देशावधिज्ञान: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
देखें [[ अवधिज्ञान#1 | अवधिज्ञान - 1]]। | <p><span class="GRef"> धवला 13/5,5,59/323/3 </span><p class="PrakritText">परमा ओही मज्याया जस्स णाणस्स तं परमोहिणाणं। किं परमं। असंखेज्जलोगसेत्तसंजमवियप्पा।...देसं सम्मतं। संजमस्स अवयवभावादो; तमोही मज्जाया जस्स णाणस्स तं '''देसोहिणाणं'''।...सव्वं केवलणाणं, तस्स विसओ जो जो अत्थो सो विसव्वं उवयारादो। सव्वमोही मज्जाया जस्स णाणस्स तं सव्वोहिणाणं।</p> | ||
<p class="HindiText">= परम अर्थात् असंख्यात लोकमात्र संयम भेद ही जिस ज्ञान की अवधि अर्थात् मर्यादा है वह ``परमावधि ज्ञान`` कहा जाता है।..देश का अर्थ सम्यक्त्व है, क्योंकि वह संयम का अवयव है। वह जिस ज्ञान की अवधि अर्थात् मर्यादा है वह '''देशावधिज्ञान''' हैं।....सर्व का अर्थ केवलज्ञान है। उसका विषय जो जो अर्थ होता है, वह भी उपचार से सर्व कहलाता है। सर्व अवधि अर्थात् मर्यादा जिस ज्ञान की होती है वह सर्वावधिज्ञान है।</p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अवधिज्ञान#1 | अवधिज्ञान - 1]]।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 13: | Line 17: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> अवधिज्ञान का प्रथम भेद । इसका विषय पुद्गल द्रव्य है । यह अवधिज्ञानावरण-कर्म के क्षयोपशम से होता है । <span class="GRef"> महापुराण 48. 23, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.152 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अवधिज्ञान का प्रथम भेद । इसका विषय पुद्गल द्रव्य है । यह अवधिज्ञानावरण-कर्म के क्षयोपशम से होता है । <span class="GRef"> महापुराण 48. 23, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#152|हरिवंशपुराण - 10.152]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 24: | Line 28: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: द]] | [[Category: द]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
धवला 13/5,5,59/323/3
परमा ओही मज्याया जस्स णाणस्स तं परमोहिणाणं। किं परमं। असंखेज्जलोगसेत्तसंजमवियप्पा।...देसं सम्मतं। संजमस्स अवयवभावादो; तमोही मज्जाया जस्स णाणस्स तं देसोहिणाणं।...सव्वं केवलणाणं, तस्स विसओ जो जो अत्थो सो विसव्वं उवयारादो। सव्वमोही मज्जाया जस्स णाणस्स तं सव्वोहिणाणं।
= परम अर्थात् असंख्यात लोकमात्र संयम भेद ही जिस ज्ञान की अवधि अर्थात् मर्यादा है वह ``परमावधि ज्ञान`` कहा जाता है।..देश का अर्थ सम्यक्त्व है, क्योंकि वह संयम का अवयव है। वह जिस ज्ञान की अवधि अर्थात् मर्यादा है वह देशावधिज्ञान हैं।....सर्व का अर्थ केवलज्ञान है। उसका विषय जो जो अर्थ होता है, वह भी उपचार से सर्व कहलाता है। सर्व अवधि अर्थात् मर्यादा जिस ज्ञान की होती है वह सर्वावधिज्ञान है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अवधिज्ञान - 1।
पुराणकोष से
अवधिज्ञान का प्रथम भेद । इसका विषय पुद्गल द्रव्य है । यह अवधिज्ञानावरण-कर्म के क्षयोपशम से होता है । महापुराण 48. 23, हरिवंशपुराण - 10.152