विनयसंपन्नता
From जैनकोष
तीर्थंकर-प्रकृति के बंध की कारणभूत सोलह भावनाओं में दूसरी भावना । ज्ञान आदि गुणों और उनके धारकों में कषायरहित परिणामों में आदरभाव रखना विनयसंपन्नता-भावना कहलाती है । महापुराण 63. 321, हरिवंशपुराण - 34.133
तीर्थंकर-प्रकृति के बंध की कारणभूत सोलह भावनाओं में दूसरी भावना । ज्ञान आदि गुणों और उनके धारकों में कषायरहित परिणामों में आदरभाव रखना विनयसंपन्नता-भावना कहलाती है । महापुराण 63. 321, हरिवंशपुराण - 34.133