विभक्ति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> | <span class="GRef"> कषायपाहुड़ 3/3-22/5/ </span>पृष्ठ/पंक्ति<span class="PrakritText">–अथवा ण एत्थ मूलपयडिट्ठिदीए एयत्तमत्थि, जहण्णट्ठिदिप्पहुडिजाव उक्कस्सट्ठिदि त्ति सव्वासिं ट्ठिदीणं मूलपयडिट्ठिदि त्ति गहणादो। (6/5)। तेण पयडिसरूवेण एगा ट्ठिदी एगट्ठिदीभेंद पडुच्चट्ठिदिविहत्ती होदि त्तिसिद्धं। </span>= <span class="HindiText">विभक्ति, भेद और पृथग्भाव ये तीनों एकार्थवाची शब्द हैं। एक स्थिति में भी प्रदेशभेद की अपेक्षा नानात्व पाया जाता है। अथवा विवक्षित मोहनीय को मूलप्रकृति स्थिति का शेष ज्ञानावरणादि मूल प्रकृतिस्थितियों से भेद पाया जाता है। अथवा प्रकृत में मूलप्रकृतिस्थिति का एकत्व नहीं लिया है, क्योंकि जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति तक सभी स्थितियों का ‘मूल प्रकृतिस्थिति’ पद के द्वारा ग्रहण किया है। इसलिए प्रकृतिरूप से एक स्थिति अपने स्थितिभेदों की अपेक्ष स्थितिविभक्ति होती है, यह सिद्ध होता है। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> | <span class="GRef"> कषायपाहुड़ 3/3-22/15/3 </span><span class="PrakritText">उक्कस्सविहत्तीए उक्कस्स अद्धाछेदस्स च को भेदो। वुच्चदे-चरिमणिसेयस्स कालो उक्कस्स अद्धाछेदो णाम। उक्कस्सट्ठिदिविहत्ती पुण सव्वणिसेयाणं सव्वणिसेयपदेसाणं वा कालो।...एवं संते सव्वुक्कस्सविहत्तीणं णत्थि भेदो त्ति णासंकणिज्जं। ताणं पि णयविसेसवसाणं कथंचि भेदुवलंभादो। तं जहा–समुदायपहाणा उक्कस्स विहत्ती। अवयवपहाणा सव्वविहत्ति।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न–</strong>उत्कृष्ट विभक्ति और उत्कृष्ट अद्धाच्छेद में क्या भेद है? <strong>उत्तर–</strong>अंतिम निषेक के काल को उत्कृष्ट अद्धाच्छेद कहते हैं और समस्त निषेकों के या समस्त निषेकों के प्रदेशों के काल को उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति कहते हैं। इसलिए इन दोनों में भेद है। ऐसी होते हुए सवं विभक्ति [संपूर्ण निषेकों का समूह (देखें [[ स्थिति#2 | स्थिति - 2]])] और उत्कृष्ट विभक्ति इन दोनों में भेद नहीं है, ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि नय विशेष की अपेक्षा उन दोनों में भी कथंचित् भेद पाया जाता है। वह इस प्रकार है–उत्कृष्ट विभक्ति समुदाय प्रधान होती है और सर्व विभक्ति अवयव प्रधान होती है। </span></p> | ||
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Latest revision as of 21:07, 22 September 2022
कषायपाहुड़ 2/2-22/8/6/8 विभजनं विभक्तिः न विभक्तिरविभक्तिः। = विभाग करने को विभक्ति कहते हैं और विभक्ति के अभाव को अविभक्ति कहते हैं।
कषायपाहुड़ 3/3-22/4/ पृष्ठ। पंक्ति–विहत्ती भेदो पुधभावोत्ति एयट्ठो (5/4)।..... एक्किस्से वि ट्ठिदीए पदेसभेदेण पयडिभेदेण च णाणत्तुवलंभादो। (5/8)।....... मूलपयडिट्ठिदीए सेसणाणावरणादिमूलपयडिट्ठिदीहिंतो भेदोववत्तीदो। (6/2)।
कषायपाहुड़ 3/3-22/5/ पृष्ठ/पंक्ति–अथवा ण एत्थ मूलपयडिट्ठिदीए एयत्तमत्थि, जहण्णट्ठिदिप्पहुडिजाव उक्कस्सट्ठिदि त्ति सव्वासिं ट्ठिदीणं मूलपयडिट्ठिदि त्ति गहणादो। (6/5)। तेण पयडिसरूवेण एगा ट्ठिदी एगट्ठिदीभेंद पडुच्चट्ठिदिविहत्ती होदि त्तिसिद्धं। = विभक्ति, भेद और पृथग्भाव ये तीनों एकार्थवाची शब्द हैं। एक स्थिति में भी प्रदेशभेद की अपेक्षा नानात्व पाया जाता है। अथवा विवक्षित मोहनीय को मूलप्रकृति स्थिति का शेष ज्ञानावरणादि मूल प्रकृतिस्थितियों से भेद पाया जाता है। अथवा प्रकृत में मूलप्रकृतिस्थिति का एकत्व नहीं लिया है, क्योंकि जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति तक सभी स्थितियों का ‘मूल प्रकृतिस्थिति’ पद के द्वारा ग्रहण किया है। इसलिए प्रकृतिरूप से एक स्थिति अपने स्थितिभेदों की अपेक्ष स्थितिविभक्ति होती है, यह सिद्ध होता है।
कषायपाहुड़ 3/3-22/15/3 उक्कस्सविहत्तीए उक्कस्स अद्धाछेदस्स च को भेदो। वुच्चदे-चरिमणिसेयस्स कालो उक्कस्स अद्धाछेदो णाम। उक्कस्सट्ठिदिविहत्ती पुण सव्वणिसेयाणं सव्वणिसेयपदेसाणं वा कालो।...एवं संते सव्वुक्कस्सविहत्तीणं णत्थि भेदो त्ति णासंकणिज्जं। ताणं पि णयविसेसवसाणं कथंचि भेदुवलंभादो। तं जहा–समुदायपहाणा उक्कस्स विहत्ती। अवयवपहाणा सव्वविहत्ति। = प्रश्न–उत्कृष्ट विभक्ति और उत्कृष्ट अद्धाच्छेद में क्या भेद है? उत्तर–अंतिम निषेक के काल को उत्कृष्ट अद्धाच्छेद कहते हैं और समस्त निषेकों के या समस्त निषेकों के प्रदेशों के काल को उत्कृष्ट स्थिति विभक्ति कहते हैं। इसलिए इन दोनों में भेद है। ऐसी होते हुए सवं विभक्ति [संपूर्ण निषेकों का समूह (देखें स्थिति - 2)] और उत्कृष्ट विभक्ति इन दोनों में भेद नहीं है, ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि नय विशेष की अपेक्षा उन दोनों में भी कथंचित् भेद पाया जाता है। वह इस प्रकार है–उत्कृष्ट विभक्ति समुदाय प्रधान होती है और सर्व विभक्ति अवयव प्रधान होती है।