पूरण: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(4 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
अंतर पूरणकरण - देखें [[ अंतरकरण#2 | अंतरकरण - 2]]। | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="HindiText"> अंतर पूरणकरण - देखें [[ अंतरकरण#2 | अंतरकरण - 2]]। </span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवां/हुपु के अनुसार आठवां पुत्र । समुद्रविजय, स्तिमितसागर, हिमवान, विजय, अचल और धारण ये छ: इसके अग्रज थे तथा पूरितार्थीच्छ, अभिनंदन कौर वसुदेव ये तीन अनुज थे । कुंती और माद्री इसकी बहिनें थी । इसके चार पुत्र हुए― दुष्पूर, दुर्मुख, दुर्दर्श और दुर्धर । <span class="GRef"> महापुराण 70.95-67, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-15, 48.51 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवां/हुपु के अनुसार आठवां पुत्र । समुद्रविजय, स्तिमितसागर, हिमवान, विजय, अचल और धारण ये छ: इसके अग्रज थे तथा पूरितार्थीच्छ, अभिनंदन कौर वसुदेव ये तीन अनुज थे । कुंती और माद्री इसकी बहिनें थी । इसके चार पुत्र हुए― दुष्पूर, दुर्मुख, दुर्दर्श और दुर्धर । <span class="GRef"> महापुराण 70.95-67, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#12|हरिवंशपुराण - 18.12-15]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#51|हरिवंशपुराण - 48.51] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 23: | Line 24: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
अंतर पूरणकरण - देखें अंतरकरण - 2।
पुराणकोष से
अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवां/हुपु के अनुसार आठवां पुत्र । समुद्रविजय, स्तिमितसागर, हिमवान, विजय, अचल और धारण ये छ: इसके अग्रज थे तथा पूरितार्थीच्छ, अभिनंदन कौर वसुदेव ये तीन अनुज थे । कुंती और माद्री इसकी बहिनें थी । इसके चार पुत्र हुए― दुष्पूर, दुर्मुख, दुर्दर्श और दुर्धर । महापुराण 70.95-67, हरिवंशपुराण - 18.12-15,[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#51|हरिवंशपुराण - 48.51]