• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

स्थिति

From जैनकोष

 Share 

अवस्थान काल का नाम स्थिति है। बंध काल से लेकर प्रतिसमय एक एक करके कर्म उदय में आ आकर खिरते रहते हैं। इस प्रकार जब तक उस समय में बंधा सर्व द्रव्य समाप्त हो, उतना उतना काल उस कर्म की स्थिति है। और प्रतिसमय वह खिरने वाला द्रव्य निषेक कहलाता है। संपूर्ण स्थिति में एक-एक के पीछे एक स्थित रहता है। सबसे पहिले निषेक में सबसे अधिक द्रव्य हैं, पीछे क्रम पूर्वक घटते-घटते अंतिम निषेक में सर्वत्र स्तोक द्रव्य होता है। इसलिए स्थिति प्रकरण में कर्म निषेकों का यह त्रिकोण यंत्र बन जाता है। कषाय आदि की तीव्रता के कारण संक्लेश परिणामों से अधिक और विशुद्ध परिणामों से हीन स्थिति बंधती है।

  1. भेद व लक्षण
    1. स्थिति सामान्य का लक्षण।
    2. स्थिति बंध का लक्षण।।
    • स्थिति बंध अध्यवसाय स्थान।-देखें अध्यवसाय ।
    1. उत्कृष्ट व सर्व स्थिति के लक्षण।
    • उत्कृष्ट व सर्व स्थिति आदि में अंतर।-देखें अनुयोग - 3.2।
    1. अग्र व उपरितन स्थिति के लक्षण।
    2. सांतर व निरंतर स्थिति के लक्षण।
    3. प्रथम व द्वितीय स्थिति के लक्षण।
    4. सादि अनादि स्थिति के लक्षण।
    5. विचार स्थान का लक्षण।
    • जीवों की स्थिति।-देखें आयु ।
  2. स्थितिबंध निर्देश
    1. स्थितिबंध में चार अनुयोग द्वार।
    2. भवस्थिति व कायस्थिति में अंतर।
    3. एकसमयिक बंध को बंध नहीं कहते।
    4. स्थिति व अनुभाग बंध की प्रधानता।
    • स्थितिबंध का कारण कषाय है।-देखें बंध - 5.1।
    • स्थिति (काल) की ओघ आदेश प्ररूपणा।-देखें काल - 5,6।
  3. निषेक रचना
    1. निषेक रचना ही कर्मों की स्थिति है।
    2. स्थितिबंध में निषेकों की त्रिकोण रचना संबंधी।
    • निषेकों की त्रिकोण रचना का आकार।-देखें उदय - 3।
    1. कर्म व नोकर्म की निषेक रचना संबंधी विशेष सूची।
  4. उत्कृष्ट व जघन्य स्थितिबंध संबंधी नियम
    • जघन्य स्थिति में निषेक प्रधान हैं और उत्कृष्ट स्थिति में काल।-देखें सत्त्व - 2.5।
    1. मरण समय उत्कृष्ट बंध संभव नहीं।
    2. स्थितिबंध में संक्लेश विशुद्ध परिणामों का स्थान।
    3. मोहनीय का उत्कृष्ट स्थितिबंधक कौन।
    4. उत्कृष्ट अनुभाग के साथ उत्कृष्ट स्थिति बंध की व्याप्ति।
    • स्थिति व प्रदेश बंध में अंतर-देखें प्रदेश बंध ।
    1. उत्कृष्ट स्थिति बंध का अंतरकाल।
    2. जघन्य स्थितिबंध में गुणहानि संभव नहीं।
    3. साता व तीर्थंकर प्रकृतियों का ज.उ.स्थितिबंध संबंधी दृष्टि भेद।
    • ईर्यापथ कर्म की स्थिति संबंधी-देखें ईर्यापथ ।
    • जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति सत्त्व के स्वामी।-देखें सत्त्व - 2।
    1. उत्कृष्ट अनुभाग के साथ अनुत्कृष्ट स्थितिबंध कैसे।
  5. स्थितिबंध संबंधी शंका समाधान
    1. साता के जघन्य स्थितिबंध संबंधी।
    2. उत्कृष्ट अनुभाग के साथ अनुत्कृष्ट स्थितिबंध कैसे।
    3. विग्रह गति में नारकी संज्ञी का भुजगार स्थितिबंध कैसे ?
  6. स्थितिबंध प्ररूपणा
    1. मूलोत्तर प्रकृतियों की जघन्योत्कृष्ट आबाधा व स्थिति तथा उनका स्वामित्व।
    2. इंद्रिय मार्गणा की अपेक्षा प्रकृतियों की उ.ज.स्थिति की सारणी।
    3. उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति, प्रदेश व अनुभाग के बंधों की प्ररूपणा।
    4. अन्य प्ररूपणाओं संबंधी सूची।
    • मूलोत्तर प्रकृति की स्थितिबंध व बंधकों संबंधी संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=स्थिति&oldid=88955"
Category:
  • स
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 28 March 2022, at 08:21.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki