अशुच्यनुप्रेक्षा: Difference between revisions
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<p> शरीर में अशुचिता की भावना । शरीर मलस्रावी नव द्वारों से युक्त अशुचि है । रज वीर्य से उत्पन्न मल-मूत्र, रक्त-मांस का घर है । राग-द्वेष, काम, कषाय आदि से प्रभावित है । चंदन आदि भी इसके संसर्ग से अपवित्र हो जाते हैं । शरीर की ऐसी अशुचिता का चिंतन करना तीसरी अशुच्यनुप्रेक्षा है । <span class="GRef"> महापुराण 11.107, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 14.237, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 24.96-98, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.54-63 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> शरीर में अशुचिता की भावना । शरीर मलस्रावी नव द्वारों से युक्त अशुचि है । रज वीर्य से उत्पन्न मल-मूत्र, रक्त-मांस का घर है । राग-द्वेष, काम, कषाय आदि से प्रभावित है । चंदन आदि भी इसके संसर्ग से अपवित्र हो जाते हैं । शरीर की ऐसी अशुचिता का चिंतन करना तीसरी अशुच्यनुप्रेक्षा है । <span class="GRef"> महापुराण 11.107, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#237|पद्मपुराण - 14.237]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 24.96-98, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.54-63 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
शरीर में अशुचिता की भावना । शरीर मलस्रावी नव द्वारों से युक्त अशुचि है । रज वीर्य से उत्पन्न मल-मूत्र, रक्त-मांस का घर है । राग-द्वेष, काम, कषाय आदि से प्रभावित है । चंदन आदि भी इसके संसर्ग से अपवित्र हो जाते हैं । शरीर की ऐसी अशुचिता का चिंतन करना तीसरी अशुच्यनुप्रेक्षा है । महापुराण 11.107, पद्मपुराण - 14.237, पांडवपुराण 24.96-98, वीरवर्द्धमान चरित्र 11.54-63