देह
From जैनकोष
- देखें शरीर ;
द्रव्यसंग्रह टीका/10/27/7 इदमत्र तात्पर्यम्-देहममत्वनिमित्तेन देहं गृहीत्वा संसारे परिभ्रमति तेन कारणेन देहादिममत्वं त्यक्त्वा निर्मोहनिजशुद्धात्मनि भावना कर्तव्येति। =तात्पर्य यह है-जीव देह के साथ ममत्व के निमित्त से देह को ग्रहणकर संसार में भ्रमण करता है, इसलिए देह आदि के ममत्व को छोड़कर निर्मोह अपने शुद्धात्मा में भावना करनी चाहिए। - पिशाच जातीय व्यंतर देवों का एक भेद–देखें पिशाच ।
तिलोयपण्णत्ति/6/48-49 कुंमुंडजक्खरक्खसससंमोहा तारआ य चोक्खक्खा। कालमहकाल चोक्खा सतालया देहमहदेहा। 48। तुण्हिअपवयणणामा....। 49। = कुष्मांड, यक्ष, राक्षस, संमोह, तारक, अशुचिनामक काल, महाकाल, शुचि, सतालक, देह, महादेह, तूष्णीक और प्रवचन नामक, इस प्रकार ये चौदह पिशाचों के भेद हैं। 4849।