वैडूर्य: Difference between revisions
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<p id="2">(2) महाशुक्र स्वर्ग का एक विमान । <span class="GRef"> महापुराण 29.226 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) महाशुक्र स्वर्ग का एक विमान । <span class="GRef"> महापुराण 29.226 </span></p> | ||
<p id="3">(3) महाशुक्र स्वर्ग का देव । <span class="GRef"> महापुराण 59.226 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) महाशुक्र स्वर्ग का देव । <span class="GRef"> महापुराण 59.226 </span></p> | ||
<p id="4">(4) नील-मणि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 2.10 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) नील-मणि । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#10|हरिवंशपुराण - 2.10]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) रत्नप्रभा-प्रथम नरक के खरभाग का तीसरा पटल । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.52 </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | <p id="5" class="HindiText">(5) रत्नप्रभा-प्रथम नरक के खरभाग का तीसरा पटल । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#52|हरिवंशपुराण - 4.52]] </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | ||
<p id="6">(6) महाहिमवत् कुलाचल का आठवाँँ कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.72 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) महाहिमवत् कुलाचल का आठवाँँ कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#72|हरिवंशपुराण - 5.72]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) रूचकगिरि की पूर्वदिशा का एक कूट । यहाँ विजयादिक्कुमारी देवी निवास करती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.705 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) रूचकगिरि की पूर्वदिशा का एक कूट । यहाँ विजयादिक्कुमारी देवी निवास करती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#705|हरिवंशपुराण - 5.705]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) रूचकगिरि की ऐशान दिशा का एक कूट । यहां रूचका महत्तरिका देवी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.72 </span>2</p> | <p id="8" class="HindiText">(8) रूचकगिरि की ऐशान दिशा का एक कूट । यहां रूचका महत्तरिका देवी रहती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#72|हरिवंशपुराण - 5.72]] </span>2</p> | ||
<p id="9">(9) सौधर्म युगल का चौदहवाँ इंद्रक । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.45 </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | <p id="9" class="HindiText">(9) सौधर्म युगल का चौदहवाँ इंद्रक । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#45|हरिवंशपुराण - 6.45]] </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | ||
<p id="10">(10) मानुषोत्तर पर्वत का पूर्व दिशा का एक कूट । यहाँ यशस्वान् देव रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.602 </span></p> | <p id="10">(10) मानुषोत्तर पर्वत का पूर्व दिशा का एक कूट । यहाँ यशस्वान् देव रहता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#602|हरिवंशपुराण - 5.602]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- मध्यलोक के अंत में सप्तम सागर व द्वीप।–देखें लोक - 5.1।
- सुमेरु पर्वत का अपर नाम सुवैडूर्य चूलिका है–देखें सुमेरु ।
- महा हिमवान् पर्वत का एक कूट व उसका रक्षक देव।–देखें लोक - 5.4.5 ।
- पद्मह्रद में स्थित एक कूट–देखें लोक - 5.7।
- मानुषोत्तर पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.10।
- रुचक पर्वत का एक कूट–देखें लोक - 5.13।
- सौधर्म स्वर्ग का 14वाँ पटल–देखें स्वर्ग - 5.3।
पुराणकोष से
(1) भरतक्षेत्र का एक पर्वत । चक्रवर्ती भरतेश के सैनिक दिग्विजय के समय यहाँ आये थे । महापुराण 29.67
(2) महाशुक्र स्वर्ग का एक विमान । महापुराण 29.226
(3) महाशुक्र स्वर्ग का देव । महापुराण 59.226
(4) नील-मणि । हरिवंशपुराण - 2.10
(5) रत्नप्रभा-प्रथम नरक के खरभाग का तीसरा पटल । हरिवंशपुराण - 4.52 देखें खरभाग
(6) महाहिमवत् कुलाचल का आठवाँँ कूट । हरिवंशपुराण - 5.72
(7) रूचकगिरि की पूर्वदिशा का एक कूट । यहाँ विजयादिक्कुमारी देवी निवास करती है । हरिवंशपुराण - 5.705
(8) रूचकगिरि की ऐशान दिशा का एक कूट । यहां रूचका महत्तरिका देवी रहती है । हरिवंशपुराण - 5.72 2
(9) सौधर्म युगल का चौदहवाँ इंद्रक । हरिवंशपुराण - 6.45 देखें सौधर्म
(10) मानुषोत्तर पर्वत का पूर्व दिशा का एक कूट । यहाँ यशस्वान् देव रहता है । हरिवंशपुराण - 5.602