस्यैव फलभूतमव्याबाधसुखं भण्यते। =स्वाभाविक शुद्ध आत्म स्वरूप के अनुभव से उत्पन्न तथा रागादि विभावों से रहित सुखरूपी अमृत का जो एक देश अनुभव पहले किया था, उसी के फलस्वरूप अव्याबाध अनंतसुख गुण सिद्धों में कहा गया है।
सुख सम्बन्धित जानकारी के लिए देखें सुख