धूमकेतु: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 3: | Line 3: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> एक ग्रह‒देखें [[ ग्रह ]]। </li> | <li class="HindiText"> एक ग्रह‒देखें [[ ग्रह ]]। </li> | ||
<li class="HindiText"> | <li class="HindiText"> <span class="GRef">( हरिवंशपुराण/43/ </span>श्लोक) पूर्वभव में वरपुर का राजा वीरसेन था।163। वर्तमान भव में स्त्री वियोग के कारण अज्ञान तप करके देव हुआ।221। पूर्व वैर के कारण इसने प्रद्युम्न को चुराकर एक पर्वत की शिला के नीचे दबा दिया।222। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 13: | Line 13: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ध]] | [[Category: ध]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) विभगावधिज्ञानी एक असुर । आकाशमार्ग मे जाते हुए इसका विमान रुक्मिणी के महल पर रुक गया गतिरोध के कारण को जानने के लिए वह इस महल में गया । वहाँ उसने अपने पूर्वभव के बैरी शिशु प्रद्युम्न को देखा । बैरवश उसने रुक्मिणी को महानिद्रा में निमग्न कर दिया और उस शिशु को उठाकर ले गया तथा खदिर अटवी मे तक्षशिला के नीचे दबाकर चला गया । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.100 43.39-48, </span>पूर्वभव में प्रद्युम्न के जीव मधु ने इसके पूर्वभव के जीव राजा वीरसेन की स्त्री को अपनी स्त्री बना लिया था । पूर्वभव के इस बैर के फलस्वरूप इस भव में इसने मधु के जीव प्रद्युम्न को मार डालने की इच्छा से तक्षक शिला के नीचे दबाया था । इसका अपरनाम धूम्रकेतु था । <span class="GRef"> महापुराण 72.40-53, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.220-222 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विभगावधिज्ञानी एक असुर । आकाशमार्ग मे जाते हुए इसका विमान रुक्मिणी के महल पर रुक गया गतिरोध के कारण को जानने के लिए वह इस महल में गया । वहाँ उसने अपने पूर्वभव के बैरी शिशु प्रद्युम्न को देखा । बैरवश उसने रुक्मिणी को महानिद्रा में निमग्न कर दिया और उस शिशु को उठाकर ले गया तथा खदिर अटवी मे तक्षशिला के नीचे दबाकर चला गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#100|हरिवंशपुराण - 1.100]] 43.39-48, </span>पूर्वभव में प्रद्युम्न के जीव मधु ने इसके पूर्वभव के जीव राजा वीरसेन की स्त्री को अपनी स्त्री बना लिया था । पूर्वभव के इस बैर के फलस्वरूप इस भव में इसने मधु के जीव प्रद्युम्न को मार डालने की इच्छा से तक्षक शिला के नीचे दबाया था । इसका अपरनाम धूम्रकेतु था । <span class="GRef"> महापुराण 72.40-53, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#220|हरिवंशपुराण - 43.220-222]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) दिखते ही अदृश्य हो जाने वाला अमंगल का सूचक एक ग्रह । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.48 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) दिखते ही अदृश्य हो जाने वाला अमंगल का सूचक एक ग्रह । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#48|हरिवंशपुराण - 43.48]] </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 28: | Line 28: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: ध]] | [[Category: ध]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- एक ग्रह‒देखें ग्रह ।
- ( हरिवंशपुराण/43/ श्लोक) पूर्वभव में वरपुर का राजा वीरसेन था।163। वर्तमान भव में स्त्री वियोग के कारण अज्ञान तप करके देव हुआ।221। पूर्व वैर के कारण इसने प्रद्युम्न को चुराकर एक पर्वत की शिला के नीचे दबा दिया।222।
पुराणकोष से
(1) विभगावधिज्ञानी एक असुर । आकाशमार्ग मे जाते हुए इसका विमान रुक्मिणी के महल पर रुक गया गतिरोध के कारण को जानने के लिए वह इस महल में गया । वहाँ उसने अपने पूर्वभव के बैरी शिशु प्रद्युम्न को देखा । बैरवश उसने रुक्मिणी को महानिद्रा में निमग्न कर दिया और उस शिशु को उठाकर ले गया तथा खदिर अटवी मे तक्षशिला के नीचे दबाकर चला गया । हरिवंशपुराण - 1.100 43.39-48, पूर्वभव में प्रद्युम्न के जीव मधु ने इसके पूर्वभव के जीव राजा वीरसेन की स्त्री को अपनी स्त्री बना लिया था । पूर्वभव के इस बैर के फलस्वरूप इस भव में इसने मधु के जीव प्रद्युम्न को मार डालने की इच्छा से तक्षक शिला के नीचे दबाया था । इसका अपरनाम धूम्रकेतु था । महापुराण 72.40-53, हरिवंशपुराण - 43.220-222
(2) दिखते ही अदृश्य हो जाने वाला अमंगल का सूचक एक ग्रह । हरिवंशपुराण - 43.48