अशोका: Difference between revisions
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2, नंदीश्वर द्वीप की दक्षिण दिशा में स्थित एक वापी - देखें [[ लोक#4.5 | लोक - 4.5]]।</p> | |||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी की एक नगरी । यह कुमुदा देश की राजधानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 19.81, 87,63.208-216, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.262 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी की एक नगरी । यह कुमुदा देश की राजधानी थी । <span class="GRef"> महापुराण 19.81, 87,63.208-216, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#262|हरिवंशपुराण - 5.262]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) नंदीश्वर द्वीप की पश्चिम दिशा के अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित वापी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.662 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) नंदीश्वर द्वीप की पश्चिम दिशा के अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित वापी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#662|हरिवंशपुराण - 5.662]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) ईहापुर नगर के राजा प्रचंडवाहन और उनकी रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री । अन्य बहिनों के साथ अणुव्रत धारण करके यह श्राविका बन गयी थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.96-99 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) ईहापुर नगर के राजा प्रचंडवाहन और उनकी रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री । अन्य बहिनों के साथ अणुव्रत धारण करके यह श्राविका बन गयी थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#96|हरिवंशपुराण - 45.96-99]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. ऊपर विदेह के कुमुद क्षेत्र की प्रधान नगरी - देखें लोक - 5.2.2.
2, नंदीश्वर द्वीप की दक्षिण दिशा में स्थित एक वापी - देखें लोक - 4.5।
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी की एक नगरी । यह कुमुदा देश की राजधानी थी । महापुराण 19.81, 87,63.208-216, हरिवंशपुराण - 5.262
(2) नंदीश्वर द्वीप की पश्चिम दिशा के अंजनगिरि की पूर्व दिशा में स्थित वापी । हरिवंशपुराण - 5.662
(3) ईहापुर नगर के राजा प्रचंडवाहन और उनकी रानी विमलप्रभा की दस पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री । अन्य बहिनों के साथ अणुव्रत धारण करके यह श्राविका बन गयी थी । हरिवंशपुराण - 45.96-99