अल्पबहुत्व: Difference between revisions
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<li> प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - [[ संख्या#2 | संख्या - 2]] </li> | <li> प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - [[ संख्या#2 | संख्या - 2]] </li> | ||
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<li> [[#2.6.2 | पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | <li> [[#2.6.2 | पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | ||
<li> [[#2.6.3 | बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | <li> [[#2.6.3 | बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | ||
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<li> [[#2.8 | योग मार्गणा]] <ol> | <li> [[#2.8 | योग मार्गणा]] <ol> | ||
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<li> [[#2.8. | <li> [[#2.8.2 | विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | ||
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<li> [[#2.9 | वेद मार्गणा]] <ol> | <li> [[#2.9 | वेद मार्गणा]] <ol> | ||
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<li> [[#2.9.2 | विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | <li> [[#2.9.2 | विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा। ]] </li> | ||
<li> [[#2.9.3 | तीनों | <li> [[#2.9.3 | तीनों वेदों की पृथक्-पृथक् ओघ व आदेश प्ररूपणा। ]] </li> | ||
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<li> [[#3.1 | सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा]] <ol> | <li> [[#3.1 | सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा]] <ol> | ||
<li> [[#3.1.1 | संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.1.1 | संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li> [[#3.1.2 | क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण | <li> [[#3.1.2 | क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण सिद्धों में)।]] </li> | ||
<li> [[#3.1.3 | काल की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.1.3 | काल की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li> [[#3.1.4 | अन्तर की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.1.4 | अन्तर की अपेक्षा।]] </li> | ||
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<li> [[#3.1.10 | ज्ञान की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.1.10 | ज्ञान की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li> [[#3.1.11 | अवगाहना की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.1.11 | अवगाहना की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li> [[#3.1.12 | युगपत् प्राप्त | <li> [[#3.1.12 | युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा।]] </li></ol></li> | ||
<li> [[#3.2 | १-१, २-२ आदि करके संचय | <li> [[#3.2 | १-१, २-२ आदि करके संचय होने वाले जीवों की अल्प बहुत्वप्ररूपणा]] <ol> | ||
<li> [[#3.2.1 | गति आदि १४ मार्गणा की अपेक्षा।]] </li></ol></li> | <li> [[#3.2.1 | गति आदि १४ मार्गणा की अपेक्षा।]] </li></ol></li> | ||
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<li> पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों को संघातन, परिशातन, उभय व अनुभयादि कृतियों की अपेक्षा। दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।</li> </ul></li> | <li> पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों को संघातन, परिशातन, उभय व अनुभयादि कृतियों की अपेक्षा। दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।</li> </ul></li> | ||
<li> [[#3.5 | पंच | <li> [[#3.5 | पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ]] <ol> | ||
<li> [[#3.5.1 | सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा।]] </li> | <li> [[#3.5.1 | सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा।]] </li> | ||
<li> [[#3.5.2 | औदारिक शरीर विशेषकी अवगाहना की अपेक्षा।]] </li></ol> | <li> [[#3.5.2 | औदारिक शरीर विशेषकी अवगाहना की अपेक्षा।]] </li></ol> | ||
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<ul><li> अनिवृत्ति गुणस्थान में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/२९७/४)। </li> | <ul><li> अनिवृत्ति गुणस्थान में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/२९७/४)। </li> | ||
<li> उपशान्तकषाय से उतरे अनिवृत्तिकरण में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३२४/३)।</li> | <li> उपशान्तकषाय से उतरे अनिवृत्तिकरण में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३२४/३)।</li> | ||
<li> चारित्रमोह क्षपक अनिवृत्तिकरण के स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३५०/२) (विशेष दे. [[ | <li> चारित्रमोह क्षपक अनिवृत्तिकरण के स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३५०/२) (विशेष दे. [[#3.11 | आगे]])। </li></ul> | ||
<ol start = "4"><li> [[#3.9.4 | मोहनीय कर्म के स्थितिसत्त्वस्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | <ol start = "4"><li> [[#3.9.4 | मोहनीय कर्म के स्थितिसत्त्वस्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | ||
<li> [[#3.9.5 | बन्धसमुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | <li> [[#3.9.5 | बन्धसमुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | ||
<li> [[#3.9.6 | हत्समुत्पत्तिक अनुभागसत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | <li> [[#3.9.6 | हत्समुत्पत्तिक अनुभागसत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा। ]] </li> | ||
<li> [[#3.9.7 | | <li> [[#3.9.7 | अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा। ]] </li> | ||
<li> [[#3.9.8 | अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा। ]] </li> | <li> [[#3.9.8 | अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा। ]] </li> | ||
<li> [[#3.9.9 | अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा। ]] </li></ol> | <li> [[#3.9.9 | अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा। ]] </li></ol> | ||
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<li> अनुवृत्तिकरण गुणस्थान में चारित्रमोह की यथायोग्य प्रकृतियों के उपशमन की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३०३/६)।</li></ul></li> | <li> अनुवृत्तिकरण गुणस्थान में चारित्रमोह की यथायोग्य प्रकृतियों के उपशमन की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३०३/६)।</li></ul></li> | ||
<li> [[#3.11 | अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणों की अपेक्षा भुजगारादि | <li> [[#3.11 | अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदों में अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ]] <ol> | ||
<li> [[#3.11.1 | उदीरणा की अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा]] </li> | <li> [[#3.11.1 | उदीरणा की अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा]] </li> | ||
<li> [[#3.11.2 | उदय अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा]] </li> | <li> [[#3.11.2 | उदय अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा]] </li> | ||
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<ol> | <ol> | ||
<li><span class="HindiText" id="1"><strong>अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText" id="1"><strong>अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ</strong> <br /></span> | ||
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<li><span class="HindiText" id="1.1"><strong> अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण </strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText" id="1.1"><strong> अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण </strong> <br /></span> | ||
<p><span class="GRef"> स.सि./१०/९/४७३ </span><span class="SanskritText"> क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्।</span> | <p><span class="GRef"> स.सि./१०/९/४७३ </span><span class="SanskritText"> क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्।</span> | ||
<span class="HindiText">= क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। | <span class="HindiText">= क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। <span class="GRef">( रा.वा./१०/९/१४/६४७/२७ )</span></span> | ||
<p><span class="GRef"> रा.वा./१/८/१०/४२/१९</span><span class="SanskritText"> संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ | <p><span class="GRef"> रा.वा./१/८/१०/४२/१९</span><span class="SanskritText"> संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ | ||
मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।</span><span class="HindiText">= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। | मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।</span><span class="HindiText">= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। <span class="GRef">( स.सि./१/८/२९ )</span></span> | ||
<p><span class="GRef"> ध.५/१,८,१/२४२/७</span><span class="PrakritText"> किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। | <p><span class="GRef"> ध.५/१,८,१/२४२/७</span><span class="PrakritText"> किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। | ||
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<li><span class="HindiText" id="1.4"><strong> सिद्धों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी शंका</strong><br /></span> | <li><span class="HindiText" id="1.4"><strong> सिद्धों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी शंका</strong><br /></span> | ||
<p><span class="GRef"> ध.९/४,१,६६/३१८/७ </span><span class="PrakritText"> एदमप्पाबहुगं सोलसवदियअप्पाबहुएण सह विरुज्झदे, सिद्धकालादो सिद्धाणं संखेज्जगुणत्तं फिट्टिदूण विसेसाहियत्तप्पसंगादो। तेणेत्थ उवएसं लहिय एगदरणिण्णओ कायव्वो। </span><span class="HindiText"> = यह अल्पबहुत्व (सिद्धों में कृति संचय सबसे स्तोक है, अव्यक्त संचित असंख्यातगुणे हैं, इत्यादि) षोडशपदादिक अल्पबहुत्व ([[अल्पबहुत्व | <p><span class="GRef"> ध.९/४,१,६६/३१८/७ </span><span class="PrakritText"> एदमप्पाबहुगं सोलसवदियअप्पाबहुएण सह विरुज्झदे, सिद्धकालादो सिद्धाणं संखेज्जगुणत्तं फिट्टिदूण विसेसाहियत्तप्पसंगादो। तेणेत्थ उवएसं लहिय एगदरणिण्णओ कायव्वो। </span><span class="HindiText"> = यह अल्पबहुत्व (सिद्धों में कृति संचय सबसे स्तोक है, अव्यक्त संचित असंख्यातगुणे हैं, इत्यादि) षोडशपदादिक अल्पबहुत्व ([[अल्पबहुत्व#2.2|अल्पबहुत्व 2.2]]) के साथ विरोध को प्राप्त होता है, क्योंकि सिद्धकाल की अपेक्षा सिद्धों के संख्यातगुणत्व नष्ट होकर विशेषाधिकपने का प्रसंग आता है। इस कारण यहाँ उपदेश प्राप्त कर दो-में-से किसी एक का निर्णय करना चाहिए।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText" id="1.5"><strong>वर्गणाओं के अल्पबहुत्व सम्बन्धी दृष्टिभेद</strong><br /></span> | <li><span class="HindiText" id="1.5"><strong>वर्गणाओं के अल्पबहुत्व सम्बन्धी दृष्टिभेद</strong><br /></span> | ||
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<li><span class="HindiText"id="2.4.2"><strong> ८ गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText"id="2.4.2"><strong> ८ गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | ||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.८-१५)</span></span></p> | <p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.८-१५)</span></span></p> | ||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>८</td><td>मनुष्यणी</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>९</td><td>मनुष्य</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.श्रे./असं.</td></tr><tr><td>१०</td><td>नारकी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.श्रे./असं.</td></tr><tr><td>११</td><td>देव</td><td>-</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>१२</td><td>देवी</td><td>-</td><td>३२ गुणी</td><td>-</td></tr><tr><td>१३</td><td>सिद्ध</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>१५</td><td>तिर्यञ्च</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr></table> | <table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>८</td><td>मनुष्यणी</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>९</td><td>मनुष्य</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.श्रे./असं.</td></tr><tr><td>१०</td><td>नारकी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.श्रे./असं.</td></tr><tr><td>११</td><td>देव</td><td>-</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>१२</td><td>देवी</td><td>-</td><td>३२ गुणी</td><td>-</td></tr><tr><td>१३</td><td>सिद्ध</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>१५</td><td>तिर्यञ्च</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | ||
<li><span class="HindiText"id="2.4.3"><strong> नरक गति</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText"id="2.4.3"><strong> नरक गति</strong> <br /></span> | ||
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<li><span class="HindiText"id="2.4.3.1"><strong> नरक गति की सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText"id="2.4.3.1"><strong> नरक गति की सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | ||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(मू.आ.१२०९)</span></span></p> | <p><span class="HindiText"><span class="GRef">(मू.आ.१२०९)</span></span></p> | ||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>सप्तम पृ.</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>असंख्यात बहुभाग क्रम से पहिली से सप्त पृथिवी तक हानि समझना | <table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>सप्तम पृ.</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>असंख्यात बहुभाग क्रम से पहिली से सप्त पृथिवी तक हानि समझना <span class="GRef">(ध.३/पृ.२०७ )</span></td></tr><tr><td>-</td><td>६ठीं पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>५वीं पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>४थी पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>३री पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>२री पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>१ली पृ.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | ||
<li><span class="HindiText"id="2.4.3.2"><strong> नरक गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText"id="2.4.3.2"><strong> नरक गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा</strong> <br /></span> | ||
Line 472: | Line 473: | ||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.५/१,८/सू.५३-८०)</span></span></p> | <p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.५/१,८/सू.५३-८०)</span></span></p> | ||
<p><span class="HindiText">मनुष्य सामान्य, मनुष्य प., मनुष्यणी</span> | <p><span class="HindiText">मनुष्य सामान्य, मनुष्य प., मनुष्यणी</span> | ||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>५३</td><td>उपशमक</td><td>८-१०</td><td>स्तोक</td><td>प्रवेश व संचय दोनों</td></tr><tr><td>५४</td><td>-</td><td>११</td><td>ऊपर तुल्य</td><td>तीनों परस्परतुल्य ( | <table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>५३</td><td>उपशमक</td><td>८-१०</td><td>स्तोक</td><td>प्रवेश व संचय दोनों</td></tr><tr><td>५४</td><td>-</td><td>११</td><td>ऊपर तुल्य</td><td>तीनों परस्परतुल्य (५४ जीव)</td></tr><tr><td>५५</td><td>क्षपक</td><td>८-१०</td><td>दुगुने</td><td>तीनों परस्परतुल्य (१०८ जीव)</td></tr><tr><td>५६</td><td></td><td>१२</td><td>ऊपर तुल्य</td><td>तीनों परस्परतुल्य</td></tr><tr><td>५७</td><td></td><td>१४</td><td>ऊपर तुल्य</td><td>तीनों परस्परतुल्य</td></tr><tr><td>५७</td><td></td><td>१३</td><td>ऊपर तुल्य</td><td>प्रवेशापेक्षाया</td></tr><tr><td>५८</td><td></td><td></td><td>सं.गुणे</td><td>संचयापेक्षया</td></tr><tr><td>५९</td><td>अक्षपक व अनुपश.</td><td>७</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६०</td><td></td><td>६</td><td>दुगुने</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६१</td><td></td><td>५</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६२</td><td></td><td>२</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६३</td><td></td><td>३</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६४</td><td></td><td>४</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६५</td><td></td><td>१</td><td>सं.गुणे</td><td>मनुष्य प.व मनुष्यणी में</td></tr><tr><td>६५</td><td></td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>मनुष्य सा.व.अप.</td></tr><tr><td>६६</td><td>असंयतो में</td><td>उप</td><td>स्तोक</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६७</td><td></td><td>क्षा</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६८</td><td></td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>६९</td><td>संयतासंयतों में सम्यक्त्व</td><td>क्षा</td><td>स्तोक</td><td>क्षायिक सम्यक्त्वी प्रायः संयमासंयम नहीं धरते या असंयमी रहते हैं या संयम ही धरते हैं।</td></tr><tr><td>७०</td><td></td><td>उप.</td><td>सं.गुणे</td><td>बहु उपलब्धि</td></tr><tr><td>७१</td><td></td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक आय</td></tr><tr><td>७२</td><td>गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्व</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>७३</td><td></td><td>क्षा.</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>७४</td><td></td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>७८</td><td>उपशमकों मे सम्यक्त्व</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>मूलोघवत्</td></tr><tr><td>७९</td><td>चारित्र</td><td>क्षा.</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>८०</td><td></td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td></td><td></td><td>क्षप.</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | ||
<li><span class="HindiText"id="2.4.5.3"><strong> केवल मनुष्यणी की विशेषता</strong> <br /></span> | <li><span class="HindiText"id="2.4.5.3"><strong> केवल मनुष्यणी की विशेषता</strong> <br /></span> | ||
Line 484: | Line 485: | ||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>कल्पवासी देव-देवी</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>भवनवासी देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>व्यन्तर देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>ज्योंतिषी देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | <table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>कल्पवासी देव-देवी</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>भवनवासी देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>व्यन्तर देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>ज्योंतिषी देव-देवी</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | ||
<li><span class="HindiText"id="2.4. | <li><span class="HindiText"id="2.4.6.2"><strong> देव गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा</strong> <br /></span> | ||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.५/१,८/सू.८१-१०२)</span></span></p> | <p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.५/१,८/सू.८१-१०२)</span></span></p> | ||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>८१</td><td>देव सामान्य</td><td>२</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>८२</td><td>-</td><td>3</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक उपक्रमण काल</td></tr><tr><td>८३</td><td>-</td><td>४</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८४</td><td>-</td><td>१</td><td>असं.गुणे</td><td>.,Xआ.\असं./ज.प्र.</td></tr><tr><td>८५</td><td>सम्यक्त्व</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>अल्पसंचय काल</td></tr><tr><td>८६</td><td>-</td><td>क्षा.</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८७</td><td>-</td><td>वे.</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८८</td><td>भवनत्रिक देव-देवी व सौधर्म देवी सा.</td><td>२</td><td>स्तोक</td><td>सप्तम नरकवत्</td></tr><tr><td>८८</td><td>-</td><td>३</td><td>सं.गुणे</td><td>सप्तम नरकवत्</td></tr><tr><td>८८</td><td>-</td><td>४</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८८</td><td>-</td><td>१</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ.\असं/ज.प्र.</td></tr><tr><td>-</td><td>उपर्युक्त में सम्यक्त्व</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>सप्तमपृथिवीवत्</td></tr><tr><td>८८</td><td>-</td><td>वे.</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८८</td><td>-</td><td>क्षा.</td><td>-</td><td>अभाव</td></tr><tr><td>८९</td><td>सौधर्म से सहस्रार</td><td>१-४</td><td>-</td><td>देवसामान्यवत्</td></tr><tr><td>९०</td><td>आनत से उ.ग्रैवेयक</td><td>२</td><td>स्तोक</td><td>देवसामान्यवत्</td></tr><tr><td>९१</td><td>सामान्य</td><td>३</td><td>सं.गुणे</td><td>देवसामान्यवत्</td></tr><tr><td>९२</td><td>-</td><td>१</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>९३</td><td>-</td><td>४</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक उपपाद</td></tr><tr><td>९४</td><td>उपरोक्त में सम्यक्त्व</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>९५</td><td>-</td><td>क्षा.</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>-</td><td>-</td><td>-</td><td>-</td><td>संयचकाल-सं.सागर</td></tr><tr><td>९६</td><td>-</td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>९७</td><td>-</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>अन्य गुणस्थानों का अभाव</td></tr><tr><td>९८</td><td>अनुदिश से अपराजित में सम्यक्त्व</td><td>क्षा.</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार=पल्य./अ.सं.</td></tr><tr><td>९९</td><td>-</td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक उपपाद</td></tr><tr><td>१००</td><td>-</td><td>उप.</td><td>स्तोक</td><td>अल्प संचय काल</td></tr><tr><td>१०१</td><td>सर्वार्थसिद्धि में सम्यक्त्व</td><td>क्षा.</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक संचय काल</td></tr><tr><td>१०२</td><td>-</td><td>वे.</td><td>सं.गुणे</td><td>अधिक उपपाद</td></tr></table></li></ol></li></ol></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.5"><strong> इन्द्रिय मार्गणा </strong> <br /></span> | |||
<ol> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.5.1"><strong> इन्द्रियों की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.१६-२१)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>१६</td><td>पंचेन्द्रिय</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>-</td></tr><tr><td>१७</td><td>चतुरिन्द्रिय</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>(पंचे.+पंचे./आ./असं)X(ज.प्र./असं.) अधिक</td></tr><tr><td>१८</td><td>त्रीन्द्रिय</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>उपरोक्त+वह/आ.\असं</td></tr><tr><td>१९</td><td>द्वीन्द्रिय</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>उपरोक्त+वह/आ.\असं</td></tr><tr><td>२०</td><td>अनिन्द्रिय (सिद्ध)</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>२१</td><td>एकेन्द्रिय</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr></table></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.5.2"><strong> इन्द्रियों में पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ति.प.४/३१४) (ष.खं.७/२,११/सू.२२-३७)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>२२</td><td>चतुरिंद्रिय प</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>ज.प्र./ (प्रतरांगुल / असं.)</td></tr><tr><td>२३</td><td>पंचेन्द्रिय प</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>२४</td><td>द्वीन्द्रिय प</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>२५</td><td>त्रीन्द्रिय प</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>२६</td><td>पंचेन्द्रिय अप</td><td>-</td><td>असं गुणे</td><td>गुणकार = आ/असं</td></tr><tr><td>२७</td><td>चतुरिंद्रिय अप</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>२८</td><td>त्रीन्द्रिय अप</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>२९</td><td>द्वीन्द्रिय अप</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>उपरोक्त + वह / (आ. / असं.)</td></tr><tr><td>३०</td><td>अनिन्द्रिय (सिद्ध)</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>३१</td><td>एकेंद्रिय बा प</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>३२</td><td>एकेंद्रिय बा अप</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>३३</td><td>एकेंद्रिय बा सा</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>पर्याप्त + अपर्याप्त</td></tr><tr><td>३४</td><td>एकेंद्रिय सू प</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>३५</td><td>एकेंद्रिय सू अप</td><td>-</td><td>सं.गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>३६</td><td>एकेंद्रिय सू सा</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>पर्याप्त + अपर्याप्त</td></tr><tr><td>३७</td><td>एकेंद्रिय सा</td><td>-</td><td>विशेषा</td><td>बा.सा.+ सू.सा.</td></tr></table></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.5.3"><strong> ओघ व आदेश प्ररूपणा</strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.५/१,८/सू.१०३)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक</td><td>-</td><td>उपरोक्त सामान्य प्ररूपणावत्</td><td>एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही सम्भव है।</td></tr><tr><td>-</td><td>पंचे.सा. व पंचे.प.</td><td>२-१४</td><td>मूलोघवत्</td><td>-</td></tr><tr><td>-</td><td>पंचे.प.</td><td>१</td><td>असं.सम्य. से असं.गुणे</td><td>-</td></tr></table></li></ol> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.6"><strong> काय मार्गणा </strong> <br /></span> | |||
<ol> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.6.1"><strong> त्रस-स्थावर की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा </strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११ सू.३८-४४) (ष.खं.१४/५,६/सू.५६८-५७४/४६५) (स.म.२९/३३१/७)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>३८</td><td>त्रस सा.</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>ज.प्र/असं.</td></tr><tr><td>३९</td><td>तेज सा.</td><td>-</td><td>असं. गुणे</td><td>असं.लोक गुणकार</td></tr><tr><td>४०</td><td>पृथिवी सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\लोक/असं</td></tr><tr><td>४१</td><td>अप.सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\लोक/असं</td></tr><tr><td>४२</td><td>वायु सा.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>उपरोक्त+वह\लोक/असं</td></tr><tr><td>४३</td><td>अकायिक (सिद्ध)</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td></td></tr><tr><td>४४</td><td>वनस्पति सा.</td><td>-</td><td>अनन्तगुणे</td><td></td></tr></table></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.6.2"><strong> पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा</strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.४५-५९)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>४५</td><td>त्रस प.</td><td></td><td>स्तोक</td><td>ज.प्र.\प्रतरांगल/असं.</td></tr><tr><td>४६</td><td>त्रस.अप.</td><td></td><td>असं.गुणे -</td><td></td></tr><tr><td>४७</td><td>तेज.अप.</td><td></td><td>असं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>४८</td><td>पृथिवी अप</td><td></td><td>असं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>४९</td><td>अप्.अप.</td><td></td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\असं.लोक</td></tr><tr><td>५०</td><td>वायु अप.</td><td></td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\असं.लोक</td></tr><tr><td>५१</td><td>तेज.प</td><td></td><td>सं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>५२</td><td>पृथिवी प.</td><td></td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\असं.लोक</td></tr><tr><td>५३</td><td>अप् प.</td><td></td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\असं.लोक</td></tr><tr><td>५४</td><td>वायु प</td><td></td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह\असं.लोक</td></tr><tr><td>५५</td><td>अकायिक (सिद्ध)</td><td></td><td>अनन्त गुणे</td><td></td></tr><tr><td>५६</td><td>वनस्पति अप.</td><td></td><td>अनन्त गुणे</td><td></td></tr><tr><td>५७</td><td>वनस्पति प.</td><td></td><td>सं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>५८</td><td>वनस्पति सा </td><td></td><td>विशेषा.</td><td>पर्याप्त+अपर्याप्त</td></tr><tr><td>५९</td><td>निगोद सा.</td><td></td><td>विशेषा.</td><td></td></tr></table></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.6.3"><strong> बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणाएँ </strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.६०-७५)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>६०</td><td>त्रस सा.</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>ज.प्र./असं.</td></tr><tr><td>६१</td><td>तेज बा.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६२</td><td>वन.प्रत्येक बा.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६३</td><td>बा.निगोद सा.या प्रतिष्ठित प्रत्येक में उपलब्ध निगोद</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६४</td><td>पृथिवी बा.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६५</td><td>अप् बा.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६६</td><td>वायु बा.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६७</td><td>तेज सू.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>६८</td><td>पृथिवी सू.सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>उपोक्त+वह/असं.लोक</td></tr><tr><td>६९</td><td>अप.सू.सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह/असं.लोक</td></tr><tr><td>७०</td><td>वायु सू.सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>उपरोक्त+वह/असं.लोक</td></tr><tr><td>७१</td><td>अकायिक (सिद्ध)</td><td>-</td><td>अनन्त गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>७२</td><td>वन.वा.सा.</td><td>-</td><td>अनन्त गुणे</td><td>-</td></tr><tr><td>७३</td><td>वन.वा.सू.सा.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>७४</td><td>वन.सा.</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>बा.\सु.</td></tr><tr><td>७५</td><td>निगोद</td><td>-</td><td>विशेषा.</td><td>-</td></tr></table></li> | |||
<li><span class="HindiText"id="2.6.4"><strong> बा.सू.पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा </strong> <br /></span> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ष.खं.७/२,११/सू.७६-१०६) (ति.प.४/३१४)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>७६</td><td>त्रस.प.</td><td>-</td><td>स्तोक</td><td>असं.प्रतरावली</td></tr><tr><td>७७</td><td>त्रस.प.अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.प्र/असं.</td></tr><tr><td>७८</td><td>त्रस.प.अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = ज.प्र/असं.</td></tr></table> | |||
<p><span class="HindiText"><strong> त्रस विशेष </strong> <br /></span></p> | |||
<p><span class="HindiText"><span class="GRef">(ति.प.४/३१४)</span></span></p> | |||
<table><tr><td><p class="HindiText"><strong>सूत्र</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>मार्गणा</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>गुणस्थान</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>अल्पबहुत्व</strong></p></td><td><p class="HindiText"><strong>कारण व विशेष</strong></p></td></tr><tr><td>-</td><td>पंचेन्द्रिय संज्ञी अप.</td><td>-</td><td>तेजकाय वा.प.से असं.गुणा</td><td>विशेषके लिए देखो<br>इन्द्रियमार्गणा नं.(२)</td></tr><tr><td>-</td><td>पंचेन्द्रिय संज्ञी प.</td><td>-</td><td>सं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>चतुरिन्द्रिय प.</td><td>-</td><td>सं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>पंचे.असंज्ञी प.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>द्वीन्द्रिय प.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>त्रीन्द्रिय प.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>पंचे.असंज्ञी अप.</td><td>-</td><td>अअं.गुणे</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>चतु.अप.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>त्री.अप.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>-</td><td>द्वी.अप.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td></td></tr><tr><td>७९</td><td>वन. प्रत्येक प.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = पल्य/असं.</td></tr><tr><td>८०</td><td>वन.प्रति.प्रत्ये.प.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = पल्य/असं.</td></tr><tr><td>८१</td><td>पृथिवी बा.प.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८२</td><td>अप्.बा.प</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = आ./असं.</td></tr><tr><td>८३</td><td>वायु.बा.प</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = प्रतरांगुल/असं.</td></tr><tr><td>८४</td><td>तेज बा.अप</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>८५</td><td>वन.अप्रति.प्रत्ये अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>८६</td><td>वन. प्रति.प्रत्ये.अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>ति.प.४/३१४ में तेजकाय बा.अप.को वन. अप्रति. प्रत्येक अप.से असं.गुण बताया है।</td></tr><tr><td>८७</td><td>पृथिवी बा.अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>८८</td><td>अप् बा.अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>८९</td><td>वायु बा.अप</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>९०</td><td>तेज सू. अप.</td><td>-</td><td>असं.गुणे</td><td>गुणकार = असं.लोक</td></tr><tr><td>९१</td><td>पृथिवी सू.अप.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>उपरोक्त+वह/असं.</td></tr><tr><td>९२</td><td>अपकाय सू.अप.</td><td>-</td><td>विशेषाधिक</td><td>उपरोक्त+वह/असं.</td></tr><tr><td>९३</td><td>वायु सू.अप |
Latest revision as of 22:15, 17 November 2023
पदार्थों का निर्णय अनेक प्रकार से किया जाता है-उनका अस्तित्व व लक्षण आदि जानकर, उनकी संख्या या प्रमाण जानकर तथा उनका अवस्थान आदि जानकर। तहाँ पदार्थों की गणना क्योंकि संख्या को उल्लंघन कर जाती है और असंख्यात व अनन्त कहकर उनका निर्देश किया जाता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किसी भी प्रकार उस अनन्त या असंख्य में तरतमता या विशेषता दर्शायी जाए ताकि विभिन्न पदार्थों की विभिन्न गणनाओं का ठीक-ठीक अनुमान हो सके। यह अल्पबहुत्व नाम का अधिकार जैसा कि इसके नाम से ही विदित है इसी प्रयोजन की सिद्धि करता है।
- अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
- ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
- प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - संख्या - 2
- सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ।
- षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्प बहुत्व।
- जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा।
- गति मार्गणा
- इन्द्रिय मार्गणा
- काय मार्गणा
- गति इन्द्रिय व काय की संयोगी परस्थान प्ररूपणा।
- योग मार्गणा
- वेद मार्गणा
- कषाय मार्गणा
- ज्ञान मार्गणा
- संयम मार्गणा
- दर्शन मार्गणा
- लेश्या मार्गणा
- भव्य मार्गणा
- सम्यक्त्व मार्गणा
- संज्ञी मार्गणा
- आहारक मार्गणा
- प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
- सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।
- क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण सिद्धों में)।
- काल की अपेक्षा।
- अन्तर की अपेक्षा।
- गति की अपेक्षा।
- वेदनानुयोग की अपेक्षा।
- तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा।
- चारित्र की अपेक्षा।
- प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध की अपेक्षा।
- ज्ञान की अपेक्षा।
- अवगाहना की अपेक्षा।
- युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा।
- १-१, २-२ आदि करके संचय होने वाले जीवों की अल्प बहुत्वप्ररूपणा
- २३ वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ
- पंच शरीर बद्ध वर्गणाओं की प्ररूपणा
- पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
- पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा।
- पंच शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा।
- प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान की अपेक्षा।
- पंच शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- औदारिक शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- इन्द्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
- पाँचों शरीरों में प्रथम समयप्रबद्ध से लेकर अन्तिम समयप्रबद्ध तक बन्धे प्रदेश-प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.२६३-२८६/३३९-३५२)।
- पाँचों शरीरों की ज.व उ. स्थिति या निषेकों के प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३२०-३३९/३६६-३६९)
- पाँचों शरीरों के ज.उ.व उभय स्थितिगत निषेकों में प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.३४०-३८९/३७२-३८७)।
- उपरोक्त प्रदेशाग्रों में एक व नाना गुणहानि स्थानान्तरों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३९०-४०६/३८७-३९२)।
- उपरोक्त निषेकों के ज.उ.व उभय प्रदेशाग्र प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.४०७-४१५/३९२-३९५)।
- पाँचों शरीरों में बन्धे प्रदेशाग्रों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.५१५-५१९/४३७-४३८)।
- पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों को संघातन, परिशातन, उभय व अनुभयादि कृतियों की अपेक्षा। दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
- पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों की संघातन परिशातन आदि कृतियों में गृहीत परमाणुओं के प्रमाण की अपेक्षा।दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
- ज.उ.अवगाहना क्षेत्रों की अपेक्षा। दे. (ध.११/पृ.२८)।
- पाँचों शरीरों के स्वामियों की ओघ व आदेश प्ररूपणा
- जीवभावों के अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा
- संयमविशुद्धि या लब्धिस्थानों की अपेक्षा।
- १४ जीवसमासों में संक्लेश व विशुद्धिस्थानों की अपेक्षा।
- दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्यके अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा।
- उपशमन व क्षपण काल की अपेक्षा।
- कषाय काल की अपेक्षा।
- नोकषाय बन्धकाल की अपेक्षा।
- मिथ्यात्व-काल विशेष की अपेक्षा। (अर्थात् भिन्न-भिन्न जीवोंके मिथ्यात्व-काल का अल्पबहुत्व)।
- अधःप्रवृत्तिकरण की विशुद्धियों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१६/३७५-३७८)।
- संयमासंयम लब्धिस्थानों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध. ६/१,९-८,१४/२७६/७)।
- जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- कर्मों के सत्त्व व बन्धस्थानों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
- जीवों के स्थिति बन्धस्थानों की अपेक्षा।
- स्थिति बन्ध में जघन्य व उत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा।
- स्थितिबन्ध के निषेकों की अपेक्षा।
- अनिवृत्ति गुणस्थान में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/२९७/४)।
- उपशान्तकषाय से उतरे अनिवृत्तिकरण में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३२४/३)।
- चारित्रमोह क्षपक अनिवृत्तिकरण के स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३५०/२) (विशेष दे. आगे)।
- मोहनीय कर्म के स्थितिसत्त्वस्थानों की अपेक्षा।
- बन्धसमुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
- हत्समुत्पत्तिक अनुभागसत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
- अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
- अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा।
- उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणाएँ। दे. (म.बं.५/$४३९-४४२/२३१-२३३)।
- उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणा। दे. (म.बं.५/$४४४-४५०/२३५-२३९)।
- एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभाग के विभाग की अपेक्षा।
- एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्रों में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा।
- एक समयप्रबद्ध में अष्टकर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा।
- जीवसमासों में विभिन्न प्रदेशबन्धों की अपेक्षा।
- आठ अपकर्षों की अपेक्षा आयुबन्धक जीवों की प्ररूपणा।
- आठ अपकर्षों में आयुबन्ध के काल की अपेक्षा।
- अष्टकर्म संक्रमण व निर्जरा की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की ११ स्थानीय सामान्य प्ररूपणा।
- भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल की ११ स्थानीय प्ररूपणा।
- पाँच प्रकार के संक्रमणों द्वारा हत् कर्मप्रदेशों के परिमाण में अल्पबहुत्व।
- प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति विधान में अपूर्वकरण के काण्डक घात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,५/२२८/१)।
- द्वितीयोपशम प्राप्ति विधान में उपरोक्त विकल्प। दे. (ध.६/१,९,८,१४/२८९/१०)।
- अश्वकर्ण प्रस्थापक चारित्रमोह क्षपक के अनुभागसत्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१२/२६३/६)।
- अपूर्वस्पर्धक करण में अनुभाग काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३६६/११)।
- चारित्रमोह क्षपक के अपूर्वकरण में स्थिति काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३४४/८)।
- त्रिकरण विधान की अवस्था विशेषों के उत्कीरण कालों तथा स्थिति बन्ध व सत्त्व आदि विकल्पों की अपेक्षा प्ररूपणाएँ।
- प्रथमोपशम सम्यक्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,७/२३६/८)।
- प्रथमोपशम व वेदक सम्यक्त्व तथा संयमासंयम को युगपत् ग्रहण करने की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८/११/२४७/१)।
- पुरुषवेद सहित क्रोध के उदय से आरोहण व अवरोहण करने वाले चारित्रमोहोपशामक अपूर्वकरण के भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के आश्रय सर्व विकल्प रूप उत्कीरण कालों की अपेक्षा। दे.(ध.६/१,९,८,१४/३३५/११)।
- दर्शनमोह क्षपक की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१२/२६३/६)।
- अनुवृत्तिकरण गुणस्थान में चारित्रमोह की यथायोग्य प्रकृतियों के उपशमन की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३०३/६)।
- अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदों में अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ
- उदीरणा की अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- उदय अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- उपशमना अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- संक्रमण अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- बन्ध अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
- मोहनीयकर्म विशेष के सत्त्व की अपेक्षा।
- अष्टकर्मबन्ध वेदना में स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बन्धों की अपेक्षा ओघ व आदेश स्व-पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।
- प्रयोग व समवदान आदि षट्कर्मों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा।
- १४ मार्गणाओं में जीवों की तथा उनमें स्थिति कर्मों की उपरोक्त षट् कर्मों की अपेक्षा प्ररूपणा। दे. (ध.१३/५,४,३१/१७५-१९५)।
- निगोद जीवों की उत्पत्ति आदि विषयक अल्पबहुत्व प्ररूपणा
- साधारण शरीर में निगोद जीवों का उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालों की अपेक्षा। (ष.ख.१/१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।
- उपरोक्त कालों से उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रमाण की अपेक्षा दे. (ष.खं.१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।
- अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
- अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण
स.सि./१०/९/४७३ क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्। = क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। ( रा.वा./१०/९/१४/६४७/२७ )
रा.वा./१/८/१०/४२/१९ संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। ( स.सि./१/८/२९ )
ध.५/१,८,१/२४२/७ किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। = प्रश्न - अल्पबहुत्व क्या है? उत्तर - यह उससे तिगुणा है, अथवा चतुर्गुणा है इस प्रकार बुद्धि के द्वारा ग्रहण करने योग्य संख्या के धर्म को अल्पबहुत्व कहते हैं।
- अल्पबहुत्व प्ररूपणा के भेद
ध.५/१,८,१/२४१/१० (द्रव्य क्षेत्र काल भाव आदि निक्षेपों की अपेक्षा अल्पबहुत्व अनेक भेद रूप है। (विशेष दे. निक्षेप)
- संयत की अपेक्षा असंयत की निर्जरा अधिक कैसे
ध.१२/४,२,७,१७८/६ संजमपरिणामेहितो अणंताणुबंधिं विसंजोएतंस्स असंजदसम्मादिट्ठस्स परिणामो अणंतगुणहीणो, कधं तत्तो असंखेज्जगुणपदेसणिज्जरा। ण एस दोसो संजमपरिणामेहिंतो अणंताणुबंधीणं विसंजोजणाए कारणभूदाणं सम्मत्तपरिणामाणमणंतगुणत्तुवलंभादो। जदि सम्मत्तपरिणामेहिं अणंताणुबंधीणं विसंजोजणा कीरदे तो सव्वसम्माइट्ठीसु तब्भावो पसज्जदि त्ति वुत्ते ण, विसिट्ठेहि चेव सम्मत्तपरिणामेहिं तव्विसंजोयणब्भुवगमादि त्ति। = प्रश्न - संयमरूप परिणामों की अपेक्षा अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना करने वाले असंतसम्यग्दृष्टि का परिणाम अनन्तगुणहीन होता है। ऐसी अवस्था में उससे असंख्यातगुणी प्रदेश निर्जरा कैसे हो सकती है? उत्तर - यह कोई दोष नहीं है-क्योंकि संयमरूप परिणामों की अपेक्षा अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना में कारणभूत सम्यक्त्वरूप परिणाम अनन्तगुणे उपलब्ध होते हैं। प्रश्न-यदि सम्यक्त्वरूप परिणामों के द्वारा अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना की जाती है तो सभी सम्यग्दृष्टि जीवों में उसकी विसंयोजना का प्रसंग आता है? उत्तर - सब सम्यग्दृष्टियों में उसकी विसंयोजना का प्रसंग नहीं आ सकता, क्योंकि विशिष्ट सम्यक्त्वरूप परिणामों के द्वारा ही अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना स्वीकार की गयी है।
- सिद्धों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी शंका
ध.९/४,१,६६/३१८/७ एदमप्पाबहुगं सोलसवदियअप्पाबहुएण सह विरुज्झदे, सिद्धकालादो सिद्धाणं संखेज्जगुणत्तं फिट्टिदूण विसेसाहियत्तप्पसंगादो। तेणेत्थ उवएसं लहिय एगदरणिण्णओ कायव्वो। = यह अल्पबहुत्व (सिद्धों में कृति संचय सबसे स्तोक है, अव्यक्त संचित असंख्यातगुणे हैं, इत्यादि) षोडशपदादिक अल्पबहुत्व (अल्पबहुत्व 2.2) के साथ विरोध को प्राप्त होता है, क्योंकि सिद्धकाल की अपेक्षा सिद्धों के संख्यातगुणत्व नष्ट होकर विशेषाधिकपने का प्रसंग आता है। इस कारण यहाँ उपदेश प्राप्त कर दो-में-से किसी एक का निर्णय करना चाहिए।
- वर्गणाओं के अल्पबहुत्व सम्बन्धी दृष्टिभेद
ध.१४/५,६,९३/१११/४ जहण्णादो पुण उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणा असंखेज्जगुणा। को गुणकारो। जगसेडीए असंखेज्जदिभागो। के वि आइरिया गुणगारो पुण आवलियाए असंखेज्जदिभागो होदि त्ति भणंति, तण्ण घडदे। कुदो। बादरणिगोदवग्गणाए उक्कसियाएसेडीए असंखेज्जदिंभागमेत्तो णिगोदाणं त्ति एदेण चूलियासुत्तेण स विरोहादो। = अपनी जघन्य से उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? जगश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। कितने ही आचार्य गुणकार आवलि के संख्यातवें भाग प्रमाण होता है, ऐसा कहते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, 'उत्कृष्ट बादर निगोदवर्गणा में निगोद जीवों का प्रमाण जगश्रेणि के असंख्यातवें भागमात्र है', इस चूलिका सूत्र के साथ विरोध आता है।
ध.१४/५,६,११६/१६६/७ एत्थ के वि आइरिया उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणादो उवरिमधुवसुण्णएगसेडी असंखेज्जगुणा। गुणगारो वि घणावलियाए असंखेज्जदिभागो त्ति भणंति तण्ण घडदे। कुदो। संखेज्जेहि असंखेज्जेहि वा जीवेहि जहण्णबादरणिगोदवग्गणाणुप्पत्तीदो।...तम्हा अणंतलोगा गुणगारो ति एदं चेव घेत्तव्वं। = यहाँ पर कितने ही आचार्य उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा से उपरिमध्रु व शून्य एक श्रेणी असंख्यातगुणी है, और गुणकार भी घनावलि के असंख्यातवें भागप्रमाण है, ऐसा कहते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि संख्यात या असंख्यात जीवों से जघन्य बादरनिगोद वर्गणा की उत्पत्ति नहीं हो सकती।...इसलिए 'अनन्त लोक गुणकार है' यह वचन ही ग्रहण करना चाहिए।
ध.१४/५,६,११६/२१६/१३ कम्मइयवग्गणादो हेट्ठिमाहारवग्गणादो उवरिमअगहणवग्गणमद्धाणगुणगारेहिंतो आहारादिवग्गणाणं अद्धाणुप्पायणट्ठं ट्ठविदभागहारो अणंतगुणो त्ति के विआइरिया इच्छंति, तेसिमहिप्पाएण पुव्विल्लमपाबहुगं परूविदं। भागाहारेहिंतो गुणगारा अणंतगुणा त्तिके वि आइरिया भणंति। तेसिमहिप्पाणं एदमप्पा बहुगं परूविज्जदे, तेणेसो ण दोसो। = कार्माणवर्गणा से अधस्तन आहार वर्गणा से उपरिम अग्रहणवर्गणा के अध्वान के गुणकार से आहारादि वर्गणाओं के अध्वान को उत्पन्न करने के लिए स्थापित भागाहार अनन्तगुणा है। ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं, इसलिए उनके अभिप्रायानुसार पहिले का अल्पबहुत्व कहा है। तथा भागहारों से गुणकार अनन्तगुणे हैं ऐसा आचार्य कहते हैं। इसलिए उनके अभिप्रायानुसार यह अल्पबहुत्व कहा जा रहा है। इसलिए यह कोई दोष नहीं है।
- पंचशरीर विस्रसोपचय वर्गणा के अल्पबहुत्व-दृष्टिभेद
ध.१४/५,६,५५२/४५/४५७/६ सव्वथ गुणगारो सव्वजीवेहि अणंतगुणो। एदमप्पाबहुगं बाहिरवग्णाए पुधभूदं त्ति काऊण के वि आइरिया जीवसंबद्धपंचण्णं सरीराणं विस्सस्सुवचयस्सुवरि परूवेंति तण्ण घडदे, जहण्णपत्तेयसरीरवगणादो उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए अणंतगुणप्पसंगादो। = 'सर्वत्र गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है।' यह अल्पबहुत्व बाह्य वर्गणा से पृथग्भूत है, ऐसा मानकर कितने ही आचार्य जीव सम्बद्ध पाँच शरीरों के विस्रसोपचय के ऊपर कथन करते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि ऐसा मानने पर जघन्य प्रत्येक शरीरवर्गणा से उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा के अनन्तगुणे होने का प्रसंग प्राप्त होता है।
- मोह प्रकृति के प्रदेशाग्रों सम्बन्धी दृष्टिभेद
क.पा.४/३-२२/६३३९/३३४/११ सम्मत्तचरिमफालीदो सम्मामिच्छत्तचरिमफाली असंख्ये. गुणहीणा त्ति एगो उवएसो। अवरेगो सम्मामिच्छत्तचरिमफाली तत्तो विसेसाहिया त्ति। एत्थ एदेसिं दोण्हं पि उवएसाणं णिच्छयं काउमसमत्थेण जइवसहाइरिएण एगो एत्थ विलिहिदो अवरेगो ट्ठिदिसंकम्मे। तेणेदे वे वि उवदेसा थप्पं कादूण वत्तव्वा त्ति। = सम्यक्त्व की अन्तिम फालि से सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिम फालि असंख्यातगुणी हीन है, यह पहला उपदेश है। तथा सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिम फालि उससे विशेष अधिक है यह दूसरा उपदेश है। यहाँ इन दोनों ही उपदेशों का निश्चय करने में असमर्थ यतिवृषभ आचार्य ने एक उपदेश यहाँ लिखा और एक उपदेश स्थिति संक्रमण में लिखा, अतः इन दोनों ही उपदेशों को स्थगित करके कथन करना चाहिए।
- अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण
- ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
- सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ
- षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्पबहुत्व
ध.३/१,२,३/३०/७
- जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.१-२६)
नोट - प्रमाण वाले कोष्ठक में सर्वत्र सूत्र नं. लिखे हैं। यहाँ यथा स्थान उस उस सूत्र की टीका भी सम्मिलित जानना।
- प्रवेश की अपेक्षा
- उपशमक
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
२ - ८ स्तोक अधिक से अधि ५४ २ - ९ ऊपर तुल्य जीवों का प्रवेश ही सम्भव है २ - १० ऊपर तुल्य जीवों का प्रवेश ही सम्भव है ३ - ११ ऊपर तुल्य जीवों का प्रवेश ही सम्भव है - क्षपक
सूत्र मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
४ - ८ दुगुने १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है ४ - ९ ऊपर तुल्य १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है ४ - १० ऊपर तुल्य १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है ५ - १२ ऊपर तुल्य १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है ६ - १३ ऊपर तुल्य १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है ६ - १४ ऊपर तुल्य १०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है - संचय की अपेक्षा
- उपशमक
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
४ - ८ स्तोक प्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं ४ - ९ ऊपर तुल्य प्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं ४ - १० ऊपर तुल्य प्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं ४ - ११ ऊपर तुल्य प्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं - क्षपक
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
४ - ८ दुगुने कुल ५९८ जीव संचित होते हैं ४ - ९ ऊपर तुल्य कुल ५९८ जीव संचित होते हैं ४ - १० ऊपर तुल्य कुल ५९८ जीव संचित होते हैं ५ - १२ ऊपर तुल्य कुल ५९८ जीव संचित होते हैं ६ - १४ ऊपर तुल्य कुल ५९८ जीव संचित होते हैं ७ - १३ सं. गुणे ८९८५०२ जीवों का संचय - अक्षपक व अनुपशमक
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
८ - ७ सं. गुणे २९६९९१०३ जीवों का संचय ९ - ६ दुगुने ५९३९८२०६ जीवों का संचय १० - ५ पल्य/असं.गुणे मध्य लोक में स्वयम्भूरमण पर्वत के परभाग में अवस्थान ११ - २ आ./असं.गुणे एक समय में प्राप्त संयता-संयत से एक समय गत
सासादन राशि असं.गुणी है।१२ - ३ सं.गुणे १. सासादन से सं. गुणा संचय काल
२. सासादन के उपरान्त उपशम सम्यक्त्व ही प्राप्त होता है पर इसके उपरान्त उपशम व वेदक सम्यक्त्व
तथा मिथ्यात्व तीनों प्राप्त होते हैं।
३. उपशम से वेदक सम्यग्दृष्टि सं. गुणे हैं।१३ - ४ आ./असं.गुणे सम्यक. मिथ्यात्व का संचय काल अन्तर्मुहूर्त है व इसका २ सागर है। १४ - १ सिद्धों से अनन्त गुण वाला अनन्त से गुणित - - सम्यक्त्व में संचय की अपेक्षा
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१५ असंयत उप. स्तोक - १६ - क्षा. आ./असं. गुणे अधिक संचय काल सुलभता १७ - वे. आ./असं. गुणे अधिक संचय काल सुलभता १८ संयतासंयत उप. स्तोक तिर्यंचों में अभाव तथा दुर्लभ १९ - क्षा. पल्य/असं. गु. तिर्यंचो में उत्पत्ति २० - वे. आ./असं. गुणे तिर्यंचों में उत्पत्ति तथा सुलभ २१ ६ठा ७वाँ गुणस्थान उप. स्तोक अल्प संचय काल तथा संयम की दुर्लभता २२ - क्षा. सं. गुणा अधिक संचय काल सुलभता २३ - वे. सं. गुणा अधिक संचय काल सुलभता २५ ८-१०वाँ गुणस्थान उप. स्तोक अल्प संचय काल तथा श्रेणीकी दुर्लभता २६ - क्षा. सं. गुणा अधिक संचय काल - चारित्र उप. स्तोक अल्प संचय काल - - क्षा. सं. गुणा अधिक संचय काल
- प्रवेश की अपेक्षा
- गति मार्गणा
- पाँच गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.२-६)(मू.आ.१२०७-१२०८)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
२ मनुष्य - स्तोक - ३ नारकी - असं.गुणे गुणकार = सूच्यंगु./असं ४ देव - असं.गुणे - ५ सिद्ध - अनन्तगुणे गुणकार = भव्य/अनन्त ६ तिर्यञ्च - अनन्तगुणे - - ८ गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.८-१५)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
८ मनुष्यणी - स्तोक - ९ मनुष्य - असं.गुणे गुणकार = ज.श्रे./असं. १० नारकी - असं.गुणे गुणकार = ज.श्रे./असं. ११ देव - सं.गुणे - १२ देवी - ३२ गुणी - १३ सिद्ध - अनन्तगुणे - १५ तिर्यञ्च - अनन्तगुणे - - नरक गति
- नरक गति की सामान्य प्ररूपणा
(मू.आ.१२०९)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- सप्तम पृ. - स्तोक असंख्यात बहुभाग क्रम से पहिली से सप्त पृथिवी तक हानि समझना (ध.३/पृ.२०७ ) - ६ठीं पृ. - असं.गुणे - - ५वीं पृ. - असं.गुणे - - ४थी पृ. - असं.गुणे - - ३री पृ. - असं.गुणे - - २री पृ. - असं.गुणे - - १ली पृ. - असं.गुणे - - नरक गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.२७-४०)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
२७ नारकी सामान्य २ स्तोक - २८ - ३ सं.गुणे अधिक उपक्रमण काल २९ - ४ असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ३० - १ असं.गुणे गुणकार = अंगुल/असं.\ज.प्र. ३१ सम्यक्त्व उप. स्तोक - ३२ - क्षा असं.गुणे गुणकार = पल्य/असं. अधिक संचय काल ३३ - वे. असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ३४ प्रथम पृ. १-४ - नारकी सामान्यवत् ३५ २-७ पृ. २ स्तोक पृथक् पृथक् ३६ - ३ सं.गुणे - ३७ - ४ असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ३८ - १ असं.गुणे क्रमेण २ ज.श्रे=१\२४ गुणकार = अंगु./असं.\ज.प्र.३,४,५,६,७, १\२०,१\१६,१\१२,१\९,१\४ ३९ सम्यक्त्व उप. स्तोक - ४० - वे. असं.गुणे गुणकार = पल्य/असं.Xआ./असं. - क्षा - क्षायिक का अभाव
- नरक गति की सामान्य प्ररूपणा
- तिर्यंच गति
- तिर्यंच गति की सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.५/१०८/सू.४१-५०)
नोट - दे. इन्द्रिय व काय मार्गणा
- तिर्यंच गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.४१-५०)
तिर्यंच सा.,पंचे.ति.सा.,पंचे.प.,योनिमति
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
४१ सामान्य १ स्तोक दुर्लभता ४२ - २ असं.गुणे गुणकार = आ./अंस ४३ - ३ सं.गुणे - ४४ - ४ असं.गुणे गुणकार = आ./अंस ४५ - १ अनन्तगुणे - ४६ असंयतो में उप. स्तोक - ४७ सम्यक्त्व क्षा असं.गुणे गुणकार = आ./अंस ४८ - वे. असं.गुणे भोगभूमि में संचय ४९ संयतासंयतो में उप. स्तोक - ५० सम्यक्त्व वे. असं.गुणे गुणकार = आ./अंस - क्षा - अभाव
- तिर्यंच गति की सामान्य प्ररूपणा
- मनुष्य गति
- मनुष्य गति की सामान्य प्ररूपणा
(ति.प.४/२९३१-३३) (मू.आ.१२१२-१२१५) (ध.३/१,२,१४/९९/२)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- अन्तर्द्वीपज प. - स्तोक - - उत्तम भोगभूमि प. - सं.गुणे देवकुरू व उत्तरकुरू - मध्य भोगभूमि प. - सं.गुणे हरि व रम्यक - जघन्य भोगभूमि प. - सं.गुणे हैमवत व हैरण्यवत - अनवस्थित कर्मभू. प. - सं.गुणे भरत व ऐरावत - अवस्थित कर्मभू. प. - सं.गुणे विदेह क्षेत्र - लब्ध्यपर्याप्त - असं.गुणे - - सर्व मनुष्य सामान्य - विशेषाधिक पर्याप्त+अपर्याप्त - मनुष्य गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.५३-८०)
मनुष्य सामान्य, मनुष्य प., मनुष्यणी
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
५३ उपशमक ८-१० स्तोक प्रवेश व संचय दोनों ५४ - ११ ऊपर तुल्य तीनों परस्परतुल्य (५४ जीव) ५५ क्षपक ८-१० दुगुने तीनों परस्परतुल्य (१०८ जीव) ५६ १२ ऊपर तुल्य तीनों परस्परतुल्य ५७ १४ ऊपर तुल्य तीनों परस्परतुल्य ५७ १३ ऊपर तुल्य प्रवेशापेक्षाया ५८ सं.गुणे संचयापेक्षया ५९ अक्षपक व अनुपश. ७ सं.गुणे मूलोघवत् ६० ६ दुगुने मूलोघवत् ६१ ५ सं.गुणे मूलोघवत् ६२ २ सं.गुणे मूलोघवत् ६३ ३ सं.गुणे मूलोघवत् ६४ ४ सं.गुणे मूलोघवत् ६५ १ सं.गुणे मनुष्य प.व मनुष्यणी में ६५ - असं.गुणे मनुष्य सा.व.अप. ६६ असंयतो में उप स्तोक मूलोघवत् ६७ क्षा सं.गुणे मूलोघवत् ६८ वे. सं.गुणे मूलोघवत् ६९ संयतासंयतों में सम्यक्त्व क्षा स्तोक क्षायिक सम्यक्त्वी प्रायः संयमासंयम नहीं धरते या असंयमी रहते हैं या संयम ही धरते हैं। ७० उप. सं.गुणे बहु उपलब्धि ७१ वे. सं.गुणे अधिक आय ७२ गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्व उप. स्तोक मूलोघवत् ७३ क्षा. सं.गुणे मूलोघवत् ७४ वे. सं.गुणे मूलोघवत् ७८ उपशमकों मे सम्यक्त्व उप. स्तोक मूलोघवत् ७९ चारित्र क्षा. सं.गुणे - ८० उप. स्तोक - क्षप. सं.गुणे - - केवल मनुष्यणी की विशेषता
(ष.खं.५/१,८/सू.७५-७८)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
७५ गुणस्थान ४-७ में सम्यक्त्व क्षा. स्तोक अप्रशस्त वेद में क्षायिक सम्यकत्व दुर्लभ है। ७६ क्षपक उप. सं.गुणे - ७७ - वे. सं.गुणे - ७८ उपशमकों मे सम्यक्त्व क्षा. स्तोक उपरोक्तवत् - - उप. सं.गुणे -
- मनुष्य गति की सामान्य प्ररूपणा
- देव गति
- देव गति की सामान्य प्ररूपणा
(मू.आ.१२१६)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- कल्पवासी देव-देवी - स्तोक - - भवनवासी देव-देवी - असं.गुणे - - व्यन्तर देव-देवी - असं.गुणे - - ज्योंतिषी देव-देवी - असं.गुणे - - देव गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.८१-१०२)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
८१ देव सामान्य २ स्तोक - ८२ - 3 सं.गुणे अधिक उपक्रमण काल ८३ - ४ असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८४ - १ असं.गुणे .,Xआ.\असं./ज.प्र. ८५ सम्यक्त्व उप. स्तोक अल्पसंचय काल ८६ - क्षा. असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८७ - वे. असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८८ भवनत्रिक देव-देवी व सौधर्म देवी सा. २ स्तोक सप्तम नरकवत् ८८ - ३ सं.गुणे सप्तम नरकवत् ८८ - ४ असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८८ - १ असं.गुणे गुणकार = आ.\असं/ज.प्र. - उपर्युक्त में सम्यक्त्व उप. स्तोक सप्तमपृथिवीवत् ८८ - वे. असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८८ - क्षा. - अभाव ८९ सौधर्म से सहस्रार १-४ - देवसामान्यवत् ९० आनत से उ.ग्रैवेयक २ स्तोक देवसामान्यवत् ९१ सामान्य ३ सं.गुणे देवसामान्यवत् ९२ - १ असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ९३ - ४ सं.गुणे अधिक उपपाद ९४ उपरोक्त में सम्यक्त्व उप. स्तोक - ९५ - क्षा. असं.गुणे गुणकार = आ./असं. - - - - संयचकाल-सं.सागर ९६ - वे. सं.गुणे - ९७ - उप. स्तोक अन्य गुणस्थानों का अभाव ९८ अनुदिश से अपराजित में सम्यक्त्व क्षा. असं.गुणे गुणकार=पल्य./अ.सं. ९९ - वे. सं.गुणे अधिक उपपाद १०० - उप. स्तोक अल्प संचय काल १०१ सर्वार्थसिद्धि में सम्यक्त्व क्षा. सं.गुणे अधिक संचय काल १०२ - वे. सं.गुणे अधिक उपपाद
- देव गति की सामान्य प्ररूपणा
- पाँच गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- इन्द्रिय मार्गणा
- इन्द्रियों की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.१६-२१)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१६ पंचेन्द्रिय - स्तोक - १७ चतुरिन्द्रिय - विशेषाधिक (पंचे.+पंचे./आ./असं)X(ज.प्र./असं.) अधिक १८ त्रीन्द्रिय - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं १९ द्वीन्द्रिय - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/आ.\असं २० अनिन्द्रिय (सिद्ध) - अनन्तगुणे - २१ एकेन्द्रिय - अनन्तगुणे - - इन्द्रियों में पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ति.प.४/३१४) (ष.खं.७/२,११/सू.२२-३७)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
२२ चतुरिंद्रिय प - स्तोक ज.प्र./ (प्रतरांगुल / असं.) २३ पंचेन्द्रिय प - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) २४ द्वीन्द्रिय प - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) २५ त्रीन्द्रिय प - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) २६ पंचेन्द्रिय अप - असं गुणे गुणकार = आ/असं २७ चतुरिंद्रिय अप - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) २८ त्रीन्द्रिय अप - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) २९ द्वीन्द्रिय अप - विशेषा उपरोक्त + वह / (आ. / असं.) ३० अनिन्द्रिय (सिद्ध) - अनन्तगुणे - ३१ एकेंद्रिय बा प - अनन्तगुणे - ३२ एकेंद्रिय बा अप - असं.गुणे - ३३ एकेंद्रिय बा सा - विशेषा. पर्याप्त + अपर्याप्त ३४ एकेंद्रिय सू प - असं.गुणे - ३५ एकेंद्रिय सू अप - सं.गुणे - ३६ एकेंद्रिय सू सा - विशेषा पर्याप्त + अपर्याप्त ३७ एकेंद्रिय सा - विशेषा बा.सा.+ सू.सा. - ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सू.१०३)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक - उपरोक्त सामान्य प्ररूपणावत् एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही सम्भव है। - पंचे.सा. व पंचे.प. २-१४ मूलोघवत् - - पंचे.प. १ असं.सम्य. से असं.गुणे -
- इन्द्रियों की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- काय मार्गणा
- त्रस-स्थावर की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११ सू.३८-४४) (ष.खं.१४/५,६/सू.५६८-५७४/४६५) (स.म.२९/३३१/७)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
३८ त्रस सा. - स्तोक ज.प्र/असं. ३९ तेज सा. - असं. गुणे असं.लोक गुणकार ४० पृथिवी सा. - विशेषा. उपरोक्त+वह\लोक/असं ४१ अप.सा. - विशेषा. उपरोक्त+वह\लोक/असं ४२ वायु सा. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\लोक/असं ४३ अकायिक (सिद्ध) - अनन्तगुणे ४४ वनस्पति सा. - अनन्तगुणे - पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.४५-५९)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
४५ त्रस प. स्तोक ज.प्र.\प्रतरांगल/असं. ४६ त्रस.अप. असं.गुणे - ४७ तेज.अप. असं.गुणे ४८ पृथिवी अप असं.गुणे ४९ अप्.अप. विशेषा. उपरोक्त+वह\असं.लोक ५० वायु अप. विशेषा. उपरोक्त+वह\असं.लोक ५१ तेज.प सं.गुणे ५२ पृथिवी प. विशेषा. उपरोक्त+वह\असं.लोक ५३ अप् प. विशेषा. उपरोक्त+वह\असं.लोक ५४ वायु प विशेषा. उपरोक्त+वह\असं.लोक ५५ अकायिक (सिद्ध) अनन्त गुणे ५६ वनस्पति अप. अनन्त गुणे ५७ वनस्पति प. सं.गुणे ५८ वनस्पति सा विशेषा. पर्याप्त+अपर्याप्त ५९ निगोद सा. विशेषा. - बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणाएँ
(ष.खं.७/२,११/सू.६०-७५)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
६० त्रस सा. - स्तोक ज.प्र./असं. ६१ तेज बा.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६२ वन.प्रत्येक बा.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६३ बा.निगोद सा.या प्रतिष्ठित प्रत्येक में उपलब्ध निगोद - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६४ पृथिवी बा.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६५ अप् बा.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६६ वायु बा.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६७ तेज सू.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ६८ पृथिवी सू.सा. - विशेषा. उपोक्त+वह/असं.लोक ६९ अप.सू.सा. - विशेषा. उपरोक्त+वह/असं.लोक ७० वायु सू.सा. - विशेषा. उपरोक्त+वह/असं.लोक ७१ अकायिक (सिद्ध) - अनन्त गुणे - ७२ वन.वा.सा. - अनन्त गुणे - ७३ वन.वा.सू.सा. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ७४ वन.सा. - विशेषा. बा.\सु. ७५ निगोद - विशेषा. - - बा.सू.पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.७६-१०६) (ति.प.४/३१४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
७६ त्रस.प. - स्तोक असं.प्रतरावली ७७ त्रस.प.अप. - असं.गुणे गुणकार = ज.प्र/असं. ७८ त्रस.प.अप. - असं.गुणे गुणकार = ज.प्र/असं. त्रस विशेष
(ति.प.४/३१४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- पंचेन्द्रिय संज्ञी अप. - तेजकाय वा.प.से असं.गुणा विशेषके लिए देखो
इन्द्रियमार्गणा नं.(२)- पंचेन्द्रिय संज्ञी प. - सं.गुणे - चतुरिन्द्रिय प. - सं.गुणे - पंचे.असंज्ञी प. - विशेषाधिक - द्वीन्द्रिय प. - विशेषाधिक - त्रीन्द्रिय प. - विशेषाधिक - पंचे.असंज्ञी अप. - अअं.गुणे - चतु.अप. - विशेषाधिक - त्री.अप. - विशेषाधिक - द्वी.अप. - विशेषाधिक ७९ वन. प्रत्येक प. - असं.गुणे गुणकार = पल्य/असं. ८० वन.प्रति.प्रत्ये.प. - असं.गुणे गुणकार = पल्य/असं. ८१ पृथिवी बा.प. - असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८२ अप्.बा.प - असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ८३ वायु.बा.प - असं.गुणे गुणकार = प्रतरांगुल/असं. ८४ तेज बा.अप - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ८५ वन.अप्रति.प्रत्ये अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ८६ वन. प्रति.प्रत्ये.अप. - असं.गुणे ति.प.४/३१४ में तेजकाय बा.अप.को वन. अप्रति. प्रत्येक अप.से असं.गुण बताया है। ८७ पृथिवी बा.अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ८८ अप् बा.अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ८९ वायु बा.अप - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ९० तेज सू. अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक ९१ पृथिवी सू.अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९२ अपकाय सू.अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९३ वायु सू.अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९४ तेज सू.प. - सं.गुणे - ९५ पृथिवी सू.प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९६ अप् काय सू.प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९७ वायु सू.प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह/असं. ९८ अकायिक (सिद्ध) - अनन्त गुणे - ९९ वन. साधारण बा.प. - अनन्त गुणे - १०० वन.साधारण बा. अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक १०१ वन.साधारण बा.सा. - विशेषाधिक पर्याप्त+अपर्याप्त १०२ वन.साधारण सू.अप. - असं.गुणे गुणकार = असं.लोक १०३ वन.साधारण सू.प. - सं.गुणे - १०४ वन. साधा .सू .सा. - विशेषाधिक अपर्याप्त + पर्याप्त १०५ वन.साधारण.सा. - विशेषाधिक बादर+सूक्ष्म १०६ निगोद - विशेषाधिक बादर प्रत्येक + बा.नि.प्रति. - ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.खं.५/१,८/सूत्र १०४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
- त्रस काय सा.व.प. २-१४.
२.(मध्य)मूलोघवत् असंय. सम्य से असं.गुणे -
- त्रस-स्थावर की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- गति, इन्द्रिय व काय की संयोगी पर-स्थान प्ररूपणा
(ष.ख.७/२,११/सूत्र.१-७९)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
२ मनुष्य गर्भज प. - स्तोक मनुष्य सा./४ ३ मनुष्यणी गर्भज.प. - तिगुनी - ४ सर्वार्थसिद्धि देव - ४ या ७ गुणे - ५ तेज काय बा.प. - असं. गुणे गुणकार = असंप्रतरावली ६ विजयादि चार अनुत्तर विमान - असं.गुणे गुणकार = पल्य/असं. ७ नव अनुदिश - सं.गुणे गुणकार = सं.समय ८ ९वाँ उपरिम ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय ९ ८वाँ उपरिम ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १० ७वाँ उपरिम ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय ११ ६ठा. उपरिम ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १२ ५वाँ उपरिम ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १३ ४था.मध्य ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १४ ३रा.मध्य ग्रैवे. - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १५ २रा अधो ग्रैवेयक - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १६ १ला अधो ग्रैवेयक - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १७ आरण-अच्युत - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १८ आनत-प्राणत - सं.गुणे गुणकार = सं.समय १९ ७वीं पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)१/२ २० ६ठी पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)३/२ २१ शतार-सहस्रार - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)४/२ २२ शुक्र-महाशुक्र - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)५/२ २३ ५वीं पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)६/२ २४ लांतव-कापिष्ठ - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)७/२ २५ ४थी पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)८/२ २६ ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)९/२ २७ ३री पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)१०/२ २८ माहेन्द्र स्वर्ग - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)११/२ २९ सानत्कृमार स्वर्ग - असं.गुणे गुणकार = असं.समय ३० २री पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)१२/२ ३१ मनुष्य अप. - असं.गुणे गुणकार = (ज.श्रे.)१२/२/असं ३२ ईशान देव - असं.गुणे गुणकार = सूच्यंगुल/असं. ३३ ईशान देवियाँ - ३२ गुणी - ३४ सौधर्म देव - सं. गुणे - ३५ सौधर्म देवियाँ - ३२ गुणी - ३६ १ली पृथिवी नरक - असं.गुणे गुणकार = (घनांगुल)३/२ ३७ भवनवासी देव - असं. गुणे गुणकार = (घनांगुल)३/२/असं. ३८ भवनवासी देवियाँ - ३२ गुणी - ३९ चें.तिर्यं.योनिमति - असं.गुणे गुणकार = (असं.ज.श्रे)१/२/सं. ४० व्यंतर देव - सं.गुणे - ४१ व्यंतर देवियाँ - ३२ गुणी - ४२ ज्योतिषी देव - सं.गुणे - ४३ ज्योतिषी देवियाँ - ३२ गुणी - ४४ चतिरिन्द्रिय प. - सं.गुणे - ४५ पंचेन्द्रिय प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ४६ द्वीन्द्रिय प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ४७ त्रीन्द्रिय प. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ४८ पंचेन्द्रिय अप. - असं.गुणे गुणकार = आ./असं. ४९ चतुरिन्द्रिय अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ५० त्रीन्द्रिय अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ५१ द्वीन्द्रिय अप. - विशेषाधिक उपरोक्त+वह\आ./असं. ५२ वन. अप्रति. प्रत्येक बा. प. - असं. गुणे गुणकार = पल्य/असं. ५३ वन. प्रति. प्रत्येक बा. प. या निगोद - असं. गुणे गुणकार = आ./असं. ५४ पृथिवी बा. प. - असं. गुणे गुणकार = आ./असं. ५५ अप. काय बा. प. - असं. गुणे गुणकार = आ./असं. ५६ वायु काय बा. प. - असं. गुणे गुणकार = प्रतरांगुल/असं. ५७ तेज काय बा. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ५८ वन. अप्रति. प्रत्येक वा. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ५९ वन. प्रति. प्रत्येक बा. अप. या निगोद - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ६० पृथिवी काय बा. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ६१ अप् काय बा. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ६२ वायु काय बा. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ६३ तेज काय सू. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ६४ पृथिवी काय बा. अप. - विशेषाधिक उपरोक्त + वह/असं. लोक ६५ अप् काय बा. अप. - विशेषाधिक उपरोक्त + वह/असं. लोक ६६ वायु काय बा. अप. - विशेषाधिक उपरोक्त + वह/असं. लोक ६७ तेज काय बा. प. - सं. गुणा - ६८ पृथिवी काय बा. प. - विशेषाधिक उपरोक्त + असं. लोक ६९ अप काय बा. प. - विशेषाधिक उपरोक्त + असं. लोक ७० वायु काय बा. अप. - विशेषाधिक उपरोक्त + असं. लोक ७१ अकायिक (सिद्ध) - अनन्तगुणे - अनन्तगुणे - ७२ वन. साधारण बा. पा. - अनन्तगुणे - ७३ वन. साधारण अप. - - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ७४ वन. साधारण सा. - - विशेषाधिक पर्याप्त + अपर्याप्त ७५ वन. साधारण सू. अप. - असं. गुणे गुणकार = असं. लोक ७६ वन. साधारण सू. प. - सं. गुणे - ७७ वन. साधारण सू. सा. - विशेषाधिक पर्याप्त + अपर्याप्त ७८ वन. साधारण सा. - - विशेषाधिक सूक्ष्म सा. + बादर सा. ७९ निगोद - विशेषाधिक विशेष = वन. प्रति. - प्रत्येक बा. सा. - योग मार्गणा
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं.७/२,११/सू.१०७-११०)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१०७ मनोयोगी सा. - स्तोक देव सा./असं. १०८ वचनयोगी सा. - सं. गुणे - १०९ अयोगी (सिद्ध) - अनन्त गुणे - ११० विजयादि चार अनुत्तर विमान - अनन्त गुणे - - विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.खं./७/२,११/सू.१११-१२९)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१११ आहारक मिश्र योग - स्तोक ११२ आहारक काय योग - दुगुने ११३ वैक्रियक मिश्र योग - असं. गुणे ११४ सत्य मनो योग - सं. गुणे ११५ मृषा मनो योग - सं. गुणे ११६ उभय मनो योग - सं. गुणे ११७ अनुभय मनो योग - सं. गुणे ११८ मनोयोगी सा. - विशेषाधिक चारों मनोयोगी ११९ सत्य वचन योग - सं. गुणे १२० मृषा वचन योग - सं. गुणे १२१ उभय वचन योग - सं. गुणे १२२ वैक्रियक काय योग - सं. गुणे १२३ अनुभय वचन योग - सं. गुणे १२४ वचन योगी सा. - विशेषाधिक चारों वचन योगी १२५ अयोगी (सिद्ध) - अनन्त गुणे १२६ कार्माण काय योग - अनन्त गुणे १२७ औदारिक मिश्र योग - असं.गुणे गुणकार=अन्तर्मुहूर्त १२८ औदारिक काय योग - सं. गुणे १२९ काय योगी सा. - विशेषाधिक चारों काय योगी - ओघ व आदेश प्ररूपणा
१. पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचन योगी, काय योगी सा. औदारिक काययोगी - इस प्रकार १२ योग वाले
(ष.ख.५/१,८/सू.१०५-१२१)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१०५ उपशमक ८-१० स्तोक परस्पर तुल्य संचय १०६ ११ ऊपर तुल्य प्रवेश दोनों अपेक्षा १०७ क्षपक ८-१० दुगुने १०८ १२ ऊपर तुल्य १०९ संयोग केवली १३ ऊपर तुल्य प्रवेश अपेक्षा ११० १३ सं.गुणे संचय अपेक्षा १११ अनुपशमक ७ सं.गुणे ११२ अक्षपक सामान्य ६ दुगुने ११३ ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. ११४ २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. ११५ ३ सं.गुणे मनुष्य गतिवत् ११६ ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. ११७ १ असं.गुणे मन-वचन योग की अपेक्षा अनन्त गुणे काय व औ. काययोग की अपेक्षा ११८ सम्यक्त्व ४-७ मूलोघवत् ११९ ८-१० मूलोघवत् १२० चारित्र उप. स्तोक १२१ क्षप. सं.गुणे
२. औदारिक मिश्र योग
(ष.ख.५/१,८/सू.१२२-१२७)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१२२ सयोग केवली १३ स्तोक - १२३ असंयत सामान्य ४ सं.गुणे - १२४ २ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. १२५ १ अनन्त गुणे - १२६ सम्यक्त्व क्षा. स्तोक दुर्लभता १२७ वे. सं.गुणे -
३. वैक्रियिक काय योग
(ष.ख.५/१,८/सू.१२८)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१२८ सर्व भंग १-४ देवगति सा.वत् -
४. वैक्रियक मिश्र योग
(ष.ख.५/१,८/सू.१२९-१३४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१२९ सामान्य २ स्तोक - १३० ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १३१ १ असं.गुणे गुणकार=अंगु/असं.\जप्र १३२ सम्यक्त्व उप. स्तोक उपशम श्रेणी में मृत्यु बहुत कम होती है १३३ क्षा. सं.गुणे - १३४ वे. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
५. आहारक मिश्र काय योग
(ष.ख.५/१,८/सू.१३५-१३६)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१३५ सम्यक्त्व क्षा. स्तोक उपशम सम्यक्त्व में आहारक योग नहीं होता १३६ - वे. सं.गुणे -
६. कार्मण काय योग
(ष.ख.५/१,८/सू.१३७-१४३)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१३७ - १३ स्तोक १३८ - २ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. १३९ - ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १४० - १ अनन्त गुणे १४१ सम्यक्त्व उप. स्तोक वैक्रियक मिश्रवत् असं. क्षायिक सम्यग्दृष्टियों का मरण नहीं होता। क्योंकि यदि देवों से मरण करे तो मनुष्यों मे असं.क्षा सम्य. का प्रसंग आ जायेगा। परन्तु तिर्य. व मनुष्यों में असं. क्षा. सम्य. होते नहीं। नरक से मरकर देवों में जाते नहीं । १४२ क्षा सं.गुणे १४३ वे. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं.
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- वेद मार्गणा
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.७/२,११/सूत्र १३०-१३३)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१३० पुरुष - स्तोक - १३१ स्त्री - सं.गुणे - १३२ अपगत - अनन्त गुणे - १३३ नपुंसक - अनन्त गुणे - - विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.७/२,११/सूत्र १३४-१४४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१३४ नपुंसंक संज्ञी गर्भज - स्तोक - १३५ पुरुष संज्ञी गर्भज - सं.गुणे - १३६ स्त्री संज्ञी गर्भज - सं.गुणे - १३७ नपुंसक संज्ञी सम्पू.प. - सं.गुणे - १३८ नपुंसक संज्ञी सम्पू. अप. - असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १३९ स्त्री संज्ञी गर्भज भोग - अंस.गुणे - १३९ पुरुष संज्ञी गर्भज भोग - ऊपर तुल्य - १४० नपुंसक असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे - १४१ पुरुष असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे - १४२ स्त्री असंज्ञी गर्भज - सं.गुणे - १४३ नपुंसक असंज्ञी सम्मू.प. - सं.गुणे - १४४ नपुंसक असंज्ञी सम्मू अप. - असं.गुणे गुणकार=आ./असं. - तीनों वेदों की पृथक् पृथक् ओघ व आदेश प्ररूपणा
१. स्त्री वेद
(ष.ख.५/१-८/सूत्र १४४-१६१)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१४४ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य केवल १० जीव १४४ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य केवल १० जीव १४५ क्षपक ८-९ दुगुने केवल २० जीव १४६ अक्षपक व अनुशमक ७ सं.गुणे मूलोघवत् १४७ ६ दुगुने - १४८ ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. तिर्यंच भी सम्मिलित सुलभता १४९ २ असं.गुणे - १५० ३ सं.गुणे अन्य स्थानों से आय १५१ ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. अन्य स्थानों से आय १५२ १ असं.गुणे गुणकार=घनांगुल\असं./ज.प्र. १५३ गुणस्थान ४-५ में सम्यक्त्व क्षा स्तोक अल्प आय १५४ उप. सं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. १५५ वे. सं.गुणे गुणकार=आ./असं. १५६ गुणस्थान ६-७ में
सम्यक्त्वक्षा. स्तोक - १५७ उप. सं.गुणे - १५८ वे. सं.गुणे - १५९ उपशमकों में सम्य. क्षा. स्तोक - उप. सं.गुणे १६० चारित्र उप. स्तोक - १६१ क्षप. दुगुने -
२. पुरुष वेद
(ष.ख.५/१,८/सू.१६२-१७४)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१६२ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य कुल ५४ जीव १६३ क्षपक ८-९ दुगुणे परस्पर तुल्य कुल १०८ जीव १६४ अक्षपक व अनुशमक
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-
-
-७ सं.गुणे मूल ओघवत् १६५ ६ दुगुने मूल ओघवत् १६६ ५ असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. (तीर्यंच भी) १६७ २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १६८ ३ सं.गुणे - १६९ ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १७० १ असं.गुणे गुणकार=अंगु/असं.\ज.प्र. १७१ गुणस्थान ४-७ में
सम्यक्त्वउप. स्तोक ओघवत् क्षा. असं.गुणे गुणकार=पल्य/असं. वे. असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १७२ उपशमकों में सम्य. क्षा. स्तोक - उप. सं.गुणे १७३ चारित्र उप. स्तोक - १७४ क्षप. सं.गुणे - ३. नपुंसक वेद
(ष.ख.५/१,८/सू.१७५-१९०)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
१७५ उपशमक ८-९ स्तोक परस्पर तुल्य ५ जीव १७६ क्षपक ८-९ दुगुणे परस्पर तुल्य कुल १० जीव १७७ अक्षपक व अनुशमक ७ सं.गुणे मूलोघवत् १७८ ६ दुगुने - १७९ ५ असं.गुणे गणकार=पल्य/असं. (तिर्यंच भी सम्मिलित) १८० २ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १८१ ३ सं.गुणे गुणकार=सं.समय १८२ ४ असं.गुणे गुणकार=आ./असं. १८३ १ अनन्त गुणे सर्व जीव राशि का अनन्त प्रथम वर्गमूल गुणकार है। १८४ असंयतों में सम्य उप. स्तोक - क्षा. आ./असं.गुणे प्रथम पृथ्वी नरक में भी सुलभ वे. आ./असं.गुणे संयतासंयतों में सम्यक्त्व
-क्षा. स्तोक पर्याप्त मनुष्य ही होते हैं तिर्यंच नहीं उप. प./असं.गुणे - वे. आ./असं.गुणे पृथक् पृथक् परस्पर १ २ १८५ गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्व क्षा. स्तोक अप्रशस्त वेद में क्षायिक की दुर्लभता १८६ उप. सं.गुणे - १८७ वे. सं.गुणे - १८८ उपशमकों में सम्य. क्षा. स्तोक - १८८ - उप. सं.गुणे - १८९ चारित्र उप. स्तोक - १९० - क्षा सं.गुणे - ४. अपगत वेद
(ष.ख.5/1,8/सू.191-196)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
191
उपशमक
9-10
स्तोक
पृथक् पृथक् तुल्य (कुल 54 जीव)
192
-
11
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है
193
क्षपक
9-10
दुगुने
संचय कुल 108 जीव
194
-
12
ऊपर तुल्य
संचय कुल 108 जीव
195
अयोगी
14
ऊपर तुल्य
संचय कुल 108 जीव
195
सयोगी
13
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा
196
-
-
सं.गुणे
संचय की अपेक्षा
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- कषाय मार्गणा
- कषाय चतुष्क की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,21/सू.145-149)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
145
अकषायी
-
स्तोक
-
146
मान कषायी
-
अनंत गुणे
-
147
क्रोध कषायी
-
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/आ.\असं.
148
माया कषायी
-
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/आ.\असं.
149
लोभ कषायी
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/आ.\असं.
- कषाय चतुष्क की अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा
१. चारों कषाय
(ष.ख.5/1,8/सू.197-211)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
197
उपशमक
8-9
स्तोक
परस्पर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है
198
क्षपक
8-9
सं.गुणे
-
199
उपशमक
10
विशेषाधिक
-
200
क्षपक
10
सं.गुणे
-
201
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
गु.=क्रोध,मान,माया,लोभ 2 3 4 7
202
-
6
दुगुने
4 6 8 14
203
-
5
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
204
-
2
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
205
-
3
सं.गुणे
गुणकार=सं.समय
206
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
207
-
1
अनंत गुणे
-
208
उपरोक्त में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
-
-
क्षा.
असं./सं.गुणे
मूलोघवत्
-
-
वे.
असं./सं.गुणे
मूलोघवत्
209
उपशमकों में
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
-
सम्यक्त्व
क्षा.
सं.गुणे
मूलोघवत्
210
चारित्र
उप.
स्तोक
-
211
-
क्षप.
सं.गुणे
-
2. अकषायी
(ष.ख.5/1,8/सू. 212-215)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
212
अकषायी
11
स्तोक
कुल 54 जीव (प्रदेश व संचय)
213
अकषायी
12
दुगुने
कुल 108 जीव
214
अकषायी
14
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा
-
अकषायी
13
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा
215
अकषायी
-
सं.गुणे
संचय की अपेक्षा
- कषाय चतुष्क की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- ज्ञान मार्गणा
- सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,11/सू. 150-155)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
150
मनःपर्यय ज्ञानी
-
स्तोक
संख्यात मात्र
151
अवधि ज्ञानी
-
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
152
मतिश्रुत ज्ञानी
-
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/असं. परस्पर तुल्य
153
विभंग ज्ञानी
-
असं.गुणे
गुणकार=ज.प्र./असं.
154
केवलज्ञानी
-
अनंतुगणे
-
155
मतिश्रतु अज्ञानी
-
अनंतगुणे
-
- ओघ व आदेश प्ररूपणा
1. अज्ञान
(ष.ख.5/1,8/सू.216-217)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
216
मति-श्रुत अज्ञान
2
स्तोक
गुणकार=पल्य/असं.
217
-
1
अनंतगुणे
गुणकार=सर्व जीव/असं.
216
विभंग ज्ञान
2
सर्वतः स्तोक
पल्य/असं.
217
-
1
असं.गुणे
गुणकार=अंगु./असं.\ज.प्र.
2. मति, श्रुत, अवधि ज्ञान
(ष.ख.5/1,8/सू.218-229)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
218
उपशमक
8-10
स्तोक
प्रवेश अपेक्षा/तुल्य
219
उपशमक
11
ऊपर तुल्य
संचय भी प्रवेशाधीन
220
क्षपक
8-10
दुगुणे
संचय भी प्रवेशाधीन
221
क्षपक
12
ऊपर तुल्य
संचय भी प्रवेशाधीन
222
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
मूलोघवत्
223
अक्षपक व अनुपशमक
6
दुगुने
-
224
अक्षपक व अनुपशमक
5
प./असं.गुणे
तिर्यंच और देव भी
225
अक्षपक व अनुपशमक
4
आ./असं./गु.
-
226
उपरोक्त में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
226
-
क्षा.
असं.व सं.गु
मूलोघवत्
226
-
वे.
असं.व सं.गु
मूलोघवत्
227
उपशमकों में सम्य.
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
227
-
क्षा.
सं.गुणे
मूलोघवत्
228
चारित्र
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
229
-
क्षप.
सं.गुणे
मूलोघवत्
3. मनःपर्यय ज्ञान
(ष.ख.5/1,8/सू.230-241)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
230
उपशमक
8-10
स्तोक
तुल्य प्रवेश व संचय
231
-
11
ऊपर तुल्य
तुल्य प्रवेश व संचय
232
क्षपक
8-10
दुगुणे
तुल्य प्रवेश व संचय
233
-
12
ऊपर तुल्य
तुल्य प्रवेश व संचय
234
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
-
235
-
6
दुगुणे
-
236
उपरोक्त में सम्य.
उप.
स्तोक
-
237
-
क्षा.
स.गुणे
क्षायिक सम्यक्त्व के साथ अधिक मनःपर्ययज्ञानी होते हैं।
238
-
वे.
सं.गुणे
-
239
उपशमकों में सम्य.
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
-
-
क्षा.
सं.गुणे
मूलोघवत
240
चारित्र
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
241
-
क्षप.
सं.गुणे
मूलोघवत्
4. केवलज्ञान
(ष.ख.5/1,8/सू.242-243)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
242
अयोगी
14
स्तोक
प्रवेश व संचय
242
सयोगी
13
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
243
सयोगी
13
सं.गुणे
संचयापेक्षया
- सामान्य प्ररूपणा
- संयम मार्गणा
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,11/सू.156-159)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
156
संयत सामान्य
-
स्तोक
संख्यात मात्र
157
संयतासंयत
-
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
158
न संयत न असंयत (सिद्ध)
-
अनंतगुणे
-
159
असंयत
-
अनंतगुणे
-
- विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,11/सू.160-167)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
160
सूक्ष्म सांपराय
-
स्तोक
-
161
परिहार विशुद्धि
-
सं.गुणे
-
162
यथाख्यात
-
सं.गुणे
-
163
सामायिक
-
सं.गुणे
-
163
छेदोपस्थापना
-
ऊपर तुल्य
-
164
संयत सामान्य
-
विशेषाधिक
उपरोक्त सर्व का योग
165
संयतासंयत
-
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
166
न संयत न असंयत (सिद्ध)
-
अनंतगुणे
-
167
असंयत
-
अनंत गुणे
-
- ओघ व आदेश प्ररूपणा
1. संयम सामान्य
(ष.ख.5/1,8/सू.244-257)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
244
उपशमक
8-10
स्तोक
प्रवेश व संचय दोनों कुल 54 जीव
245
-
1
उपर तुल्य
-
246
क्षपक
8-10
दुगुने
प्रवेश व संचय दोनों कुल 108 जीव
247
-
12
ऊपर तुल्य
-
248
अयोगी
14
ऊपर तुल्य
कुल 108 जीव
248
सयोगी
13
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
249
सयोगी
13
सं.गुणे
संचयापेक्षया
250
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
-
251
-
6
दुगुने
-
252
उपरोक्त में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
-
253
-
क्षा.
सं.गुणे
-
254
-
वे.
सं.गुणे
-
255
उपशमकों में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
-
255
-
क्षा.
सं.गुणे
-
256
चारित्र
उप.
स्तोक
-
257
-
क्षप.
सं.गुणे
-
2. सामायिक, छेदोपस्थापना संयम
(ष.ख.5/1,8/सू.258-267)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
258
उपशमक
8-9
स्तोक
परस्पर तुल्य/प्रवेश की अपेक्षा कुल 54 जीव संचय भी प्रवेशाधीन
259
क्षपक
8-9
दुगुने
-
260
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
-
261
अक्षपक व अनुपशमक
6
दुगुने
-
262
उपरोक्त में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
-
263
-
क्षा.
सं.गुणे
-
264
-
वे.
सं.गुणे
-
265
उपशमकों में सम्य.
उप.
स्तोक
-
265
-
क्षा.
सं.गुणे
-
266
चारित्र
उप.
स्तोक
-
267
-
क्षप.
सं.गुणे
3. परिहार विशुद्धि संयम
(ष.ख.5/1,8/सू.268-271)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
268
अक्षपक व अनुपशमक
7
स्तोक
-
269
-
6
दुगुने
-
-
उपरोक्त में सम्यक्त्व
उप.
-
अभाव
270
-
क्षा.
स्तोक
-
271
-
वे.
सं.गुणे
-
4. सूक्ष्म सांपराय संयम
(ष.ख.5/108/सू.272-273)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
272
उपशमक
10
स्तोक
-
273
क्षपक
10
दुगुने
-
5. यथाख्यात संयम
(ष.ख.5/1,8/सू.274)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
274
11
स्तोक
प्रवेश व संचय
-
12
दुगुने
प्रवेश व संचय
-
14
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा
-
13
ऊपर तुल्य
प्रवेश की अपेक्षा
-
-
सं.गुणे
संचय की अपेक्षा
6. संयतासंयत
(ष.ख.5/1,8/सू.275-278)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
275
सामान्य
5
-
अल्पबहुत्व नहीं है
276
सम्यक्त्व
क्षा.
स्तोक
तिर्यंचों में अभाव
277
-
उप.
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
278
-
वे. असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
7. असंयत
(ष.ख.5/1,8/सू.279-285)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
279
सामान्य
2
स्तोक
-
280
-
3
सं.गुणे
-
281
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
282
-
1
अनंतगुणे
गुणकार=सिद्धXअनंत
283
सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
-
284
-
क्षा.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
285
-
वे.
असं.गुणे
-
- सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा
- दर्शन मार्गणा
- सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,11/सू.175-178)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
175
अवधि
-
स्तोक
पल्य/असं.
176
चक्षु
-
असं.गुणा
गुणकार=ज.प्र/असं.
177
केवल
-
अनंतगुणा
सिद्धों की अपेक्षा
178
अचक्षु
-
अनंतगुणा
-
- ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.ख.5/1,8/सू.286-289)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
286
अचक्षु
2-12
मूलोघवत्
-
287
चक्षु
1
4थे से असं.गुणे
गुणकार=ज.प्र./असं.
286
-
2-12
मूलोघवत्
-
288
अवधि
4-12
अवधि ज्ञानवत्
-
289
केवल
13-14
केवलज्ञानवत्
-
- सामान्य प्ररूपणा
- लेश्या मार्गणा
- सामान्य प्ररूपणा
(ष.ख.7/2,11/सू. 179-185) (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/555/985/2)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
179
शुक्ल
-
स्तोक
पल्य/असं.
180
पद्म
-
असं.गुणे
गुणकार=ज.प्र./असं.
181
तेज
-
सं.गुणे
-
182
अलेश्या
-
अनंतगुणे
-
183
कापोत
-
अनंतगुणे
-
184
नील
-
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/आ.\असं.
185
कृष्ण
-
विशेषाधिक
उपरोक्त+वह/आ.\असं.
- ओघ व आदेश प्ररूपणा
1. कृष्ण नील कापोत
(ष.ख.5/1,8/सू.290-299)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
290
सामान्य
2
स्तोक
-
291
-
3
सं.गुणे
गुणकार=स.समय
292
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
293
-
1
अनंतगुणे
-
294
कृष्णनील में सम्य.
क्षा.
स्तोक
-
295
-
उप.
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
296
-
वे.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
297
कापोत में सम्य. उप.
स्तोक
अल्प संचय काल
298
-
क्षा.
असं.गुणे
प्रथम नरक की अपेक्षा गुणकार=आ./असं.
299
-
वे.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
2. तेज, छद्म. लेश्या-
(ष.ख.5/1,8/सू.300-307)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
300
सामान्य
7
स्तोक
संख्यात प्रमाण मनुष्य
301
-
6
दुगुणे
-
302
-
5
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/अंसं.
303
-
2
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
304
-
3
सं.गुणे
-
305
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
306
-
1
असं.गुणे
गुणकार=ज.प्र./असं.
307
-
4-7
मूलोघवत्
-
3. शुक्ल लेश्या-
(ष.ख.5/1,8/सू.308-327)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
308
उपशमक
8-10
स्तोक
प्रवेशापेक्षया/परस्पर तुल्य संचय भी प्रवेशाधीन
309
-
14
ऊपर तुल्य
-
310
क्षपक
8-10
दुगुणे
प्रवेशाधीन 108 जीव
311
-
12
ऊपर तुल्य
प्रवेशाधीन
312
-
13
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
313
-
-
सं.गुणे
संचयापेक्षया
314
अक्षपक व अनुपशमक
7
सं.गुणे
गुणकार=सं.समय
315
-
6
दुगुने
-
316
-
5
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
317
-
2
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
318
-
3
सं.गुणे
-
319
-
1
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
320
-
4
सं.गुणे
-
321
गुणस्थान 4 में सम्य.
उप.
स्तोक
-
322
-
क्षा.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
323
-
वे.
सं.गुणे
अनुदिशादि में वेदक कम होते हैं
324
गुणस्थान 5में सम्य.
-
मूलोघवत
-
325
उपशमकों में
उप.
स्तोक
मूलोघवत् -
सम्यक्त्व
क्षा.
दुगुने
मूलोघवत्
326
चारित्र
उप.
स्तोक
-
327
-
क्षा
सं.गुणे
-
15. भव्य मार्गणा-
1. सामान्य प्ररूपणा-
(ष.ख.7/2,11/सू.186-188)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
186
अभव्य
-
स्तोक
जघन्य युक्तानंत मात्र
187
न भव्य न अभव्य
-
अनंतगुणे
-
188
भव्य
-
अनंतगुणे
-
2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(ष.ख.5/1,8/सू.328-329)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
328
भव्य
1-14
मूलोघवत्
-
329
अभव्य
1
नहीं है
-
16. सम्यक्त्व मार्गणा-
1. सामान्य प्ररूपणा-
(ष.ख.7/2,11/सू.189-192)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
189
सम्यग्मिथ्या.
-
स्तोक
-
190
सम्यग्दृष्टि
-
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
191
सिद्ध
-
अनंतगुणे
-
192
मिथ्यादृष्टि सासादन
-
अनंतगुणे
सम्यग्दष्टि में अंतर्भाव
अन्य प्रकार-
(ष.ख.7/2,11/सू.193-200)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
193
सासादन
-
स्तोक
-
194
स्तोक
-
सं.गुणे
गुणकार=सं.समय
195
सम्यग्मिथ्यात्व
उप.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
196
-
क्षा.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
197
-
वे.
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
198
-
सा.
विशेषाधिक
सबका योग
199
सिद्ध
-
अनंतगुणे
-
200
मिथ्यादृष्टि
-
अनंतगुणे
-
2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(ष.ख.5/1,8/सू.330-354)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
330
सम्यक्त्व सा.
4-12
अवधिज्ञा.वत्
-
-
-
13-14
मूलोघवत्
-
331
उपशमकोमें क्षायिक
8-10
स्तोक
परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों
332
-
1
ऊपर तुल्य
प्रवेश व संचय दोनों
333
क्षपकोंमें क्षायिक
8-10
सं.गुणे
-
334
-
12
ऊपर तुल्य
-
335
-
14
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
-
-
13
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
336
-
-
सं.गुणे
संचयापेक्षया
337
अक्षपक व अनुपशमकों में क्षायिक
7
असं.गुणे
-
338
-
6
दुगुने
-
339
-
5
सं.गुणे
मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जातियों में अभाव
340
4
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
342
वेदक सम्यक्त्व
7
स्तोक
-
343
-
6
दुगुने
-
344
-
5
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
-
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
347
उपशम सम्यक्त्व
8-10
स्तोक
परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा
348
-
11
ऊपर तुल्य
परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा
349
-
7
सं.गुणा
-
350
-
6
दुगुने
-
351
-
45
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं
352
-
2
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
354
सासादन
2
नहीं है
-
354
मिथ्यादर्शन
1
नहीं है
-
17. संज्ञी मार्गणा-
1. सामान्य प्ररूपणा-
(ष.ख.7/2,11.सू.201-203)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
201
संज्ञी
-
स्तोक
ज.प्र./असं.मात्र
202
न संज्ञी न असंज्ञी
सिद्ध
अनंतुगणे
-
203
असंज्ञी
-
अनंतुगणे
-
2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(ष.ख.5/1,8/सू.355-357)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
355
संज्ञी
214
मूलोघवत्
-
356
संज्ञी
1
असंयतसे
ज.प्र./असं.गुणे
357
असंज्ञी
1
नहीं है
-
18. आहारक मार्गणा-
1. सामान्य प्ररूपणा-
(ष.ख.7/2,11 सू.203-205)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
203
अनाहारक अबंधक
-
-
-
-
-
14
स्तोक
-
204
अनाहारक बंधक
-
अनंतगुणे
विग्रह गतिमें
205
आहारक
-
असं.गुणे
गुणकार=अंतर्मुहूर्त
2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(ष.ख.5/1,8/सू.358-374)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
358
उपशमक
8-10
स्तोक
परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों (54 जीव)
359
-
11
ऊपर तुल्य
-
360
क्षपक
8-10
दुगुने
प्रवेश व संचय। 108 जीव
361
-
12
ऊपर तुल्य
-
362
-
13
ऊपर तुल्य
प्रवेशापेक्षया
363
-
-
सं.गुणे
संचयापेक्ष्या
364
अक्षपक अनुपशमक
7
सं.गुणे
सं. मनुष्यमात्र
365
-
6
दुगुने
-
366
-
5
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.तिर्यंचों की अपेक्षा
367
-
2
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं.
368
-
3
सं.गुणे
-
369
-
4
असं.गुणे
गुणकार=आ./असं
370
-
1
अनंतगुणे
-
371
उपरोक्तमें सम्यक्त्व
उप.
-
मूलोघवत्
-
-
क्षा.
-
मूलोघवत्
-
-
वे.
-
मूलोघवत्
372
उपशमकोंमें सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
मूलोघवत्
-
-
क्षा.
सं.गुणे
मूलोघवत्
373
चारित्र
उप.
स्तोक
कुल जीव
54
374
-
क्षप.
दुगुणे
कुल जीव 108
3. अनाहारक की ओघ व आदेश प्ररूपणा
(ष.ख.5/1,8/सू.375-382)
सूत्र
मार्गणा
गुणस्थान
अल्पबहुत्व
कारण व विशेष
375
सयोगी
13
स्तोक
समुद्घात गत केवली (60 जीव)
376
अयोगी
14
सं.गुणे
संचय (598 जीव)
377
विग्रह गति वाले
2
प./असं/गुणे
तिर्यंचों की अपेक्षा
378
-
4
आ./असं.गुणे
विग्रह गति प्राप्त
379
-
1
अनंतगुणे
विग्रह गति प्राप्त
380
असंयतो में सम्यक्त्व
उप.
स्तोक
द्वितीयोपशम वाले ही अनाहारक होते हैं
381
-
क्षा.
सं.गुणे
गुणकार=सं.समय
382
-
वे.
असं.गुणे
गुणकार=पल्य/असं.
- प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
-
1. सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
( राजवार्तिक 10/9/14/647/27 )
1. असंहरण सिद्ध व जन्मसिद्ध की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
संहरण सिद्ध
स्तोक
-
जन्म सिद्ध
सं.गुणे
2. क्षेत्र की अपेक्षा- (केवल संहरण सिद्धों में)
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
ऊर्ध्व लोक सिद्ध
स्तोक
-
अधोलोक सिद्ध
सं.गुणे
-
तिर्यग्लोक सा.
सं.गुणे
-
तिर्यग्लोक विशेष:-
-
-
समुद्र सा. सिद्ध
स्तोक
-
द्वीप सा. सिद्ध
सं.गुणे
-
लवण समुद्र सिद्ध
स्तोक
-
कालोक समुद्र सिद्ध
स्तोक
-
जंबूद्वीप सिद्ध
सं.गुणे
-
धातकी सिद्ध
सं.गुणे
-
पुष्करार्ध
सं.गुणे
3. काल की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
उत्सर्पिणी सिद्ध
स्तोक
-
अवसर्पिणी
विशेषाधिक
-
अनुत्सर्पिण्यनवसर्पिणी (विदेहक्षेत्र)
सं. गुणे
-
प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया
एक समय में सिद्धि होती है। अतः अल्पबहुत्व का अभाव है।
4. अंतर की अपेक्षा
निरंतर होनेवालों की अपेक्षा-
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
आठ समय अंतर से
स्तोक
-
सात समय अंतर से
सं.गुणे
-
छः समय अंतर से
सं.गुणे
-
पांच समय अंतर से
सं.गुणे
-
चार समय अंतर से
सं.गुणे
-
तीन समय अंतर से
सं.गुणे
-
दो समय अंतर से
सं.गुणे
सांतर होनेवालों की अपेक्षा-
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
छः मास अंतर से
स्तोक
-
एक मास अंतर से
सं. गुणे
-
यव मध्य अंतर से
सं.गुणे
-
अधस्तन यव मध्य अंतर से
सं. गुणे
-
उपरिम यव मध्य अंतर से
विशेषाधिक
5. गति की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा
सिद्ध गति में ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है
-
अनंतर गति अपेक्षा
केवल मनुष्य गति से ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं हैं
एकांतर गति अपेक्षा-
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
तिर्यग्गति से
स्तोक
-
मनुष्य गति से
सं.गुणा
-
नरक गति से
सं.गुणा
-
देव गति से
सं.गुणा
6. वेदानुयोग की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा
अवेद भाव में ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है
भूत नयापेक्षया-
-
नपुंसक वेद से
स्तोक
-
स्त्री वेद से
सं.गुणे
-
पुरुष वेद से
सं.गुणे
7. तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
तीर्थंकर सिद्ध
स्तोक
-
सामान्य सिद्ध
सं.गुणे
8. चारित्र की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
प्रत्युत्पन्न नयापेक्षया
निर्विकल्प चारित्र से सिद्धि होने से अल्पबहुत्व नहीं है
-
अनंतर चारित्रापेक्षा
यथाख्यात से ही होनेसे अल्पबहुत्व नहीं है
एकांतर चारित्रापेक्षा-
-
पंच चारित्र सिद्ध
स्तोक
-
चार चारित्र सिद्ध (परिहार विशुद्धि रहित)
सं.गुणे
9. प्रत्येक बुद्ध व बोधित बुद्ध की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
प्रत्येक बुद्ध
स्तोक
-
बोधित बुद्ध
सं.गुणे
10. ज्ञान की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा
केवलज्ञान से ही होने से अल्पबहुत्व नहीं
अनंतर ज्ञानापेक्षा-
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
दो ज्ञान सिद्ध
स्तोक
-
चतुःज्ञान सिद्ध
सं.गुणे
-
त्रिज्ञान सिद्ध
सं.गुणे
विशेषापेक्षया-
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
मति श्रुत मनःपर्यय
स्तोक
-
मति श्रुत से
सं.गुणे
-
मति श्रुत अवधि मनःपर्याय ज्ञान से
सं.गुणे
-
मति श्रुत अवधिसे
सं.गुणे
11. अवगाहना की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
जघन्य अवगाहना से
स्तोक
-
उत्कृष्ट अवगाहना से
सं.गुणे
-
यवमध्य अवगाहना से
सं.गुणे
-
अधस्तन यवमध्य
सं.गुणे
-
उपरि यवमध्य
विशेषाधिक
12. युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
108 सिद्ध
स्तोक
-
108-50 तक के
अनंत गुणे
-
49-25 तक के
असं. गुणे
-
24-1 तक के
सं.गुणे
मनुष्य पर्याय से-
( धवला 9/ पृ.318)
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
1-1
की संख्यासे होनेवाले
स्तोक
-
2-2
की संख्या से होने वाले
विशेषाधिक
-
2 से अधिक संख्या से होने वाले
सं.गुणे
मनुष्यणी पर्याय से-
( धवला 9/ पृ.318)
क्रम
मार्गणा
अल्पबहुत्व
-
2 से अधिक संख्या से होनेवाले
स्तोक
-
2-2
की संख्या से
सं.गुणे
-
1-1 की संख्या से
सं.गुणे
2. 1-1,2-2 आदि कर के संचय होने वाले जीवों की अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
( धवला 9/4,1,66/318-321 )
संकेत - नो.कृ. (नोकृति संचित) = 1-1 करके संचित होने वाले,
अव. (अवक्तव्य संचित) = 2-2 करके संचित होने वाले,
कृ. (कृति संचित) = 3 आदि करके संचित होने वाले,
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
1. गति मार्गणा-
(1) स्वस्थान की अपेक्षा-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
318
नरक गति सामान्य
नो.कृ.
स्तोक
-
नरक गति समान्य
अव.
विशेषाधिक
-
-
कृ.
ज.प्र./असं.गुणे
318
1-7 पृथिवी
-
नरक सामान्यवत्
318
देवगति सामान्य व विशेष
-
नरक गतिवत्
318
तिर्यंच गति सा. विशेष
-
नरक गतिवत्
319
मनुष्य गति सा. विशेष
-
नरक गतिवत्
सिद्धोमें विशेषता-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
318
सिद्ध सामान्य
कृ.
स्तोक
-
-
अव.
सं.गुणे
-
-
नो.कृ.
सं.गुणे
318
मनुष्य प.से प्राप्त सिद्ध
नो.कृ.
स्तोक
-
-
अव.
विशेषाधिक
-
-
कृ.
सं.गुणे
-
मनुष्यणी प.से प्राप्त सिद्ध
कृ.
स्तोक
-
-
अव.
सं.गुणे
-
-
नो.कृ
सं.गुणे
(2) परस्थान की अपेक्षा-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
319
7वीं पृथिवी
नो.कृ.
स्तोक
-
-
अव.
विशेषाधिक
319
6-1ली पृथिवी तक सब में पृथक् पृथक् अपने उपर की अपेक्षा
नो.कृ.
सं.गुणे
-
-
अव. विशेषाधिक
319
7वीं पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
319
6ठी पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
319
5वीं पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
319
4थी पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
320
3री
पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
320
2री पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
320
1ली पृथिवी
कृ.
असं.गुणे
(3) स्व परस्थान की अपेक्षा-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
320
मनुष्यणी
कृ.
स्तोक
-
-
अव.
सं.गुणी
-
-
नो.कृ.
सं.गुणी
320
मनुष्य
नो.कृ.
असं.गुणी
-
-
अव.
विशेषाधिक
320
तिर्यंच योनिमति
नो.कृ.
असं.गुणी
-
-
अव.
विशेषाधिक
320
नारकी
नो.कृ.
असं.गुणी
-
-
अव.
विशेषाधिक
320
देव
नो.कृ.
असं.गुणी
-
-
अव.
विशेषाधिक
320
देवियाँ
नो.कृ.
असं.गुणी
-
-
अव.
विशेषाधिक
320
मनुष्य
कृ.
असं.गुणी
320
नारकी
कृ.
असं.गुणी
320
तिर्यंच योनिमति
कृ.
असं.गुणी
320
देव
कृ.
असं.गुणी
320
देवियाँ
कृ.
असं.गुणी
320
तिर्यंच सामान्य
नो.कृ.
अनंतगुणी
320
-
अव.
विशेषाधिक
-
-
कृ.
असं.गुणी
320 सिद्ध
कृ.
अनंतगुणी
-
-
अव.
सं.गुणी
-
-
नो.कृ.
सं.गुणी
2. इंद्रिय मार्गणा-
स्व व परस्थान की अपेक्षा-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
321
चतुरिंद्रिय
नो.कृ.
स्तोक
-
-
अव.
विशेषाधिक
321
त्रींद्रिय
नो.कृ.
विशेषाधिक
-
-
अव.
विशेषाधिक
321
द्वींद्रिय
नो.कृ.
विशेषाधिक
-
-
अव.
विशेषाधिक
321
पंचेंद्रिय
नो.कृ.
असं.गुणे
-
-
अव.
विशेषाधिक
-
-
कृ.
असं.गुणे
321
चतुरिंद्रिय
कृ.
विशेषाधिक
321
त्रींद्रिय
कृ.
विशेषाधिक
321
द्वींद्रिय
कृ.
विशेषाधिक
321
एकेंद्रिय
नो.कृ.
अनंत गुणे
-
-
अव.
विशेषाधिक
-
-
कृ.
असं.गुणे
नोट - इससे आगेके सर्व स्थान यथायोग्य एकेंद्रिवत् जानना।
3. अन्य मार्गणाएँ-
स्व व परस्थानों की अपेक्षा-
पृष्ठ
मार्गणा
संकेत
अल्पबहुत्व
319
मनःपर्यय ज्ञान
-
नरक गतिवत्
319
क्षायिक सम्यग्दृष्टि
-
नरक गतिवत्
319
संयत सामान्य विशेष
-
नरक गतिवत्
319
अनुत्तरादि विमानोंसे मनुष्य होनेवाले देव
-
नरक गतिवत्
319
तथा अन्य संख्यात राशियाँ
-
नरक गतिवत्
3. तेईस वर्गणाओं संबंधी प्ररूपणाएँ-
23 वर्गणाओंके नाम-
( षट्खंडागम 14/5,56/ सू.76-97/54-118)
1. एक प्रदेशप्रमाणु वर्गणा; 2. संख्याताणु वर्गणा; 3. असंख्याताणु वर्गणा; 4. अनंताणु वर्गणा; 5. आहारक वर्गणा; 6. अग्राह्य वर्गणा; 7. तैजस शरीर वर्गणा; 8. अग्राह्य वर्गणा; 9.भाषा वर्गणा; 10. अग्राह्य वर्गणा; 11. मनो वर्गणा; 12. अग्राह्य वर्गणा; 13. कार्मण वर्गणा; 14. ध्रुव स्कंध मार्गणा; 15. सांतरनिरंतर वर्गणा; 16. ध्रुव शून्य वर्गणा; 17. प्रत्येक शरीर वर्गणा; 18. ध्रुव शून्य वर्गणा; 19. बादर निगोद वर्गणा; 20. ध्रुव शूऩ्य वर्गणा; 21. सूक्ष्म निगोद वर्गणा; 22. ध्रुव शून्य वर्गणा; 23. महा स्कंध वर्गणा।
वर्ग.सं. अल्पबहुत्व गुणकार
1. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
( धवला 14/ पृ.163-169)
वर्ग.सं.
अल्पबहुत्व
गुणकार
1
स्तोक
एक संख्या प्रमाण
2
सं.गुणी
एक कम उत्कृष्ट संख्या
3
असं.गुणी
स्व राशि/असं.
5
अनंतगुणी
स्व राशि/असं.
7
अनंतगुणी
स्व राशि/अनंत
9
अनंतगुणी
उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
11
अनंतगुणी
उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
13
अनंतगुणी
उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि
4
अनंतगुणी
अभव्य X अनंत
6
अनंतगुणी
अभव्य X अनंत
8
अनंतगुणी
अभव्य X अनंत
10
अनंतगुणी
अभव्य X अनंत
12
अनंतगुणी
अभव्य X अनंत
14
अनंतगुणी
सर्व जीव राशि X अनंत
15
अनंतगुणी
सर्व जीव राशि X अनंत
16
अनंतगुणी
सर्व जीव राशि X अनंत
17
असं.गुणी
पल्य/असं.
18
अनंतगुणी
अनंतलोक
19
असं.गुणी
ज.श्रे./अस.
20
अस.गुणी
अंगु/असं.
21
असं.गुणी
पल्य/असं.
23
असं.गुणी
ज.प्र./असं.
22
असं.गुणी
पल्य/असं.
2. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
( धवला 14/ पृ.169-179 तथा 208-212)
वर्ग.सं.
अल्पबहुत्व
गुणकार
23
स्तोक
एक संख्या प्रमाण
19
असं.गुणे
आ./असं.=असं.लोक
21
असं.गुणे
आ./असं.=असं.लोक
17
असं.गुणे
आ./असं.=असं.लोक
15
अनंत गुणे
सर्व जीव राशि X अनंत
14
अनंत गुणे
सर्व जीव राशि X अनंत
13
अनंत गुणे
अभव्य X अनंत
12
अनंत गुणे
अभव्य X अनंत
11
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
10
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
9
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
8
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
7
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
6
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
5
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
4
अनंत गुणे
स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि
1
अनंत गुणे
जघन्य परीतानंत
2
सं.गुणे
2 कम उत्कृष्ट संख्यात
3
असं.गुणी
-
16
-
ध्रुव शून्य वर्गणाओंका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आकाश रूप है
18
-
-
20
-
-
22
-
-
3. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा-
( धवला 14/ पृ.213-215)
वर्ग.सं.
अल्पबहुत्व
गुणकार
17
स्तोक
-
23
अनंत गुणे
अनंत लोक
19
असं.गुणे
असं.लोक
21
असं.गुणे
असं.लोक
15
अनंत गुणे
सर्व जीव X अनंत
14
अनंत गुणे
सर्व जीव X अनंत
13
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
12
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
11
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
10
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
9
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
8
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
7
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
6
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
5
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
4
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
1
अनंत गुणे
स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि
2
असं.गुणे
-
3
असं.गुणे
-
16
-
ध्रुव शून्य वर्गणाका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आक्राश रूप है।
18
-
-
20
-
-
22
-
-
4. एक श्रेणी द्रव्य, नाना श्रेणी द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -
( धवला 14/ पृ.215-223)
वर्ग.सं.
एकश्रेणी या नाना श्रेणी
अल्पबहुत्व
गुणकार
1
एक श्रेणी द्रव्य
स्तोक
एक संख्या ही है
23
नाना श्रेणी द्रव्य
स्तोक
एक संख्या ही है
2
एक श्रेणी द्रव्य
सं.गुणी
एक कम उत्कृष्ट संख्या
19
नाना श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
असं.लोक
21
नाना श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
असं.लोक
17
नाना श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
असं.लोक
3
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
असं.लोक
5
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
4
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
7
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
6
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
9
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
8
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
11
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
10
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
13
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
12
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
अभव्य X अनंत
14
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
सर्व जीव X अनंत
15
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
सर्व जीव X अनंत
16
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत
सर्व जीव X अनंत
17
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
पल्य/असं.
17
नाना श्रेणी द्रव्य
असं.गुणी
असं.लोक
18
एक श्रेणी द्रव्य
अनंत गुणी
अनंत लोक
19
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणे
पल्य/असं.
20
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणे
अंगु/असं.
21
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणे
आ./असं.
23
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणे
ज.प्र./असं.
22
एक श्रेणी द्रव्य
असं.गुणे
पल्य/असं.
नाना श्रेणियों में
वर्ग.सं.
एकश्रेणी या नाना श्रेणी
अल्पबहुत्व
गुणकार
-
कुल द्रव्य कुल प्रदेश
-
-
23
X कुल प्रदेश
विशेषाधिक
-
19
X कुल प्रदेश
असं.गुणे
-
21
X कुल प्रदेश
असं.गुणे
-
15
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
सर्व जीव X अनंत
15
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
सर्व जीव X अनंत
14
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
सर्व जीव X अनंत
14
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
अभव्य X अनंत
13
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
निचला स्थान\स्व अन्योन्याभ्यस्त राशि
13
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
अभव्य X अनंत
12
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे.नं. 13 वत्
12
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
एक अधिक अधस्तन अध्वार
11
कुल प्रदेश X
अनंत गणे
पीछें नं. 13 वत्
11
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे. नं. 12 वत्
10
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछें नं. 13 वत्
10
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
9
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
9
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
8
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
8
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
7
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
7
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
6
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
6
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
5
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
5
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
4
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं. 13 वत्
4
X कुल प्रदेश
अनंत गुणे
पीछे नं. 12 वत्
1
कुल प्रदेश X
अनंत गुणे
पीछे नं.13 वत्
1
X कुल प्रदेश
ऊपर समान
-
2
कुल प्रदेश X
सं.गुणा
एक कम उत्कृष्ट संख्या
2
X कुल प्रदेश
सं.गुणा
संख्यात
3
कुल प्रदेश X
असं.गुणे
असं.लोक
3
X कुल प्रदेश
असं.गुणे
असं.लोक
16
-
-
नाना श्रेणीमें इनका कथन नहीं होता क्योंकि ये आकाश रूप हैं, पुद्गल रूप नहीं।
18
-
-
-
20
-
-
-
21
-
-
-
4. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओंकी प्ररूपणा-
1. पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
( धवला 9/4,1,2/37 )
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
आहारक वर्गणा
स्तोक
-
तैजस वर्गणा
अनंत गुणे
-
भाषा वर्गणा
अनंत गुणे
-
मनो वर्गणा
अनंत गुणे
-
कार्माण वर्गणा
अनंत गणे
-
2. पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.790-796/562)
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
औ. योग्य आहारक वर्गणा
स्तोक
X
वै. योग्य आहारक वर्गणा
असं.गुणे
ज.श्रे/अस.
आ. योग्य आहारक वर्गणा
असं.गुणे
ज.श्रे/असं.
तै. योग्य तैजस वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
भाषा योग्य भाषा वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
मन योग्य मनो वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
कर्म योग्य कार्मण वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
3. पंच शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा-
( धवला 14/5,6/324 )
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
औ. योग्य आहारकका ज. विस्र
स्तोक
-
औ. योग्य आहारकका उ. विस्र
असं.गुणे
पल्य/असं.
वै.
योग्य आहारकका ज. विस्र
अनंत गुणे
सर्व जीवXअनंत
वै. योग्य आहारकका उ. विस्र
असं.गुणे
पल्य/असं.
आ. योग्य आहारकका ज. विस्र
अनंत गुणे
सर्व जीवXअनंत
आ. योग्य आहारकका उ. विस्र
असं. गुणे
पल्य/असं.
तै. योग्य तैजस ज. विस्र
अनंत गुणे
सर्व जीवXअनंत
तै. योग्य तैजस उ. विस्र
असं. गुणे
पल्य/असं.
का. योग्य तैजस ज. विस्र
अनंत गुणे
सर्व जीवXअनंत
का. योग्य तैजस ज. विस्र
असं.गुणे
पल्य/असं.
4. प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा -
( षट्खंडागम 14/5,6/785-789/560 )
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
औ. योग्य आहारक वर्गणा
स्तोक
X
वै. योग्य आहारक वर्गणा
असं.गुणे
ज.श्रे./असं.
आ.योग्य आहारक वर्गणा
असं.गुणे
ज.श्रे/असं.
तै. योग्य तैजस वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
भाष योग्य भाषा वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
मन योग्य मनो वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/अनंत
कर्म योग्य कार्मण वर्गणा
अनंत गुणे
सिद्ध/ अनंत
5. शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान अपेक्षा-
स्वस्थान अपेक्षा-
( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.544-548/453)
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
ज.औ.का ज. पदमें ज. विस्र.
स्तोक
-
ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.
अनंत गुणे
जीवXअनंत
उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र.
अनंत गुणे
जीवXअनंत
उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.
अनंत गुणे
जीवXअनंत
वैक्रियिक के चारों स्थान
उपरोक्तवत्
-
आहारक के चारों स्थान
उपरोक्तवत्
-
तैजस के चारों स्थान
उपरोक्तवत्
-
कार्मण के चारों स्थान
उपरोक्तवत्
-
परस्थान अपेक्षा-
( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.544-552/455)
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
ज. औ.का ज. पदमें ज. विस्र.
स्तोक
-
ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. वै. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. वै. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. वै. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. वै. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. आ. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. आ. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. आ. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. आ. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. तै. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. तै. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. तै. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. तै. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. का. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
ज. का. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. का. ज. पदमें ज. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
उ. का. उ. पदमें उ. विस्र
अनंतगुणे
जीवXअनंत
6. पंच शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 14/5-6/ सू.497-501/429)
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
औदारिक शरीर प्रदेश
स्तोक
-
वैक्रियक शरीर प्रदेश
असं.
ज.श्रे./असं.
आहार शरीर प्रदेश
असं.
ज.श्रे./असं.
तैजस शरीर प्रदेश
अनंत
सिद्ध/अनंत
कार्मण शरीर प्रदेश
अनंत
सिद्ध/अनंत
( सर्वार्थसिद्धि 2/38-39/102-103 ) ( राजवार्तिक 2/38-39/4/148 ) ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/246/510/2 )
7. औदारिक शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.575-580/466)
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
त्रस कायिक के प्रदेश
स्तोक
-
अग्नि कायिक के प्रदेश
असं. गुणे
-
पृथिवी कायिक के प्रदेश
विशेषाधिक
-
अप कायिक के प्रदेश
विशेषाधिक
-
वायु कायिक के प्रदेश
विशेषाधिक
-
वनस्पति कायिक के प्रदेश
अनंत गुणे
-
8. इंद्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
( राजवार्तिक 1/19/6/231 )
वर्गणा का नाम
अल्पबहुत्व
गुणकार
चक्षु
सर्वतःस्तोक
-
श्रोत्र
सं.गुणे
-
घ्राण
विशेषाधिक
-
जिह्वा
असं.गुणे
-
स्पर्शन
अनंत गुणे
-
5. पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ-
1. सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा-
( सर्वार्थसिद्धि 2/37/100 )
सूत्र
नाम शरीर या मार्गणा
अल्पबहुत्व
गुणकार
-
औदारिक शरीर
सर्वतःस्थूल
-
-
वैक्रियक शरीर
ततःसूक्ष्म
-
-
आहारक शरीर
ततःसूक्ष्म
-
-
तैजस शरीर
ततःसूक्ष्म
-
-
कार्मण शरीर
ततःसूक्ष्म
-
2. औदारिक शरीर विशेष की अवगाहना की अपेक्षा-
(ष.स्र.11/4,2,5/सू.31-99/56-70) ( धवला 1/1,3,4/251/7 ) ( धवला 4/1,3,23/94/7 ) ( धवला 9/4,1,2/17/4 )
लब्ध्य पर्याप्त के स्थान
सूत्र
नाम शरीर या मार्गणा
अल्पबहुत्व
गुणकार
31
निगोद या बन. साधारण सू.अप.की ज. अवगाहना
स्तोक
अंगु./पल्य\असं.
32
वायु सू. अप.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
33
तेज सू. अप.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
34
अप् सू. अप.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
35
पृथिवी सू. अप.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
36
वायु वा. अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
37
तेज वा. अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
38
जल वा. अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
39
पृथिवी वा. अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
40
निगोद या बन. साधारण बा.अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
41
निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
42
अप्रतिष्ठित प्रत्येक बन.अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
43
द्वींद्रिय अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
44
त्रींद्रिय अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
45
चतुरिंद्रिय अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
46
पंचेंद्रिय अप.की ज. असं.गुणी
पल्य/असं.
निवृत्ति पर्याप्तक व निवृत्त्यपर्याप्तक के स्थान
सूत्र
नाम शरीर या मार्गणा
अल्पबहुत्व
गुणकार
47
बन. साधारण या निगोद सू.प.की.ज.
ऊपर से असं.गुणी
आ./असं.
48
उपरोक्त अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
49
उपरोक्त प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
50
वायु सू. प.की.ज.
असं.गुणी
आ./असं.
51
वायु सू. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
52
वायु सू. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
53
तेज सू. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
54
तेज सू. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
55
तेज सू. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
56
अप सू. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
57
जल सू. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
58
जल सू. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
59
पृथ्वी सू. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
60
पृथ्वी सू. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
61
पृथ्वी सू. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
62
वायु बा. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
63
वायु बा. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
64
वायु बा. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
65
तेज बा. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
66
तेज बा. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
67
तेज बा. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
68
अप् बा. प.की ज.
असं.गुणी
आ./असं.
69
अप् बा. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
70
अप् बा. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
71
पृथ्वी बा. प.की ज.
असं. गुणी
आ./असं.
72
पृथ्वी बा. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
73
पृथ्वी बा. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
74
बन, साधारण या निगोद बा.प.की ज.
असं.गुणी
पल्य/असं.
75
उपरोक्त बा. अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
76
उपरोक्त बा. प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
77
बन. प्रतिष्ठित प्रत्येक या निगोद प.की. ज.
असं.गुणी
पल्य/असं.
78
उपरोक्त अप.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
79
उपरोक्त प.की उ.
विशेषाधिक
अंगु./असं.
80
वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की ज.
असं.गुणी
पल्य/असं.
81
द्वींद्रिय प.की ज.
असं.गुणी
पल्य/असं.
82
त्रींद्रिय प.की ज.
सं.गुणी
सं.समय
83
चतुरिंद्रिय प.की ज.
सं.गुणी
सं.समय
84
पंचेंद्रिय प.की ज.
सं.गुणी
सं.समय
85
त्रींद्रिय अप.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
86
चतुरिंद्रिय अप.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
87
द्वींद्रिय अप.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
88
बन.अप्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
89
पंचेंद्रिय अप.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
90
त्रींद्रिय प.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
91
चतुरिंद्रिय प.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
92
द्वींद्रिय प.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
93
वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
94
पंचेंद्रिय प.की उ.
सं.गुणी
सं.समय
95
एक सूक्ष्म से अन्य सूक्ष्म = आ./असं.गुणी
-
96
सूक्ष्म से बादर = असं.गुणी
-
97
बादर से क्ष्म = आ./असं.गुणी
-
98
बादर से बादर = पल्य/असं.गुणी
-
99
बादर से दूसरा बादर = सं.समय गुणी
-
3. पंचेंद्रियों की अवगाहना की अपेक्षा-
( धवला 1/1,1,5/235/4 )
सूत्र
नाम शरीर या मार्गणा
अल्पबहुत्व
गुणकार
-
चक्षु इंद्रिय अवगाहना
स्तोक
-
-
श्रोत्र
सं.घुणी
-
-
घ्राण
विशेषाधिक
-
-
जिह्वा
असं.गुणी
-
-
स्पर्शन
सं.गुणी
-
6. पाँचों शरीरोंके स्वामियोंकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-
(ष.ख.14/5,6/सू.169-234/301-318)
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
1. ओघ प्ररूपणा-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
169
जीवसामान्य
4
स्तोक
-
170
अशरीरी (सिद्ध)
-
अनंत गुणे
सिद्ध/असं.
171
जीव सामान्य
2
अनंत गुणे
सर्वजीव/अनंत
172
जीव सामान्य
3
असं.गुणे
अंतर्मुहूर्त
2. आदेश प्ररूपणा-
1. गति मार्गणा-
नरक गति-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
173
नारकी सा.
2
स्तोक
नार./आ.\असं.
174
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
175
1-7 पृथिवी
2
स्तोक
-
तिर्यंच गति-
तिर्यंच सामान्य
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
176
4
स्तोक
-
-
2
अनंत गुणे
-
-
3
असं.गुणे
सं.आव.
पंचेंद्रिय सा., प., व योनिमति
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
177
4
स्तोक
-
178
2
असं.गुणे
ज.श्रे./असं.
179
3
असं.गुणे
आ./असं.
पंचेंद्रित ति. अप.
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
180
2,3
नारकी सा.वत्
-
मनुष्य गति-
मनुष्य सामान्य
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
181
4
स्तोक
संख्य. मात्र
-
2
असं.गुणे
-
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
मनुष्य प.व मनुष्यणी
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
182
4
स्तोक
-
183
-
2
सं.गुणे
184
-
3
सं.गुणे
मनुष्य अप.
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
185
-
नारकी सा.वत्
-
देव गति-
देव सामान्य
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
186
2
स्तोक
-
187
3
असं.गुणे
आ./असं.
भवनवासी से अपराजित तक
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
188
2,3
देव सा. वत् पर गुणाकार
पल्य/असं.
सर्वार्थसिद्धि
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
189
2
स्तोक
-
190
3
सं.गुणे
सं.समय
2. इंद्रिय मार्गणा-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
191
एके.सा.,बा.एके.
4
तिर्यंच सा.वत्
-
-
सा.,बा.एके.प.
2,3
या ओघवत्
192
बा.एके.अप.सू.एके.सा.,प.,अप.विकलत्रय सा.व.प.अप.पंचेंद्रिय अप.
2
स्तोक
193
-
3
असं.गुणे
सं.आ.
194
पंचेंद्रिय सा.व प.
-
मनुष्य सा. वत्
3. काय मार्गणा-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
195
पृ., जल व वन. के बा.सू.प.अप.सर्व विकल्प अग्नि व वायु के बा.अप.तथा सू के प. अप.सर्व विकल्प त्रस के केलव अप.
2
स्तोक
-
196
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
197
तेज व वायु के सा.व बा. केवल प. त्रस सा.व.प.
पंचेंद्रिय प. वत्
-
4. योग मार्गणा-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
198
पाँच मन व पाँच वचन योगी
4
स्तोक
-
199
-
3
असं.गुणे
ज.श्रे./असं.
200
काय योग सामान्य
-
ति.या ओघवत्
-
201
औदारिक काययोगी
4
स्तोक
-
202
-
3
असं.गुणे
सर्वजीव राशि के अनंत प्रथम वर्गमूल प्रमाण अल्पबहुत्व नहीं है
203
औदारिक मिश्र, वैक्रियक व मिश्र, आहारक व मिश्र
-
X
एक ही पद है
204
कार्मण काय योग
3
स्तोक
-
205
-
2
अनंत गुणे
जीवोंके अनंत प्रथम वर्गमूल
5. वेद मार्गणा-
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
206
स्त्री व पुरुष वेदी
-
पंचेंद्रियसा. वत्
-
207
नपुंसक वेदी
-
ति.या ओघवत्
-
208
अपगत वेदी
X
X
एक ही पद है
7. ज्ञान मार्गणा-
मतिश्रुत अज्ञानी
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
209
ति.या ओघवत्
-
विभंग ज्ञानी
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
210
स्तोक
-
211
-
3
असं.गुणे
ज.श्रे./असं.
मतिश्रुत अवधि ज्ञानी
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
212
-
पंचे.पर्याप्तवत्
-
मनःपर्ययज्ञानी
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
213
4
स्तोक
-
214
-
3
सं.गुणे
सं.समय
केवलज्ञानी
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
215
X
X
एक ही पद है
8. संयम मार्गणा-
संयत सा.
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
216
4
स्तोक
-
सामायिक व छेदो.
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
-
3
सं.गुणे
सं.समय
परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सांपराय व यथाख्यात
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
217
X
X
एक ही पद है
संयतासंयत
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
218
4
स्तोक
-
असंयत
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
9. दर्शन मार्गणा-
चक्षु व अवधि द.
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
221
-
पंचेंद्रिय प. वत्
-
अचक्षु दर्शनी
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
219
-
ति.या ओघवत्
-
10. लेश्या मार्गणा-
कृष्ण नील, कापोत
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
220
-
ति.या ओघवत्
-
पीत पद्म लेश्या
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
221
-
पंचेंद्रिय प.वत्
-
शुक्ल लेश्या
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
223
2
स्तोक
-
224
-
4
असं.गुणे
पल्य/असं.
225
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
11. भव्यत्व मार्गणा-
भव्य व अभव्य
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
220
-
ति.या
ओघवत्
-
12. सम्यक्त्व मार्गणा-
सम्यग्दृष्टि सा.वेदक व सासादन
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
226
2
पंचेंद्रिय प. वत्
-
क्षायिक व उपशम
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
227
4
स्तोक
सं. मात्र
228
-
3
असं.गुणे
पल्य/असं.
229
-
-
असं.गुणे
आ./असं.
सम्यग्मिथ्यादृष्टि
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
230
4
स्तोक
-
-
3
असं.गुणे
आ./असं.
मिथ्यादृष्टि
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
231
-
ति.या ओघवत्
-
13. संज्ञी मार्गणा-
संज्ञी
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
232
-
पंचंद्रिय प.वत्
-
असंज्ञी
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
233
-
ति.या ओघवत्
-
14. आहारक मार्गणा-
आहारक
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
234
4
स्तोक
औदारिक काय योगवत्
-
3
अनंत गुणे
-
अनाहारक
सूत्र
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
235
3
स्तोक
कार्मण काय योगवत्
-
2
अनंतगुणे
-
7. जीवभावोंके अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा-
1. संयम विशुद्धि या लब्धि स्थानों की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 7/2,11/ सू.168-174/564-567) ( धवला 6/1,9-8,14/286 )
सूत्र
विषय
अल्पबहुत्व
विशेष या गुणकार
168
सामायिक व छेदो. की जघन्य चारित्र लब्धि
सर्वतःस्तोक
मिथ्यात्वके अभिमुख
169
परिहार विशुद्धि की जघन्य चारित्र लब्धि
अनंतगुणी
सामायिकके अभिमुख
170
परिहार विशुद्धि की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि
अनंतगुणी
-
171
सामायिक छेदो. की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि
अनंत गुणी
अनिवृत्तिकरण का अंत समय
172
सूक्ष्म सांपराय की जघन्य चारित्र लब्धि
अनंत गुणी
श्रेणी से उतरते हुए
173
सूक्ष्म सांपरायकी उत्कृष्ट चारित्र लब्धि
अनंतगुणी
स्वस्थानका अंत समय
174
यथाख्यात की अजघन्य अनुत्कृष्ट चारित्र लब्धि
अनंतगुणी
जघन्य व उत्कृष्टपनेका अभाव है।
2. 14 जीव समासोंसे संक्लेश व विशुद्धि स्थानों की अपेक्षा
( षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.51-64/205-224) (म.व.2/2,3/3)
सूत्र
मार्गणा
शरीर स्वामित्व
अल्पबहुत्व
गुणकार
51
एकेंद्रिय सू. अप.
स्तोक
-
52
एकेंद्रिय वा. अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
53
एकेंद्रिय सू. प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
54
एकेंद्रिय बा. प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
55
द्वींद्रिय अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
56
द्वींद्रिय प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
57
त्रींद्रिय अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
58
त्रींद्रिय प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
59
चतुरिंद्रिय
अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
60
चतुरिंद्रिय प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
61
पंचेंद्रिय असंज्ञी अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
62
पंचेंद्रिय असंज्ञी प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
63
पंचेंद्रिय संज्ञी अप.
असं.गुणे
पल्य/असं.
64
पंचेंद्रिय संज्ञी प.
असं.गुणे
पल्य/असं.
3. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्य के अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -
( कषायपाहुड़ 1/1,15-20/ पृ.330-362)
गाथापृ.
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
15/330
दर्शनोपयोग सा.
ज.
स्तोक
असं.आ.मात्र
-
चक्षुइंद्रियावग्रह
ज.
विशेषाधिक
-
-
श्रोत्र इंद्रियावग्रह
ज.
विशेषाधिक
-
-
घ्राण इंद्रियावग्रह
ज.
विशेषाधिक
-
-
जिह्वा इंद्रियावग्रह
ज.
विशेषाधिक
-
-
मनोयोग सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
वचन योग सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
काय योग सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
स्पर्शन इंद्रियावग्रह
ज.
विशेषाधिक
-
-
अन्यतम अवाय
ज.
विशेषाधिक
-
-
अन्यतम ईहा
ज.
विशेषाधिक
-
-
श्रुत ज्ञान
ज.
विशेषाधिक
-
-
श्वासोच्छ्वास
ज.
विशेषाधिक
-
1/342
सशरीरकेवलीका केवल ज्ञान
ज.
विशेषाधिक
-
-
उपरोक्तका दर्शन
ज.
ऊपर तुल्य
-
-
शुक्ल लेश्या सा.
ज.
ऊपर तुल्य
-
-
एकत्व वितर्क-अविचार ध्यान
ज.
विशेषाधिक
-
-
पृथक्त्व वितर्क विचार
ज.
विशेषाधिक
-
-
श्रेणीसे पतित सूक्ष्म सांपराय
ज.
विशेषाधिक
-
-
श्रेणी पर अवरोहक सूक्ष्म सांपराय
ज.
विशेषाधिक
-
-
क्षपक श्रेणी गत सूक्ष्म सांपराय
ज.
विशेषाधिक
-
17/345
मान कषाय सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
क्रोध कषाय सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
माया कषाय सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
लोभ कषाय सा.
ज.
विशेषाधिक
-
-
क्षुद्र भव ग्रहण
ज.
विशेषाधिक
-
-
कृष्टिकरण ज.
विशेषाधिक
-
18/347
संक्रामण
ज.
विशेषाधिक
-
-
अपवर्तन
ज.
विशेषाधिक
-
-
उपशांत कषाय
ज.
विशेषाधिक
-
-
क्षीण मोह
ज.
विशेषाधिक
-
-
क्षपक
ज.
विशेषाधिक
-
20/348
चक्षुदर्शन
उ.
विशेषाधिक
ऊपरवाले की अपेक्षा
-
चक्षु इंद्रियावग्रह
उ.
दुगुना
-
-
श्रोत्र इंद्रियावग्रह
उ.
विशेषाधिक
-
-
घ्राण इंद्रियावग्रह
उ.
विशेषाधिक
-
-
जिह्वा
उ.
विशेषाधिक
-
-
मनोयोग सा.
उ.
विशेषाधिक
-
-
वचन योग सा.
उ.
विशेषाधिक
-
-
काय योग सा.
उ.
विशेषाधिक
-
-
स्पर्शन इंद्रियावग्रह
उ.
विशेषाधिक
-
-
अन्यतम अवाय
उ.
- दुगुना
नोट -यदि व्याघात या मरण न हो तब ही वह अल्पबहुत्व लागू होता है। मरण हो जाने पर तो किसि भीस्थानका जघन्य काल एक समय तक बन जाता है।
( कषायपाहुड़ 1/1,19/348 )
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
अन्यतम.ईहा
उ.
विशेषाधिक
-
श्रुतज्ञान
उ. दुना
-
श्वासोच्छ्वास
उ.
विशेषाधिक
-
सशरीर केवली का केवलज्ञान
उ.
विशेषाधिक
सोपसर्ग केवली की अपेक्षा
उपरोक्त का दर्शन
उ.
ऊपर तुल्य
-
शुक्ल लेश्या या.
उ.
ऊपर तुल्य
-
एकत्व वितर्क अविचारि ध्यान
उ.
विशेषाधिक
-
पृथक्त्व वितर्क विचार ध्यान
उ.
दुगुना
-
अवरोहक सू. संपराय
उ.
विशेषाधिक
-
आरोहक सू. संपराय
उ.
विशेषाधिक
-
क्षपक सू. संपराय
उ.
विशेषाधिक
-
मान कषाय सा.
उ.
दुगुना
-
क्रोध कषाय सा.
उ.
विशेषाधिक
-
माया कषाय सा.
उ.
विशेषाधिक
-
लोभ कषाय सा.
उ.
विशेषाधिक
-
क्षुद्र भव
उ.
विशेषाधिक
-
कृष्टि करण
उ.
विशेषाधिक
-
संक्रामक
उ.
विशेषाधिक
-
अपवर्तना
उ.
विशेषाधिक
-
उपशांत कषाय
उ.
दूना
-
क्षीण मोह
उ.
विशेषाधिक
-
उपशमक
उ.
दुगुना
-
क्षपक
उ.
विशेषाधिक
-
4. उपशम व क्षपण काल की अपेक्षा-
( कषायपाहुड़ 4/3,22/ $616-626/326-328)
चारित्र मोह-
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
क्षपक अनिवृत्ति करण
सा. स्तोक
-
क्षपक अपूर्व करण
सा.
सं.गुणा
-
उपशामक अनिवृत्ति करण
सा.
सं.गुणा
-
उपशामक अपूर्व करण
सा.
सं.गुणा
-
दर्शन मोह-
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
क्षपक अनिवृत्ति करण
सा.
सं.गुणा
-
क्षपक अपूर्व करण
सा.
सं.गुणा
-
अनंतानुबंधी विसंयोजकका अनिवृत्ति करण
सा.
सं.गुणा
-
उपरोक्त अपूर्व करण
सा.
सं.गुणा
-
उपशामक अनिवृत्ति करण
सा.
सं.गुणा
-
उपशामक अपूर्व करण
सा.
सं.गुणा
-
5. कषाय काल की अपेक्षा-
( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/296/640 )
नरक गति-
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
लोभ
सा.
स्तोक अंतर्मु.
-
माया
सा.
सं.गुणा
-
मान
सा.
सं.गुणा
-
क्रोध
सा.
सं.गुणा
-
देवगति-
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
क्रोध
सा.
स्तोक अंतर्मु.
-
मान
सा.
सं.गुणा
-
माया
सा.
सं.गुणा
-
लोभ
सा.
सं.गुणा
-
6. नोकपाय व ध काल की अपेक्षा-
( कषायपाहुड़ 3/3,22/ $386-387/पृ.213)
उच्चारणाचार्य की अपेक्षा चारों गतियोमें अन्य आचार्यों की अपेक्षा मनुष्य व तिर्यंच में
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
पुरुष वेद
सा.
स्तोक
2 (संदृष्टि)
स्त्री वेद
सा.
सं.गुणा
4 (संदृष्टि)
हास्यरति
सा.
सं.गुणा
16 (संदृष्टि)
अरति शोक
सा.
सं.गुणा
32 (संदृष्टि)
नपुंसक वेद
सा.
विशेषाधिक
42 (संदृष्टि)
अन्य आचार्यों की अपेक्षा नरक व देव में
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
पुरुष वेद
सा.
स्तोक
3 (संदृष्टि)
स्त्री वेद
सा.
सं.गुणा
9 (संदृष्टि)
हास्य रति
सा.
विशेषाधिक
11 (संदृष्टि)
नपुंसक वेद
सा.
सं.गुणा
22 (संदृष्टि)
अरति शोक
सा.
विशेषाधिक
23 (संदृष्टि)
7. मिथ्यात्व काल विशेष की अपेक्षा-
( धवला 10/4,2,4,62/284 )
विषय
काल
अल्पबहुत्व
विशेष
देवगति में जन्म धारनेवालेके
-
स्तोक
-
मनुष्य गतिमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
तिर्यंच संज्ञी पंचेंद्रियमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
तिर्यंच असंज्ञी पंचेंद्रियमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
चतुरिंद्रियमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
त्रींद्रियमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
द्वींद्रियमें उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा.में उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
एकेंद्रिय सू.में उत्पत्ति योग्य
-
सं.गुणा
-
8. जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
लक्षण –
उपपाद योग = जो उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें एक समय मात्र के लिए हो।
एकांतानुवृद्धि योग = जो उत्पन्न होने के द्वीतीय समयसे लेकर शरीर पर्याप्तिसे अपर्याप्त रहनेके अंतिम समय तक निवृत्त्य पर्याप्तकोंमें रहता है। लब्ध्यपर्याप्तकोंके आयु बंधके योग्य कालमें अपने जीवितके त्रिभागमें परिणाम योग्य होता है। उससे नीचे एकांतानुवृद्धि योग होता है। इसका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है।
परिणाम योग = पर्याप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर आगे जीवनपर्यंत सब जगह परिणाम योग ही होता है। निवृत्त्यपर्याप्तके परिणामयोग नहीं होता।
( धवला 10/4,2,173/420-421 ) (देखें अल्पबहुत्व - 3.11.7.3)
नोट - गुणकार सर्वत्र पल्य/असं. जानना
( धवला 10/ पृ.420)
सूत्र स्वामी योग अल्पबहुत्व
1. योग सामान्यके यव मध्य काल की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.206-212/503-504)
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
206
मध्य स्थान 8 समय योग्य
-
सर्वतःस्तोक
207
दोनों पार्श्व भागों में
-
परस्पर तुल्य
-
7 समय योग्य
-
असं.गुणे
208
6 समय योग्य
-
असं.गुणे
209
5 समय योग्य
-
असं.गुणे
210
4 समय योग्य
असं.गणे
3 व 2 समय योग्य स्थान ऊपर ही होते हैं नीचे नही
उपरिम भाग-
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
211
3 समय योग्य
-
असं.गुणे
212
2 समय योग्य
-
असं.गुणे
2. योग स्थानोंके स्वामित्व सामान्य की अपेक्षा-
( धवला 10/4,2,4,173/403 )
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
-
सात ल.अप.
3 स्थान
स्तोक
-
एकेंद्रिय सू.बा.
ऊप.
परस्पर तुल्य
-
तीन विकलत्रय
एकां.
स्तोक
-
पंचेंद्रिय संज्ञी असंज्ञी
परि.
परस्पर तुल्य
-
यही सात नि. अप.
2 स्थान
परस्पर तुल्य
-
-
ऊप.एका.
असं.गुणे
-
यही सात नि.प.
1 स्थान परि.
असं.गुणे
3. योग स्थान सामान्य में परस्पर अल्पहुत्व-
( धवला 10/4,2,4,173/404 )
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
-
सातों ल.अप.(देखें ऊपर )
उप.
स्तोक
-
-
एकां.
असं.गुणे
-
-
परि.
असं.गुणे
-
सातों नि.अप.
उप.
स्तोक
-
-
एका.
असं.गुणे
-
सातों नि.प.
परि.
एक ही पदमें अल्पबहुत्व नहीं
नोट - यह स्व-स्थान प्ररूपणा जानना।
4. 14 जीव समासोंमें जघन्योंत्कृष्ट योग स्थानों की अपेक्षा -
( षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.145-172/396-403)
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
145
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.उप.
स्तोक
146
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
147
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
148
त्रींद्रिय ल. अप. अप
ज.उप.
असं.गुणे
149
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
150
पंचेंद्रिय असंज्ञी ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
151
पंचेंद्रिय संज्ञी ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
152
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ.परि.
असं.गुणे
153
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.परि.
असं.गुणे
154 एकेंद्रिय सू. नि. अप.
ज.परि.
असं.गुणे
155
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
ज.परि.
असं.गुणे
156
एकेंद्रिय सू. नि. प.
उ.परि
असं.गुणे
157
एकेंद्रिय बा. नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
158
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
159
त्रींद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
160
चतुरिंद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
161
पंचेंद्रिय असंज्ञी नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
162
पंचेंद्रिय संज्ञी नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
163
द्वींद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
164
त्रींद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
165
चतुरिंद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
166
पंचेंद्रिय असंज्ञी नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
167
पंचेंद्रिय संज्ञी नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
168
द्वींद्रिय नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
169
त्रींद्रिय नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
170
चतुरिंद्रिय नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
171
पंचेंद्रिय असंज्ञी नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
172
पंचेंद्रिय संज्ञी नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
5. प्रत्येक योगके अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा-
( धवला 10/4,2,4,173/404-420 )
नोट - गुणकार सर्वत्र पल्य/असं. जानना
स्वस्थान अल्पबहुत्व-
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
404
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.उप.
स्तोक
-
-
उ. उप.
असं.गुणे
-
-
ज.एकां.
असं.गुणे
-
-
उ.एकां.
असं.गुणे
-
-
ज.परि.
असं.गुणे
-
-
उ.परि
असं.गुणे
405
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उपरोक्त छहों
उपरोक्तवत्
-
तीनों विकलत्रय ल. अप.
स्थान
उपरोक्तवत्
-
पंचे. संज्ञी असंज्ञी ल.अप.
-
उपरोक्तवत्
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
ज.उप. स्तोक
-
-
उ.उप.
असं.गुणे
-
-
ज.एकां.
असं.गुणे
-
-
उ.एकां.
असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उपरोक्त चारों
उपरोक्तवत्
-
विकलत्रय नि. अप.
स्थान
उपरोक्तवत्
-
पंचे. संज्ञी असंज्ञी अप.
-
उपरोक्तवत्
-
इति षट् निवृत्ति अपर्याप्त
-
उपरोक्तवत्
405
एकेंद्रिय सू. नि. प.
ज.परि.
स्तोक
-
-
उ.परि.
असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. प.
उपरोक्त दोनों स्थान
उपरोक्तवत्
-
विकलत्रय नि. प.
-
उपरोक्तवत्
-
पंचे. संज्ञी असंज्ञी नि. प.
-
उपरोक्तवत्
-
इति षट् निवृत्ति पर्याप्त
-
उपरोक्तवत्
परस्थान अल्पबहुत्व-
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
406
बन. साधारण या निगोद
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.उप.
स्तोक
-
उपरोक्त नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणे
-
उपरोक्त ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणे
-
उपरोक्त नि. अप.
उ.उप
असं.गुणे
-
उपरोक्त ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणे
-
उपरोक्त नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणे
-
उपरोक्त ल. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
-
उपरोक्त नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
-
उपरोक्त ल. अप.
ज.परि
असं.गुणे
-
उपरोक्त नि. अप.
उ.परि
असं.गुणे
-
उपरोक्त ल. प.
ज.परि
असं.गुणे
-
उपरोक्त नि. प.
उ.परि
असं.गुणे
407
एकेंद्रिय बा. के
-
उपरोक्तवत्
-
उपरोक्त सर्व विकल्प
-
-
407
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
स्तोक
-
द्वींद्रिय नि. अप.
ज.उप
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
उ. उप.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.परि.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल अप.
उ.परि
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. प.
उ.परि.
असं.गुणे
-
त्रींद्रियसे संज्ञी पंचे. तकके उपरोक्त सर्व विकल्प
-
उपरोक्तवत्
सर्व परस्थान अल्पबहुत्व-
(1) जघन्य स्थानोंको अपेक्षा सर्व परस्थानालाप
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
408
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.उप.
स्तोक
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
पंचे. असंज्ञी नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
पंचे. संज्ञी ल. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
पंचे. संज्ञी नि. अप.
ज.उप.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
पंचें असंज्ञी ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
पंचें संज्ञी ल. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.परि
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.परि
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.परि
असं.गुणा
-
पंचें असंज्ञी ल. अप.
ज.परि
असं.गुणा
-
पंचें संज्ञी ल. अप.
ज.परि
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
पंचें असंज्ञी नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
पंचें संज्ञी नि. अप.
ज.एकां.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणा
410
त्रींद्रिय नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. प.
ज.परि
असं.गुणे
411
पंचें असंज्ञी नि. प.
ज.परि.
असं.गुणे
-
पंचें संज्ञी नि. प.
ज.परि
असं.गुणे
(2) उत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा सर्व परस्थानालाप
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
411
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ.उप.
स्तोक
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय ल अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
त्रिंद्रिय ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
त्रींद्रिय नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
412
पंचें. असंज्ञी नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
-
पंचें. संज्ञी नि. अप.
उ.उप.
असं.गुणा
412
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.परि
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उ.परि
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय सू. ल. प.
उ.परि
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. नि. प.
उ.परि
पल्य/गुणा
-
द्वींद्रिय ल. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
त्रींद्रिय ल. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
पंचें. संज्ञी ल. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
413
द्वींद्रिय ल. अप
उ.परि
पल्य/गुणा
-
त्रींद्रिय ल. अप
उ.परि
पल्य/गुणा
-
चतुरिंद्रिय ल. अप
उ.परि
पल्य/गुणा
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप
उ.परि
पल्य/गुणा
-
पंचें. संज्ञी ल. अप
उ.परि
पल्य/गुणा
-
द्वींद्रिय नि. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
त्रींद्रिय नि. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
चतुरिंद्रिय नि. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
पंचें. असंज्ञी नि. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
पंचें. संज्ञी नि. अप
उ.एकां.
पल्य/गुणा
-
द्वींद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/गुणा
-
त्रींद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/गुणा
-
चतुरिंद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/गुणा
-
पंचें. असंज्ञी नि. प.
उ.परि.
पल्य/गुणा
414
पंचें. संज्ञी नि. प.
उ.परि.
पल्य/गुणा
(3) जघन्योत्कृष्ट की अपेक्षा 84 स्थानीय सर्व परस्थानालाप-
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
414
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.उप.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय सू नि. अप.
ज.उप.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ.उप.
पल्य/गुणा
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज.उप.
पल्य/गुणा
414
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उ.प.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
415
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.उप
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. अप.
ज.उप
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय ल.अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय ल.अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
उ.उप
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. अप.
ज.उप
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
ज.उप.
पल्य/असं.गुणे
416
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी नि. अप.
उ.उप.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज. एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ. एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय सू. नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
(4) श्रेणी/असं. मात्र योग स्थानों अंतर
सूत्र
स्वामी
योग
अल्प्बहुत्व
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
ज.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
ज.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय सू. ल. अप.
उ.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. ल. अप.
उ.परि
पल्य/असं.गुणे
417
एकेंद्रिय सू. नि. प.
ज.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. प.
उ.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय सू. नि. प.
उ.परि
पल्य/असं.गुणे
-
एकेंद्रिय बा. नि. प.
उ.परि
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
पंचे. असंज्ञी ल. अप.
ज.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
ज.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
उ.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
उ.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय ल. अप.
उ.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें.असंज्ञी ल. अप.
उ.एकां
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
उ.एकां
पल्य/असं.गुणे
418
द्वींद्रिय ल. अप.
ज.परि
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
418
चतुरिंद्रिय ल. अप.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
जपरि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय ल. अप.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय ल. अप.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
418
चतुरिंद्रिय ल. अप.
उपरि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी ल. अप.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी ल. अप.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
द्रींद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
419
पंचें. संज्ञी नि. अप.
ज.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी नि. अप.
उ.एकां.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. प.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. प.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. प.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. प.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. संज्ञी नि. प.
ज.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
द्वींद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
त्रींद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
चतुरिंद्रिय नि. प.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
-
पंचें. असंज्ञी नि. प.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
420
पंचें. संज्ञी नि. प.
उ.परि.
पल्य/असं.गुणे
9. कर्मोंके सत्त्व व बंध स्थानोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
नोट - इस प्ररूपणाके विस्तारके लिए देखें अल्पबहुत्व - 3.11.7
1. जीवोंके स्थिति बंध स्थानों की अपेक्षा--
( षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.37-50/142-147)
सूत्र
मार्गणा
समास
अल्पबहुत्व
37
एकेंद्रिय सू. अप.
स्तोक (पल्य/असं.)
38
एकेंद्रिय बा. अप.
सं.गुणे
39
एकेंद्रिय सू. प.
सं.गुणे
40
एकेंद्रिय बा. प.
सं.गुणे
41
द्वींद्रिय अप.
सं.गुणे
42
द्वींद्रिय
प.
सं.गुणे
43
त्रींद्रिय अप.
सं.गुणे
44
त्रींद्रिय प.
सं.गुणे
45
चतुरिंद्रिय अप.
सं.गुणे
46
चतुरिंद्रिय प.
सं.गुणे
47
पंचेंद्रिय असंज्ञी अप.
सं.गुणे
48
पंचेंद्रिय असंज्ञी प.
सं.गुणे
49
पंचेंद्रिय संज्ञी अप.
सं.गुणे
50
पंचेंद्रिय संज्ञी प.
सं.गुणे
नोट - इसीके स्व स्थान, पर स्थान व सर्व परस्थान संबंधी विस्तृत प्ररूपणाएँ देखें [[ ]]
( धवला 11/4,2,6,50/147-205 )
2. स्थिति बंधमें जघन्योत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.65-100/225-237)
सूत्र
मार्गणा
समास
अल्पबहुत्व
65
सूक्ष्म सांपराय संयतके अंतिम समयवर्ती
ज.
सर्वतःस्तोक
66
एकेंद्रिय बा. प.
ज.
असं.गुणा
-
-
-
गुणकार=पल्य/असं.
67
एकेंद्रिय सू. प.
ज.
विशेषाधिक
-
-
-
विशेष=पल्य/असं.
68
एकेंद्रिय बा. अप.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
69
एकेंद्रिय सू. अप.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
70
एकेंद्रिय सू. अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
71
एकेंद्रिय बा. अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
72
एकेंद्रिय सू. प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
73
एकेंद्रिय बा. प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
74
द्वींद्रिय प.
ज.
25गुणा
75
द्वींद्रिय अप.
ज.
विशेषाधिक
76
द्वींद्रिय अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
77
द्वींद्रिय प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
78
त्रींद्रिय प.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
79
त्रींद्रिय अप.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
80
त्रींद्रिय अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
81
त्रींद्रिय प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
82
चतुरिंद्रिय प.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
83
चतुरिंद्रिय अप.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
84
चतुरिंद्रिय अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
85
चतुरिंद्रिय प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
-
-
-
विशेषाधिक
86
पंंचेंद्रिय असंज्ञी प.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
87
पंंचेंद्रिय असंज्ञी अप.
ज.
विशेष=पल्य/असं.
88
पंंचेंद्रिय असंज्ञी अप.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
89
पंंचेंद्रिय असंज्ञी प.
उ.
विशेष=पल्य/असं.
90
संयत सामान्य
उ.
सं.गुणा
-
-
-
गुणकार=सं.समय
91
संयतासंयत
ज.
गुणकार=सं.समय
92
संयतासंयत
उ.
गुणकार=सं.समय
93
असंयत सम्यग्दृष्टि प.
ज.
गुणकार=सं.समय
94
असंयत सम्यग्दृष्टि अप.
ज.
गुणकार=सं.समय
95
असंयत सम्यग्दृष्टि अप.
उ.
गुणकार=सं.समय
96
असंयत सम्यग्दृष्टि प.
उ. गुणकार=सं.समय
97
पंचेंंद्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि प.
ज.
गुणकार=सं.समय
98
उपरोक्त अप.
ज.
गुणकार=सं.समय
99
अप.
उ.
गुणकार=सं.समय
100
उपरोक्त प.
उ.
गुणकार=सं.समय
3. स्थिति बंधके निषेकों की अपेक्षा-
( षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.102-111/238-253)
सूत्र
मार्गणा व समास
अल्पबहुत्व
102 से 111
सर्व जीव समास मिथ्यादृष्टि-
-
आठों कर्मों की अपेक्षा प्रथम समयमें निक्षिप्त
अधिक
-
द्वितीय समयमें निक्षिप्त
विशेष हीन
-
तृतीय समयमें निक्षिप्त
विशेष हीन
पंचे. संज्ञी प. सम्यग्दृष्टि आयु की अपेक्षा
सूत्र
<heading>
104
उपरोक्तवत्
नोट - विशेष देखो (नं.14/8/10,12)?
4. मोहनीय कर्मके स्थिति सत्त्व स्थानों की अपेक्षा-
( कषायपाहुड़ 4/3,22/ $628-639/329)
सूत्र
मार्गणा व समास
अल्पबहुत्व
628
प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभके सत्कर्म स्थान
सर्वतः स्तोक
629
स्त्री वेद के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
-
नपुं.वेद के सत्कर्म स्थान
ऊपर तुल्य
630
हास्यादि 6 नोकषायों के स्थिति सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
631
पुरुष वेद के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
632
संज्वलन क्रोध के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
633
संज्वलन मान के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
634
संज्वलन माया के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
635
संज्वलन लोभ के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
636
अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ रूप चतुष्क के स्थिति सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
637
मिथ्यात्व के सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
638
सम्यक्त्व प्रकृतिके सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
639
सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके सत्कर्म स्थान
विशेषाधिक
5. बंध समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा
अर्थ - बंध समुत्पत्तिक स्थान = कर्मका जितना अनुभाग बाँधा गया
( कषायपाहुड़ 5/4,22/ $572/338)
स्वामी
अल्पबहुत्व
संयमाभिमुख चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि
स्तोक
सर्व विशुद्ध पंचे. संज्ञी प. का ज. अनु. स्थान
-
सर्व विशुद्धि पंचे. असंज्ञी अ.ज. अनु. स्थान
अनंतगुणा
सर्व विशुद्धि चौइंद्रिय असंज्ञी अ.ज. अनु स्थान
अनंतगणा
सर्व विशुद्धि तेइंद्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान
अनंतगुणा
सर्व विशुद्धि द्वींद्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान
अनंतुगुणा
सर्व विशुद्धि एकेंद्रिय बा. असंज्ञी ज. अनु. स्थान
अनंतगुणा
सर्व विशुद्धि एकेंद्रिय असंज्ञी ज. अनु. स्थान
अनंतगुणा
कौन कर्मका अनुभाग
अल्पबहुत्व
6. हत्समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्वके जघन्य स्थानों की अपेक्षा
अर्थ - हत समुत्पत्तिक स्थान=अपवर्तन द्वारा अनुभाग का घात करके जितना अनुभाग शेष रखा गया
( कषायपाहुड़ 5/4,22/ $572/338-339)
स्वामी
अल्पबहुत्व
सर्व विशुद्धि एकेंद्रिय सू. अप. द्वारा
उपरोक्त बंध स्थानसे
सर्व अनुमान घातके उत्पन्न किया ज. स्थान
अनंतगुणा
सर्व एकेंद्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
सर्व द्वींद्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
सर्व तेइंद्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
सर्व चतुरेंद्रिय बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
सर्व पंचे. असंज्ञी बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
संयमाभिमुख पंचें. संज्ञी बा.के द्वारा घात से उत्पन्न
अनंतगुणा
7. अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी 64 स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा
(म.ब/5/$417-425/220-224)
1. ज्ञानावरण-ओघ प्ररूपणा
स्वामी
अल्पबहुत्व
केवल ज्ञानावरणी का
सर्वतःतीव्र
आभिनिबोधिक ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
श्रुत ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
अवधि ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
मनःपर्यय ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
2. दर्शनावरण-
स्वामी
अल्पबहुत्व
केवल दर्शनावरण का
सर्वतःतीव्र
चक्षु दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
अचक्षु दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
अवधि दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
निद्रा निद्रा दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
प्रचला प्रचला दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
निद्रा दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
प्रचला दर्शनावरण का
अनंतगुणा हीन
3. वेदनीय-
स्वामी
अल्पबहुत्व
साता वेदनीय का
सर्वतःतीव्र
असाता वेदनीय का
अनंतगुणा हीन
4. मोहनीय-
स्वामी
अल्पबहुत्व
मिथ्यात्व
सर्वतःतीव्र
अनंतानुबंधी
लोभ का
अनंतगुणा हीन
अनंतानुबंधी माया का
विशेष हीन
अनंतानुबंधी क्रोध का
विशेष हीन
अनंतानुबंधी मान का
विशेष हीन
संज्वलन लोभ का
अनंतगुणा हीन
संज्वलन माया का
विशेष हीन
संज्वलन क्रोध का
विशेष हीन
संज्वलन मान का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान लोभ का
अनंतगुणा हीन
प्रत्याख्यान माया का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान क्रोध का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान मान का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान लोभ का
अनंतगुणा हीन
अप्रत्याख्यान माया का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान क्रोध का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान मान का
विशेष हीन
नपुंसक वेद का
अनंतगुणा हीन
अरति का
अनंतगुणा हीन
शोक का
अनंतगुणा हीन
भय का
अनंतगुणा हीन
जुगुप्सा का
अनंतगुणा हीन
स्त्रीवेद का
अनंतगुणा हीन
पुरुष वेद का
अनंतगुणा हीन
रति का
अनंतगुणा हीन
हास्य का
अनंतगुणा हीन
5. आयु-
स्वामी
अल्पबहुत्व
देवायु का
सर्वतःतीव्र
नरकायु का
अनंतगुणा हीन
मनुष्यायु का
अनंतगुणा हीन
तिर्यंचायु का
अनंतगुणा हीन
6. नामकर्म-
(गति) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
देवगति का
सर्वतःतीव्र
मनुष्यगति का
अनंतगुणा हीन
नरकगति का
अनंतगुणा हीन
तिर्चंयगति का
अनंतगुणा हीन
(जाति) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
पंचेंंद्रिय जाति का
सर्वतःतीव्र
एकेंद्रिय जाति का
अनंतगुणा हीन
द्वींद्रिय जाति का
अनंतगुणा हीन
त्रींद्रिय जाति का
अनंतगुणा हीन
चतुरिंद्रिय जाति का
अनंतगुणा हीन
(शरीर) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
कार्माण शरीर का
सर्वतःतीव्र
तैजस शरीर का
अनंतगुणा हीन
आहारक शरीर का
अनंतगुणा हीन
वैक्रियक शरीर का
अनंतगुणा हीन
औदारिक शरीर का
अनंतगुणा हीन
(संस्थान) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
समचतुरस्र संस्थान का
सर्वतःतीव्र
हुंडक संस्थान का
अनंतगुणा हीन
न्यग्रोध परिमंडल संस्थान का
अनंतगुणा हीन
स्वाति संस्थान का
अनंतगुणा हीन
कुब्जक संस्थान का
अनंतगुणा हीन
वामन संस्थान का
अनंतगुणा हीन
(अंगोपांग) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
आहारक अंगोपांग का
सर्वतःतीव्र
वैक्रियक अंगोपांग का
अनंतगुणा हीन
औदारिक अंगोपांग का
अनंतगुणा हीन
(संहनन) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
वज्र ऋषभ नाराच संहनन का
सर्वतःतीव्र
असंप्राप्त सृपाटिका संहनन का
अनंतगुणा हीन
वज्रनाराच संहनन का
अनंतगुणा हीन
नाराच संहनन का
अनंतगुणा हीन
अर्ध नाराच संहनन का
अनंतगुणा हीन
कीलित संहनन का
अनंतगुणा हीन
(वर्ण) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
प्रशस्त वर्ण चतुष्क
सर्वतःतीव्र
अप्रशस्त चतुष्क वर्ण का
अनंतगुणा हीन
(आनूपूर्वी) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
देवगति आनुपूर्वी का
सर्वतःतीव्र
मनुष्य गति आनुपूर्वी का
अनंतगुणा हीन
नरक गति आनुपूर्वी का
अनंतगुणा हीन
तिर्यंच गति आनुपूर्वी का
अनंतगुणा हीन
(अगुरुलघु आदि) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
अगुरुलघु का
सर्वतःतीव्र
उच्छ्वास का
अंतागुणा हीन
परघात का
अनंतगुणा हीन
उपघात का
अनंतगुणा हीन
(प्रशस्ताप्रशस्त युगल) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
सर्व प्रशस्त प्रकृत का
सर्वतःतीव्र
सर्व अप्रशस्त का
अनंतगुणा हीन
7. गोत्रकर्म :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
उच्च गोत्र का
सर्वतःतीव्र
नीच गोत्र का
अनंतगुणा हीन
8. अंतराय कर्म :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
वीर्यांतराय का
सर्वतःतीव्र
उपभोग अंतराय का
अनंतगुणा हीन
भोग अंतराय का
अनंतगुणा हीन
लाभ अंतराय का
अनंतगुणा हीन
दान अंतराय का
अनंतगुणा हीन
आदेश प्ररूपणा :-
1. गति मार्गणा :-
नरक गतिमें :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
नरक गति सामान्यमें
ओघवत्
1-7 पृथिवी में
ओघवत्
तिर्यंच गति में :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
नरकायु का
तीव्र
देवायु का
अनंतगुणा हीन
मनुष्यायु का
अनंतगुणा हीन
तिर्यंचायु का
अनंतगुणा हीन
देव गति का
तीव्र
नरक गति का
अनंतगुणा हीन
तिर्यंच गति का
अनंतगुणा हीन
मनुष्य गति का
अनंतगुणा हीन
शेष कर्म का
ओघवत्
तिर्यंचोके अन्य विकल्पोंमें उपरोक्तवत्
पंचेंद्रिय तिर्यंच अपर्याप्त नरक वत्
मनुष्य गति में :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
मनुष्य प.व मनुष्यणीमें चारों गतियों का
तिर्यंच वत्
शेष कर्मों का
ओघवत्
देवगति में :-
सर्व विकल्पी में ओघवत्
2. इंद्रिय मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
सब एकेंद्रिय तथा सब विकलेंद्रियमें
पंचे. तिर्यंच अप.वत्
पंचेंद्रिय प. व अप. में
ओघवत्
3. काय मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
पाँचों स्थावर कायमें
पंचे.तिर्यंच अप. वत्
त्रस प. अप. में
ओघवत्
4. योग मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
पाँचों मनोयोगीमें
ओघवत्
पाँचों वचन योगी में
ओघवत्
काय योगी सा.में
ओघवत्
औदारिक काय योगी में
मनुष्यणीवत्
औदारिक मिश्र योगी
तिर्यंच सा.वत्
वैक्रियक व वैक्रियक मिश्रमें
देवगति वत्
आहारक आहारक मिश्रमें
सर्वार्थसिद्धवत्
कार्मण योगमें
औदारिक मिश्रवत्
5. वेद मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
तीनों वेद व अपगत वेद में
मूलोघवत्
6. कषाय मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
चारों कषाय में
ओघवत्
7. ज्ञान मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
मति श्रुत अवधि व मनःपर्ययमें
ओघवत्
केवलज्ञानमें
X
मति श्रुत अज्ञान व विभंग में
तिर्यंच वत्
8. संयम मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
संयम सा. सामायिक व छेदा. में
ओघवत्
परिहार विशुद्धिमें
सर्वार्थ सिद्धि वत्
सूक्ष्म सांपरायमें
ओघवत्
यथाख्यात में
X
संयतासंयत में
सर्वार्थसिद्धिवत्
असंयत में
ओघवत्
9. दर्शन मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
चक्षु अचक्षु दर्शनों में
ओघवत्
अवधि दर्शनों में
ओघवत्
10. लेश्या मार्गणा :-
कृष्ण में तिर्यंचोंवत्
नील-कापोतमें :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
देवगतिका अनुभाग
तीव्र
मनुष्य का अनुभाग
अनंतगुणा हीन
तिर्यंच का अनुभाग
अनंतगुणा हीन
नरक का अनुभाग
अनंतगुणा हीन
चारों आनुपूर्वीका
उपरोक्तवत्
शेष प्रकृतियोंका
कृष्ण लेश्यावत्
पीत लेश्या व पद्म लेश्या में देवगतिवत्
शुक्ल लेश्या में ओघवत्
11. सम्यक्त्व मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
सम्यग्दर्शन सा.में
ओघवत्
उपशम व क्षायिक सम्य में
ओघवत्
वेदक सम्यग्दृष्टि में
सर्वार्थसिद्धिवत्
मिथ्यादृष्टिमें
तिर्यंच वत्
सासादन में
नरकवत्
सम्यग्मिथ्यादृष्टिमें
वेदक सम्य. वत्
12. भव्यत्व मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
भव्यमें
ओघवत्
अभव्यमें
ओघवत्
13. संज्ञित्व मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
संज्ञि में
ओघवत्
असंज्ञि में
तिर्यंच वत्
14. आहारक मार्गणा :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
आहारक में
ओघवत्
अनाहारकमें
X
(8) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग की 64 स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा -
( महाबंध 5/ $426-432/224-226)
1. ज्ञानावरण-
स्वामी
अल्पबहुत्व
मनःपर्यय ज्ञानावरणका अनुभाग
सर्वतःस्तोक
अवधि ज्ञानावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
श्रुत ज्ञानावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
आभिनिबोधिक ज्ञानावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
केवल ज्ञानावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
2. दर्शनावरण-
स्वामी
अल्पबहुत्व
अवधि दर्शनावरणका अनुभाग
स्तोक
अचक्षु दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
चक्षु दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
केवल दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
प्रचला दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
निद्रा दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
प्रचला प्रचला दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
निद्रा निद्रा दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरणका अनुभाग
अनंतगुणा
3. वेदनीय-
स्वामी
अल्पबहुत्व
असाता का
स्तोक
साता का
अनंतगुणा
4. मोहनीय-
स्वामी
अल्पबहुत्व
संज्वलन लोभ का
स्तोक
संज्वलन माया का
अनंतगुणा
संज्वलन मान का
अनंतगुणा
संज्वलन क्रोध का
अनंतगुणा
पुरुष वेद का
अनंतगुणा
हास्य का
अनंतगुणा
रति का
अनंतगुणा
जुगुप्सा का
अनंतगुणा
भय का
अनंतगुणा
शोक का
अनंतगुणा
अरति का
अनंतगुणा
स्त्रीवेद का
अनंतगुणा
नपुंसक वेद का
अनंतगुणा
प्रत्याख्यान मान का
अनंतगुणा
प्रत्याख्यान क्रोध का
विशेषाधिक
प्रत्याख्यान माया का
विशेषाधिक
प्रत्याख्यान लोभ का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान मान का
अनंतगुणा
अप्रत्याख्यान क्रोध का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान माया का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यान लोभ का
विशेषाधिक
अनंतानुबंधी मान का
अनंतगुणा
अनंतानुबंधी क्रोध का
विशेषाधिक
अनंतानुबंधी माया का
विशेषाधिक
अनंतानुबंधी लोभ का
विशेषाधिक
5. आयु-
स्वामी
अल्पबहुत्व
तिर्यंचायु का
स्तोक
मनुष्यायु का
अनंतगुणा
नरकायु का
अनंतगुणा
देव आयु का
अनंतगुणा
6. नामकर्म-
(गति)-
स्वामी
अल्पबहुत्व
तिर्यंच गति का
स्तोक
नरक गति का
अनंतगुणा
मनुष्य गति का
अनंतगुणा
देव गति का
अनंतगुणा
(जाति) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
चतुरिंद्रिय का
स्तोक
त्रींद्रिय का
अनंतगुणा
द्वींद्रिय का
अनंतगुणा
एकेंद्रिय का
अनंतगुणा
पंचेंद्रिय का
अनंतगुणा
(शरीर) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
औदारिक का
स्तोक
वैक्रियक का
अनंतगुणा
तैजस का
अनंतगुणा
कार्मण का
अनंतगुणा
आहारक का
अनंतगुणा
(संस्थान) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
न्यग्रोध परिणंडल का
स्तोक
स्वाति का
अनंतगुणा
कुब्ज का
अनंतगुणा
वामन का
अनंतगुणा
हुंडक का
अनंतगुणा
समचतुरस्र का
अनंतगुणा
(अंगोपांग) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
औदारिक का
स्तोक
वैक्रियक का
अनंतगुणा
आहारक का
अनंतगुणा
(संहनन) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
वज्र नाराच का
स्तोक
नाराच का
अनंतगुणा
अर्ध नाराच का
अनंतगुणा
कोलित का
अनंतगुणा
असंप्राप्त सृपाटिका का
अनंतगुणा
वज्र ऋषभ नाराच का
अनंतगुणा
(वर्ण) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
अप्रशस्त वर्ण चतुष्क का
स्तोक
प्रशस्त वर्ण चतुष्क का
अनंतगुणा
(अंगोपांग) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
तिर्यंच गत्यानपूर्वी का
स्तोक
नरक पूर्वी का
अनंतगुणा
मनुष्य पूर्वी का
अनंतगुणा
देव पूर्वी का
अनंतगुणा
(उपघातादि) :-
स्वामी
अल्पबहुत्व
उपघात का
स्तोक
परघात का
अनंतगुणा
उच्छ्वास का
अनंतगुणा
अगुरुलघु का
अनंतगुणा
7. गोत्र कर्म-
स्वामी
अल्पबहुत्व
नीच गोत्र का
स्तोक
ऊँच गोत्र का
अनंतगुणा
8. अंतराय-
स्वामी
अल्पबहुत्व
दान अंतराय का
स्तोक
लाभ अंतराय का
अनंतगुणा
भोग अंतराय का
अनंतगुणा
उपभोग अंतराय का
अनंतगुणा
वीर्य अंतराय का
अनंतगुणा
(9) अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी 64 स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
( महाबंध 5/ $436-439/228-229)
स्वामी
अल्पबहुत्व
साता वेदनीय का
सबसे तीव्र
यशःकीर्ति का
अनंतगुणा हीन
उच्च गोत्र का
ऊपर तुल्य
देव गति का
अनंतगुणा हीन
कार्मण शरीर का
अनंतगुणा हीन
तैजस शरीर का
अनंतगुणा हीन
आहारक शरीर का
अनंतगुणा हीन
वैक्रियक शरीर का
अनंतगुणा हीन
मनुष्य गति का
अनंतगुणा हीन
औदारिक शरीर का
अनंतगुणा हीन
मिथ्यात्व का
अनंतगुणा हीन
केवल ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
केवल दर्शनावरण का
ऊपर तुल्य
असाता वेदनीय का
अनंतगुणा हीन
वीर्यांतराय का
अनंतगुणा हीन
अनंतानुबंधी लोभ का
अनंतगुणा हीन
अनंतानुबंधी माया का
विशेष हीन
अनंतानुबंधी क्रोध का
विशेष हीन
अनंतानुबंधी मान का
विशेष हीन
संज्वलन लोभ का
अनंतगुणा हीन
संज्वलन माया का
विशेष हीन
संज्वलन क्रोध का
विशेष हीन
संज्वलन मान का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान लोभ का
अनंतगुणा हीन
प्रत्याख्यान माया का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान क्रोध का
विशेष हीन
प्रत्याख्यान मान का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान लोभ का
अनंतगुणा हीन
अप्रत्याख्यान माया का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान क्रोध का
विशेष हीन
अप्रत्याख्यान मान का
विशेष हीन
मति ज्ञानावरण का
अनंतगुणा हीन
उपभोगांतराय का
ऊपरतुल्य
चक्षुर्दर्शनावरण का
अनंतगुण हीन
अचक्षुर्दर्शनावरण का
अनंतगुण हीन
श्रुत ज्ञानावरण का
ऊपर तुल्य
भोगांतराय का
ऊपर तुल्य
अवधि ज्ञानावरण का
अनंतगुण हीन
अवधि दर्शनावरण का
ऊपर तुल्य
लाभांतराय का
ऊपर तुल्य
मनःपर्यय ज्ञानावरण का
अनंतगुण हीन
स्त्यानगृद्धि का
ऊपर तुल्य
दानांतराय का
ऊपर तुल्य
नपुंसक वेद का
अनंतगुण हीन
अरति का
अनंतगुण हीन
शोक का
अनंतगुण हीन
भय का
अनंतगुण हीन
जुगुप्सा का
अनंतगुण हीन
निद्रा निद्रा का
अनंतगुण हीन
प्रचला प्रचला का
अनंतगुण हीन
निद्रा का
अनंतगुण हीन
प्रचला का
अनंतगुण हीन
अयशःकीर्ति का
अनंतगुण हीन
नीच गोत्र का
ऊपर तुल्य
नरक गति का
अनंतगुण हीन
तिर्यंच गति का
अनंतगुण हीन
स्त्री वेद का
अनंतगुण हीन
पुरुषवेद का
अनंतगुण हीन
रति का
अनंतगुण हीन
हास्य का
अनंतगुण हीन
देवायु का
अनंतगुण हीन
नरकायु का
अनंतगुण हीन
मनुष्यायु का
अनंतगुण हीन
तिर्यंचायु का
अनंतगुण हीन
नोट - इसकी आदेश प्ररूपणाके लिए देखो
( महाबंध/ पु.5/$439-442/पृ.231-233)
(10) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागकी 64 स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
(म.ब/पु.5/$443/पृ.233-234)
स्वामी
अल्पबहुत्व
संज्वलन लोभ का
सर्वतःस्तोक
संज्वलन माया का
अनंतगुणा
संज्वलन मान का
अनंतगुणा
संज्वलन क्रोध का
अनंतगुणा
मनःपर्यय ज्ञानावरण का
अनंतगुणा
दानांतराय का
ऊपर तुल्य
अवधि ज्ञानावरण का
अनंतगुणा
अवधि दर्शनावरण का
ऊपर तुल्य
लाभांतराय का
ऊपर तुल्य
श्रुत ज्ञानावरण का
अनंतगुणा
अचक्षु दर्शनावरण का
ऊपर तुल्य
भोगांतराय का
ऊपर तुल्य
चक्षु दर्शनावरण का
अनंतगुणा
मतिज्ञानावरण का
अनंतगुणा
उपभोगांतराय का
ऊपर तुल्य
वीर्यांतराय का
अनंतगुणा
पुरुष वेद का
अनंतगुणा
हास्य का
अनंतगुणा
रति का
अनंतगुणा
जुगुप्सा का
अनंतगुणा
भय का
अनंतगुणा
शोक का
अनंतगुणा
अरति का
अनंतगुणा
स्त्री वेद का
अनंतगुणा
नपुंसक वेद का
अनंतगुणा
केवलज्ञानावरण का
अनंतगुणा
केवलदर्शनावरण का
ऊपर तुल्य
प्रचला का
अनंतगुणा
निद्रा का
अनंतगुणा
प्रत्याख्यानावरण मान का
अनंतगुणा
प्रत्याख्यानावरण क्रोध का
विशेषाधिक
प्रत्याख्यानावरण माया का
विशेषाधिक
प्रत्याख्यानावरण मान का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण मान का
अनंतगुणा
अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण माया का
विशेषाधिक
अप्रत्याख्यानावरण मान का
विशेषाधिक
प्रचला प्रचला का
अनंतगुणा
निद्रा निद्रा का
अनंतगुणा
स्त्यानगृद्धि का
अनंतगुणा
अनंतानुबंधी मान का
अनंतगुणा
अनंतानुबंधी क्रोध का
विशेषाधिक
अनंतानुबंधी माया का
विशेषाधिक
अनंतानुबंधी लोभ का
विशेषाधिक
मिथ्यात्व का
अनंतगुणा
औदारिक शरीर का
अनंतगुणा
वैक्रिय शरीर का
अनंतगुणा
तिर्यंचायु का
अनंतगुणा
मनुष्यायु का
अनंतगुणा
तैजस शरीर का
अनंतगुणा
कार्मण शरीर का
अनंतगुणा
तिर्यंच गति का
अनंतगुणा
नरक गति का
अनंतगुणा
मनुष्य गति का
अनंतगुणा
देव गति का
अनंतगुणा
नीच गोत्र का
अनंतगुणा
अयशः कीर्ति का
अनंतगुणा
असाता वेदनीय का
अनंतगुणा
यशःकीर्ति का
अनंतगुणा
उच्च गोत्र का
ऊपर तुल्य
साता वेदनीय का
अनंतगुणा
नरकायु का
अनंतगुणा
देवायु का
अनंतगुणा
आहारक शरीर का
अनंतगुणा
नोट - इस संबंधी आदेश प्ररूपणा के लिए देखो
( महाबंध/ पु.5/$445-450/पृ.235-239)
11. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभागके विभाग की अपेक्षा -
( गोम्मटसार कर्मकांड 197/ पृ.256)
स्वामी
अल्पबहुत्व
सर्व घाती भाग
सर्व द्रव्य/अनंत
देश घाती भाग
शेष बहु भाग
12. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा -
( धवला/ पु.12/4,2,7,63/39-40)
स्वामी
अल्पबहुत्व
चरम स्थिति में
स्तोक
प्रथम स्थिति में
असं.गुणे
अप्रथम व अचरम स्थितियोंमें
असं.गुणे
अप्रथम में
विशेषाधिक
अचरम में
विशेषाधिक
सब स्थितियोंमें
विशेषाधिक
13. एक समय प्रबद्ध में अष्ट कर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा -
1. स्वस्थानप्ररूपणा-
मूल प्रकृति विभाग-
( पंचसंग्रह / प्राकृत 4/496-497 ) ( धवला 15/35 ) (गो.क/मू.192,196/225)
स्वामी
अल्पबहुत्व
आयु कर्म का भाग
स्तोक
नाम कर्म का भाग
विशेषाधिक
गोत्र कर्म का भाग
ऊपर तुल्य
ज्ञानावरण कर्म का भाग
विशेषाधिक
दर्शनावरण कर्म का भाग
ऊपर तुल्य
अंतराय कर्म का भाग
ऊपर तुल्य
मोहनीय कर्म का भाग
विशेषाधिक
वेदनीय कर्म का भाग
विशेषाधिक
उत्तर प्रकृति विभाग स्वस्थान अपेक्षा-
1. ज्ञानावरण के द्रव्य में-
स्वामी
अल्पबहुत्व
मति ज्ञानावरण का भाग
अधिक
श्रुत ज्ञानावरण का भाग
विशेष हीन
अवधि ज्ञानावरण का भाग
विशेष हीन
मनःपर्यय का भाग
विशेष हीन
केवल ज्ञानावरण का भाग
विशेष हीन
2. दर्शनावरण के द्रव्य में-
स्वामी
अल्पबहुत्व
चक्षु दर्शनावरण का भाग
अधिक
अचक्षु दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
अवधि दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
केवल दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
निद्रा दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
निद्रा निद्रा दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
प्रचला दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
प्रचला प्रचला दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण का भाग
विशेष हीन
3. वेदनीय के द्रव्य में -
स्वामी
अल्पबहुत्व
साता का भाग
अन्यतमका ही द्रव्य आता है अतः अल्प बहुत्व नहीं होता
असाता का भाग
-
4. मोहनीय के द्रव्य में -
स्वामी
अल्पबहुत्व
अनंतानुबंधी चतुष्क का भाग
अधिक
अप्रत्याख्यान चतुष्क का भाग
विशेष हीन
प्रत्याख्यान चतुष्क का भाग
विशेष हीन
संज्वलन चतुष्क का भाग
विशेष हीन
हास्य का भाग
विशेष हीन
रति का भाग
विशेष हीन
अरति का भाग
विशेष हीन
शोक का भाग
विशेष हीन
भय का भाग
विशेष हीन
जुगुप्सा का भाग
विशेष हीन
स्त्री वेद का भाग
विशेष हीन
पुरुष वेद का भाग
विशेष हीन
नपुंसक वेद का भाग
विशेष हीन
5. आयु के द्रव्य में-
स्वामी
अल्पबहुत्व
चारों आयु में से
अन्यतमका ही द्रव्य आता है अतः अल्पबहुत्व नहीं
6. नाम के द्रव्य में-
गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, निर्माण, बंधन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, विहायोगति, प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, बादर, पर्याप्ति, स्थिर, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर — इसी क्रम से प्रत्येक में अपने-अपने से पूर्व की अपेक्षा विशेषहीन भाग जानना । शुभाशुभ युगलों में अल्पबहुत्व नहीं है क्योंकि अन्यतम का द्रव्य जाता है।
7. गोत्र के द्रव्य में-
स्वामी
अल्पबहुत्व
ऊँच गोत्र का भाग
अन्यतमका ही द्रव्य आता है अतः अल्पबहुत्व नहीं
नीच गोत्र का भाग
-
8. अंतराय के द्रव्य में-
स्वामी
अल्पबहुत्व
दानांतराय का भाग
स्तोक
लाभ दानांतराय का भाग
विशेषाधिक
भोग दानांतराय का भाग
विशेषाधिक
उपभोग दानांतराय का भाग
विशेषाधिक
वीर्य दानांतराय का भाग
विशेषाधिक
2. परस्थान प्ररूपणा-
(उत्कृष्ट प्रकृति प्रक्रम) (ध.15/36-37)
क्रम
कर्म का नाम
अल्पबहुत्व
1.
अप्रत्याख्यान मान में प्रदेश
सर्वतः स्तोक
2.
अप्रत्याख्यान क्रोध में प्रदेश
विशेषाधिक
3.
अप्रत्याख्यान माया में प्रदेश
विशेषाधिक
4.
अप्रत्याख्यान लोभ में प्रदेश
विशेषाधिक
5.
प्रत्याख्यान मान में प्रदेश
विशेषाधिक
6.
प्रत्याख्यान क्रोध में प्रदेश
विशेषाधिक
7.
प्रत्याख्यान माया में प्रदेश
विशेषाधिक
8.
प्रत्याख्यान लोभ में प्रदेश
विशेषाधिक
9.
अंतानुबंधी मान में प्रदेश
विशेषाधिक
10.
अनंतानुबंधी क्रोध में प्रदेश
विशेषाधिक
11.
अनंतानुबंधी माया में प्रदेश
विशेषाधिक
12.
अनंतानुबंधी लोभ में प्रदेश
विशेषाधिक
13.
मिथ्यात्व में प्रदेश
विशेषाधिक
14.
केवल दर्शनावरण में प्रदेश
विशेषाधिक
15.
प्रचला में प्रदेश
विशेषाधिक
16.
निद्रा में प्रदेश
विशेषाधिक
17.
प्रचला प्रचला में प्रदेश
विशेषाधिक
18.
निद्रा निद्रा में प्रदेश
विशेषाधिक
19.
स्त्यानगृद्धि में प्रदेश
विशेषाधिक
20.
केवल ज्ञानावरण में प्रदेश
विशेषाधिक
21.
आहारक शरीर नामकर्म प्रदेश
अनंत गुणे
22.
वैक्रियक शरीर नामकर्म प्रदेश
विशेषाधिक
23.
औदारिक शरीर नामकर्म प्रदेश
विशेषाधिक
24.
तैजस शरीर नामकर्म प्रदेश
विशेषाधिक
25.
कार्मण शरीर नामकर्म प्रदेश
विशेषाधिक
26.
देवगति नामकर्म प्रदेश
सं.गुणे
27.
नरक गति नामकर्म प्रदेश
सं.गुणे
28.
मनुष्यगति नामकर्म प्रदेश
सं.गुणे
29.
तिर्यग्गति नामकर्म प्रदेश
सं.गुणे
30.
अशयः कीर्ति नामकर्म प्रदेश
सं.गुणे
31.
जुगुप्सा नो कषाय प्रदेश
सं.गुणे
32.
भय नो कषाय प्रदेश
विशेषाधिक
33.
हास्य-शोक नो कषाय प्रदेश
विशेषाधिक (दोनों तुल्य)
34.
रति-अरति नो कषाय प्रदेश
विशेषाधिक (दोनों तुल्य)
35.
स्त्री-नपुंसक वेद नो कषाय प्रदेश
विशेषाधिक (दोनों तुल्य)
36.
दानांतराय प्रदेश
सं.गुणे
37.
लाभांतराय प्रदेश
विशेषाधिक
38.
भोगांतराय प्रदेश
विशेषाधिक
39.
परिभोगांतराय प्रदेश
विशेषाधिक
40.
वीर्यांतराय प्रदेश
विशेषाधिक
41.
संज्वलन क्रोध प्रदेश
विशेषाधिक
42.
मनःपर्यय ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
43.
अवधि ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
44.
श्रुत ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
45.
मति ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
46.
संज्वलन गान में
विशेषाधिक
47.
अवधि दर्शनावरण में
विशेषाधिक
48.
अचक्षु दर्शनावरण में
विशेषाधिक
49.
चक्षु दर्शनावरण में प्रदेश
विशेषाधिक
50.
पुरुष वेद प्रदेश
विशेषाधिक
51.
संज्वलन माया प्रदेश
विशेषाधिक
52.
अन्यतर आयु प्रदेश
विशेषाधिक
53.
नीच गोत्र प्रदेश
विशेषाधिक
54.
संज्वलन लोभ प्रदेश
विशेषाधिक
55.
असाता वेदनीय प्रदेश
विशेषाधिक
56.
उच्च गोत्र प्रदेश
विशेषाधिक
57.
यशःकीर्ति प्रदेश
ऊपर तुल्य
58.
साता वेदनीय प्रदेश
विशेषाधिक
जघन्य प्रकृति प्रक्रम-
क्रम
कर्म का नाम
अल्पबहुत्व
नं.1 से 20 तक
उत्कृष्ट वत्
21.
औदारिक शरीर नामकर्म में
अनंत गुणे
22.
तैजस शरीर नामकर्म में
विशेषाधिक
23.
कार्मण शरीर नामकर्म में
विशेषाधिक
24.
तिर्यग्गति नामकर्म में
सं.गुणे
25.
यशःकीर्ति नामकर्म में
विशेषाधिक
26.
अयशकीर्ति नामकर्म में
ऊपर तुल्य
27.
मनुष्य गति नामकर्म में
विशेषाधिक
28.
जुगुप्सा नो कषाय में
सं.गुणा
29.
भय नो कषाय में
विशेषाधिक
30.
हास्य-शोक नो कषाय में
विशेषाधिक (दोनों तुल्य)
31.
रति-अरति नो कषाय में
विशेषाधिक (दोनों तुल्य)
32.
अन्यत वेद में
विशेषाधिक
33.
संज्वलन मान में
विशेषाधिक
34.
संज्वलन क्रोध में
विशेषाधिक
35.
संज्वलन माया में
विशेषाधिक
36.
संज्वलन लोभ में
विशेषाधिक
37.
दानांतराय में
विशेषाधिक
38.
लाभांतराय में
विशेषाधिक
39.
भोगांतराय में
विशेषाधिक
40.
उपभोगांतराय में
विशेषाधिक
41.
वीर्यांतराय में
विशेषाधिक
42.
मनःपर्यय ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
43.
अवधि ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
44.
श्रुत ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
45.
मति ज्ञानावरण में
विशेषाधिक
46.
अवधि दर्शनावरण में
विशेषाधिक
47.
अचक्षु दर्शनावरण में
विशेषाधिक
48.
चक्षु दर्शनावरण में
विशेषाधिक
49.
उच्च नीच गोत्र में
सं.गुणे (दोनों तुल्य)
50.
साता-असाता वेदनीय में
विशेषाधिक
51.
वैक्रियक शरीर नामकर्म में
असं.गुणे
52.
देव गति नामकर्म में
सं.गुणे
53.
मनुष्य गति नामकर्म में
असं.गुणे
54.
तिर्यग्गति नामकर्म में
ऊपर तुल्य
55.
नरक गति नामकर्म में
असं.गुणे
57.
देव व नरक आयु नामकर्म में
असं.गुणे
58.
आहारक शरीर नामकर्म में
असं.गुणे
(14) जीव समासों मे विभिन्न प्रदेश बंधों की अपेक्षा
( षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.174/431)
पदेस अप्पबहुए त्ति जहा जोगअप्पाबहुगं णीदं तधा णेदव्वं। णवरि पदेसा अप्पाए त्ति भणिदव्वं ।।174।।
= जिस प्रकार योग अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गयी है (देखो नं.8 प्ररूपणा) उसी प्रकार अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष इतना है कि योग के स्थानोंमें यहाँ प्रदेश ऐस कहना चाहिए।
नोट-योगके एक अविभाग प्रतिच्छेदमें भी अनंत क्रम प्रदेशोंके अपकर्षणकी शक्ति है।
(15) आठ आकर्षों की अपेक्षा आयुबंधके जीवोंकी प्ररूपणा
( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका 518/915/2 )
स्वामी
अल्पबहुत्व
आठ अपकर्षों द्वारा करनेवाले
स्तोक
7 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
6 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
5 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
4 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
3 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
2 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
1 अपकर्षों द्वारा करनेवाले
संख्यात गुणे
(16) आठों अपकर्षोंमें आयु बंधके काल की अपेक्षा
( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका 518/915/8 )
संकेत :- 8 वाले का = 8 अपकर्षों द्वार आयु बंध करनेवाले जीवका 8 वें का = आठवें अपकर्षका बंध काल
सं. = संख्यात वि.अ. = विशेषाधिक
आयु बंध काल
ज.व उ. काल
अल्पबहुत्व
8 वाले का 8 वे का काल
ज.
स्तोक
-
उ.
वि.अ
8 वाले का 7 वे का काल
ज. सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 7 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 6 वे का काल
ज. संगुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 6 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 6 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 5 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 5 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 5 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
5 वाले का 5 वे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 4 थे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 4 थे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 4 थे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
5 वाले का 4 थे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
4 वाले का 4 थे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
5 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
4 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
3 वाले का 3 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
5 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
4 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
3 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
2 वाले का 2 रे का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
8 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
7 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
6 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
5 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
4 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
3 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
2 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
1 वाले का 1 ले का काल
ज.
सं.गुणा
-
उ.
वि.अ.
10. अष्टकर्म संक्रमण व निर्जरा की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
1. भिन्न गुणधारी जीवोंमें गुण श्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की 11 स्थानीय सामान्य प्ररूपणा -
( षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.175-185/80-86) ( कषायपाहुड़ 1/1,1/ गा.58-59/106) ( तत्त्वार्थसूत्र/9/45 ), ( सर्वार्थसिद्धि/9/45/151-154 ) ( धवला 10/4,2,4,74/295-296 ) ( गोम्मटसार जीवकांड/66-67/167 )
सूत्र
स्वामी
अल्पबहुत्व
175
दर्शन मोह उपशमक सम्मुख (या सातिशय मिथ्यादृष्टि)की
सर्वतःस्तोक
176
संयतासंयत की
असं.गुणी
177
अधःप्रवृत्त स्वस्थान संयत अर्थात् अप्रमत्त व प्रमत्त संयत की
असं.गुणी
178
अनंतानुबंधी विसंयोजक की
असं.गुणी
179
दर्शन मोह क्षपक की
असं.गुणी
180
चारित्र मोह उपशमक-
-
अपूर्व करण की
असं.गुणी
-
अनिवृत्ति करण की
असं.गुणी
-
सूक्ष्म सांपराय की
असं.गुणी
181
उपशांत कषाय वीतराग (11) की
असं.गुणी
182
चारित्र मोह क्षपक की
-
अपूर्व करण की
असं.गुणी
-
अनिवृत्ति करण की
असं.गुणी
-
सूक्ष्म सांपराय की
असं.गुणी
183
क्षीण कषाय की (12) की
असं.गुणी
184
स्व स्थान अधः प्रवृत्त संयोग केवलीकी ( गोम्मटसार जीवकांड/ जी.प्र/67/168/2)
असं.गुणी
185
योग निरोध केवली की
असं.गुणी
2. भिन्न गुणधारी जीवोंमे गुण श्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल की 11 स्थानीय प्ररूपणा -
( षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.186-196/85-86)
सूत्र
स्वामी
अल्पबहुत्व
186
योग निरोध केवली का
सर्वतः स्तोक
-
समुद्धात केवली का
सं.गुणा
(प्ररूपणा नं.1 के आधार पर)
187
स्व स्थान अधःप्रवृत्त संयोग केवली का
सं.गुणा
188
क्षीण कषाय वीतराग का
सं.गुणा
189
चारित्र मोह क्षपक-
-
सूक्ष्म सांपराय का
सं.गुणा
-
अनिवृत्ति करण का
सं.गुणा
-
अपूर्व करण का
सं.गुणा
190
उपशांत कषाय वीतराग का
सं.गुणा
191
चारित्र मोह उपशामक-
-
सूक्ष्म सांपराय का
सं.गुणा
-
अनिवृत्ति करण का
सं.गुणा
-
अपूर्व करण का
सं.गुणा
192
दर्शन मोह क्षपक का
सं.गुणा
193
अनंतानुबंधी विसंयोजक का
सं.गुणा
194
स्व स्थान अधःप्रवृत्त प्रमत्तासंयत का
सं.गुणा
195
संयतासंयत का
सं.गुणा
196
दर्शन मोह उपशमक का (सातिशय मिथ्यादृष्टि का)
सं.गुणा
3. पाँच प्रकार के संक्रमणों द्वारा हत, कर्म प्रदेशों के परिमाण में अल्पबहुत्व-
( गोम्मटसार कर्मकांड/430-435/587 )
क्रम
उत्तरोत्तर भागहारों के नाम
अल्पबहुत्व
1
सर्व संक्रमण का भागहार
सर्वतःस्तोक
2
गुण संक्रमण का भागहार
असं.गुणा
-
-
गुणकार=पल्य/असं.
-
उत्कर्षण भागहार
गुणकार=पल्य/असं.
-
उपकर्षण भागहार
ऊपर तुल्य
3
अधः प्रवृत्त संक्रमण द्वारा हत
पल्य/असं.गुणे
-
ज.सं.उ. योगों का गुणकार
पल्य/असं.गुणे
-
कर्म स्थितिकी नाना गुणहानि शलाका
पल्य के अर्द्धच्छेद रूप असं.गुणा
-
पल्य के अर्धच्छेद
विशेषाधिक
-
पल्य का प्रथम वर्गमूल
असं.गुणा
-
कर्म स्थिति की एक गणहानिके समयों का परिमाण
असं.गुणा
-
कर्म स्थिति की अन्योन्याभ्यस्त राशि
असं.गुणा
-
पल्य
असं.गुणा
4
कर्म की उत्कृष्ट स्थिति
700Xकोड़Xकोड़Xकोड़Xकोड़ गुणा
-
विध्यात संक्रमण का भागहार
असं.गुणा
-
-
गुणकार=सूच्यंगु/असं.
5
उद्वेलना का भागहार
गुणकार=सूच्यंगु/असं.
-
कर्मों के अनुभाग की नाना गुण हानि शलाका
अनंत गुणी
-
कर्मानुभाग की एक गुण हानि का आयाम
अनंतगुणी
-
कर्मानुभाग की द्व्यर्ध गुण हानि का आयाम
डेढ़ गुणी
-
कर्मानुभाग की 2 गुणी हानि
एक गुणहानि से दुगुनी
-
कर्मानुभाग की अन्योन्याभ्यस्त राशि
अनंत गुणी
11. अष्टकर्मबंध उदय सत्त्वादि 10 करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदोंमें पल्यबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा -
नोट-इस सारणी मे केवल शास्त्र के पृष्ठादि ही दर्शाये गये हैं. अतः उस उस प्ररूपणा को देखने के लिए शास्त्र का वह वह स्थान देखिये।
1.उदीरणा संबंधी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ .)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. स्वामित्व सामान्य
47
80-81
-
147-157
-
216-231
-
261-264
2. 8,7 आदि प्रकृतियों की उदीरणा रूप भंगोंके स्वामित्व की अपेक्षा
50
85
-
-
-
-
-
-
3. भुजगारादि पदों की अपेक्षा
53
97
-
162-164
-
236-237
-
261-264
4. ज.उ.वृद्धि हानि की अपेक्षा
-
-
-
164-170
-
249-252
-
271-273
2. उदय संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. स्वामित्व सामान्य अपेक्षा
285
288-289
294
295
296
296
296
309-324
2. भुजगारादि पदोंके स्वामित्व की अपेक्षा
-
-
294
295
296
296
296
329
3. पद निक्षेप सामान्य की अपेक्षा
-
-
294
295
296
296
296
335
4. पद निक्षेपोंके स्वामित्व की अपेक्षा
-
-
294
295
296
296
296
-
5. वृद्धि हानि की अपेक्षा
-
-
294
295
296
296
296
-
6 वृद्धि हानि के स्वामित्व की अपेक्षा
-
-
294
295
296
296
296
-
3. उपशमना संबंधी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. स्वामित्व सामान्य अपेक्षा
277
279
-
-
-
-
-
-
2. भुजगारादि की अपेक्षा
277
279
-
-
-
-
-
-
3. अन्य सर्व विकल्पों की अपेक्षा
280
280
281
281
282
282
282
282
4. संक्रमण संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. सर्व विकल्पों की अपेक्षा
283
283
283
283
284
284
284
284
5. बंध संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(म.ब./पु./पृ.)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. बंधक अबंधक जीव सा. की अपेक्षा
-
1/414-536
-
2/2-18
-
-
-
-
2. ज.उ. पदों के बंधकों सा. की अपेक्षा
-
-
2/223-270
3/567-611
4/260-266
4/417/450
6/99-100
-
3. भुजगारादि पदोंके बंधकों सा. की अपेक्षा
-
-
2/338-342
3/808-8931
4/303-308
5/548/562
6/143-145
-
4. ज.उ.वृद्धि हानिके बंधक सा. की अपेक्षा
-
-
2/353-356
-
4/342-352
5/605-610
6/153
-
5. षट्स्थान हानिके बंधक सा. की अपेक्षा
-
-
2/406-414
3/975-978
4/368-370
5/625
6/157-164
-
6. बंध अध्यवसाय स्थान सा. की अपेक्षा
-
-
-
3/982-992
-
5/628-644
-
-
6. मोहनीय कर्म सत्व संबंधी अल्पबहुत्वकी स्व व पर स्थानीय ओघ व आदेश प्ररूपणा -
( महाबंध/ प.पृ.)
विषय
प्रकृति विषयक
स्थिति विषयक
अनुभाग विषयक
प्रदेश विषयक
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
मूल प्र.
उत्तर प्रकृति
1. ज.उ. पदों के बंधक
-
-
3/164-168
3/871-916
5/139-140
5/429-470
-
-
2. भुजगारादि पदोंके बंधक
-
-
3/224-225
4/177-195
5/161
5/510-513
-
-
3. ज.उ. वृद्धि हानि रूप पदोंके बंधक
2/482-484
-
3/241-245
4/204-222
-
5/566-569
-
-
4. षट्स्थान वृद्धि हानि रूप पदों के बंधक
2/533-539
-
3/343-354
4/460-606
5/185
-
-
-
5. बंधक सामान्यका प्रमाण
1/393-394
-
-
-
-
-
-
-
6. प्रकृति सत्त्व असत्त्व का स्वामित्व
2/187-206
-
-
-
-
-
-
-
7. 28-24 आदि सत्त्व स्थानोंके काल की अपेक्षा
2/384-390
-
-
4/616-640
-
-
-
-
8. उ. स्वामि की अपेक्षा
2/391-416
-
-
-
-
-
-
-
9. सत्समुत्पत्तिकादि पदोंके स्वामी
-
-
-
-
5/188
-
-
-
10. ज.उ. वृद्धि हानि पदों की अपेक्षा
-
-
-
-
5/167-168
5/526-530
-
-
7. अष्टकर्म बंध वेदनामें स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बंधों की अपेक्षा ओघ व आदेश स्व पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणा -
1.स्थिति बंधवेदना-
प्रमाण
विषय
1 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.25-35/137-139
अष्टकर्मकी जघन्य उत्कृष्ट स्थिति सबंधी स्थिति वेदनाकी परस्थान प्ररूपणा
2 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.123-164/207-279
अष्टकर्मकी जघन्य उत्कृष्ट आबाधा व कांडकों संबंधी स्व पर स्थान प्ररूपणा सामान्य
3 धवला 11/4,2,6/ सू.164/280-308
अष्टकर्म की जघन्य उत्कृष्ट आबाधा व कांडकों संबंधी स्व पर स्थान प्ररूपणा विशेष
4 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.182-203/321-332
साता असाता के द्वितीय, त्रितीय, चतुर्थ आदि स्थानोंके अनुभाग बंधक जीव विशेषोंमें अष्टकर्मकी जघन्य उत्कृष्ट स्थिति पदोंका परस्थान अल्पबहुत्व
5 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.206-238/334-344
उपरोक्त जीवोंमें अष्टकर्मोंके स्थिति बंध स्थानोंका परस्थान अल्पबहुत्व
6 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.241-245/346-349
अष्टकर्म स्थिति बंधके सामान्य अध्यवसाय स्थानों संबंधी परस्थान प्ररूपणा
7 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.252-269/352-362
अष्टकर्म स्थिति बंधके जघन्य उत्कृष्ट अध्यवसाय स्थानों संबंधी परस्थान प्ररूपणा
8 षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.272-279/366-368
अष्टकर्म स्थिति बंधके जघन्य उत्कृष्ट स्थानों के योग्य तीव्र मंद परिणामों संबंधी प्ररूपणा
9 महाबंध 2/ सू.2/2
चौदह जीव समासोंमें मूल प्रकृति स्थिति बंध स्थानों संबंधी प्ररूपणा
10 महाबंध 2/ सू.5-16/6-12
चौदह जीव समासोंमें मूल प्रकृति स्थिति बंध स्थानों में प्रथम समयसे लेकर अंतिम समय तकके निषेकों संबंधी प्ररूपणा
11 महाबंध 2/ सू.18-22/13-16
चौदहजीव समासोंमें मूल प्रकृतिके ज. उ. स्थिति बंधस्थानों, आबाधा स्थानों व कांडकों संबंधी
12 महाबंध 2/ सू.19-21/228-229
नं. 10 वत् ही परंतु उत्तर प्रकृति की अपेक्षा
13. महाबंध 2/ सू.23-24/230
नं. 12 वत् ही परंतु उत्तर प्रकृति की अपेक्षा
2. अनुभाग बंध वेदना-
प्रमाण
विषय
1 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू40-64/अ.सू.1-3/31-44
अष्टकर्म मूलोत्तर प्रकृति के ज.उ. अनुभागोदय संबंधी स्व व पर स्थान प्ररूपणा
2 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.64-117/44-59
अष्टकर्म उत्तर प्रकृति उत्कृष्ट अनुभाग बंधकी परस्थान प्ररूपणा
3 धवला 12/4,2,7,117/60-62
अष्टकर्म उत्तर प्रकृति उत्कृष्ट अनुभाग बंधकी स्वस्थान प्ररूपणा
4 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.118-174/65-75
अष्टकर्म उत्तर प्रकृति जघन्य अनुभाग बंधकी परस्थान प्ररूपणा
5 धवला 12/4,2,7,174/75-78
अष्टकर्म उत्तर प्रकृति जघन्य अनुभाग बंधकी स्वस्थान प्ररूपणा
6 धवला 12/4,2,7,201/114-127
14 जीव समासोंमें ज.उ. अनुभाग बंध स्थानोंके अंतर संबंधी प्ररूपणा
7 धवला 12/4,2,7,202/128
14 जीव समासोंमें ज. अनु. बंध व ज. अनु. सत्त्व संबंधी परस्थान प्ररूपणा
8 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.236-240/205-207
यव मध्य रचना क्रममें अनुभाग बंध अध्यवसाय स्थानों संबंधी प्ररूपणा
षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.290-292/266-267
-
9 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.276-289/247-265
ज.उ. बंध अध्यवसायके सामान्यके सामान्य स्थानोमें जीवोंके प्रमाण संबंधी प्ररूपणा
षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.304-314/272-274
-
10 षट्खंडागम 12/4,2,7/ सू.293-303/267-272
अनुभाग बंध अध्यवसाय स्थानोंमें जीवोंके स्पर्शन काल संबंधी प्ररूपणा
3. प्रदेश बंध वेदना-
प्रमाण
विषय
1 धवला 10/117-121
अष्टकर्म प्रकृतियोंके ज. उ. प्रदेशोंके सत्त्व संबंधी प्ररूपणा
2 षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.124-143/385-394
अष्टकर्म प्रकृतियोंके उ.ज. पदों संबंधी प्ररूपणा
3 षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.174/431
प्रदेश बंध का अल्पबहुत्व योग स्थानों के अल्पबहुत्व वत् ही है
4 धवला 10/4,2,4,181/448/16
प्रथमादि योग वर्गणाओंमें जीव प्रदेशों संबंधी प्ररूपणा
5 धवला 10/4,2,4,186/479
योग वर्गणाओंके अविभाग प्रतिच्छेदों संबंधी प्ररूपणा
6 धवला 11/4,2,4,205/502
योगोंमें गुण हानि वृद्धि संबंधी प्ररूपणा
7 धवला 10/4,2,4,28/95-98
ज.उ. योग स्थानोंमें स्थित जीवोंके प्रमाण संबंधी प्ररूपणा
8 धवला 11/4,2,4,17/33/1
उत्कृष्ट क्षेत्रोमें स्थित जीवों संबंधी प्ररूपणा
9 धवला 12/4,2,7,199/102,104,110
ज.उ.वर्गणाओंमें दिये गये कर्म प्रदेशों संबंधी परस्थान प्ररूपणा
4. प्रकृति बंध वेदना-
प्रमाण
विषय
1 षट्खंडागम 12/4,2,16/ सू.1-26/509-512
अष्टकर्म मूलोत्तर प्रकृतियोंके असंख्यात भेदों संबंधी परस्थान प्ररूपणा
2 षट्खंडागम 13/5,5/ सू.124-132/384-387
चारों गति संबंधी आनुपूर्वी नाम कर्म प्रकृतिके भेदोंकी परस्थान प्ररूपणा
- सामान्य प्ररूपणा
संकेत
अर्थ
अंगु. अंगुल अंत. अंतर्मुहूर्त अप. अपर्याप्त अप्र. अप्रतिष्ठित असं. असंख्यात आ. आवली, आहारक शरीर उ. उत्कृष्ट उप. उपशम सम्यक्त्व या उपशमश्रेणी उपपाद योग स्थान एका. एकान्तानुवृद्धि योगस्थान औ. औदारिक शरीर का. कार्मण शरीर क्षप. क्षपक श्रेणी क्षा. क्षायिक सम्यक्त्व गुण. गुणकार या गुणस्थान ज. जघन्य ज.प्र. जगप्रतर ज.श्रे. जगश्रेणी तै. तैजस शरीर नि.अप. निवृत्त्यपर्याप्त नि.प. निर्वृत्ति पर्याप्त पंचे. पंचेन्द्रिय प. पर्याप्त परि. परिणाम योग स्थान पृ. पृथिवी प्रति. प्रतिष्ठित बा. बादर ल.अप. लब्धयपर्याप्त वन. वनस्पति वे. वेदक सम्यक्त्व वै. वैक्रियिक शरीर सं. संख्यात सम्मू. सम्मूर्च्छन सा. सामान्य सू. सूक्ष्म नं
द्रव्य
अल्पबहुत्व
गुणकार
१ वर्तमान काल स्तोक - २ अभव्य राशि अनन्तगुणी ज.युक्तानन्त ३ सिद्ध काल अनन्तगुणी अनन्तगुणी ४ सिद्ध जीव असं.गुणे शत पृथक्त्व ५ असिद्धकाल असं.गुणे सं. आवली ६ अतीत काल विशेषाधिक सिद्धकाल ७ भव्य मिथ्यादृष्टि अनन्तगुणे - ८ भव्य सामान्य विशेषाधिक सम्यग्दृष्टि ९ मिथ्यादृष्टि विशेषाधिक अभव्य १० संसारी जीव विशेषाधिक भव्य ११ सम्पूर्ण जीव विशेषाधिक सिद्ध १२ पुद्गल द्रव्य अनन्तगुणे - १३ अनागत काल अनन्तगुणा पुद्गलXअनन्त १४ सम्पूर्ण काल विशेषाधिक सर्वयोग १५ अलोकाकाश अनन्तगुणा कालXअनन्त १६ सम्पूर्ण आकाश विशेषाधिक लोक - सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ
- सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा