देशीयगण: Difference between revisions
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नंदिसंघ की एक शाखा–देखें [[ इतिहास#5.2 | इतिहास - 5.2]],7/5। | <h4 id="7.5" style="padding-left: 30px;"><strong>7.5 नन्दिसंघ '''देशीयगण'''</strong></h4> | ||
<p style="text-align: justify; padding-left: 30px;">(तीन प्रसिद्ध शाखायें)<br />प्रमाण = 1. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/3/93 पर उद्धृत नयकीर्ति पट्टावली।<br />( धवला 2/ प्रस्तावना 2/H. L. Jain); ( तत्त्वार्थवृत्ति / प्रस्तावना 97)।<br />2. धवला 2/ प्रस्तावना 11/H. L. Jain/शिलालेख नं. 64 में उद्धृत गुणनन्दि परम्परा। 3. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/373 पर उद्धृत मेघचन्द्र प्रशस्ति तथा तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/387 पर उद्धृत देवकीर्ति प्रशस्ति।</p> | |||
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<p style="padding-left: 30px;">टिप्पणी:-</p> | |||
<p style="text-align: justify; padding-left: 30px;">1. माघनन्दि के सधर्मा=अबद्धिकरण पद्यनन्दि कौमारदेव, प्रभाचन्द्र, तथा नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती। श्ल. 35-39। तदनुसार इनका समय ई. श. 10-11 ।<br />2. गुणचन्द्र के शिष्य माणिक्यनन्दि और नयकीर्ति योगिन्द्रदेव हैं। नयकीर्ति की समाधि शक 1099 (ई. 1177) में हुई। तदनुसार इनका समय लगभग ई. 1155।<br />3. मेघचन्द्र के सधर्मा= मल्लधारी देव, श्रीधर, दामनन्दि त्रैविद्य, भानुकीर्ति और बालचन्द्र (श्ल. 24-34)। तदनुसार इनका समय वि. श. 11। (ई. 1018-1048)।<br />4. क्रमशः-नन्दीसंघ देशीयगण गोलाचार्य शाखा<br />प्रमाण :- 1. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/373 पर उद्धृत मेघचन्द्रकी प्रशस्ति विषयक शिलालेख नं. 47/तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/186 पर उद्धृत देवकीर्ति की प्रशस्ति विषयक शिलालेख नं. 40। 2. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 3/224 पर उद्धृत वसुनन्दि श्रावकाचार की अन्तिम प्रशस्ति। 3. ( धवला 2/ प्रस्तावना 4/H. L. Jain); (पद्मनंदी पंचविंशति/प्रस्तावना 28/H. L. Jain)</p> | |||
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7.5 नन्दिसंघ देशीयगण
(तीन प्रसिद्ध शाखायें)
प्रमाण = 1. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/3/93 पर उद्धृत नयकीर्ति पट्टावली।
( धवला 2/ प्रस्तावना 2/H. L. Jain); ( तत्त्वार्थवृत्ति / प्रस्तावना 97)।
2. धवला 2/ प्रस्तावना 11/H. L. Jain/शिलालेख नं. 64 में उद्धृत गुणनन्दि परम्परा। 3. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/373 पर उद्धृत मेघचन्द्र प्रशस्ति तथा तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/387 पर उद्धृत देवकीर्ति प्रशस्ति।
टिप्पणी:-
1. माघनन्दि के सधर्मा=अबद्धिकरण पद्यनन्दि कौमारदेव, प्रभाचन्द्र, तथा नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती। श्ल. 35-39। तदनुसार इनका समय ई. श. 10-11 ।
2. गुणचन्द्र के शिष्य माणिक्यनन्दि और नयकीर्ति योगिन्द्रदेव हैं। नयकीर्ति की समाधि शक 1099 (ई. 1177) में हुई। तदनुसार इनका समय लगभग ई. 1155।
3. मेघचन्द्र के सधर्मा= मल्लधारी देव, श्रीधर, दामनन्दि त्रैविद्य, भानुकीर्ति और बालचन्द्र (श्ल. 24-34)। तदनुसार इनका समय वि. श. 11। (ई. 1018-1048)।
4. क्रमशः-नन्दीसंघ देशीयगण गोलाचार्य शाखा
प्रमाण :- 1. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/373 पर उद्धृत मेघचन्द्रकी प्रशस्ति विषयक शिलालेख नं. 47/तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 4/186 पर उद्धृत देवकीर्ति की प्रशस्ति विषयक शिलालेख नं. 40। 2. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा 3/224 पर उद्धृत वसुनन्दि श्रावकाचार की अन्तिम प्रशस्ति। 3. ( धवला 2/ प्रस्तावना 4/H. L. Jain); (पद्मनंदी पंचविंशति/प्रस्तावना 28/H. L. Jain)
नंदिसंघ की एक शाखा–देखें इतिहास - 5.2,7/5।