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<li><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/9 </span><span class="SanskritText">दीक्षकाचार्यशिष्यसंस्त्याय: कुलम्।</span>=<span class="HindiText">दीक्षकाचार्य के शिष्य समुदाय को कुल कहते हैं। <span class="GRef">( राजवार्तिक/9/24/9/623 )</span>;<span class="GRef">( चारित्रसार/151/3 )</span></span><br /> | |||
<span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/203/276/7 </span><span class="SanskritText"> लोकदुगुंच्छारहितत्वेन जिनदीक्षायोग्यं कुल भण्यते।</span>=<span class="HindiText">लौकिक दोषों से रहित जो जिनदीक्षा के योग्य होता है उसे कुल कहते हैं।<br /> | |||
<span class="GRef">मूलाचार/भाषा/221</span><br><span class="HindiText"> जाति भेद को कुल कहते हैं। </span></li> | |||
<li class="HindiText"><strong> 199½ लाख क्रोड़ की अपेक्षा कुलों का नाम निर्देश—</strong> </span><br /> | |||
मूलाचार/221−225<span class="PrakritGatha"> बावीससत्ततिण्णि अ सत्तय कुलकोडि सद सहस्साई। णेयापुढविदगागणिवाऊकायाण परिसंखा।221। कोडिसदसहस्साइं स्रत्तट्ठ व णव य अट्ठबीसं च। बेइंदियतेइंदियचउरिदियहरिदकायाणं।222। अद्धतेरस बारस दसयं कुलकोडिसद्सहस्साइं। जलचरपक्खिचउप्पयउरपरिसप्पेसु णव होंति।223। छव्वीसं पणवीसं चउदसकुलकोडिसदसहस्साइं। सुरणेरइयणराणं जहाकमं होइ णायव्वं।224। एया य कोडिकोडी णवणवदीकोडिसदसहस्साइं। पण्णारसं च सहस्सा संवग्गोणं कुलाण कोडोओ।225</span>।<br /> | |||
<span class="HindiText">अर्थ= </span></li> | |||
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<td width="62" valign="top"><p class="HindiText">3.</p></td> | |||
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<td width="232" valign="top"><p class="HindiText">पंचेंद्रिय भूचर सर्पादि जीवों में </p></td> | |||
<td width="194" valign="top"><p class="HindiText">=9 लाख क्रोड कुल </p></td> | |||
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<td width="62" valign="top"><p class="HindiText">5.</p></td> | |||
<td width="232" valign="top"><p class="HindiText">नारक जीवों में </p></td> | |||
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<td width="232" valign="top"><p class="HindiText">मनुष्यों में </p></td> | |||
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<td width="232" valign="top"><p class="HindiText">देवों में </p></td> | |||
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<li><strong class="HindiText"> 197½ लाख क्रोड़ की अपेक्षा कुलों का नाम निर्देश</strong> <br /> | |||
<span class="GRef"> नियमसार/ टीका/42/276/7 </span><br><span class="HindiText">पूर्वोक्त वत् ही है, अंतर केवल इतना है कि वहाँ मनुष्य में 14 लाख क्रोड़ कुल कहे हैं, और यहाँ मनुष्यों में 12 लाख क्रोड़ कुल कहे हैं। इस प्रकार 2 क्रोड़ कुल का अंतर हो जाता है। <span class="GRef">( तत्त्वसार/2/112 −116)</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड मूल/193−117)</span> </span></li> | |||
<li><strong class="HindiText"> कुल व जाति में अंतर</strong> <span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/117/278/6</span><br><span class="HindiText"> जाति है सो तौ योनी है तहाँ उपजने के स्थान रूप, पुद्गल स्कंध के भेदनि का ग्रहण करना। बहुरि कुल है सो जिनि पुद्गलकरि शरीर निपजें तिनि के भेद रूप हैं। जैसैं शरीर पुद्गल आकारादि भेदकरि पंचेंद्रिय तिर्यंचविषै हाथी, घोड़ा इत्यादि भेद हैं ऐसे सो यथासंभव जानना।</span> </li> | |||
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== पुराणकोष से == | |||
<span class="HindiText"> (1) पिता का वंश । <span class="GRef"> महापुराण 39.85,59.261 </span></br> | |||
<span class="HindiText">(2) जीवों का कुल । अहिंसा महाव्रत के पालन में मुनि को आगमों मे बताये हुए जीवों के कुलों का भी ध्यान रखना पड़ता है । देखें [[ कुलकोटि ]]</span> | |||
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[[ कुर्युधर | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
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[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: क]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] | |||
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- सर्वार्थसिद्धि/9/24/442/9 दीक्षकाचार्यशिष्यसंस्त्याय: कुलम्।=दीक्षकाचार्य के शिष्य समुदाय को कुल कहते हैं। ( राजवार्तिक/9/24/9/623 );( चारित्रसार/151/3 )
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/203/276/7 लोकदुगुंच्छारहितत्वेन जिनदीक्षायोग्यं कुल भण्यते।=लौकिक दोषों से रहित जो जिनदीक्षा के योग्य होता है उसे कुल कहते हैं।
मूलाचार/भाषा/221
जाति भेद को कुल कहते हैं। - 199½ लाख क्रोड़ की अपेक्षा कुलों का नाम निर्देश—
मूलाचार/221−225 बावीससत्ततिण्णि अ सत्तय कुलकोडि सद सहस्साई। णेयापुढविदगागणिवाऊकायाण परिसंखा।221। कोडिसदसहस्साइं स्रत्तट्ठ व णव य अट्ठबीसं च। बेइंदियतेइंदियचउरिदियहरिदकायाणं।222। अद्धतेरस बारस दसयं कुलकोडिसद्सहस्साइं। जलचरपक्खिचउप्पयउरपरिसप्पेसु णव होंति।223। छव्वीसं पणवीसं चउदसकुलकोडिसदसहस्साइं। सुरणेरइयणराणं जहाकमं होइ णायव्वं।224। एया य कोडिकोडी णवणवदीकोडिसदसहस्साइं। पण्णारसं च सहस्सा संवग्गोणं कुलाण कोडोओ।225।
अर्थ=
|
एकेंद्रियों में |
|
1. |
पृथिविकायिक जीवों में |
=22 लाख क्रोड कुल |
2. |
अपकायिक जीवों में |
=7 लाख क्रोड कुल |
3. |
तेजकायिक जीवों में |
=3 लाख क्रोड कुल |
4. |
वायुकायिक जीवों में |
=7 लाख क्रोड कुल |
5. |
वनस्पतिकायिक जीवों में |
=28 लाख क्रोड कुल |
|
विकलत्रय |
|
1. |
द्विइंद्रिय जीवों में |
=7 लाख क्रोड कुल |
2. |
त्रिइंद्रिय जीवों में |
=8 लाख क्रोड कुल |
3. |
चतुरिंद्रिय जीवों में |
=9 लाख क्रोड कुल |
|
पंचेंद्रिय |
|
1. |
पंचेंद्रिय जलचर जीवों में |
=12½ लाख क्रोड कुल |
2. |
पंचेंद्रिय खेचर जीवों में |
=12 लाख क्रोड कुल |
3. |
पंचेंद्रिय भूचर चौपाये जीवों में |
=10 लाख क्रोड कुल |
4. |
पंचेंद्रिय भूचर सर्पादि जीवों में |
=9 लाख क्रोड कुल |
5. |
नारक जीवों में |
=25 लाख क्रोड कुल |
6. |
मनुष्यों में |
=14 लाख क्रोड कुल |
7. |
देवों में |
=26 लाख क्रोड कुल |
|
कुल सर्व कुल |
=199½ लाख क्रोड कुल |
- 197½ लाख क्रोड़ की अपेक्षा कुलों का नाम निर्देश
नियमसार/ टीका/42/276/7
पूर्वोक्त वत् ही है, अंतर केवल इतना है कि वहाँ मनुष्य में 14 लाख क्रोड़ कुल कहे हैं, और यहाँ मनुष्यों में 12 लाख क्रोड़ कुल कहे हैं। इस प्रकार 2 क्रोड़ कुल का अंतर हो जाता है। ( तत्त्वसार/2/112 −116); ( गोम्मटसार जीवकांड मूल/193−117) - कुल व जाति में अंतर गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/117/278/6
जाति है सो तौ योनी है तहाँ उपजने के स्थान रूप, पुद्गल स्कंध के भेदनि का ग्रहण करना। बहुरि कुल है सो जिनि पुद्गलकरि शरीर निपजें तिनि के भेद रूप हैं। जैसैं शरीर पुद्गल आकारादि भेदकरि पंचेंद्रिय तिर्यंचविषै हाथी, घोड़ा इत्यादि भेद हैं ऐसे सो यथासंभव जानना।
पुराणकोष से
(1) पिता का वंश । महापुराण 39.85,59.261
(2) जीवों का कुल । अहिंसा महाव्रत के पालन में मुनि को आगमों मे बताये हुए जीवों के कुलों का भी ध्यान रखना पड़ता है । देखें कुलकोटि