वैश्रवण: Difference between revisions
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कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का राजा था ।2 । तप कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया और मरकर अपराजित विमान में अहमिंद्र हुआ ।14-16 । यह मल्लिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।–देखें [[ मल्लिनाथ ]]। </li> | |||
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<p id="1">(1) पूर्वविदेह का सीता नदी और निषध-कुलाचल का एक वक्षारगिरि । <span class="GRef"> महापुराण 63. 202, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.229 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) पूर्वविदेह का सीता नदी और निषध-कुलाचल का एक वक्षारगिरि । <span class="GRef"> महापुराण 63. 202, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#229|हरिवंशपुराण - 5.229]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवाँ कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.28 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवाँ कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#28|हरिवंशपुराण - 5.28]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) हिमवत्-कुलाचल के ग्यारह कूटों में ग्यारहवाँ फूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.55 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) हिमवत्-कुलाचल के ग्यारह कूटों में ग्यारहवाँ फूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#55|हरिवंशपुराण - 5.55]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) ऐरावत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवां कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.112 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) ऐरावत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवां कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#112|हरिवंशपुराण - 5.112]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) कुबेर का एक नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 61. 18 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) कुबेर का एक नाम । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_61#18|हरिवंशपुराण - 61.18]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) जंबूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी का तैंतालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19.51, 53 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) जंबूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी का तैंतालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19.51, 53 </span></p> | ||
<p id="7">(7) तीर्थंकर मल्लिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का नृप । यह वज्रपात से वटवृक्ष के समूल विनाश को देखकर संसार से भयभीत हुआ । फलस्वरूप पुत्र को राज्य देकर मुनि नाग के पास यह दीक्षित हो गया । तप करके तीर्थंकरप्रकृति का बंध करने के पश्चात् मरकर यह अपराजित विमान में अहमिंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 66.2-3, 11-16 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) तीर्थंकर मल्लिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का नृप । यह वज्रपात से वटवृक्ष के समूल विनाश को देखकर संसार से भयभीत हुआ । फलस्वरूप पुत्र को राज्य देकर मुनि नाग के पास यह दीक्षित हो गया । तप करके तीर्थंकरप्रकृति का बंध करने के पश्चात् मरकर यह अपराजित विमान में अहमिंद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 66.2-3, 11-16 </span></p> | ||
<p id="8">(8) भरतक्षेत्र के मध्य देश में रत्नपुर नगर का सेठ । इसकी पत्नी गोतमा और पुत्र श्रीदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-94 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) भरतक्षेत्र के मध्य देश में रत्नपुर नगर का सेठ । इसकी पत्नी गोतमा और पुत्र श्रीदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 67.90-94 </span></p> | ||
<p id="9">(9) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर का एक सेठ । इसने मुनिराज समुद्रसेन को आहार देने के बाद मुनिराज के पीछे-पीछे आये हुए गौतम ब्राह्मण को भोजन कराया था । फलस्वरूप गौतम ने इससे प्रभावित होकर मुनि सागरसेन से दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 70. 160-176 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर का एक सेठ । इसने मुनिराज समुद्रसेन को आहार देने के बाद मुनिराज के पीछे-पीछे आये हुए गौतम ब्राह्मण को भोजन कराया था । फलस्वरूप गौतम ने इससे प्रभावित होकर मुनि सागरसेन से दीक्षा ले ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 70. 160-176 </span></p> | ||
<p id="10">(10) यक्षपुर के धनिक विश्रवस और कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिंदु विद्याधर की | <p id="10">(10) यक्षपुर के धनिक विश्रवस और कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिंदु विद्याधर की बड़ी पुत्री कौशिकी का पुत्र । इंद्र विद्याधर ने इसे पाँचवाँ लोकपाल तथा लंका का राजा बनाया था । दशानन का यह मौसेरा भाई था । युद्ध में यह रावण से पराजित हुआ । अंत में दिगंबर दीक्षा लेकर इसने तप किया और तपश्चरण करते हुए मरकर परमगति पायी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#127|पद्मपुराण - 7.127-132]], 236, 8.239-240, 250-251 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- लोकपाल देवों का एक भेद–देखें लोकपाल ।
- आकाशोपपन्न देव बारह प्रकार के हैं ,उन देवों में से एक भेद–देखें देव - II.1.3 ।
- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
- हिमवान् पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक–देखें लोक - 5.4 ।
- विजयार्ध पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक देव–देखें लोक - 5.4 ।
- पद्म ह्नद के वन में स्थित एक कूट–देखें लोक - 5.7 ।
- रुचक पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.13 ।
- पूर्व विदेह का एक वक्षार व उसका कूट तथा रक्षक देव–देखें लोक - 5.3 ।
- मानुषोत्तर पर्वत के कनककूट का रक्षक सुपर्ण, कुमार देव–देखें लोक - 5.10 ।
- पद्मपुराण /7/ श्लोक-
यक्षपुर के धनिक विश्रवस का पुत्र था ।129 । विद्याधरों के राजा इंद्र द्वारा प्रदत्त लंका का राज्य किया, फिर रावण द्वारा परास्त किया गया ।246। अंत में दीक्षित हो गया ।251। - महापुराण /66/ श्लोक-
कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का राजा था ।2 । तप कर तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया और मरकर अपराजित विमान में अहमिंद्र हुआ ।14-16 । यह मल्लिनाथ भगवान् का पूर्व का दूसरा भव है ।–देखें मल्लिनाथ ।
पुराणकोष से
(1) पूर्वविदेह का सीता नदी और निषध-कुलाचल का एक वक्षारगिरि । महापुराण 63. 202, हरिवंशपुराण - 5.229
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवाँ कूट । हरिवंशपुराण - 5.28
(3) हिमवत्-कुलाचल के ग्यारह कूटों में ग्यारहवाँ फूट । हरिवंशपुराण - 5.55
(4) ऐरावत क्षेत्र में विजयार्ध पर्वत के नौ कूटों में नौवां कूट । हरिवंशपुराण - 5.112
(5) कुबेर का एक नाम । हरिवंशपुराण - 61.18
(6) जंबूद्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी का तैंतालीसवाँ नगर । महापुराण 19.51, 53
(7) तीर्थंकर मल्लिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-कच्छकावती देश के वीतशोक नगर का नृप । यह वज्रपात से वटवृक्ष के समूल विनाश को देखकर संसार से भयभीत हुआ । फलस्वरूप पुत्र को राज्य देकर मुनि नाग के पास यह दीक्षित हो गया । तप करके तीर्थंकरप्रकृति का बंध करने के पश्चात् मरकर यह अपराजित विमान में अहमिंद्र हुआ । महापुराण 66.2-3, 11-16
(8) भरतक्षेत्र के मध्य देश में रत्नपुर नगर का सेठ । इसकी पत्नी गोतमा और पुत्र श्रीदत्त था । महापुराण 67.90-94
(9) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर का एक सेठ । इसने मुनिराज समुद्रसेन को आहार देने के बाद मुनिराज के पीछे-पीछे आये हुए गौतम ब्राह्मण को भोजन कराया था । फलस्वरूप गौतम ने इससे प्रभावित होकर मुनि सागरसेन से दीक्षा ले ली थी । महापुराण 70. 160-176
(10) यक्षपुर के धनिक विश्रवस और कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिंदु विद्याधर की बड़ी पुत्री कौशिकी का पुत्र । इंद्र विद्याधर ने इसे पाँचवाँ लोकपाल तथा लंका का राजा बनाया था । दशानन का यह मौसेरा भाई था । युद्ध में यह रावण से पराजित हुआ । अंत में दिगंबर दीक्षा लेकर इसने तप किया और तपश्चरण करते हुए मरकर परमगति पायी । पद्मपुराण - 7.127-132, 236, 8.239-240, 250-251