तिर्यक्लोक: Difference between revisions
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<p> लोक का मध्यभाग । इसका विस्तार एक राजु है । यह असंख्यात वलयाकार द्वीपों और समुद्रों से शोभायमान है । ये द्वीप और समुद्र क्रम से दुगुने-दुगुने विस्तार से युक्त हैं । हिमवत् आदि छ: कुलाचलों, भरत आदि सात क्षेत्रों और गंगा-सिंधु आदि चौदह नदियों से युक्त एक लाख योजन | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> लोक का मध्यभाग । इसका विस्तार एक राजु है । यह असंख्यात वलयाकार द्वीपों और समुद्रों से शोभायमान है । ये द्वीप और समुद्र क्रम से दुगुने-दुगुने विस्तार से युक्त हैं । हिमवत् आदि छ: कुलाचलों, भरत आदि सात क्षेत्रों और गंगा-सिंधु आदि चौदह नदियों से युक्त एक लाख योजन चौड़ा जंबूद्वीप इसके मध्य में स्थित है । यह तनुवातवलय के अंत भाग पर्यंत पृथिवीतल के एक हजार योजन नीचे से लेकर निन्यानवे हजार योजन ऊँचाई तक फैला हुआ है । <span class="GRef"> महापुराण 4.40-41, 45-49, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#30|पद्मपुराण - 3.30-31]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#1|हरिवंशपुराण - 5.1]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 13:03, 1 February 2024
लोक का मध्यभाग । इसका विस्तार एक राजु है । यह असंख्यात वलयाकार द्वीपों और समुद्रों से शोभायमान है । ये द्वीप और समुद्र क्रम से दुगुने-दुगुने विस्तार से युक्त हैं । हिमवत् आदि छ: कुलाचलों, भरत आदि सात क्षेत्रों और गंगा-सिंधु आदि चौदह नदियों से युक्त एक लाख योजन चौड़ा जंबूद्वीप इसके मध्य में स्थित है । यह तनुवातवलय के अंत भाग पर्यंत पृथिवीतल के एक हजार योजन नीचे से लेकर निन्यानवे हजार योजन ऊँचाई तक फैला हुआ है । महापुराण 4.40-41, 45-49, पद्मपुराण - 3.30-31, हरिवंशपुराण - 5.1