आहारदान: Difference between revisions
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<p> हिंसा आदि दोषों तथा आरंभों से दूर रहने वाले मुनियों आदि पात्रों को उनकी शरीर की स्थिति के लिए विधिपूर्वक आहार देना । इसका शुभारंभ राजा श्रेयांस ने किया था । यह दान देने और लेने वाले दोनों को ही परंपरया कर्म-निर्जरा एव साक्षात् पुण्यास्रव का कारण है । <span class="GRef"> महापुराण 20.99, 123, 56.71-73, 433, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 32.154 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> </div> | ||
<div class="image-with-content_image-box_left">[[File:आहार दान 1.jpg|150px|आहार दान 1]]</div> हिंसा आदि दोषों तथा आरंभों से दूर रहने वाले मुनियों आदि पात्रों को उनकी शरीर की स्थिति के लिए विधिपूर्वक आहार देना । इसका शुभारंभ राजा श्रेयांस ने किया था । यह दान देने और लेने वाले दोनों को ही परंपरया कर्म-निर्जरा एव साक्षात् पुण्यास्रव का कारण है । <span class="GRef"> महापुराण 20.99, 123, 56.71-73, 433, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_32#154|पद्मपुराण - 32.154]] </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
हिंसा आदि दोषों तथा आरंभों से दूर रहने वाले मुनियों आदि पात्रों को उनकी शरीर की स्थिति के लिए विधिपूर्वक आहार देना । इसका शुभारंभ राजा श्रेयांस ने किया था । यह दान देने और लेने वाले दोनों को ही परंपरया कर्म-निर्जरा एव साक्षात् पुण्यास्रव का कारण है । महापुराण 20.99, 123, 56.71-73, 433, पद्मपुराण - 32.154