असमीक्ष्याधिकरण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58. 179 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#179|हरिवंशपुराण - 58.179]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
अनर्थदंडव्रत के पाँच अतिचारों में एक अतिचार—प्रयोजन का विचार न करके आवश्यकता से अधिक किसी कार्य में प्रवृत्ति करना-कराना । हरिवंशपुराण - 58.179