विनयसंपन्नता: Difference between revisions
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<p> तीर्थंकर-प्रकृति के बंध की कारणभूत सोलह भावनाओं में दूसरी भावना । ज्ञान आदि गुणों और उनके धारकों में कषायरहित परिणामों में आदरभाव रखना विनयसंपन्नता-भावना कहलाती है । <span class="GRef"> महापुराण 63. 321, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.133 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> तीर्थंकर-प्रकृति के बंध की कारणभूत सोलह भावनाओं में दूसरी भावना । ज्ञान आदि गुणों और उनके धारकों में कषायरहित परिणामों में आदरभाव रखना विनयसंपन्नता-भावना कहलाती है । <span class="GRef"> महापुराण 63. 321, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#133|हरिवंशपुराण - 34.133]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
तीर्थंकर-प्रकृति के बंध की कारणभूत सोलह भावनाओं में दूसरी भावना । ज्ञान आदि गुणों और उनके धारकों में कषायरहित परिणामों में आदरभाव रखना विनयसंपन्नता-भावना कहलाती है । महापुराण 63. 321, हरिवंशपुराण - 34.133