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जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

अल्पबहुत्व

From जैनकोष

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पदार्थों का निर्णय अनेक प्रकार से किया जाता है-उनका अस्तित्व व लक्षण आदि जानकर, उनकी संख्या या प्रमाण जानकर तथा उनका अवस्थान आदि जानकर। तहाँ पदार्थों की गणना क्योंकि संख्या को उल्लंघन कर जाती है और असंख्यात व अनन्त कहकर उनका निर्देश किया जाता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किसी भी प्रकार उस अनन्त या असंख्य में तरतमता या विशेषता दर्शायी जाए ताकि विभिन्न पदार्थों की विभिन्न गणनाओं का ठीक-ठीक अनुमान हो सके। यह अल्पबहुत्व नाम का अधिकार जैसा कि इसके नाम से ही विदित है इसी प्रयोजन की सिद्धि करता है।

  1. अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
    1. अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण।
    2. अल्पबहुत्व प्ररूपणा के भेद।
    3. संयत की अपेक्षा असंयत की निर्जरा अधिक कैसे।
    4. सिद्धों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी शंका।
    5. वर्गणाओं के अल्पबहुत्व संबन्धी दृष्टिभेद।
    6. पंचशरीर विस्रसोपचय वर्गणा के अल्पबहुत्व दृष्टिभेद।
    7. मोह प्रकृति के प्रदेशाग्रों सम्बन्धी दृष्टिभेद।
  2. ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
      • प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - संख्या - 2
    1. सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ।
    2. षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्प बहुत्व।
    3. जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा।
      1. प्रवेश की अपेक्षा।
      2. संयम की अपेक्षा।
      3. सम्यक्त्व में संचय की अपेक्षा।
    4. गति मार्गणा
      1. पांच गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. आठ गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. नरक गति की सामान्य, ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      4. निर्यच गति की की सामान्य, ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      5. मनुष्य गति की सामान्य, ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      6. देव गति की सामान्य, ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    5. इन्द्रिय मार्गणा
      1. इन्द्रियों की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. इन्द्रियों में पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    6. काय मार्गणा
      1. त्रस-स्थावर की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      4. बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      5. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    7. गति इन्द्रिय व काय की संयोगी परस्थान प्ररूपणा।
    8. योग मार्गणा
      1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    9. वेद मार्गणा
      1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. तीनों वेदों की पृथक्-पृथक् ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    10. कषाय मार्गणा
      1. कषाय चतुष्क की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. कषाय चतुष्क की अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    11. ज्ञान मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    12. संयम मार्गणा
      1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा।
      3. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    13. दर्शन मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा
    14. लेश्या मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    15. भव्य मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    16. सम्यक्त्व मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    17. संज्ञी मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
    18. आहारक मार्गणा
      1. सामान्य प्ररूपणा।
      2. ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      3. अनाहारक की ओघ व आदेश प्ररूपणा।
  3. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
    1. सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
      1. संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।
      2. क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण सिद्धों में)।
      3. काल की अपेक्षा।
      4. अन्तर की अपेक्षा।
      5. गति की अपेक्षा।
      6. वेदनानुयोग की अपेक्षा।
      7. तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा।
      8. चारित्र की अपेक्षा।
      9. प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध की अपेक्षा।
      10. ज्ञान की अपेक्षा।
      11. अवगाहना की अपेक्षा।
      12. युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा।
    2. १-१, २-२ आदि करके संचय होने वाले जीवों की अल्प बहुत्वप्ररूपणा
      1. गति आदि १४ मार्गणा की अपेक्षा।
    3. २३ वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ
      1. एक श्रेणी वर्गणा के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
      2. नाना श्रेणी वर्गणा के द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा।
      3. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा।
      4. उपरोक्त तीनों की स्व व परस्थान प्ररूपणा।
    4. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओं की प्ररूपणा
      1. पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
      2. पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा।
      3. पंच शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा।
      4. प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
      5. शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान की अपेक्षा।
      6. पंच शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
      7. औदारिक शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
      8. इन्द्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
      • पाँचों शरीरों में प्रथम समयप्रबद्ध से लेकर अन्तिम समयप्रबद्ध तक बन्धे प्रदेश-प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.२६३-२८६/३३९-३५२)।
      • पाँचों शरीरों की ज.व उ. स्थिति या निषेकों के प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३२०-३३९/३६६-३६९)
      • पाँचों शरीरों के ज.उ.व उभय स्थितिगत निषेकों में प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा। दे.(ष.ख.१४/५,६/सू.३४०-३८९/३७२-३८७)।
      • उपरोक्त प्रदेशाग्रों में एक व नाना गुणहानि स्थानान्तरों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३९०-४०६/३८७-३९२)।
      • उपरोक्त निषेकों के ज.उ.व उभय प्रदेशाग्र प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.४०७-४१५/३९२-३९५)।
      • पाँचों शरीरों में बन्धे प्रदेशाग्रों के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.५१५-५१९/४३७-४३८)।
      • पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों को संघातन, परिशातन, उभय व अनुभयादि कृतियों की अपेक्षा। दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
    5. पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
      1. सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा।
      2. औदारिक शरीर विशेषकी अवगाहना की अपेक्षा।
      • पंच शरीरों के पुद्गलस्कन्धों की संघातन परिशातन आदि कृतियों में गृहीत परमाणुओं के प्रमाण की अपेक्षा।दे. (ध.९/४,१,७१/३४६-३५४)।
      • ज.उ.अवगाहना क्षेत्रों की अपेक्षा। दे. (ध.११/पृ.२८)।
      1. पंचेन्द्रियों की अवगाहना की अपेक्षा।
    6. पाँचों शरीरों के स्वामियों की ओघ व आदेश प्ररूपणा
    7. जीवभावों के अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा
      1. संयमविशुद्धि या लब्धिस्थानों की अपेक्षा।
      2. १४ जीवसमासों में संक्लेश व विशुद्धिस्थानों की अपेक्षा।
      3. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्यके अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा।
      4. उपशमन व क्षपण काल की अपेक्षा।
      5. कषाय काल की अपेक्षा।
      6. नोकषाय बन्धकाल की अपेक्षा।
      7. मिथ्यात्व-काल विशेष की अपेक्षा। (अर्थात् भिन्न-भिन्न जीवोंके मिथ्यात्व-काल का अल्पबहुत्व)।
      • अधःप्रवृत्तिकरण की विशुद्धियों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१६/३७५-३७८)।
      • संयमासंयम लब्धिस्थानों में तरतमता की अपेक्षा। दे. (ध. ६/१,९-८,१४/२७६/७)।
    8. जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
      1. योग सामान्य के यवमध्य काल की अपेक्षा।
      2. योगस्थानों के स्वामित्व सामान्य की अपेक्षा।
      3. योग स्थान सामान्य में परस्पर अल्पबहुत्व।
      4. जीवसमासों में जघन्योंत्कृष्ट योगस्थानों की अपेक्षा।
      5. प्रत्येक योग के अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा।
    9. कर्मों के सत्त्व व बन्धस्थानों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
      1. जीवों के स्थिति बन्धस्थानों की अपेक्षा।
      2. स्थिति बन्ध में जघन्य व उत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा।
      3. स्थितिबन्ध के निषेकों की अपेक्षा।
      • अनिवृत्ति गुणस्थान में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/२९७/४)।
      • उपशान्तकषाय से उतरे अनिवृत्तिकरण में स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३२४/३)।
      • चारित्रमोह क्षपक अनिवृत्तिकरण के स्थितिबन्ध की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३५०/२) (विशेष दे. आगे)।
      1. मोहनीय कर्म के स्थितिसत्त्वस्थानों की अपेक्षा।
      2. बन्धसमुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
      3. हत्समुत्पत्तिक अनुभागसत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा।
      4. अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      5. अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा।
      6. अष्टकर्म प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा।
      • उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणाएँ। दे. (म.बं.५/$४३९-४४२/२३१-२३३)।
      1. अष्टकर्म प्रकृतियों के जघन्य अनुभाग की ६४ स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा।
      • उपरोक्त विषयक आदेश प्ररूपणा। दे. (म.बं.५/$४४४-४५०/२३५-२३९)।
      1. एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभाग के विभाग की अपेक्षा।
      2. एक समयप्रबद्ध प्रदेशाग्रों में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा।
      3. एक समयप्रबद्ध में अष्टकर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा।
      4. जीवसमासों में विभिन्न प्रदेशबन्धों की अपेक्षा।
      5. आठ अपकर्षों की अपेक्षा आयुबन्धक जीवों की प्ररूपणा।
      6. आठ अपकर्षों में आयुबन्ध के काल की अपेक्षा।
    10. अष्टकर्म संक्रमण व निर्जरा की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा
      1. भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की ११ स्थानीय सामान्य प्ररूपणा।
      2. भिन्न गुणधारी जीवों में गुणश्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल की ११ स्थानीय प्ररूपणा।
      3. पाँच प्रकार के संक्रमणों द्वारा हत् कर्मप्रदेशों के परिमाण में अल्पबहुत्व।
      • प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्ति विधान में अपूर्वकरण के काण्डक घात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,५/२२८/१)।
      • द्वितीयोपशम प्राप्ति विधान में उपरोक्त विकल्प। दे. (ध.६/१,९,८,१४/२८९/१०)।
      • अश्वकर्ण प्रस्थापक चारित्रमोह क्षपक के अनुभागसत्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१२/२६३/६)।
      • अपूर्वस्पर्धक करण में अनुभाग काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३६६/११)।
      • चारित्रमोह क्षपक के अपूर्वकरण में स्थिति काण्डकघात की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,१६/३४४/८)।
      • त्रिकरण विधान की अवस्था विशेषों के उत्कीरण कालों तथा स्थिति बन्ध व सत्त्व आदि विकल्पों की अपेक्षा प्ररूपणाएँ।
      • प्रथमोपशम सम्यक्त्व की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९,८,७/२३६/८)।
      • प्रथमोपशम व वेदक सम्यक्त्व तथा संयमासंयम को युगपत् ग्रहण करने की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८/११/२४७/१)।
      • पुरुषवेद सहित क्रोध के उदय से आरोहण व अवरोहण करने वाले चारित्रमोहोपशामक अपूर्वकरण के भिन्न-भिन्न प्रकृतियों के आश्रय सर्व विकल्प रूप उत्कीरण कालों की अपेक्षा। दे.(ध.६/१,९,८,१४/३३५/११)।
      • दर्शनमोह क्षपक की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१२/२६३/६)।
      • अनुवृत्तिकरण गुणस्थान में चारित्रमोह की यथायोग्य प्रकृतियों के उपशमन की अपेक्षा। दे. (ध.६/१,९-८,१४/३०३/६)।
    11. अष्टकर्म बन्ध उदय सत्त्वादि १० करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदों में अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणाएँ
      1. उदीरणा की अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
      2. उदय अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
      3. उपशमना अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
      4. संक्रमण अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
      5. बन्ध अपेक्षा अष्टकर्म प्ररूपणा
      6. मोहनीयकर्म विशेष के सत्त्व की अपेक्षा।
      7. अष्टकर्मबन्ध वेदना में स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बन्धों की अपेक्षा ओघ व आदेश स्व-पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।
      • प्रयोग व समवदान आदि षट्कर्मों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा।
      • १४ मार्गणाओं में जीवों की तथा उनमें स्थिति कर्मों की उपरोक्त षट् कर्मों की अपेक्षा प्ररूपणा। दे. (ध.१३/५,४,३१/१७५-१९५)।
      • निगोद जीवों की उत्पत्ति आदि विषयक अल्पबहुत्व प्ररूपणा
      • साधारण शरीर में निगोद जीवों का उत्पत्तिक्रम। निरन्तर व सान्तर कालों की अपेक्षा। (ष.ख.१/१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।
      • उपरोक्त कालों से उत्पन्न होने वाले जीवों के प्रमाण की अपेक्षा दे. (ष.खं.१४/५,६/सू.५८७-६२८/४७४)।


    1. अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
      1. अल्पबहुत्व सामान्य का लक्षण

        स.सि./१०/९/४७३ क्षेत्रादिभेदभिन्नानां परस्परतः संख्या विशेषोऽल्पबहुत्वम्। = क्षेत्रादि भेदों की अपेक्षा भेद को प्राप्त हुए जीवों की परस्पर संख्या का विशेष प्राप्त करना अल्पबहुत्व है। ( रा.वा./१०/९/१४/६४७/२७ )

        रा.वा./१/८/१०/४२/१९ संख्यातादिष्वन्यतमेन परिमाणेन निश्चिताना मन्योन्यविशेषप्रतिपत्यर्थ मल्पबहुत्ववचनं क्रियते-इमे एभ्योऽल्पा इमे बहवः इति।= संख्यात आदि पदार्थों में अन्यतम किसी एक के परिमाण का निश्‍चय हो जाने पर उनकी परस्पर विशेष प्रतिपत्ति के लिए अल्पबहुत्व करने में आता है। जैसे यह इन की अपेक्षा अल्प है, यह अधिक है इत्यादि। ( स.सि./१/८/२९ )

        ध.५/१,८,१/२४२/७ किमप्पाबहुअं। संखाधम्मो एदम्हादो एदं तिगुणं चदुगुणमिदि बुद्धिगेज्झो। = प्रश्न - अल्पबहुत्व क्या है? उत्तर - यह उससे तिगुणा है, अथवा चतुर्गुणा है इस प्रकार बुद्धि के द्वारा ग्रहण करने योग्य संख्या के धर्म को अल्पबहुत्व कहते हैं।

      2. अल्पबहुत्व प्ररूपणा के भेद

        ध.५/१,८,१/२४१/१० (द्रव्य क्षेत्र काल भाव आदि निक्षेपों की अपेक्षा अल्पबहुत्व अनेक भेद रूप है। (विशेष दे. निक्षेप)

      3. संयत की अपेक्षा असंयत की निर्जरा अधिक कैसे

        ध.१२/४,२,७,१७८/६ संजमपरिणामेहितो अणंताणुबंधिं विसंजोएतंस्स असंजदसम्मादिट्ठस्स परिणामो अणंतगुणहीणो, कधं तत्तो असंखेज्जगुणपदेसणिज्जरा। ण एस दोसो संजमपरिणामेहिंतो अणंताणुबंधीणं विसंजोजणाए कारणभूदाणं सम्मत्तपरिणामाणमणंतगुणत्तुवलंभादो। जदि सम्मत्तपरिणामेहिं अणंताणुबंधीणं विसंजोजणा कीरदे तो सव्वसम्माइट्ठीसु तब्भावो पसज्जदि त्ति वुत्ते ण, विसिट्ठेहि चेव सम्मत्तपरिणामेहिं तव्विसंजोयणब्भुवगमादि त्ति। = प्रश्न - संयमरूप परिणामों की अपेक्षा अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना करने वाले असंतसम्यग्दृष्टि का परिणाम अनन्तगुणहीन होता है। ऐसी अवस्था में उससे असंख्यातगुणी प्रदेश निर्जरा कैसे हो सकती है? उत्तर - यह कोई दोष नहीं है-क्योंकि संयमरूप परिणामों की अपेक्षा अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना में कारणभूत सम्यक्त्वरूप परिणाम अनन्तगुणे उपलब्ध होते हैं। प्रश्न-यदि सम्यक्त्वरूप परिणामों के द्वारा अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना की जाती है तो सभी सम्यग्दृष्टि जीवों में उसकी विसंयोजना का प्रसंग आता है? उत्तर - सब सम्यग्दृष्टियों में उसकी विसंयोजना का प्रसंग नहीं आ सकता, क्योंकि विशिष्ट सम्यक्त्वरूप परिणामों के द्वारा ही अनन्तानुबन्धी कषायों की विसंयोजना स्वीकार की गयी है।

      4. सिद्धों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी शंका

        ध.९/४,१,६६/३१८/७ एदमप्पाबहुगं सोलसवदियअप्पाबहुएण सह विरुज्झदे, सिद्धकालादो सिद्धाणं संखेज्जगुणत्तं फिट्टिदूण विसेसाहियत्तप्पसंगादो। तेणेत्थ उवएसं लहिय एगदरणिण्णओ कायव्वो। = यह अल्पबहुत्व (सिद्धों में कृति संचय सबसे स्तोक है, अव्यक्त संचित असंख्यातगुणे हैं, इत्यादि) षोडशपदादिक अल्पबहुत्व (अल्पबहुत्व 2.2) के साथ विरोध को प्राप्त होता है, क्योंकि सिद्धकाल की अपेक्षा सिद्धों के संख्यातगुणत्व नष्ट होकर विशेषाधिकपने का प्रसंग आता है। इस कारण यहाँ उपदेश प्राप्त कर दो-में-से किसी एक का निर्णय करना चाहिए।

      5. वर्गणाओं के अल्पबहुत्व सम्बन्धी दृष्टिभेद

        ध.१४/५,६,९३/१११/४ जहण्णादो पुण उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणा असंखेज्जगुणा। को गुणकारो। जगसेडीए असंखेज्जदिभागो। के वि आइरिया गुणगारो पुण आवलियाए असंखेज्जदिभागो होदि त्ति भणंति, तण्ण घडदे। कुदो। बादरणिगोदवग्गणाए उक्कसियाएसेडीए असंखेज्जदिंभागमेत्तो णिगोदाणं त्ति एदेण चूलियासुत्तेण स विरोहादो। = अपनी जघन्य से उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? जगश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। कितने ही आचार्य गुणकार आवलि के संख्यातवें भाग प्रमाण होता है, ऐसा कहते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, 'उत्कृष्ट बादर निगोदवर्गणा में निगोद जीवों का प्रमाण जगश्रेणि के असंख्यातवें भागमात्र है', इस चूलिका सूत्र के साथ विरोध आता है।

        ध.१४/५,६,११६/१६६/७ एत्थ के वि आइरिया उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणादो उवरिमधुवसुण्णएगसेडी असंखेज्जगुणा। गुणगारो वि घणावलियाए असंखेज्जदिभागो त्ति भणंति तण्ण घडदे। कुदो। संखेज्जेहि असंखेज्जेहि वा जीवेहि जहण्णबादरणिगोदवग्गणाणुप्पत्तीदो।...तम्हा अणंतलोगा गुणगारो ति एदं चेव घेत्तव्वं। = यहाँ पर कितने ही आचार्य उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा से उपरिमध्रु व शून्य एक श्रेणी असंख्यातगुणी है, और गुणकार भी घनावलि के असंख्यातवें भागप्रमाण है, ऐसा कहते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि संख्यात या असंख्यात जीवों से जघन्य बादरनिगोद वर्गणा की उत्पत्ति नहीं हो सकती।...इसलिए 'अनन्त लोक गुणकार है' यह वचन ही ग्रहण करना चाहिए।

        ध.१४/५,६,११६/२१६/१३ कम्मइयवग्गणादो हेट्ठिमाहारवग्गणादो उवरिमअगहणवग्गणमद्धाणगुणगारेहिंतो आहारादिवग्गणाणं अद्धाणुप्पायणट्ठं ट्ठविदभागहारो अणंतगुणो त्ति के विआइरिया इच्छंति, तेसिमहिप्पाएण पुव्विल्लमपाबहुगं परूविदं। भागाहारेहिंतो गुणगारा अणंतगुणा त्तिके वि आइरिया भणंति। तेसिमहिप्पाणं एदमप्पा बहुगं परूविज्जदे, तेणेसो ण दोसो। = कार्माणवर्गणा से अधस्तन आहार वर्गणा से उपरिम अग्रहणवर्गणा के अध्वान के गुणकार से आहारादि वर्गणाओं के अध्वान को उत्पन्न करने के लिए स्थापित भागाहार अनन्तगुणा है। ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं, इसलिए उनके अभिप्रायानुसार पहिले का अल्पबहुत्व कहा है। तथा भागहारों से गुणकार अनन्तगुणे हैं ऐसा आचार्य कहते हैं। इसलिए उनके अभिप्रायानुसार यह अल्पबहुत्व कहा जा रहा है। इसलिए यह कोई दोष नहीं है।

      6. पंचशरीर विस्रसोपचय वर्गणा के अल्पबहुत्व-दृष्टिभेद

        ध.१४/५,६,५५२/४५/४५७/६ सव्वथ गुणगारो सव्वजीवेहि अणंतगुणो। एदमप्पाबहुगं बाहिरवग्णाए पुधभूदं त्ति काऊण के वि आइरिया जीवसंबद्धपंचण्णं सरीराणं विस्सस्सुवचयस्सुवरि परूवेंति तण्ण घडदे, जहण्णपत्तेयसरीरवगणादो उक्कस्सपत्तेयसरीरवग्गणाए अणंतगुणप्पसंगादो। = 'सर्वत्र गुणकार सब जीवोंसे अनन्तगुणा है।' यह अल्पबहुत्व बाह्य वर्गणा से पृथग्भूत है, ऐसा मानकर कितने ही आचार्य जीव सम्बद्ध पाँच शरीरों के विस्रसोपचय के ऊपर कथन करते हैं, परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि ऐसा मानने पर जघन्य प्रत्येक शरीरवर्गणा से उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणा के अनन्तगुणे होने का प्रसंग प्राप्त होता है।

      7. मोह प्रकृति के प्रदेशाग्रों सम्बन्धी दृष्टिभेद

        क.पा.४/३-२२/६३३९/३३४/११ सम्मत्तचरिमफालीदो सम्मामिच्छत्तचरिमफाली असंख्ये. गुणहीणा त्ति एगो उवएसो। अवरेगो सम्मामिच्छत्तचरिमफाली तत्तो विसेसाहिया त्ति। एत्थ एदेसिं दोण्हं पि उवएसाणं णिच्छयं काउमसमत्थेण जइवसहाइरिएण एगो एत्थ विलिहिदो अवरेगो ट्ठिदिसंकम्मे। तेणेदे वे वि उवदेसा थप्पं कादूण वत्तव्वा त्ति। = सम्यक्त्व की अन्तिम फालि से सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिम फालि असंख्यातगुणी हीन है, यह पहला उपदेश है। तथा सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिम फालि उससे विशेष अधिक है यह दूसरा उपदेश है। यहाँ इन दोनों ही उपदेशों का निश्‍चय करने में असमर्थ यतिवृषभ आचार्य ने एक उपदेश यहाँ लिखा और एक उपदेश स्थिति संक्रमण में लिखा, अतः इन दोनों ही उपदेशों को स्थगित करके कथन करना चाहिए।

    2. ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
      1. सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ
      2. संकेत

        अर्थ

        अंगु. अंगुल
        अंत. अंतर्मुहूर्त
        अप. अपर्याप्त
        अप्र. अप्रतिष्ठित
        असं. असंख्यात
        आ. आवली, आहारक शरीर
        उ. उत्कृष्ट
        उप. उपशम सम्यक्त्व या उपशमश्रेणी उपपाद योग स्थान
        एका. एकान्तानुवृद्धि योगस्थान
        औ. औदारिक शरीर
        का. कार्मण शरीर
        क्षप. क्षपक श्रेणी
        क्षा. क्षायिक सम्यक्त्व
        गुण. गुणकार या गुणस्थान
        ज. जघन्य
        ज.प्र. जगप्रतर
        ज.श्रे. जगश्रेणी
        तै. तैजस शरीर
        नि.अप. निवृत्त्यपर्याप्त
        नि.प. निर्वृत्ति पर्याप्त
        पंचे. पंचेन्द्रिय
        प. पर्याप्त
        परि. परिणाम योग स्थान
        पृ. पृथिवी
        प्रति. प्रतिष्ठित
        बा. बादर
        ल.अप. लब्धयपर्याप्त
        वन. वनस्पति
        वे. वेदक सम्यक्त्व
        वै. वैक्रियिक शरीर
        सं. संख्यात
        सम्मू. सम्मूर्च्छन
        सा. सामान्य
        सू. सूक्ष्म
      3. षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्पबहुत्व

        ध.३/१,२,३/३०/७

      4. नं

        द्रव्य

        अल्पबहुत्व

        गुणकार

        १वर्तमान कालस्तोक-
        २अभव्य राशिअनन्तगुणीज.युक्तानन्त
        ३सिद्ध कालअनन्तगुणीअनन्तगुणी
        ४सिद्ध जीवअसं.गुणेशत पृथक्त्व
        ५असिद्धकालअसं.गुणेसं. आवली
        ६अतीत कालविशेषाधिकसिद्धकाल
        ७भव्य मिथ्यादृष्टिअनन्तगुणे-
        ८भव्य सामान्यविशेषाधिकसम्यग्दृष्टि
        ९मिथ्यादृष्टिविशेषाधिकअभव्य
        १०संसारी जीवविशेषाधिकभव्य
        ११सम्पूर्ण जीवविशेषाधिकसिद्ध
        १२पुद्गल द्रव्यअनन्तगुणे-
        १३अनागत कालअनन्तगुणापुद्गलXअनन्त
        १४सम्पूर्ण कालविशेषाधिकसर्वयोग
        १५अलोकाकाशअनन्तगुणाकालXअनन्त
        १६सम्पूर्ण आकाशविशेषाधिकलोक
      5. जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा

        (ष.खं.५/१,८/सू.१-२६)

        नोट - प्रमाण वाले कोष्ठक में सर्वत्र सूत्र नं. लिखे हैं। यहाँ यथा स्थान उस उस सूत्र की टीका भी सम्मिलित जानना।

        1. प्रवेश की अपेक्षा
          • उपशमक

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          २-८स्तोकअधिक से अधि ५४
          २-९ऊपर तुल्यजीवों का प्रवेश ही सम्भव है
          २-१०ऊपर तुल्यजीवों का प्रवेश ही सम्भव है
          ३-११ऊपर तुल्यजीवों का प्रवेश ही सम्भव है
          • क्षपक
          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ४-८दुगुने१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
          ४-९ऊपर तुल्य१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
          ४-१०ऊपर तुल्य१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
          ५-१२ऊपर तुल्य१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
          ६-१३ऊपर तुल्य१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
          ६-१४ऊपर तुल्य१०८ तक जीवों का प्रवेश सम्भव है
        2. संचय की अपेक्षा
          • उपशमक

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ४-८स्तोकप्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं
          ४-९ऊपर तुल्यप्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं
          ४-१०ऊपर तुल्यप्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं
          ४-११ऊपर तुल्यप्रवेश के अनुरूप ही संचय होता है। कुल २९९ जीव संचित होने सम्भव हैं
          • क्षपक

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ४-८दुगुनेकुल ५९८ जीव संचित होते हैं
          ४-९ऊपर तुल्यकुल ५९८ जीव संचित होते हैं
          ४-१०ऊपर तुल्यकुल ५९८ जीव संचित होते हैं
          ५-१२ऊपर तुल्यकुल ५९८ जीव संचित होते हैं
          ६-१४ऊपर तुल्यकुल ५९८ जीव संचित होते हैं
          ७-१३सं. गुणे८९८५०२ जीवों का संचय
          • अक्षपक व अनुपशमक

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ८-७सं. गुणे२९६९९१०३ जीवों का संचय
          ९-६दुगुने५९३९८२०६ जीवों का संचय
          १०-५पल्य/असं.गुणेमध्य लोक में स्वयम्भूरमण पर्वत के परभाग में अवस्थान
          ११-२आ./असं.गुणेएक समय में प्राप्त संयता-संयत से एक समय गत
          सासादन राशि असं.गुणी है।
          १२-३सं.गुणे१. सासादन से सं. गुणा संचय काल
          २. सासादन के उपरान्त उपशम सम्यक्त्व ही प्राप्त होता है पर इसके उपरान्त उपशम व वेदक सम्यक्त्व
          तथा मिथ्यात्व तीनों प्राप्त होते हैं।
          ३. उपशम से वेदक सम्यग्दृष्टि सं. गुणे हैं।
          १३-४आ./असं.गुणेसम्यक. मिथ्यात्व का संचय काल अन्तर्मुहूर्त है व इसका २ सागर है।
          १४-१सिद्धों से अनन्त गुण वाला अनन्त से गुणित-
        3. सम्यक्त्व में संचय की अपेक्षा

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १५असंयतउप.स्तोक-
          १६-क्षा.आ./असं. गुणेअधिक संचय काल सुलभता
          १७-वे.आ./असं. गुणेअधिक संचय काल सुलभता
          १८संयतासंयतउप.स्तोकतिर्यंचों में अभाव तथा दुर्लभ
          १९-क्षा.पल्य/असं. गु.तिर्यंचो में उत्पत्ति
          २०-वे.आ./असं. गुणेतिर्यंचों में उत्पत्ति तथा सुलभ
          २१६ठा ७वाँ गुणस्थानउप.स्तोकअल्प संचय काल तथा संयम की दुर्लभता
          २२-क्षा.सं. गुणाअधिक संचय काल सुलभता
          २३-वे.सं. गुणाअधिक संचय काल सुलभता
          २५८-१०वाँ गुणस्थानउप.स्तोकअल्प संचय काल तथा श्रेणीकी दुर्लभता
          २६-क्षा.सं. गुणाअधिक संचय काल
          -चारित्रउप.स्तोकअल्प संचय काल
          --क्षा.सं. गुणाअधिक संचय काल
      6. गति मार्गणा
        1. पाँच गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.२-६)(मू.आ.१२०७-१२०८)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          २मनुष्य-स्तोक-
          ३नारकी-असं.गुणेगुणकार = सूच्यंगु./असं
          ४देव-असं.गुणे-
          ५सिद्ध-अनन्तगुणेगुणकार = भव्य/अनन्त
          ६तिर्यञ्च-अनन्तगुणे-
        2. ८ गति की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.८-१५)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ८मनुष्यणी-स्तोक-
          ९मनुष्य-असं.गुणेगुणकार = ज.श्रे./असं.
          १०नारकी-असं.गुणेगुणकार = ज.श्रे./असं.
          ११देव-सं.गुणे-
          १२देवी-३२ गुणी-
          १३सिद्ध-अनन्तगुणे-
          १५तिर्यञ्च-अनन्तगुणे-
        3. नरक गति
          1. नरक गति की सामान्य प्ररूपणा

            (मू.आ.१२०९)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            -सप्तम पृ.-स्तोकअसंख्यात बहुभाग क्रम से पहिली से सप्त पृथिवी तक हानि समझना (ध.३/पृ.२०७ )
            -६ठीं पृ.-असं.गुणे-
            -५वीं पृ.-असं.गुणे-
            -४थी पृ.-असं.गुणे-
            -३री पृ.-असं.गुणे-
            -२री पृ.-असं.गुणे-
            -१ली पृ.-असं.गुणे-
          2. नरक गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा

            (ष.खं.५/१,८/सू.२७-४०)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            २७नारकी सामान्य२स्तोक-
            २८-३सं.गुणेअधिक उपक्रमण काल
            २९-४असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ३०-१असं.गुणेगुणकार = अंगुल/असं.\ज.प्र.
            ३१सम्यक्त्वउप.स्तोक-
            ३२-क्षाअसं.गुणेगुणकार = पल्य/असं. अधिक संचय काल
            ३३-वे.असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ३४प्रथम पृ.१-४-नारकी सामान्यवत्
            ३५२-७ पृ.२स्तोकपृथक् पृथक्
            ३६-३सं.गुणे-
            ३७-४असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ३८-१असं.गुणे क्रमेण २ ज.श्रे=१\२४गुणकार = अंगु./असं.\ज.प्र.३,४,५,६,७, १\२०,१\१६,१\१२,१\९,१\४
            ३९सम्यक्त्वउप.स्तोक-
            ४०-वे.असं.गुणेगुणकार = पल्य/असं.Xआ./असं.
            -क्षा-क्षायिक का अभाव
        4. तिर्यंच गति
          1. तिर्यंच गति की सामान्य प्ररूपणा

            (ष.खं.५/१०८/सू.४१-५०)

            नोट - दे. इन्द्रिय व काय मार्गणा

          2. तिर्यंच गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा

            (ष.खं.५/१,८/सू.४१-५०)

            तिर्यंच सा.,पंचे.ति.सा.,पंचे.प.,योनिमति

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            ४१सामान्य१स्तोकदुर्लभता
            ४२-२असं.गुणेगुणकार = आ./अंस
            ४३-३सं.गुणे-
            ४४-४असं.गुणेगुणकार = आ./अंस
            ४५-१अनन्तगुणे-
            ४६असंयतो मेंउप.स्तोक-
            ४७सम्यक्त्वक्षाअसं.गुणेगुणकार = आ./अंस
            ४८-वे.असं.गुणेभोगभूमि में संचय
            ४९संयतासंयतो मेंउप.स्तोक-
            ५०सम्यक्त्ववे.असं.गुणेगुणकार = आ./अंस
            -क्षा-अभाव
        5. मनुष्य गति
          1. मनुष्य गति की सामान्य प्ररूपणा

            (ति.प.४/२९३१-३३) (मू.आ.१२१२-१२१५) (ध.३/१,२,१४/९९/२)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            -अन्तर्द्वीपज प.-स्तोक-
            -उत्तम भोगभूमि प.-सं.गुणेदेवकुरू व उत्तरकुरू
            -मध्य भोगभूमि प.-सं.गुणेहरि व रम्यक
            -जघन्य भोगभूमि प.-सं.गुणेहैमवत व हैरण्यवत
            -अनवस्थित कर्मभू. प.-सं.गुणेभरत व ऐरावत
            -अवस्थित कर्मभू. प.-सं.गुणेविदेह क्षेत्र
            -लब्ध्यपर्याप्त-असं.गुणे-
            -सर्व मनुष्य सामान्य-विशेषाधिकपर्याप्त+अपर्याप्त
          2. मनुष्य गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा

            (ष.खं.५/१,८/सू.५३-८०)

            मनुष्य सामान्य, मनुष्य प., मनुष्यणी

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            ५३उपशमक८-१०स्तोकप्रवेश व संचय दोनों
            ५४-११ऊपर तुल्यतीनों परस्परतुल्य (५४ जीव)
            ५५क्षपक८-१०दुगुनेतीनों परस्परतुल्य (१०८ जीव)
            ५६१२ऊपर तुल्यतीनों परस्परतुल्य
            ५७१४ऊपर तुल्यतीनों परस्परतुल्य
            ५७१३ऊपर तुल्यप्रवेशापेक्षाया
            ५८सं.गुणेसंचयापेक्षया
            ५९अक्षपक व अनुपश.७सं.गुणेमूलोघवत्
            ६०६दुगुनेमूलोघवत्
            ६१५सं.गुणेमूलोघवत्
            ६२२सं.गुणेमूलोघवत्
            ६३३सं.गुणेमूलोघवत्
            ६४४सं.गुणेमूलोघवत्
            ६५१सं.गुणेमनुष्य प.व मनुष्यणी में
            ६५-असं.गुणेमनुष्य सा.व.अप.
            ६६असंयतो मेंउपस्तोकमूलोघवत्
            ६७क्षासं.गुणेमूलोघवत्
            ६८वे.सं.गुणेमूलोघवत्
            ६९संयतासंयतों में सम्यक्त्वक्षास्तोकक्षायिक सम्यक्त्वी प्रायः संयमासंयम नहीं धरते या असंयमी रहते हैं या संयम ही धरते हैं।
            ७०उप.सं.गुणेबहु उपलब्धि
            ७१वे.सं.गुणेअधिक आय
            ७२गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्वउप.स्तोकमूलोघवत्
            ७३क्षा.सं.गुणेमूलोघवत्
            ७४वे.सं.गुणेमूलोघवत्
            ७८उपशमकों मे सम्यक्त्वउप.स्तोकमूलोघवत्
            ७९चारित्रक्षा.सं.गुणे-
            ८०उप.स्तोक-
            क्षप.सं.गुणे-
          3. केवल मनुष्यणी की विशेषता

            (ष.खं.५/१,८/सू.७५-७८)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            ७५गुणस्थान ४-७ में सम्यक्त्वक्षा.स्तोकअप्रशस्त वेद में क्षायिक सम्यकत्व दुर्लभ है।
            ७६क्षपकउप.सं.गुणे-
            ७७-वे.सं.गुणे-
            ७८उपशमकों मे सम्यक्त्वक्षा.स्तोकउपरोक्तवत्
            --उप.सं.गुणे-
        6. देव गति
          1. देव गति की सामान्य प्ररूपणा

            (मू.आ.१२१६)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            -कल्पवासी देव-देवी-स्तोक-
            -भवनवासी देव-देवी-असं.गुणे-
            -व्यन्तर देव-देवी-असं.गुणे-
            -ज्योंतिषी देव-देवी-असं.गुणे-
          2. देव गति की ओघ व आदेश प्ररूपणा

            (ष.खं.५/१,८/सू.८१-१०२)

            सूत्र

            मार्गणा

            गुणस्थान

            अल्पबहुत्व

            कारण व विशेष

            ८१देव सामान्य२स्तोक-
            ८२-3सं.गुणेअधिक उपक्रमण काल
            ८३-४असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ८४-१असं.गुणे.,Xआ.\असं./ज.प्र.
            ८५सम्यक्त्वउप.स्तोकअल्पसंचय काल
            ८६-क्षा.असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ८७-वे.असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ८८भवनत्रिक देव-देवी व सौधर्म देवी सा.२स्तोकसप्तम नरकवत्
            ८८-३सं.गुणेसप्तम नरकवत्
            ८८-४असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ८८-१असं.गुणेगुणकार = आ.\असं/ज.प्र.
            -उपर्युक्त में सम्यक्त्वउप.स्तोकसप्तमपृथिवीवत्
            ८८-वे.असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ८८-क्षा.-अभाव
            ८९सौधर्म से सहस्रार१-४-देवसामान्यवत्
            ९०आनत से उ.ग्रैवेयक२स्तोकदेवसामान्यवत्
            ९१सामान्य३सं.गुणेदेवसामान्यवत्
            ९२-१असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ९३-४सं.गुणेअधिक उपपाद
            ९४उपरोक्त में सम्यक्त्वउप.स्तोक-
            ९५-क्षा.असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
            ----संयचकाल-सं.सागर
            ९६-वे.सं.गुणे-
            ९७-उप.स्तोकअन्य गुणस्थानों का अभाव
            ९८अनुदिश से अपराजित में सम्यक्त्वक्षा.असं.गुणेगुणकार=पल्य./अ.सं.
            ९९-वे.सं.गुणेअधिक उपपाद
            १००-उप.स्तोकअल्प संचय काल
            १०१सर्वार्थसिद्धि में सम्यक्त्वक्षा.सं.गुणेअधिक संचय काल
            १०२-वे.सं.गुणेअधिक उपपाद
      7. इन्द्रिय मार्गणा
        1. इन्द्रियों की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.१६-२१)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १६पंचेन्द्रिय-स्तोक-
          १७चतुरिन्द्रिय-विशेषाधिक(पंचे.+पंचे./आ./असं)X(ज.प्र./असं.) अधिक
          १८त्रीन्द्रिय-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/आ.\असं
          १९द्वीन्द्रिय-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/आ.\असं
          २०अनिन्द्रिय (सिद्ध)-अनन्तगुणे-
          २१एकेन्द्रिय-अनन्तगुणे-
        2. इन्द्रियों में पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ति.प.४/३१४) (ष.खं.७/२,११/सू.२२-३७)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          २२चतुरिंद्रिय प-स्तोकज.प्र./ (प्रतरांगुल / असं.)
          २३पंचेन्द्रिय प-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          २४द्वीन्द्रिय प-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          २५त्रीन्द्रिय प-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          २६पंचेन्द्रिय अप-असं गुणेगुणकार = आ/असं
          २७चतुरिंद्रिय अप-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          २८त्रीन्द्रिय अप-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          २९द्वीन्द्रिय अप-विशेषाउपरोक्त + वह / (आ. / असं.)
          ३०अनिन्द्रिय (सिद्ध)-अनन्तगुणे-
          ३१एकेंद्रिय बा प-अनन्तगुणे-
          ३२एकेंद्रिय बा अप-असं.गुणे-
          ३३एकेंद्रिय बा सा-विशेषा.पर्याप्त + अपर्याप्त
          ३४एकेंद्रिय सू प-असं.गुणे-
          ३५एकेंद्रिय सू अप-सं.गुणे-
          ३६एकेंद्रिय सू सा-विशेषापर्याप्त + अपर्याप्त
          ३७एकेंद्रिय सा-विशेषाबा.सा.+ सू.सा.
        3. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          (ष.खं.५/१,८/सू.१०३)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          -एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक-उपरोक्त सामान्य प्ररूपणावत्एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही सम्भव है।
          -पंचे.सा. व पंचे.प.२-१४मूलोघवत्-
          -पंचे.प.१असं.सम्य. से असं.गुणे-
      8. काय मार्गणा
        1. त्रस-स्थावर की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११ सू.३८-४४) (ष.खं.१४/५,६/सू.५६८-५७४/४६५) (स.म.२९/३३१/७)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ३८त्रस सा.-स्तोकज.प्र/असं.
          ३९तेज सा.-असं. गुणेअसं.लोक गुणकार
          ४०पृथिवी सा.-विशेषा.उपरोक्त+वह\लोक/असं
          ४१अप.सा.-विशेषा.उपरोक्त+वह\लोक/असं
          ४२वायु सा.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\लोक/असं
          ४३अकायिक (सिद्ध)-अनन्तगुणे
          ४४वनस्पति सा.-अनन्तगुणे
        2. पर्याप्तापर्याप्त सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.४५-५९)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ४५त्रस प.स्तोकज.प्र.\प्रतरांगल/असं.
          ४६त्रस.अप.असं.गुणे -
          ४७तेज.अप.असं.गुणे
          ४८पृथिवी अपअसं.गुणे
          ४९अप्.अप.विशेषा.उपरोक्त+वह\असं.लोक
          ५०वायु अप.विशेषा.उपरोक्त+वह\असं.लोक
          ५१तेज.पसं.गुणे
          ५२पृथिवी प.विशेषा.उपरोक्त+वह\असं.लोक
          ५३अप् प.विशेषा.उपरोक्त+वह\असं.लोक
          ५४वायु पविशेषा.उपरोक्त+वह\असं.लोक
          ५५अकायिक (सिद्ध)अनन्त गुणे
          ५६वनस्पति अप.अनन्त गुणे
          ५७वनस्पति प.सं.गुणे
          ५८वनस्पति सा विशेषा.पर्याप्त+अपर्याप्त
          ५९निगोद सा.विशेषा.
        3. बादर सूक्ष्म सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणाएँ

          (ष.खं.७/२,११/सू.६०-७५)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ६०त्रस सा.-स्तोकज.प्र./असं.
          ६१तेज बा.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६२वन.प्रत्येक बा.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६३बा.निगोद सा.या प्रतिष्ठित प्रत्येक में उपलब्ध निगोद-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६४पृथिवी बा.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६५अप् बा.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६६वायु बा.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६७तेज सू.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ६८पृथिवी सू.सा.-विशेषा.उपोक्त+वह/असं.लोक
          ६९अप.सू.सा.-विशेषा.उपरोक्त+वह/असं.लोक
          ७०वायु सू.सा.-विशेषा.उपरोक्त+वह/असं.लोक
          ७१अकायिक (सिद्ध)-अनन्त गुणे-
          ७२वन.वा.सा.-अनन्त गुणे-
          ७३वन.वा.सू.सा.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ७४वन.सा.-विशेषा.बा.\सु.
          ७५निगोद-विशेषा.-
        4. बा.सू.पर्याप्तापर्याप्त की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.७६-१०६) (ति.प.४/३१४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          ७६त्रस.प.-स्तोकअसं.प्रतरावली
          ७७त्रस.प.अप.-असं.गुणेगुणकार = ज.प्र/असं.
          ७८त्रस.प.अप.-असं.गुणेगुणकार = ज.प्र/असं.

          त्रस विशेष

          (ति.प.४/३१४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          -पंचेन्द्रिय संज्ञी अप.-तेजकाय वा.प.से असं.गुणाविशेषके लिए देखो
          इन्द्रियमार्गणा नं.(२)
          -पंचेन्द्रिय संज्ञी प.-सं.गुणे
          -चतुरिन्द्रिय प.-सं.गुणे
          -पंचे.असंज्ञी प.-विशेषाधिक
          -द्वीन्द्रिय प.-विशेषाधिक
          -त्रीन्द्रिय प.-विशेषाधिक
          -पंचे.असंज्ञी अप.-अअं.गुणे
          -चतु.अप.-विशेषाधिक
          -त्री.अप.-विशेषाधिक
          -द्वी.अप.-विशेषाधिक
          ७९वन. प्रत्येक प.-असं.गुणेगुणकार = पल्य/असं.
          ८०वन.प्रति.प्रत्ये.प.-असं.गुणेगुणकार = पल्य/असं.
          ८१पृथिवी बा.प.-असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
          ८२अप्.बा.प-असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
          ८३वायु.बा.प-असं.गुणेगुणकार = प्रतरांगुल/असं.
          ८४तेज बा.अप-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ८५वन.अप्रति.प्रत्ये अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ८६वन. प्रति.प्रत्ये.अप.-असं.गुणेति.प.४/३१४ में तेजकाय बा.अप.को वन. अप्रति. प्रत्येक अप.से असं.गुण बताया है।
          ८७पृथिवी बा.अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ८८अप् बा.अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ८९वायु बा.अप-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ९०तेज सू. अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          ९१पृथिवी सू.अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९२अपकाय सू.अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९३वायु सू.अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९४तेज सू.प.-सं.गुणे-
          ९५पृथिवी सू.प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९६अप् काय सू.प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९७वायु सू.प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह/असं.
          ९८अकायिक (सिद्ध)-अनन्त गुणे-
          ९९वन. साधारण बा.प.-अनन्त गुणे-
          १००वन.साधारण बा. अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          १०१वन.साधारण बा.सा.-विशेषाधिकपर्याप्त+अपर्याप्त
          १०२वन.साधारण सू.अप.-असं.गुणेगुणकार = असं.लोक
          १०३वन.साधारण सू.प.-सं.गुणे-
          १०४वन. साधा .सू .सा.-विशेषाधिकअपर्याप्त + पर्याप्त
          १०५वन.साधारण.सा.-विशेषाधिकबादर+सूक्ष्म
          १०६निगोद-विशेषाधिकबादर प्रत्येक + बा.नि.प्रति.
        5. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          (ष.खं.५/१,८/सूत्र १०४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          -त्रस काय सा.व.प.२-१४.
          २.(मध्य)
          मूलोघवत् असंय. सम्य से असं.गुणे-
      9. गति, इन्द्रिय व काय की संयोगी पर-स्थान प्ररूपणा

        (ष.ख.७/२,११/सूत्र.१-७९)

        सूत्र

        मार्गणा

        गुणस्थान

        अल्पबहुत्व

        कारण व विशेष

        २मनुष्य गर्भज प.-स्तोकमनुष्य सा./४
        ३मनुष्यणी गर्भज.प.-तिगुनी-
        ४सर्वार्थसिद्धि देव-४ या ७ गुणे-
        ५तेज काय बा.प.-असं. गुणेगुणकार = असंप्रतरावली
        ६विजयादि चार अनुत्तर विमान-असं.गुणेगुणकार = पल्य/असं.
        ७नव अनुदिश-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        ८९वाँ उपरिम ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        ९८वाँ उपरिम ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १०७वाँ उपरिम ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        ११६ठा. उपरिम ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १२५वाँ उपरिम ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १३४था.मध्य ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १४३रा.मध्य ग्रैवे.-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १५२रा अधो ग्रैवेयक-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १६१ला अधो ग्रैवेयक-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १७आरण-अच्युत-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १८आनत-प्राणत-सं.गुणेगुणकार = सं.समय
        १९७वीं पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)१/२
        २०६ठी पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)३/२
        २१शतार-सहस्रार-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)४/२
        २२शुक्र-महाशुक्र-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)५/२
        २३५वीं पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)६/२
        २४लांतव-कापिष्ठ-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)७/२
        २५४थी पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)८/२
        २६ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)९/२
        २७३री पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)१०/२
        २८माहेन्द्र स्वर्ग-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)११/२
        २९सानत्कृमार स्वर्ग-असं.गुणेगुणकार = असं.समय
        ३०२री पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)१२/२
        ३१मनुष्य अप.-असं.गुणेगुणकार = (ज.श्रे.)१२/२/असं
        ३२ईशान देव-असं.गुणेगुणकार = सूच्यंगुल/असं.
        ३३ईशान देवियाँ-३२ गुणी-
        ३४सौधर्म देव-सं. गुणे-
        ३५सौधर्म देवियाँ-३२ गुणी-
        ३६१ली पृथिवी नरक-असं.गुणेगुणकार = (घनांगुल)३/२
        ३७भवनवासी देव-असं. गुणेगुणकार = (घनांगुल)३/२/असं.
        ३८भवनवासी देवियाँ-३२ गुणी-
        ३९चें.तिर्यं.योनिमति-असं.गुणेगुणकार = (असं.ज.श्रे)१/२/सं.
        ४०व्यंतर देव-सं.गुणे-
        ४१व्यंतर देवियाँ-३२ गुणी-
        ४२ज्योतिषी देव-सं.गुणे-
        ४३ज्योतिषी देवियाँ-३२ गुणी-
        ४४चतिरिन्द्रिय प.-सं.गुणे-
        ४५पंचेन्द्रिय प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ४६द्वीन्द्रिय प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ४७त्रीन्द्रिय प.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ४८पंचेन्द्रिय अप.-असं.गुणेगुणकार = आ./असं.
        ४९चतुरिन्द्रिय अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ५०त्रीन्द्रिय अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ५१द्वीन्द्रिय अप.-विशेषाधिकउपरोक्त+वह\आ./असं.
        ५२वन. अप्रति. प्रत्येक बा. प.-असं. गुणेगुणकार = पल्य/असं.
        ५३वन. प्रति. प्रत्येक बा. प. या निगोद-असं. गुणेगुणकार = आ./असं.
        ५४पृथिवी बा. प.-असं. गुणेगुणकार = आ./असं.
        ५५अप. काय बा. प.-असं. गुणेगुणकार = आ./असं.
        ५६वायु काय बा. प.-असं. गुणेगुणकार = प्रतरांगुल/असं.
        ५७तेज काय बा. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ५८वन. अप्रति. प्रत्येक वा. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ५९वन. प्रति. प्रत्येक बा. अप. या निगोद-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ६०पृथिवी काय बा. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ६१अप् काय बा. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ६२वायु काय बा. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ६३तेज काय सू. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ६४पृथिवी काय बा. अप.-विशेषाधिकउपरोक्त + वह/असं. लोक
        ६५अप् काय बा. अप.-विशेषाधिकउपरोक्त + वह/असं. लोक
        ६६वायु काय बा. अप.-विशेषाधिकउपरोक्त + वह/असं. लोक
        ६७तेज काय बा. प.-सं. गुणा-
        ६८पृथिवी काय बा. प.-विशेषाधिकउपरोक्त + असं. लोक
        ६९अप काय बा. प.-विशेषाधिकउपरोक्त + असं. लोक
        ७०वायु काय बा. अप.-विशेषाधिकउपरोक्त + असं. लोक
        ७१अकायिक (सिद्ध) - अनन्तगुणे-अनन्तगुणे-
        ७२वन. साधारण बा. पा.-अनन्तगुणे-
        ७३वन. साधारण अप. --असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ७४वन. साधारण सा. --विशेषाधिकपर्याप्त + अपर्याप्त
        ७५वन. साधारण सू. अप.-असं. गुणेगुणकार = असं. लोक
        ७६वन. साधारण सू. प.-सं. गुणे-
        ७७वन. साधारण सू. सा.-विशेषाधिकपर्याप्त + अपर्याप्त
        ७८वन. साधारण सा. --विशेषाधिकसूक्ष्म सा. + बादर सा.
        ७९निगोद-विशेषाधिकविशेष = वन. प्रति. - प्रत्येक बा. सा.
      10. योग मार्गणा
        1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं.७/२,११/सू.१०७-११०)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १०७मनोयोगी सा.-स्तोकदेव सा./असं.
          १०८वचनयोगी सा.-सं. गुणे-
          १०९अयोगी (सिद्ध)-अनन्त गुणे-
          ११०विजयादि चार अनुत्तर विमान-अनन्त गुणे-
        2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.खं./७/२,११/सू.१११-१२९)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १११आहारक मिश्र योग - स्तोक
          ११२आहारक काय योग - दुगुने
          ११३वैक्रियक मिश्र योग - असं. गुणे
          ११४सत्य मनो योग - सं. गुणे
          ११५मृषा मनो योग - सं. गुणे
          ११६उभय मनो योग - सं. गुणे
          ११७अनुभय मनो योग - सं. गुणे
          ११८मनोयोगी सा. - विशेषाधिकचारों मनोयोगी
          ११९सत्य वचन योग - सं. गुणे
          १२०मृषा वचन योग - सं. गुणे
          १२१उभय वचन योग - सं. गुणे
          १२२वैक्रियक काय योग - सं. गुणे
          १२३अनुभय वचन योग - सं. गुणे
          १२४वचन योगी सा. - विशेषाधिकचारों वचन योगी
          १२५अयोगी (सिद्ध) - अनन्त गुणे
          १२६कार्माण काय योग - अनन्त गुणे
          १२७औदारिक मिश्र योग - असं.गुणे गुणकार=अन्तर्मुहूर्त
          १२८औदारिक काय योग - सं. गुणे
          १२९काय योगी सा. - विशेषाधिकचारों काय योगी
        3. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          १. पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचन योगी, काय योगी सा. औदारिक काययोगी - इस प्रकार १२ योग वाले

          (ष.ख.५/१,८/सू.१०५-१२१)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १०५उपशमक ८-१०स्तोकपरस्पर तुल्य संचय
          १०६११ऊपर तुल्यप्रवेश दोनों अपेक्षा
          १०७क्षपक ८-१०दुगुने
          १०८१२ऊपर तुल्य
          १०९संयोग केवली१३ऊपर तुल्यप्रवेश अपेक्षा
          ११०१३सं.गुणेसंचय अपेक्षा
          १११अनुपशमक७सं.गुणे
          ११२अक्षपक सामान्य ६दुगुने
          ११३५असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
          ११४२असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
          ११५३सं.गुणेमनुष्य गतिवत्
          ११६४असं.गुणे गुणकार=आ./असं.
          ११७१असं.गुणे मन-वचन योग की अपेक्षा
          अनन्त गुणे काय व औ. काययोग की अपेक्षा
          ११८ सम्यक्त्व ४-७मूलोघवत्
          ११९८-१०मूलोघवत्
          १२०चारित्रउप. स्तोक
          १२१क्षप.सं.गुणे


          २. औदारिक मिश्र योग

          (ष.ख.५/१,८/सू.१२२-१२७)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १२२सयोग केवली१३स्तोक-
          १२३असंयत सामान्य४ सं.गुणे-
          १२४२ असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
          १२५१अनन्त गुणे-
          १२६सम्यक्त्वक्षा.स्तोकदुर्लभता
          १२७वे.सं.गुणे-


          ३. वैक्रियिक काय योग

          (ष.ख.५/१,८/सू.१२८)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १२८सर्व भंग १-४ देवगति सा.वत्-


          ४. वैक्रियक मिश्र योग

          (ष.ख.५/१,८/सू.१२९-१३४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १२९सामान्य२स्तोक-
          १३०४असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १३११असं.गुणेगुणकार=अंगु/असं.\जप्र
          १३२सम्यक्त्वउप. स्तोकउपशम श्रेणी में मृत्यु बहुत कम होती है
          १३३क्षा.सं.गुणे-
          १३४वे.असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.


          ५. आहारक मिश्र काय योग

          (ष.ख.५/१,८/सू.१३५-१३६)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १३५सम्यक्त्वक्षा.स्तोकउपशम सम्यक्त्व में आहारक योग नहीं होता
          १३६-वे.सं.गुणे-


          ६. कार्मण काय योग

          (ष.ख.५/१,८/सू.१३७-१४३)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १३७-१३स्तोक
          १३८-२असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
          १३९-४असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १४०-१अनन्त गुणे
          १४१सम्यक्त्वउप.स्तोक वैक्रियक मिश्रवत् असं. क्षायिक सम्यग्दृष्टियों का मरण नहीं होता। क्योंकि यदि देवों से मरण करे तो मनुष्यों मे असं.क्षा सम्य. का प्रसंग आ जायेगा। परन्तु तिर्य. व मनुष्यों में असं. क्षा. सम्य. होते नहीं। नरक से मरकर देवों में जाते नहीं ।
          १४२क्षासं.गुणे
          १४३वे. असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
      11. वेद मार्गणा
        1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.७/२,११/सूत्र १३०-१३३)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १३०पुरुष-स्तोक-
          १३१स्त्री-सं.गुणे-
          १३२अपगत-अनन्त गुणे-
          १३३नपुंसक-अनन्त गुणे-
        2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.७/२,११/सूत्र १३४-१४४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १३४नपुंसंक संज्ञी गर्भज-स्तोक-
          १३५पुरुष संज्ञी गर्भज-सं.गुणे-
          १३६स्त्री संज्ञी गर्भज-सं.गुणे-
          १३७नपुंसक संज्ञी सम्पू.प.-सं.गुणे-
          १३८नपुंसक संज्ञी सम्पू. अप.-असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १३९स्त्री संज्ञी गर्भज भोग-अंस.गुणे-
          १३९पुरुष संज्ञी गर्भज भोग-ऊपर तुल्य-
          १४०नपुंसक असंज्ञी गर्भज-सं.गुणे-
          १४१पुरुष असंज्ञी गर्भज-सं.गुणे-
          १४२स्त्री असंज्ञी गर्भज-सं.गुणे-
          १४३नपुंसक असंज्ञी सम्मू.प.-सं.गुणे-
          १४४नपुंसक असंज्ञी सम्मू अप.-असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
        3. तीनों वेदों की पृथक् पृथक् ओघ व आदेश प्ररूपणा

          १. स्त्री वेद

          (ष.ख.५/१-८/सूत्र १४४-१६१)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १४४उपशमक८-९स्तोकपरस्पर तुल्य केवल १० जीव
          १४४उपशमक८-९स्तोकपरस्पर तुल्य केवल १० जीव
          १४५क्षपक८-९दुगुनेकेवल २० जीव
          १४६अक्षपक व अनुशमक७सं.गुणेमूलोघवत्
          १४७६दुगुने-
          १४८५असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं. तिर्यंच भी सम्मिलित सुलभता
          १४९२असं.गुणे-
          १५०३सं.गुणेअन्य स्थानों से आय
          १५१४असं.गुणेगुणकार=आ./असं. अन्य स्थानों से आय
          १५२१असं.गुणेगुणकार=घनांगुल\असं./ज.प्र.
          १५३गुणस्थान ४-५ में सम्यक्त्वक्षास्तोकअल्प आय
          १५४उप.सं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
          १५५वे.सं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १५६गुणस्थान ६-७ में
          सम्यक्त्व
          क्षा.स्तोक-
          १५७उप.सं.गुणे-
          १५८वे.सं.गुणे-
          १५९उपशमकों में सम्य. क्षा.स्तोक-
          उप.सं.गुणे
          १६०चारित्रउप.स्तोक-
          १६१क्षप.दुगुने-


          २. पुरुष वेद

          (ष.ख.५/१,८/सू.१६२-१७४)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १६२उपशमक८-९स्तोकपरस्पर तुल्य कुल ५४ जीव
          १६३क्षपक८-९दुगुणेपरस्पर तुल्य कुल १०८ जीव
          १६४अक्षपक व अनुशमक
          -
          -
          -
          -
          -
          -
          ७सं.गुणेमूल ओघवत्
          १६५६दुगुनेमूल ओघवत्
          १६६५असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं. (तीर्यंच भी)
          १६७२असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १६८३सं.गुणे-
          १६९४असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १७०१असं.गुणेगुणकार=अंगु/असं.\ज.प्र.
          १७१गुणस्थान ४-७ में
          सम्यक्त्व
          उप.स्तोकओघवत्
          क्षा.असं.गुणेगुणकार=पल्य/असं.
          वे.असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १७२उपशमकों में सम्य.क्षा.स्तोक-
          उप.सं.गुणे
          १७३चारित्रउप.स्तोक-
          १७४क्षप.सं.गुणे-

          ३. नपुंसक वेद

          (ष.ख.५/१,८/सू.१७५-१९०)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          १७५उपशमक८-९स्तोकपरस्पर तुल्य ५ जीव
          १७६क्षपक८-९दुगुणेपरस्पर तुल्य कुल १० जीव
          १७७अक्षपक व अनुशमक७सं.गुणेमूलोघवत्
          १७८६दुगुने-
          १७९५असं.गुणेगणकार=पल्य/असं. (तिर्यंच भी सम्मिलित)
          १८०२असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १८१३सं.गुणेगुणकार=सं.समय
          १८२४असं.गुणेगुणकार=आ./असं.
          १८३१अनन्त गुणेसर्व जीव राशि का अनन्त प्रथम वर्गमूल गुणकार है।
          १८४असंयतों में सम्यउप.स्तोक-
          क्षा.आ./असं.गुणेप्रथम पृथ्वी नरक में भी सुलभ
          वे.आ./असं.गुणे
          संयतासंयतों में सम्यक्त्व
          -
          क्षा.स्तोकपर्याप्त मनुष्य ही होते हैं तिर्यंच नहीं
          उप.प./असं.गुणे-
          वे.आ./असं.गुणेपृथक् पृथक् परस्पर १ २
          १८५गुणस्थान ६-७ में सम्यक्त्वक्षा.स्तोकअप्रशस्त वेद में क्षायिक की दुर्लभता
          १८६उप.सं.गुणे-
          १८७वे.सं.गुणे-
          १८८उपशमकों में सम्य.क्षा.स्तोक-
          १८८-उप.सं.गुणे-
          १८९चारित्रउप.स्तोक-
          १९०-क्षासं.गुणे-

          ४. अपगत वेद

          (ष.ख.5/1,8/सू.191-196)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          191

          उपशमक

          9-10

          स्तोक

          पृथक् पृथक् तुल्य (कुल 54 जीव)

          192

          -

          11

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है

          193

          क्षपक

          9-10

          दुगुने

          संचय कुल 108 जीव

          194

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          संचय कुल 108 जीव

          195

          अयोगी

          14

          ऊपर तुल्य

          संचय कुल 108 जीव

          195

          सयोगी

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा

          196

          -

          -

          सं.गुणे

          संचय की अपेक्षा

      12. कषाय मार्गणा
        1. कषाय चतुष्क की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,21/सू.145-149)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          145

          अकषायी

          -

          स्तोक

          -

          146

          मान कषायी

          -

          अनंत गुणे

          -

          147

          क्रोध कषायी

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/आ.\असं.

          148

          माया कषायी

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/आ.\असं.

          149

          लोभ कषायी

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/आ.\असं.

        2. कषाय चतुष्क की अपेक्षा ओघ व आदेश प्ररूपणा

          १. चारों कषाय

          (ष.ख.5/1,8/सू.197-211)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          197

          उपशमक

          8-9

          स्तोक

          परस्पर तुल्य प्रवेश की अपेक्षा संचय भी प्रवेशाधीन है

          198

          क्षपक

          8-9

          सं.गुणे

          -

          199

          उपशमक

          10

          विशेषाधिक

          -

          200

          क्षपक

          10

          सं.गुणे

          -

          201

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          गु.=क्रोध,मान,माया,लोभ 2 3 4 7

          202

          -

          6

          दुगुने

          4 6 8 14

          203

          -

          5

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          204

          -

          2

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          205

          -

          3

          सं.गुणे

          गुणकार=सं.समय

          206

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          207

          -

          1

          अनंत गुणे

          -

          208

          उपरोक्त में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          -

          -

          क्षा.

          असं./सं.गुणे

          मूलोघवत्

          -

          -

          वे.

          असं./सं.गुणे

          मूलोघवत्

          209

          उपशमकों में

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          -

          सम्यक्त्व

          क्षा.

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          210

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          -

          211

          -

          क्षप.

          सं.गुणे

          -

          2. अकषायी

          (ष.ख.5/1,8/सू. 212-215)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          212

          अकषायी

          11

          स्तोक

          कुल 54 जीव (प्रदेश व संचय)

          213

          अकषायी

          12

          दुगुने

          कुल 108 जीव

          214

          अकषायी

          14

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा

          -

          अकषायी

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा

          215

          अकषायी

          -

          सं.गुणे

          संचय की अपेक्षा

      13. ज्ञान मार्गणा
        1. सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,11/सू. 150-155)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          150

          मनःपर्यय ज्ञानी

          -

          स्तोक

          संख्यात मात्र

          151

          अवधि ज्ञानी

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          152

          मतिश्रुत ज्ञानी

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/असं. परस्पर तुल्य

          153

          विभंग ज्ञानी

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=ज.प्र./असं.

          154

          केवलज्ञानी

          -

          अनंतुगणे

          -

          155

          मतिश्रतु अज्ञानी

          -

          अनंतगुणे

          -

        2. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          1. अज्ञान

          (ष.ख.5/1,8/सू.216-217)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          216

          मति-श्रुत अज्ञान

          2

          स्तोक

          गुणकार=पल्य/असं.

          217

          -

          1

          अनंतगुणे

          गुणकार=सर्व जीव/असं.

          216

          विभंग ज्ञान

          2

          सर्वतः स्तोक

          पल्य/असं.

          217

          -

          1

          असं.गुणे

          गुणकार=अंगु./असं.\ज.प्र.

          2. मति, श्रुत, अवधि ज्ञान

          (ष.ख.5/1,8/सू.218-229)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          218

          उपशमक

          8-10

          स्तोक

          प्रवेश अपेक्षा/तुल्य

          219

          उपशमक

          11

          ऊपर तुल्य

          संचय भी प्रवेशाधीन

          220

          क्षपक

          8-10

          दुगुणे

          संचय भी प्रवेशाधीन

          221

          क्षपक

          12

          ऊपर तुल्य

          संचय भी प्रवेशाधीन

          222

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          223

          अक्षपक व अनुपशमक

          6

          दुगुने

          -

          224

          अक्षपक व अनुपशमक

          5

          प./असं.गुणे

          तिर्यंच और देव भी

          225

          अक्षपक व अनुपशमक

          4

          आ./असं./गु.

          -

          226

          उपरोक्त में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          226

          -

          क्षा.

          असं.व सं.गु

          मूलोघवत्

          226

          -

          वे.

          असं.व सं.गु

          मूलोघवत्

          227

          उपशमकों में सम्य.

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          227

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          228

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          229

          -

          क्षप.

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          3. मनःपर्यय ज्ञान

          (ष.ख.5/1,8/सू.230-241)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          230

          उपशमक

          8-10

          स्तोक

          तुल्य प्रवेश व संचय

          231

          -

          11

          ऊपर तुल्य

          तुल्य प्रवेश व संचय

          232

          क्षपक

          8-10

          दुगुणे

          तुल्य प्रवेश व संचय

          233

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          तुल्य प्रवेश व संचय

          234

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          -

          235

          -

          6

          दुगुणे

          -

          236

          उपरोक्त में सम्य.

          उप.

          स्तोक

          -

          237

          -

          क्षा.

          स.गुणे

          क्षायिक सम्यक्त्व के साथ अधिक मनःपर्ययज्ञानी होते हैं।

          238

          -

          वे.

          सं.गुणे

          -

          239

          उपशमकों में सम्य.

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          -

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          मूलोघवत

          240

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          241

          -

          क्षप.

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          4. केवलज्ञान

          (ष.ख.5/1,8/सू.242-243)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          242

          अयोगी

          14

          स्तोक

          प्रवेश व संचय

          242

          सयोगी

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          243

          सयोगी

          13

          सं.गुणे

          संचयापेक्षया

      14. संयम मार्गणा
        1. सामान्य की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,11/सू.156-159)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          156

          संयत सामान्य

          -

          स्तोक

          संख्यात मात्र

          157

          संयतासंयत

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          158

          न संयत न असंयत (सिद्ध)

          -

          अनंतगुणे

          -

          159

          असंयत

          -

          अनंतगुणे

          -

        2. विशेष की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,11/सू.160-167)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          160

          सूक्ष्म सांपराय

          -

          स्तोक

          -

          161

          परिहार विशुद्धि

          -

          सं.गुणे

          -

          162

          यथाख्यात

          -

          सं.गुणे

          -

          163

          सामायिक

          -

          सं.गुणे

          -

          163

          छेदोपस्थापना

          -

          ऊपर तुल्य

          -

          164

          संयत सामान्य

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त सर्व का योग

          165

          संयतासंयत

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          166

          न संयत न असंयत (सिद्ध)

          -

          अनंतगुणे

          -

          167

          असंयत

          -

          अनंत गुणे

          -

        3. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          1. संयम सामान्य

          (ष.ख.5/1,8/सू.244-257)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          244

          उपशमक

          8-10

          स्तोक

          प्रवेश व संचय दोनों कुल 54 जीव

          245

          -

          1

          उपर तुल्य

          -

          246

          क्षपक

          8-10

          दुगुने

          प्रवेश व संचय दोनों कुल 108 जीव

          247

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          -

          248

          अयोगी

          14

          ऊपर तुल्य

          कुल 108 जीव

          248

          सयोगी

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          249

          सयोगी

          13

          सं.गुणे

          संचयापेक्षया

          250

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          -

          251

          -

          6

          दुगुने

          -

          252

          उपरोक्त में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          -

          253

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          -

          254

          -

          वे.

          सं.गुणे

          -

          255

          उपशमकों में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          -

          255

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          -

          256

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          -

          257

          -

          क्षप.

          सं.गुणे

          -

          2. सामायिक, छेदोपस्थापना संयम

          (ष.ख.5/1,8/सू.258-267)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          258

          उपशमक

          8-9

          स्तोक

          परस्पर तुल्य/प्रवेश की अपेक्षा कुल 54 जीव संचय भी प्रवेशाधीन

          259

          क्षपक

          8-9

          दुगुने

          -

          260

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          -

          261

          अक्षपक व अनुपशमक

          6

          दुगुने

          -

          262

          उपरोक्त में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          -

          263

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          -

          264

          -

          वे.

          सं.गुणे

          -

          265

          उपशमकों में सम्य.

          उप.

          स्तोक

          -

          265

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          -

          266

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          -

          267

          -

          क्षप.

          सं.गुणे

          3. परिहार विशुद्धि संयम

          (ष.ख.5/1,8/सू.268-271)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          268

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          स्तोक

          -

          269

          -

          6

          दुगुने

          -

          -

          उपरोक्त में सम्यक्त्व

          उप.

          -

          अभाव

          270

          -

          क्षा.

          स्तोक

          -

          271

          -

          वे.

          सं.गुणे

          -

          4. सूक्ष्म सांपराय संयम

          (ष.ख.5/108/सू.272-273)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          272

          उपशमक

          10

          स्तोक

          -

          273

          क्षपक

          10

          दुगुने

          -

          5. यथाख्यात संयम

          (ष.ख.5/1,8/सू.274)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          274

          11

          स्तोक

          प्रवेश व संचय

          -

          12

          दुगुने

          प्रवेश व संचय

          -

          14

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा

          -

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश की अपेक्षा

          -

          -

          सं.गुणे

          संचय की अपेक्षा

          6. संयतासंयत

          (ष.ख.5/1,8/सू.275-278)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          275

          सामान्य

          5

          -

          अल्पबहुत्व नहीं है

          276

          सम्यक्त्व

          क्षा.

          स्तोक

          तिर्यंचों में अभाव

          277

          -

          उप.

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          278

          -

          वे. असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          7. असंयत

          (ष.ख.5/1,8/सू.279-285)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          279

          सामान्य

          2

          स्तोक

          -

          280

          -

          3

          सं.गुणे

          -

          281

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          282

          -

          1

          अनंतगुणे

          गुणकार=सिद्धXअनंत

          283

          सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          -

          284

          -

          क्षा.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          285

          -

          वे.

          असं.गुणे

          -

      15. दर्शन मार्गणा
        1. सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,11/सू.175-178)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          175

          अवधि

          -

          स्तोक

          पल्य/असं.

          176

          चक्षु

          -

          असं.गुणा

          गुणकार=ज.प्र/असं.

          177

          केवल

          -

          अनंतगुणा

          सिद्धों की अपेक्षा

          178

          अचक्षु

          -

          अनंतगुणा

          -

        2. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          (ष.ख.5/1,8/सू.286-289)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          286

          अचक्षु

          2-12

          मूलोघवत्

          -

          287

          चक्षु

          1

          4थे से असं.गुणे

          गुणकार=ज.प्र./असं.

          286

          -

          2-12

          मूलोघवत्

          -

          288

          अवधि

          4-12

          अवधि ज्ञानवत्

          -

          289

          केवल

          13-14

          केवलज्ञानवत्

          -

      16. लेश्या मार्गणा
        1. सामान्य प्ररूपणा

          (ष.ख.7/2,11/सू. 179-185) (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/555/985/2)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          179

          शुक्ल

          -

          स्तोक

          पल्य/असं.

          180

          पद्म

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=ज.प्र./असं.

          181

          तेज

          -

          सं.गुणे

          -

          182

          अलेश्या

          -

          अनंतगुणे

          -

          183

          कापोत

          -

          अनंतगुणे

          -

          184

          नील

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/आ.\असं.

          185

          कृष्ण

          -

          विशेषाधिक

          उपरोक्त+वह/आ.\असं.

        2. ओघ व आदेश प्ररूपणा

          1. कृष्ण नील कापोत

          (ष.ख.5/1,8/सू.290-299)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          290

          सामान्य

          2

          स्तोक

          -

          291

          -

          3

          सं.गुणे

          गुणकार=स.समय

          292

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          293

          -

          1

          अनंतगुणे

          -

          294

          कृष्णनील में सम्य.

          क्षा.

          स्तोक

          -

          295

          -

          उप.

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          296

          -

          वे.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          297

          कापोत में सम्य. उप.

          स्तोक

          अल्प संचय काल

          298

          -

          क्षा.

          असं.गुणे

          प्रथम नरक की अपेक्षा गुणकार=आ./असं.

          299

          -

          वे.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          Contents

          • 1 2. तेज, छद्म. लेश्या-
          • 2 3. शुक्ल लेश्या-
          • 3 15. भव्य मार्गणा-
            • 3.1 1. सामान्य प्ररूपणा-
            • 3.2
            • 3.3 2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
          • 4 16. सम्यक्त्व मार्गणा-
            • 4.1 1. सामान्य प्ररूपणा-
              • 4.1.1 अन्य प्रकार-
            • 4.2
            • 4.3 2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
          • 5 17. संज्ञी मार्गणा-
            • 5.1 1. सामान्य प्ररूपणा-
            • 5.2 2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
          • 6 18. आहारक मार्गणा-
            • 6.1 1. सामान्य प्ररूपणा-
            • 6.2 2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-
            • 6.3 3. अनाहारक की ओघ व आदेश प्ररूपणा
            • 6.4 1. असंहरण सिद्ध व जन्मसिद्ध की अपेक्षा
            • 6.5 2. क्षेत्र की अपेक्षा- (केवल संहरण सिद्धों में)
            • 6.6 3. काल की अपेक्षा
            • 6.7 4. अंतर की अपेक्षा
              • 6.7.1 निरंतर होनेवालों की अपेक्षा-
              • 6.7.2 सांतर होनेवालों की अपेक्षा-
            • 6.8 5. गति की अपेक्षा
              • 6.8.1
              • 6.8.2 एकांतर गति अपेक्षा-
            • 6.9 6. वेदानुयोग की अपेक्षा
            • 6.10 7. तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा
            • 6.11 8. चारित्र की अपेक्षा
            • 6.12 9. प्रत्येक बुद्ध व बोधित बुद्ध की अपेक्षा
            • 6.13 10. ज्ञान की अपेक्षा
              • 6.13.1 अनंतर ज्ञानापेक्षा-
              • 6.13.2 विशेषापेक्षया-
            • 6.14 11. अवगाहना की अपेक्षा
            • 6.15 12. युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा
              • 6.15.1 मनुष्य पर्याय से-
              • 6.15.2 मनुष्यणी पर्याय से-
          • 7 2. 1-1,2-2 आदि कर के संचय होने वाले जीवों की अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
            • 7.1 अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
            • 7.2 1. गति मार्गणा-
              • 7.2.1 (1) स्वस्थान की अपेक्षा-
              • 7.2.2 (2) परस्थान की अपेक्षा-
              • 7.2.3 (3) स्व परस्थान की अपेक्षा-
            • 7.3 2. इंद्रिय मार्गणा-
              • 7.3.1 स्व व परस्थान की अपेक्षा-
            • 7.4 3. अन्य मार्गणाएँ-
              • 7.4.1 स्व व परस्थानों की अपेक्षा-
          • 8 3. तेईस वर्गणाओं संबंधी प्ररूपणाएँ-
            • 8.1 1. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
            • 8.2 2. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
            • 8.3 3. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा-
            • 8.4 4. एक श्रेणी द्रव्य, नाना श्रेणी द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -
          • 9 4. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओंकी प्ररूपणा-
            • 9.1 1. पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-
            • 9.2 2. पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा-
            • 9.3 3. पंच शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा-
            • 9.4 4. प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा -
            • 9.5 5. शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान अपेक्षा-
              • 9.5.1 स्वस्थान अपेक्षा-
              • 9.5.2 परस्थान अपेक्षा-
            • 9.6 6. पंच शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
            • 9.7
            • 9.8 7. औदारिक शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
            • 9.9 8. इंद्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-
          • 10 5. पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ-
            • 10.1 1. सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा-
            • 10.2 2. औदारिक शरीर विशेष की अवगाहना की अपेक्षा-
              • 10.2.1 लब्ध्य पर्याप्त के स्थान
              • 10.2.2 निवृत्ति पर्याप्तक व निवृत्त्यपर्याप्तक के स्थान
            • 10.3 3. पंचेंद्रियों की अवगाहना की अपेक्षा-
          • 11 6. पाँचों शरीरोंके स्वामियोंकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-
            • 11.1 1. ओघ प्ररूपणा-
            • 11.2 2. आदेश प्ररूपणा-
              • 11.2.1 1. गति मार्गणा-
              • 11.2.2 2. इंद्रिय मार्गणा-
              • 11.2.3 3. काय मार्गणा-
              • 11.2.4 4. योग मार्गणा-
              • 11.2.5 5. वेद मार्गणा-
              • 11.2.6 7. ज्ञान मार्गणा-
              • 11.2.7 8. संयम मार्गणा-
              • 11.2.8 9. दर्शन मार्गणा-
              • 11.2.9 10. लेश्या मार्गणा-
              • 11.2.10 11. भव्यत्व मार्गणा-
              • 11.2.11 13. संज्ञी मार्गणा-
          • 12 7. जीवभावोंके अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा-
            • 12.1 1. संयम विशुद्धि या लब्धि स्थानों की अपेक्षा-
            • 12.2 2. 14 जीव समासोंसे संक्लेश व विशुद्धि स्थानों की अपेक्षा
            • 12.3 3. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्य के अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -
            • 12.4 4. उपशम व क्षपण काल की अपेक्षा-
              • 12.4.1 चारित्र मोह-
              • 12.4.2 दर्शन मोह-
            • 12.5 5. कषाय काल की अपेक्षा-
              • 12.5.1 नरक गति-
              • 12.5.2 देवगति-
            • 12.6 6. नोकपाय व ध काल की अपेक्षा-
            • 12.7 7. मिथ्यात्व काल विशेष की अपेक्षा-
          • 13 8. जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
            • 13.1 1. योग सामान्यके यव मध्य काल की अपेक्षा-
            • 13.2 2. योग स्थानोंके स्वामित्व सामान्य की अपेक्षा-
            • 13.3 3. योग स्थान सामान्य में परस्पर अल्पहुत्व-
            • 13.4 4. 14 जीव समासोंमें जघन्योंत्कृष्ट योग स्थानों की अपेक्षा -
            • 13.5 5. प्रत्येक योगके अविभाग प्रतिच्छेदों की अपेक्षा-
              • 13.5.1 स्वस्थान अल्पबहुत्व-
              • 13.5.2 परस्थान अल्पबहुत्व-
              • 13.5.3 सर्व परस्थान अल्पबहुत्व-
          • 14 9. कर्मोंके सत्त्व व बंध स्थानोंकी अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ
            • 14.1 1. जीवोंके स्थिति बंध स्थानों की अपेक्षा--
            • 14.2 2. स्थिति बंधमें जघन्योत्कृष्ट स्थानों की अपेक्षा-
            • 14.3 3. स्थिति बंधके निषेकों की अपेक्षा-
            • 14.4 4. मोहनीय कर्मके स्थिति सत्त्व स्थानों की अपेक्षा-
            • 14.5 5. बंध समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्व के जघन्य स्थानों की अपेक्षा
            • 14.6 6. हत्समुत्पत्तिक अनुभाग सत्त्वके जघन्य स्थानों की अपेक्षा
            • 14.7 7. अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी 64 स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा
              • 14.7.1 1. ज्ञानावरण-ओघ प्ररूपणा
              • 14.7.2 2. दर्शनावरण-
              • 14.7.3 3. वेदनीय-
              • 14.7.4 4. मोहनीय-
              • 14.7.5 5. आयु-
              • 14.7.6 6. नामकर्म-
              • 14.7.7 7. गोत्रकर्म :-
              • 14.7.8 8. अंतराय कर्म :-
            • 14.8 आदेश प्ररूपणा :-
              • 14.8.1 1. गति मार्गणा :-
              • 14.8.2 2. इंद्रिय मार्गणा :-
              • 14.8.3 3. काय मार्गणा :-
              • 14.8.4 4. योग मार्गणा :-
              • 14.8.5 5. वेद मार्गणा :-
              • 14.8.6 6. कषाय मार्गणा :-
              • 14.8.7 7. ज्ञान मार्गणा :-
              • 14.8.8 8. संयम मार्गणा :-
              • 14.8.9 9. दर्शन मार्गणा :-
              • 14.8.10 10. लेश्या मार्गणा :-
              • 14.8.11 11. सम्यक्त्व मार्गणा :-
              • 14.8.12 12. भव्यत्व मार्गणा :-
              • 14.8.13 13. संज्ञित्व मार्गणा :-
              • 14.8.14 14. आहारक मार्गणा :-
            • 14.9 (8) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभाग की 64 स्थानीय स्वस्थान ओघ व आदेश प्ररूपणा -
              • 14.9.1 1. ज्ञानावरण-
              • 14.9.2 2. दर्शनावरण-
              • 14.9.3
              • 14.9.4
              • 14.9.5 3. वेदनीय-
              • 14.9.6 4. मोहनीय-
              • 14.9.7 5. आयु-
              • 14.9.8 6. नामकर्म-
              • 14.9.9 7. गोत्र कर्म-
              • 14.9.10 8. अंतराय-
            • 14.10 (9) अष्टकर्म प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी 64 स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
            • 14.11 (10) अष्ट कर्म प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागकी 64 स्थानीय परस्थान ओघ प्ररूपणा
            • 14.12 11. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में सर्व व देशघाती अनुभागके विभाग की अपेक्षा -
            • 14.13 12. एक समय प्रबद्ध प्रदेशाग्र में निषेक सामान्य के विभाग की अपेक्षा -
            • 14.14 13. एक समय प्रबद्ध में अष्ट कर्म प्रकृतियों के प्रदेशाग्र विभाग की अपेक्षा -
              • 14.14.1 1. स्वस्थानप्ररूपणा-
              • 14.14.2 मूल प्रकृति विभाग-
              • 14.14.3 उत्तर प्रकृति विभाग स्वस्थान अपेक्षा-
              • 14.14.4 2. परस्थान प्ररूपणा-
              • 14.14.5 (उत्कृष्ट प्रकृति प्रक्रम) (ध.15/36-37)
            • 14.15 (14) जीव समासों मे विभिन्न प्रदेश बंधों की अपेक्षा
            • 14.16 (15) आठ आकर्षों की अपेक्षा आयुबंधके जीवोंकी प्ररूपणा
            • 14.17 (16) आठों अपकर्षोंमें आयु बंधके काल की अपेक्षा
          • 15 10. अष्टकर्म संक्रमण व निर्जरा की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणा-
            • 15.1 1. भिन्न गुणधारी जीवोंमें गुण श्रेणी रूप प्रदेश निर्जरा की 11 स्थानीय सामान्य प्ररूपणा -
            • 15.2 2. भिन्न गुणधारी जीवोंमे गुण श्रेणी प्रदेश निर्जरा के काल की 11 स्थानीय प्ररूपणा -
            • 15.3 3. पाँच प्रकार के संक्रमणों द्वारा हत, कर्म प्रदेशों के परिमाण में अल्पबहुत्व-
          • 16 11. अष्टकर्मबंध उदय सत्त्वादि 10 करणों की अपेक्षा भुजगारादि पदोंमें पल्यबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा -
            • 16.1 1.उदीरणा संबंधी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ .)
            • 16.2 2. उदय संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
            • 16.3 3. उपशमना संबंधी अल्पबहुत्व की ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
            • 16.4 4. संक्रमण संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(ध.15/पृ.)
            • 16.5 5. बंध संबंधी अल्पबहुत्वकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-(म.ब./पु./पृ.)
            • 16.6 6. मोहनीय कर्म सत्व संबंधी अल्पबहुत्वकी स्व व पर स्थानीय ओघ व आदेश प्ररूपणा -
            • 16.7 7. अष्टकर्म बंध वेदनामें स्थिति, अनुभाग, प्रदेश व प्रकृति बंधों की अपेक्षा ओघ व आदेश स्व पर स्थान अल्पबहुत्व प्ररूपणा -
              • 16.7.1 1.स्थिति बंधवेदना-
              • 16.7.2
              • 16.7.3 2. अनुभाग बंध वेदना-
              • 16.7.4 3. प्रदेश बंध वेदना-
              • 16.7.5 4. प्रकृति बंध वेदना-
          2. तेज, छद्म. लेश्या-

          (ष.ख.5/1,8/सू.300-307)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          300

          सामान्य

          7

          स्तोक

          संख्यात प्रमाण मनुष्य

          301

          -

          6

          दुगुणे

          -

          302

          -

          5

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/अंसं.

          303

          -

          2

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          304

          -

          3

          सं.गुणे

          -

          305

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          306

          -

          1

          असं.गुणे

          गुणकार=ज.प्र./असं.

          307

          -

          4-7

          मूलोघवत्

          -

          3. शुक्ल लेश्या-

          (ष.ख.5/1,8/सू.308-327)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          308

          उपशमक

          8-10

          स्तोक

          प्रवेशापेक्षया/परस्पर तुल्य संचय भी प्रवेशाधीन

          309

          -

          14

          ऊपर तुल्य

          -

          310

          क्षपक

          8-10

          दुगुणे

          प्रवेशाधीन 108 जीव

          311

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशाधीन

          312

          -

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          313

          -

          -

          सं.गुणे

          संचयापेक्षया

          314

          अक्षपक व अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          गुणकार=सं.समय

          315

          -

          6

          दुगुने

          -

          316

          -

          5

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          317

          -

          2

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          318

          -

          3

          सं.गुणे

          -

          319

          -

          1

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          320

          -

          4

          सं.गुणे

          -

          321

          गुणस्थान 4 में सम्य.

          उप.

          स्तोक

          -

          322

          -

          क्षा.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          323

          -

          वे.

          सं.गुणे

          अनुदिशादि में वेदक कम होते हैं

          324

          गुणस्थान 5में सम्य.

          -

          मूलोघवत

          -

          325

          उपशमकों में

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत् -

          सम्यक्त्व

          क्षा.

          दुगुने

          मूलोघवत्

          326

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          -

          327

          -

          क्षा

          सं.गुणे

          -

          15. भव्य मार्गणा-

          1. सामान्य प्ररूपणा-

          (ष.ख.7/2,11/सू.186-188)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          186

          अभव्य

          -

          स्तोक

          जघन्य युक्तानंत मात्र

          187

          न भव्य न अभव्य

          -

          अनंतगुणे

          -

          188

          भव्य

          -

          अनंतगुणे

          -

          2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-

          (ष.ख.5/1,8/सू.328-329)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          328

          भव्य

          1-14

          मूलोघवत्

          -

          329

          अभव्य

          1

          नहीं है

          -

          16. सम्यक्त्व मार्गणा-

          1. सामान्य प्ररूपणा-

          (ष.ख.7/2,11/सू.189-192)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          189

          सम्यग्मिथ्या.

          -

          स्तोक

          -

          190

          सम्यग्दृष्टि

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          191

          सिद्ध

          -

          अनंतगुणे

          -

          192

          मिथ्यादृष्टि सासादन

          -

          अनंतगुणे

          सम्यग्दष्टि में अंतर्भाव

          अन्य प्रकार-

          (ष.ख.7/2,11/सू.193-200)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          193

          सासादन

          -

          स्तोक

          -

          194

          स्तोक

          -

          सं.गुणे

          गुणकार=सं.समय

          195

          सम्यग्मिथ्यात्व

          उप.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          196

          -

          क्षा.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          197

          -

          वे.

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          198

          -

          सा.

          विशेषाधिक

          सबका योग

          199

          सिद्ध

          -

          अनंतगुणे

          -

          200

          मिथ्यादृष्टि

          -

          अनंतगुणे

          -

          2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-

          (ष.ख.5/1,8/सू.330-354)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          330

          सम्यक्त्व सा.

          4-12

          अवधिज्ञा.वत्

          -

          -

          -

          13-14

          मूलोघवत्

          -

          331

          उपशमकोमें क्षायिक

          8-10

          स्तोक

          परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों

          332

          -

          1

          ऊपर तुल्य

          प्रवेश व संचय दोनों

          333

          क्षपकोंमें क्षायिक

          8-10

          सं.गुणे

          -

          334

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          -

          335

          -

          14

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          -

          -

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          336

          -

          -

          सं.गुणे

          संचयापेक्षया

          337

          अक्षपक व अनुपशमकों में क्षायिक

          7

          असं.गुणे

          -

          338

          -

          6

          दुगुने

          -

          339

          -

          5

          सं.गुणे

          मनुष्य के अतिरिक्त अन्य जातियों में अभाव

          340

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          342

          वेदक सम्यक्त्व

          7

          स्तोक

          -

          343

          -

          6

          दुगुने

          -

          344

          -

          5

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.

          -

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          347

          उपशम सम्यक्त्व

          8-10

          स्तोक

          परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा

          348

          -

          11

          ऊपर तुल्य

          परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों अपेक्षा

          349

          -

          7

          सं.गुणा

          -

          350

          -

          6

          दुगुने

          -

          351

          -

          45

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं

          352

          -

          2

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          354

          सासादन

          2

          नहीं है

          -

          354

          मिथ्यादर्शन

          1

          नहीं है

          -

          17. संज्ञी मार्गणा-

          1. सामान्य प्ररूपणा-

          (ष.ख.7/2,11.सू.201-203)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          201

          संज्ञी

          -

          स्तोक

          ज.प्र./असं.मात्र

          202

          न संज्ञी न असंज्ञी

          सिद्ध

          अनंतुगणे

          -

          203

          असंज्ञी

          -

          अनंतुगणे

          -

          2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-

          (ष.ख.5/1,8/सू.355-357)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          355

          संज्ञी

          214

          मूलोघवत्

          -

          356

          संज्ञी

          1

          असंयतसे

          ज.प्र./असं.गुणे

          357

          असंज्ञी

          1

          नहीं है

          -

          18. आहारक मार्गणा-

          1. सामान्य प्ररूपणा-

          (ष.ख.7/2,11 सू.203-205)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          203

          अनाहारक अबंधक

          -

          -

          -

          -

          -

          14

          स्तोक

          -

          204

          अनाहारक बंधक

          -

          अनंतगुणे

          विग्रह गतिमें

          205

          आहारक

          -

          असं.गुणे

          गुणकार=अंतर्मुहूर्त

          2. ओघ व आदेश प्ररूपणा-

          (ष.ख.5/1,8/सू.358-374)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          358

          उपशमक

          8-10

          स्तोक

          परस्पर तुल्य/प्रवेश व संचय दोनों (54 जीव)

          359

          -

          11

          ऊपर तुल्य

          -

          360

          क्षपक

          8-10

          दुगुने

          प्रवेश व संचय। 108 जीव

          361

          -

          12

          ऊपर तुल्य

          -

          362

          -

          13

          ऊपर तुल्य

          प्रवेशापेक्षया

          363

          -

          -

          सं.गुणे

          संचयापेक्ष्या

          364

          अक्षपक अनुपशमक

          7

          सं.गुणे

          सं. मनुष्यमात्र

          365

          -

          6

          दुगुने

          -

          366

          -

          5

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.तिर्यंचों की अपेक्षा

          367

          -

          2

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं.

          368

          -

          3

          सं.गुणे

          -

          369

          -

          4

          असं.गुणे

          गुणकार=आ./असं

          370

          -

          1

          अनंतगुणे

          -

          371

          उपरोक्तमें सम्यक्त्व

          उप.

          -

          मूलोघवत्

          -

          -

          क्षा.

          -

          मूलोघवत्

          -

          -

          वे.

          -

          मूलोघवत्

          372

          उपशमकोंमें सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          मूलोघवत्

          -

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          मूलोघवत्

          373

          चारित्र

          उप.

          स्तोक

          कुल जीव

          54

          374

          -

          क्षप.

          दुगुणे

          कुल जीव 108

          3. अनाहारक की ओघ व आदेश प्ररूपणा

          (ष.ख.5/1,8/सू.375-382)

          सूत्र

          मार्गणा

          गुणस्थान

          अल्पबहुत्व

          कारण व विशेष

          375

          सयोगी

          13

          स्तोक

          समुद्घात गत केवली (60 जीव)

          376

          अयोगी

          14

          सं.गुणे

          संचय (598 जीव)

          377

          विग्रह गति वाले

          2

          प./असं/गुणे

          तिर्यंचों की अपेक्षा

          378

          -

          4

          आ./असं.गुणे

          विग्रह गति प्राप्त

          379

          -

          1

          अनंतगुणे

          विग्रह गति प्राप्त

          380

          असंयतो में सम्यक्त्व

          उप.

          स्तोक

          द्वितीयोपशम वाले ही अनाहारक होते हैं

          381

          -

          क्षा.

          सं.गुणे

          गुणकार=सं.समय

          382

          -

          वे.

          असं.गुणे

          गुणकार=पल्य/असं.


        3. प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
            1. सिद्धों की अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा

            ( राजवार्तिक 10/9/14/647/27 )

            1. असंहरण सिद्ध व जन्मसिद्ध की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            संहरण सिद्ध

            स्तोक

            -

            जन्म सिद्ध

            सं.गुणे

            2. क्षेत्र की अपेक्षा- (केवल संहरण सिद्धों में)

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            ऊर्ध्व लोक सिद्ध

            स्तोक

            -

            अधोलोक सिद्ध

            सं.गुणे

            -

            तिर्यग्लोक सा.

            सं.गुणे

            -

            तिर्यग्लोक विशेष:-

            -

            -

            समुद्र सा. सिद्ध

            स्तोक

            -

            द्वीप सा. सिद्ध

            सं.गुणे

            -

            लवण समुद्र सिद्ध

            स्तोक

            -

            कालोक समुद्र सिद्ध

            स्तोक

            -

            जंबूद्वीप सिद्ध

            सं.गुणे

            -

            धातकी सिद्ध

            सं.गुणे

            -

            पुष्करार्ध

            सं.गुणे

            3. काल की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            उत्सर्पिणी सिद्ध

            स्तोक

            -

            अवसर्पिणी

            विशेषाधिक

            -

            अनुत्सर्पिण्यनवसर्पिणी (विदेहक्षेत्र)

            सं. गुणे

            -

            प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया

            एक समय में सिद्धि होती है। अतः अल्पबहुत्व का अभाव है।

            4. अंतर की अपेक्षा
            निरंतर होनेवालों की अपेक्षा-

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            आठ समय अंतर से

            स्तोक

            -

            सात समय अंतर से

            सं.गुणे

            -

            छः समय अंतर से

            सं.गुणे

            -

            पांच समय अंतर से

            सं.गुणे

            -

            चार समय अंतर से

            सं.गुणे

            -

            तीन समय अंतर से

            सं.गुणे

            -

            दो समय अंतर से

            सं.गुणे

            सांतर होनेवालों की अपेक्षा-

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            छः मास अंतर से

            स्तोक

            -

            एक मास अंतर से

            सं. गुणे

            -

            यव मध्य अंतर से

            सं.गुणे

            -

            अधस्तन यव मध्य अंतर से

            सं. गुणे

            -

            उपरिम यव मध्य अंतर से

            विशेषाधिक

            5. गति की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा

            सिद्ध गति में ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है

            -

            अनंतर गति अपेक्षा

            केवल मनुष्य गति से ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं हैं

            एकांतर गति अपेक्षा-

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            तिर्यग्गति से

            स्तोक

            -

            मनुष्य गति से

            सं.गुणा

            -

            नरक गति से

            सं.गुणा

            -

            देव गति से

            सं.गुणा

            6. वेदानुयोग की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा

            अवेद भाव में ही सिद्धि है अतः अल्पबहुत्व नहीं है

            भूत नयापेक्षया-

            -

            नपुंसक वेद से

            स्तोक

            -

            स्त्री वेद से

            सं.गुणे

            -

            पुरुष वेद से

            सं.गुणे

            7. तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            तीर्थंकर सिद्ध

            स्तोक

            -

            सामान्य सिद्ध

            सं.गुणे

            8. चारित्र की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            प्रत्युत्पन्न नयापेक्षया

            निर्विकल्प चारित्र से सिद्धि होने से अल्पबहुत्व नहीं है

            -

            अनंतर चारित्रापेक्षा

            यथाख्यात से ही होनेसे अल्पबहुत्व नहीं है

            एकांतर चारित्रापेक्षा-

            -

            पंच चारित्र सिद्ध

            स्तोक

            -

            चार चारित्र सिद्ध (परिहार विशुद्धि रहित)

            सं.गुणे

            9. प्रत्येक बुद्ध व बोधित बुद्ध की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            प्रत्येक बुद्ध

            स्तोक

            -

            बोधित बुद्ध

            सं.गुणे

            10. ज्ञान की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            प्रत्युत्पन्न नयापेक्षा

            केवलज्ञान से ही होने से अल्पबहुत्व नहीं

            अनंतर ज्ञानापेक्षा-

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            दो ज्ञान सिद्ध

            स्तोक

            -

            चतुःज्ञान सिद्ध

            सं.गुणे

            -

            त्रिज्ञान सिद्ध

            सं.गुणे

            विशेषापेक्षया-

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            मति श्रुत मनःपर्यय

            स्तोक

            -

            मति श्रुत से

            सं.गुणे

            -

            मति श्रुत अवधि मनःपर्याय ज्ञान से

            सं.गुणे

            -

            मति श्रुत अवधिसे

            सं.गुणे

            11. अवगाहना की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            जघन्य अवगाहना से

            स्तोक

            -

            उत्कृष्ट अवगाहना से

            सं.गुणे

            -

            यवमध्य अवगाहना से

            सं.गुणे

            -

            अधस्तन यवमध्य

            सं.गुणे

            -

            उपरि यवमध्य

            विशेषाधिक

            12. युगपत् प्राप्त सिद्धों की संख्या की अपेक्षा

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            108 सिद्ध

            स्तोक

            -

            108-50 तक के

            अनंत गुणे

            -

            49-25 तक के

            असं. गुणे

            -

            24-1 तक के

            सं.गुणे

            मनुष्य पर्याय से-

            ( धवला 9/ पृ.318)

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            1-1

            की संख्यासे होनेवाले

            स्तोक

            -

            2-2

            की संख्या से होने वाले

            विशेषाधिक

            -

            2 से अधिक संख्या से होने वाले

            सं.गुणे

            मनुष्यणी पर्याय से-

            ( धवला 9/ पृ.318)

            क्रम

            मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            -

            2 से अधिक संख्या से होनेवाले

            स्तोक

            -

            2-2

            की संख्या से

            सं.गुणे

            -

            1-1 की संख्या से

            सं.गुणे

            2. 1-1,2-2 आदि कर के संचय होने वाले जीवों की अल्पबहुत्व प्ररूपणा-

            अल्पबहुत्व प्ररूपणा-

            ( धवला 9/4,1,66/318-321 )

            संकेत - नो.कृ. (नोकृति संचित) = 1-1 करके संचित होने वाले,

            अव. (अवक्तव्य संचित) = 2-2 करके संचित होने वाले,

            कृ. (कृति संचित) = 3 आदि करके संचित होने वाले,

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            1. गति मार्गणा-
            (1) स्वस्थान की अपेक्षा-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            318

            नरक गति सामान्य

            नो.कृ.

            स्तोक

            -

            नरक गति समान्य

            अव.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृ.

            ज.प्र./असं.गुणे

            318

            1-7 पृथिवी

            -

            नरक सामान्यवत्

            318

            देवगति सामान्य व विशेष

            -

            नरक गतिवत्

            318

            तिर्यंच गति सा. विशेष

            -

            नरक गतिवत्

            319

            मनुष्य गति सा. विशेष

            -

            नरक गतिवत्

            सिद्धोमें विशेषता-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            318

            सिद्ध सामान्य

            कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            सं.गुणे

            -

            -

            नो.कृ.

            सं.गुणे

            318

            मनुष्य प.से प्राप्त सिद्ध

            नो.कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृ.

            सं.गुणे

            -

            मनुष्यणी प.से प्राप्त सिद्ध

            कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            सं.गुणे

            -

            -

            नो.कृ

            सं.गुणे

            (2) परस्थान की अपेक्षा-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            319

            7वीं पृथिवी

            नो.कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            319

            6-1ली पृथिवी तक सब में पृथक् पृथक् अपने उपर की अपेक्षा

            नो.कृ.

            सं.गुणे

            -

            -

            अव. विशेषाधिक

            319

            7वीं पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            319

            6ठी पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            319

            5वीं पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            319

            4थी पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            320

            3री

            पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            320

            2री पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            320

            1ली पृथिवी

            कृ.

            असं.गुणे

            (3) स्व परस्थान की अपेक्षा-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            320

            मनुष्यणी

            कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            सं.गुणी

            -

            -

            नो.कृ.

            सं.गुणी

            320

            मनुष्य

            नो.कृ.

            असं.गुणी

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            320

            तिर्यंच योनिमति

            नो.कृ.

            असं.गुणी

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            320

            नारकी

            नो.कृ.

            असं.गुणी

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            320

            देव

            नो.कृ.

            असं.गुणी

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            320

            देवियाँ

            नो.कृ.

            असं.गुणी

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            320

            मनुष्य

            कृ.

            असं.गुणी

            320

            नारकी

            कृ.

            असं.गुणी

            320

            तिर्यंच योनिमति

            कृ.

            असं.गुणी

            320

            देव

            कृ.

            असं.गुणी

            320

            देवियाँ

            कृ.

            असं.गुणी

            320

            तिर्यंच सामान्य

            नो.कृ.

            अनंतगुणी

            320

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृ.

            असं.गुणी

            320 सिद्ध

            कृ.

            अनंतगुणी

            -

            -

            अव.

            सं.गुणी

            -

            -

            नो.कृ.

            सं.गुणी

            2. इंद्रिय मार्गणा-
            स्व व परस्थान की अपेक्षा-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            321

            चतुरिंद्रिय

            नो.कृ.

            स्तोक

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            321

            त्रींद्रिय

            नो.कृ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            321

            द्वींद्रिय

            नो.कृ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            321

            पंचेंद्रिय

            नो.कृ.

            असं.गुणे

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृ.

            असं.गुणे

            321

            चतुरिंद्रिय

            कृ.

            विशेषाधिक

            321

            त्रींद्रिय

            कृ.

            विशेषाधिक

            321

            द्वींद्रिय

            कृ.

            विशेषाधिक

            321

            एकेंद्रिय

            नो.कृ.

            अनंत गुणे

            -

            -

            अव.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृ.

            असं.गुणे

            नोट - इससे आगेके सर्व स्थान यथायोग्य एकेंद्रिवत् जानना।

            3. अन्य मार्गणाएँ-
            स्व व परस्थानों की अपेक्षा-

            पृष्ठ

            मार्गणा

            संकेत

            अल्पबहुत्व

            319

            मनःपर्यय ज्ञान

            -

            नरक गतिवत्

            319

            क्षायिक सम्यग्दृष्टि

            -

            नरक गतिवत्

            319

            संयत सामान्य विशेष

            -

            नरक गतिवत्

            319

            अनुत्तरादि विमानोंसे मनुष्य होनेवाले देव

            -

            नरक गतिवत्

            319

            तथा अन्य संख्यात राशियाँ

            -

            नरक गतिवत्

            3. तेईस वर्गणाओं संबंधी प्ररूपणाएँ-

            23 वर्गणाओंके नाम-

            ( षट्खंडागम 14/5,56/ सू.76-97/54-118)

            1. एक प्रदेशप्रमाणु वर्गणा; 2. संख्याताणु वर्गणा; 3. असंख्याताणु वर्गणा; 4. अनंताणु वर्गणा; 5. आहारक वर्गणा; 6. अग्राह्य वर्गणा; 7. तैजस शरीर वर्गणा; 8. अग्राह्य वर्गणा; 9.भाषा वर्गणा; 10. अग्राह्य वर्गणा; 11. मनो वर्गणा; 12. अग्राह्य वर्गणा; 13. कार्मण वर्गणा; 14. ध्रुव स्कंध मार्गणा; 15. सांतरनिरंतर वर्गणा; 16. ध्रुव शून्य वर्गणा; 17. प्रत्येक शरीर वर्गणा; 18. ध्रुव शून्य वर्गणा; 19. बादर निगोद वर्गणा; 20. ध्रुव शूऩ्य वर्गणा; 21. सूक्ष्म निगोद वर्गणा; 22. ध्रुव शून्य वर्गणा; 23. महा स्कंध वर्गणा।

            वर्ग.सं. अल्पबहुत्व गुणकार

            1. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-

            ( धवला 14/ पृ.163-169)

            वर्ग.सं.

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            1

            स्तोक

            एक संख्या प्रमाण

            2

            सं.गुणी

            एक कम उत्कृष्ट संख्या

            3

            असं.गुणी

            स्व राशि/असं.

            5

            अनंतगुणी

            स्व राशि/असं.

            7

            अनंतगुणी

            स्व राशि/अनंत

            9

            अनंतगुणी

            उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि

            11

            अनंतगुणी

            उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि

            13

            अनंतगुणी

            उपरोक्त श्रेणी/स्व राशि

            4

            अनंतगुणी

            अभव्य X अनंत

            6

            अनंतगुणी

            अभव्य X अनंत

            8

            अनंतगुणी

            अभव्य X अनंत

            10

            अनंतगुणी

            अभव्य X अनंत

            12

            अनंतगुणी

            अभव्य X अनंत

            14

            अनंतगुणी

            सर्व जीव राशि X अनंत

            15

            अनंतगुणी

            सर्व जीव राशि X अनंत

            16

            अनंतगुणी

            सर्व जीव राशि X अनंत

            17

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            18

            अनंतगुणी

            अनंतलोक

            19

            असं.गुणी

            ज.श्रे./अस.

            20

            अस.गुणी

            अंगु/असं.

            21

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            23

            असं.गुणी

            ज.प्र./असं.

            22

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            2. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-

            ( धवला 14/ पृ.169-179 तथा 208-212)

            वर्ग.सं.

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            23

            स्तोक

            एक संख्या प्रमाण

            19

            असं.गुणे

            आ./असं.=असं.लोक

            21

            असं.गुणे

            आ./असं.=असं.लोक

            17

            असं.गुणे

            आ./असं.=असं.लोक

            15

            अनंत गुणे

            सर्व जीव राशि X अनंत

            14

            अनंत गुणे

            सर्व जीव राशि X अनंत

            13

            अनंत गुणे

            अभव्य X अनंत

            12

            अनंत गुणे

            अभव्य X अनंत

            11

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            10

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            9

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            8

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            7

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            6

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            5

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            4

            अनंत गुणे

            स्व गुणहानि शलाकाकी अन्योन्याभ्यस्त राशि

            1

            अनंत गुणे

            जघन्य परीतानंत

            2

            सं.गुणे

            2 कम उत्कृष्ट संख्यात

            3

            असं.गुणी

            -

            16

            -

            ध्रुव शून्य वर्गणाओंका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आकाश रूप है

            18

            -

            -

            20

            -

            -

            22

            -

            -

            3. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा-

            ( धवला 14/ पृ.213-215)

            वर्ग.सं.

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            17

            स्तोक

            -

            23

            अनंत गुणे

            अनंत लोक

            19

            असं.गुणे

            असं.लोक

            21

            असं.गुणे

            असं.लोक

            15

            अनंत गुणे

            सर्व जीव X अनंत

            14

            अनंत गुणे

            सर्व जीव X अनंत

            13

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            12

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            11

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            10

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            9

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            8

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            7

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            6

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            5

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            4

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            1

            अनंत गुणे

            स्व अन्योन्याभ्यस्तराशि

            2

            असं.गुणे

            -

            3

            असं.गुणे

            -

            16

            -

            ध्रुव शून्य वर्गणाका कथन नहीं किया क्योंकि वह पुद्गल रूप नहीं है आक्राश रूप है।

            18

            -

            -

            20

            -

            -

            22

            -

            -

            4. एक श्रेणी द्रव्य, नाना श्रेणी द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -

            ( धवला 14/ पृ.215-223)

            वर्ग.सं.

            एकश्रेणी या नाना श्रेणी

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            1

            एक श्रेणी द्रव्य

            स्तोक

            एक संख्या ही है

            23

            नाना श्रेणी द्रव्य

            स्तोक

            एक संख्या ही है

            2

            एक श्रेणी द्रव्य

            सं.गुणी

            एक कम उत्कृष्ट संख्या

            19

            नाना श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            असं.लोक

            21

            नाना श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            असं.लोक

            17

            नाना श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            असं.लोक

            3

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            असं.लोक

            5

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            4

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            7

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            6

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            9

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            8

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            11

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            10

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            13

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            12

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            अभव्य X अनंत

            14

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            सर्व जीव X अनंत

            15

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            सर्व जीव X अनंत

            16

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत

            सर्व जीव X अनंत

            17

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            17

            नाना श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणी

            असं.लोक

            18

            एक श्रेणी द्रव्य

            अनंत गुणी

            अनंत लोक

            19

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            20

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणे

            अंगु/असं.

            21

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणे

            आ./असं.

            23

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणे

            ज.प्र./असं.

            22

            एक श्रेणी द्रव्य

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            नाना श्रेणियों में

            वर्ग.सं.

            एकश्रेणी या नाना श्रेणी

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            -

            कुल द्रव्य कुल प्रदेश

            -

            -

            23

            X कुल प्रदेश

            विशेषाधिक

            -

            19

            X कुल प्रदेश

            असं.गुणे

            -

            21

            X कुल प्रदेश

            असं.गुणे

            -

            15

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            सर्व जीव X अनंत

            15

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            सर्व जीव X अनंत

            14

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            सर्व जीव X अनंत

            14

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            अभव्य X अनंत

            13

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            निचला स्थान\स्व अन्योन्याभ्यस्त राशि

            13

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            अभव्य X अनंत

            12

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे.नं. 13 वत्

            12

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            एक अधिक अधस्तन अध्वार

            11

            कुल प्रदेश X

            अनंत गणे

            पीछें नं. 13 वत्

            11

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे. नं. 12 वत्

            10

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछें नं. 13 वत्

            10

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            9

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            9

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            8

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            8

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            7

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            7

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            6

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            6

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            5

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            5

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            4

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 13 वत्

            4

            X कुल प्रदेश

            अनंत गुणे

            पीछे नं. 12 वत्

            1

            कुल प्रदेश X

            अनंत गुणे

            पीछे नं.13 वत्

            1

            X कुल प्रदेश

            ऊपर समान

            -

            2

            कुल प्रदेश X

            सं.गुणा

            एक कम उत्कृष्ट संख्या

            2

            X कुल प्रदेश

            सं.गुणा

            संख्यात

            3

            कुल प्रदेश X

            असं.गुणे

            असं.लोक

            3

            X कुल प्रदेश

            असं.गुणे

            असं.लोक

            16

            -

            -

            नाना श्रेणीमें इनका कथन नहीं होता क्योंकि ये आकाश रूप हैं, पुद्गल रूप नहीं।

            18

            -

            -

            -

            20

            -

            -

            -

            21

            -

            -

            -

            4. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओंकी प्ररूपणा-

            1. पंच वर्गणाओं के द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा-

            ( धवला 9/4,1,2/37 )

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            आहारक वर्गणा

            स्तोक

            -

            तैजस वर्गणा

            अनंत गुणे

            -

            भाषा वर्गणा

            अनंत गुणे

            -

            मनो वर्गणा

            अनंत गुणे

            -

            कार्माण वर्गणा

            अनंत गणे

            -

            2. पंच वर्गणाओं की अवगाहना की अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.790-796/562)

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            औ. योग्य आहारक वर्गणा

            स्तोक

            X

            वै. योग्य आहारक वर्गणा

            असं.गुणे

            ज.श्रे/अस.

            आ. योग्य आहारक वर्गणा

            असं.गुणे

            ज.श्रे/असं.

            तै. योग्य तैजस वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            भाषा योग्य भाषा वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            मन योग्य मनो वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            कर्म योग्य कार्मण वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            3. पंच शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा-

            ( धवला 14/5,6/324 )

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            औ. योग्य आहारकका ज. विस्र

            स्तोक

            -

            औ. योग्य आहारकका उ. विस्र

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            वै.

            योग्य आहारकका ज. विस्र

            अनंत गुणे

            सर्व जीवXअनंत

            वै. योग्य आहारकका उ. विस्र

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            आ. योग्य आहारकका ज. विस्र

            अनंत गुणे

            सर्व जीवXअनंत

            आ. योग्य आहारकका उ. विस्र

            असं. गुणे

            पल्य/असं.

            तै. योग्य तैजस ज. विस्र

            अनंत गुणे

            सर्व जीवXअनंत

            तै. योग्य तैजस उ. विस्र

            असं. गुणे

            पल्य/असं.

            का. योग्य तैजस ज. विस्र

            अनंत गुणे

            सर्व जीवXअनंत

            का. योग्य तैजस ज. विस्र

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            4. प्रत्येक वर्गणा में समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा -

            ( षट्खंडागम 14/5,6/785-789/560 )

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            औ. योग्य आहारक वर्गणा

            स्तोक

            X

            वै. योग्य आहारक वर्गणा

            असं.गुणे

            ज.श्रे./असं.

            आ.योग्य आहारक वर्गणा

            असं.गुणे

            ज.श्रे/असं.

            तै. योग्य तैजस वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            भाष योग्य भाषा वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            मन योग्य मनो वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/अनंत

            कर्म योग्य कार्मण वर्गणा

            अनंत गुणे

            सिद्ध/ अनंत

            5. शरीर बद्ध विस्रसोपचयों की स्व व परस्थान अपेक्षा-
            स्वस्थान अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.544-548/453)

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            ज.औ.का ज. पदमें ज. विस्र.

            स्तोक

            -

            ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.

            अनंत गुणे

            जीवXअनंत

            उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र.

            अनंत गुणे

            जीवXअनंत

            उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.

            अनंत गुणे

            जीवXअनंत

            वैक्रियिक के चारों स्थान

            उपरोक्तवत्

            -

            आहारक के चारों स्थान

            उपरोक्तवत्

            -

            तैजस के चारों स्थान

            उपरोक्तवत्

            -

            कार्मण के चारों स्थान

            उपरोक्तवत्

            -

            परस्थान अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.544-552/455)

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            ज. औ.का ज. पदमें ज. विस्र.

            स्तोक

            -

            ज. औ.का उ. पदमें उ. विस्र.

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. औ.का ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. औ.का उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. वै. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. वै. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. वै. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. वै. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. आ. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. आ. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. आ. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. आ. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. तै. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. तै. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. तै. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. तै. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. का. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            ज. का. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. का. ज. पदमें ज. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            उ. का. उ. पदमें उ. विस्र

            अनंतगुणे

            जीवXअनंत

            6. पंच शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 14/5-6/ सू.497-501/429)

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            औदारिक शरीर प्रदेश

            स्तोक

            -

            वैक्रियक शरीर प्रदेश

            असं.

            ज.श्रे./असं.

            आहार शरीर प्रदेश

            असं.

            ज.श्रे./असं.

            तैजस शरीर प्रदेश

            अनंत

            सिद्ध/अनंत

            कार्मण शरीर प्रदेश

            अनंत

            सिद्ध/अनंत

            ( सर्वार्थसिद्धि 2/38-39/102-103 ) ( राजवार्तिक 2/38-39/4/148 ) ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/246/510/2 )

            7. औदारिक शरीर बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 14/5,6/ सू.575-580/466)

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            त्रस कायिक के प्रदेश

            स्तोक

            -

            अग्नि कायिक के प्रदेश

            असं. गुणे

            -

            पृथिवी कायिक के प्रदेश

            विशेषाधिक

            -

            अप कायिक के प्रदेश

            विशेषाधिक

            -

            वायु कायिक के प्रदेश

            विशेषाधिक

            -

            वनस्पति कायिक के प्रदेश

            अनंत गुणे

            -

            8. इंद्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा-

            ( राजवार्तिक 1/19/6/231 )

            वर्गणा का नाम

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            चक्षु

            सर्वतःस्तोक

            -

            श्रोत्र

            सं.गुणे

            -

            घ्राण

            विशेषाधिक

            -

            जिह्वा

            असं.गुणे

            -

            स्पर्शन

            अनंत गुणे

            -

            5. पंच शरीरों की अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ-

            1. सूक्ष्मता व स्थूलता की अपेक्षा-

            ( सर्वार्थसिद्धि 2/37/100 )

            सूत्र

            नाम शरीर या मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            -

            औदारिक शरीर

            सर्वतःस्थूल

            -

            -

            वैक्रियक शरीर

            ततःसूक्ष्म

            -

            -

            आहारक शरीर

            ततःसूक्ष्म

            -

            -

            तैजस शरीर

            ततःसूक्ष्म

            -

            -

            कार्मण शरीर

            ततःसूक्ष्म

            -

            2. औदारिक शरीर विशेष की अवगाहना की अपेक्षा-

            (ष.स्र.11/4,2,5/सू.31-99/56-70) ( धवला 1/1,3,4/251/7 ) ( धवला 4/1,3,23/94/7 ) ( धवला 9/4,1,2/17/4 )

            लब्ध्य पर्याप्त के स्थान

            सूत्र

            नाम शरीर या मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            31

            निगोद या बन. साधारण सू.अप.की ज. अवगाहना

            स्तोक

            अंगु./पल्य\असं.

            32

            वायु सू. अप.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            33

            तेज सू. अप.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            34

            अप् सू. अप.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            35

            पृथिवी सू. अप.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            36

            वायु वा. अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            37

            तेज वा. अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            38

            जल वा. अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            39

            पृथिवी वा. अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            40

            निगोद या बन. साधारण बा.अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            41

            निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            42

            अप्रतिष्ठित प्रत्येक बन.अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            43

            द्वींद्रिय अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            44

            त्रींद्रिय अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            45

            चतुरिंद्रिय अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            46

            पंचेंद्रिय अप.की ज. असं.गुणी

            पल्य/असं.

            निवृत्ति पर्याप्तक व निवृत्त्यपर्याप्तक के स्थान

            सूत्र

            नाम शरीर या मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            47

            बन. साधारण या निगोद सू.प.की.ज.

            ऊपर से असं.गुणी

            आ./असं.

            48

            उपरोक्त अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            49

            उपरोक्त प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            50

            वायु सू. प.की.ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            51

            वायु सू. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            52

            वायु सू. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            53

            तेज सू. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            54

            तेज सू. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            55

            तेज सू. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            56

            अप सू. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            57

            जल सू. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            58

            जल सू. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            59

            पृथ्वी सू. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            60

            पृथ्वी सू. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            61

            पृथ्वी सू. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            62

            वायु बा. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            63

            वायु बा. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            64

            वायु बा. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            65

            तेज बा. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            66

            तेज बा. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            67

            तेज बा. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            68

            अप् बा. प.की ज.

            असं.गुणी

            आ./असं.

            69

            अप् बा. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            70

            अप् बा. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            71

            पृथ्वी बा. प.की ज.

            असं. गुणी

            आ./असं.

            72

            पृथ्वी बा. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            73

            पृथ्वी बा. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            74

            बन, साधारण या निगोद बा.प.की ज.

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            75

            उपरोक्त बा. अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            76

            उपरोक्त बा. प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            77

            बन. प्रतिष्ठित प्रत्येक या निगोद प.की. ज.

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            78

            उपरोक्त अप.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            79

            उपरोक्त प.की उ.

            विशेषाधिक

            अंगु./असं.

            80

            वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की ज.

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            81

            द्वींद्रिय प.की ज.

            असं.गुणी

            पल्य/असं.

            82

            त्रींद्रिय प.की ज.

            सं.गुणी

            सं.समय

            83

            चतुरिंद्रिय प.की ज.

            सं.गुणी

            सं.समय

            84

            पंचेंद्रिय प.की ज.

            सं.गुणी

            सं.समय

            85

            त्रींद्रिय अप.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            86

            चतुरिंद्रिय अप.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            87

            द्वींद्रिय अप.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            88

            बन.अप्रतिष्ठित प्रत्येक अप.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            89

            पंचेंद्रिय अप.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            90

            त्रींद्रिय प.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            91

            चतुरिंद्रिय प.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            92

            द्वींद्रिय प.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            93

            वन. अप्रतिष्ठित प्रत्येक प.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            94

            पंचेंद्रिय प.की उ.

            सं.गुणी

            सं.समय

            95

            एक सूक्ष्म से अन्य सूक्ष्म = आ./असं.गुणी

            -

            96

            सूक्ष्म से बादर = असं.गुणी

            -

            97

            बादर से क्ष्म = आ./असं.गुणी

            -

            98

            बादर से बादर = पल्य/असं.गुणी

            -

            99

            बादर से दूसरा बादर = सं.समय गुणी

            -

            3. पंचेंद्रियों की अवगाहना की अपेक्षा-

            ( धवला 1/1,1,5/235/4 )

            सूत्र

            नाम शरीर या मार्गणा

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            -

            चक्षु इंद्रिय अवगाहना

            स्तोक

            -

            -

            श्रोत्र

            सं.घुणी

            -

            -

            घ्राण

            विशेषाधिक

            -

            -

            जिह्वा

            असं.गुणी

            -

            -

            स्पर्शन

            सं.गुणी

            -

            6. पाँचों शरीरोंके स्वामियोंकी ओघ व आदेश प्ररूपणा-

            (ष.ख.14/5,6/सू.169-234/301-318)

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            1. ओघ प्ररूपणा-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            169

            जीवसामान्य

            4

            स्तोक

            -

            170

            अशरीरी (सिद्ध)

            -

            अनंत गुणे

            सिद्ध/असं.

            171

            जीव सामान्य

            2

            अनंत गुणे

            सर्वजीव/अनंत

            172

            जीव सामान्य

            3

            असं.गुणे

            अंतर्मुहूर्त

            2. आदेश प्ररूपणा-
            1. गति मार्गणा-

            नरक गति-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            173

            नारकी सा.

            2

            स्तोक

            नार./आ.\असं.

            174

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            175

            1-7 पृथिवी

            2

            स्तोक

            -

            तिर्यंच गति-

            तिर्यंच सामान्य

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            176

            4

            स्तोक

            -

            -

            2

            अनंत गुणे

            -

            -

            3

            असं.गुणे

            सं.आव.

            पंचेंद्रिय सा., प., व योनिमति

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            177

            4

            स्तोक

            -

            178

            2

            असं.गुणे

            ज.श्रे./असं.

            179

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            पंचेंद्रित ति. अप.

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            180

            2,3

            नारकी सा.वत्

            -

            मनुष्य गति-

            मनुष्य सामान्य

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            181

            4

            स्तोक

            संख्य. मात्र

            -

            2

            असं.गुणे

            -

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            मनुष्य प.व मनुष्यणी

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            182

            4

            स्तोक

            -

            183

            -

            2

            सं.गुणे

            184

            -

            3

            सं.गुणे

            मनुष्य अप.

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            185

            -

            नारकी सा.वत्

            -

            देव गति-

            देव सामान्य

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            186

            2

            स्तोक

            -

            187

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            भवनवासी से अपराजित तक

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            188

            2,3

            देव सा. वत् पर गुणाकार

            पल्य/असं.

            सर्वार्थसिद्धि

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            189

            2

            स्तोक

            -

            190

            3

            सं.गुणे

            सं.समय

            2. इंद्रिय मार्गणा-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            191

            एके.सा.,बा.एके.

            4

            तिर्यंच सा.वत्

            -

            -

            सा.,बा.एके.प.

            2,3

            या ओघवत्

            192

            बा.एके.अप.सू.एके.सा.,प.,अप.विकलत्रय सा.व.प.अप.पंचेंद्रिय अप.

            2

            स्तोक

            193

            -

            3

            असं.गुणे

            सं.आ.

            194

            पंचेंद्रिय सा.व प.

            -

            मनुष्य सा. वत्

            3. काय मार्गणा-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            195

            पृ., जल व वन. के बा.सू.प.अप.सर्व विकल्प अग्नि व वायु के बा.अप.तथा सू के प. अप.सर्व विकल्प त्रस के केलव अप.

            2

            स्तोक

            -

            196

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            197

            तेज व वायु के सा.व बा. केवल प. त्रस सा.व.प.

            पंचेंद्रिय प. वत्

            -

            4. योग मार्गणा-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            198

            पाँच मन व पाँच वचन योगी

            4

            स्तोक

            -

            199

            -

            3

            असं.गुणे

            ज.श्रे./असं.

            200

            काय योग सामान्य

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            201

            औदारिक काययोगी

            4

            स्तोक

            -

            202

            -

            3

            असं.गुणे

            सर्वजीव राशि के अनंत प्रथम वर्गमूल प्रमाण अल्पबहुत्व नहीं है

            203

            औदारिक मिश्र, वैक्रियक व मिश्र, आहारक व मिश्र

            -

            X

            एक ही पद है

            204

            कार्मण काय योग

            3

            स्तोक

            -

            205

            -

            2

            अनंत गुणे

            जीवोंके अनंत प्रथम वर्गमूल

            5. वेद मार्गणा-

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            206

            स्त्री व पुरुष वेदी

            -

            पंचेंद्रियसा. वत्

            -

            207

            नपुंसक वेदी

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            208

            अपगत वेदी

            X

            X

            एक ही पद है

            7. ज्ञान मार्गणा-

            मतिश्रुत अज्ञानी

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            209

            ति.या ओघवत्

            -

            विभंग ज्ञानी

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            210

            स्तोक

            -

            211

            -

            3

            असं.गुणे

            ज.श्रे./असं.

            मतिश्रुत अवधि ज्ञानी

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            212

            -

            पंचे.पर्याप्तवत्

            -

            मनःपर्ययज्ञानी

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            213

            4

            स्तोक

            -

            214

            -

            3

            सं.गुणे

            सं.समय

            केवलज्ञानी

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            215

            X

            X

            एक ही पद है

            8. संयम मार्गणा-

            संयत सा.

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            216

            4

            स्तोक

            -

            सामायिक व छेदो.

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            -

            3

            सं.गुणे

            सं.समय

            परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सांपराय व यथाख्यात

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            217

            X

            X

            एक ही पद है

            संयतासंयत

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            218

            4

            स्तोक

            -

            असंयत

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            9. दर्शन मार्गणा-

            चक्षु व अवधि द.

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            221

            -

            पंचेंद्रिय प. वत्

            -

            अचक्षु दर्शनी

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            219

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            10. लेश्या मार्गणा-

            कृष्ण नील, कापोत

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            220

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            पीत पद्म लेश्या

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            221

            -

            पंचेंद्रिय प.वत्

            -

            शुक्ल लेश्या

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            223

            2

            स्तोक

            -

            224

            -

            4

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            225

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            11. भव्यत्व मार्गणा-

            भव्य व अभव्य

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            220

            -

            ति.या

            ओघवत्

            -

            12. सम्यक्त्व मार्गणा-

            सम्यग्दृष्टि सा.वेदक व सासादन

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            226

            2

            पंचेंद्रिय प. वत्

            -

            क्षायिक व उपशम

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            227

            4

            स्तोक

            सं. मात्र

            228

            -

            3

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            229

            -

            -

            असं.गुणे

            आ./असं.

            सम्यग्मिथ्यादृष्टि

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            230

            4

            स्तोक

            -

            -

            3

            असं.गुणे

            आ./असं.

            मिथ्यादृष्टि

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            231

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            13. संज्ञी मार्गणा-

            संज्ञी

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            232

            -

            पंचंद्रिय प.वत्

            -

            असंज्ञी

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            233

            -

            ति.या ओघवत्

            -

            14. आहारक मार्गणा-

            आहारक

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            234

            4

            स्तोक

            औदारिक काय योगवत्

            -

            3

            अनंत गुणे

            -

            अनाहारक

            सूत्र

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            235

            3

            स्तोक

            कार्मण काय योगवत्

            -

            2

            अनंतगुणे

            -

            7. जीवभावोंके अनुभाग व स्थिति विषयक प्ररूपणा-

            1. संयम विशुद्धि या लब्धि स्थानों की अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 7/2,11/ सू.168-174/564-567) ( धवला 6/1,9-8,14/286 )

            सूत्र

            विषय

            अल्पबहुत्व

            विशेष या गुणकार

            168

            सामायिक व छेदो. की जघन्य चारित्र लब्धि

            सर्वतःस्तोक

            मिथ्यात्वके अभिमुख

            169

            परिहार विशुद्धि की जघन्य चारित्र लब्धि

            अनंतगुणी

            सामायिकके अभिमुख

            170

            परिहार विशुद्धि की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि

            अनंतगुणी

            -

            171

            सामायिक छेदो. की उत्कृष्ट चारित्र लब्धि

            अनंत गुणी

            अनिवृत्तिकरण का अंत समय

            172

            सूक्ष्म सांपराय की जघन्य चारित्र लब्धि

            अनंत गुणी

            श्रेणी से उतरते हुए

            173

            सूक्ष्म सांपरायकी उत्कृष्ट चारित्र लब्धि

            अनंतगुणी

            स्वस्थानका अंत समय

            174

            यथाख्यात की अजघन्य अनुत्कृष्ट चारित्र लब्धि

            अनंतगुणी

            जघन्य व उत्कृष्टपनेका अभाव है।

            2. 14 जीव समासोंसे संक्लेश व विशुद्धि स्थानों की अपेक्षा

            ( षट्खंडागम 11/4,2,6/ सू.51-64/205-224) (म.व.2/2,3/3)

            सूत्र

            मार्गणा

            शरीर स्वामित्व

            अल्पबहुत्व

            गुणकार

            51

            एकेंद्रिय सू. अप.

            स्तोक

            -

            52

            एकेंद्रिय वा. अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            53

            एकेंद्रिय सू. प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            54

            एकेंद्रिय बा. प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            55

            द्वींद्रिय अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            56

            द्वींद्रिय प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            57

            त्रींद्रिय अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            58

            त्रींद्रिय प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            59

            चतुरिंद्रिय

            अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            60

            चतुरिंद्रिय प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            61

            पंचेंद्रिय असंज्ञी अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            62

            पंचेंद्रिय असंज्ञी प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            63

            पंचेंद्रिय संज्ञी अप.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            64

            पंचेंद्रिय संज्ञी प.

            असं.गुणे

            पल्य/असं.

            3. दर्शन ज्ञान चारित्र विषयक भाव सामान्य के अवस्थानों की अपेक्षा स्व व परस्थान प्ररूपणा -

            ( कषायपाहुड़ 1/1,15-20/ पृ.330-362)

            गाथापृ.

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            15/330

            दर्शनोपयोग सा.

            ज.

            स्तोक

            असं.आ.मात्र

            -

            चक्षुइंद्रियावग्रह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            श्रोत्र इंद्रियावग्रह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            घ्राण इंद्रियावग्रह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            जिह्वा इंद्रियावग्रह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            मनोयोग सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            वचन योग सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            काय योग सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            स्पर्शन इंद्रियावग्रह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अन्यतम अवाय

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अन्यतम ईहा

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            श्रुत ज्ञान

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            श्वासोच्छ्वास

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            1/342

            सशरीरकेवलीका केवल ज्ञान

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            उपरोक्तका दर्शन

            ज.

            ऊपर तुल्य

            -

            -

            शुक्ल लेश्या सा.

            ज.

            ऊपर तुल्य

            -

            -

            एकत्व वितर्क-अविचार ध्यान

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            पृथक्त्व वितर्क विचार

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            श्रेणीसे पतित सूक्ष्म सांपराय

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            श्रेणी पर अवरोहक सूक्ष्म सांपराय

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            क्षपक श्रेणी गत सूक्ष्म सांपराय

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            17/345

            मान कषाय सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            क्रोध कषाय सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            माया कषाय सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            लोभ कषाय सा.

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            क्षुद्र भव ग्रहण

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            कृष्टिकरण ज.

            विशेषाधिक

            -

            18/347

            संक्रामण

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अपवर्तन

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            उपशांत कषाय

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            क्षीण मोह

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            -

            क्षपक

            ज.

            विशेषाधिक

            -

            20/348

            चक्षुदर्शन

            उ.

            विशेषाधिक

            ऊपरवाले की अपेक्षा

            -

            चक्षु इंद्रियावग्रह

            उ.

            दुगुना

            -

            -

            श्रोत्र इंद्रियावग्रह

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            घ्राण इंद्रियावग्रह

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            जिह्वा

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            मनोयोग सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            वचन योग सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            काय योग सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            स्पर्शन इंद्रियावग्रह

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            -

            अन्यतम अवाय

            उ.

            - दुगुना

            नोट -यदि व्याघात या मरण न हो तब ही वह अल्पबहुत्व लागू होता है। मरण हो जाने पर तो किसि भीस्थानका जघन्य काल एक समय तक बन जाता है।

            ( कषायपाहुड़ 1/1,19/348 )

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            अन्यतम.ईहा

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            श्रुतज्ञान

            उ. दुना

            -

            श्वासोच्छ्वास

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            सशरीर केवली का केवलज्ञान

            उ.

            विशेषाधिक

            सोपसर्ग केवली की अपेक्षा

            उपरोक्त का दर्शन

            उ.

            ऊपर तुल्य

            -

            शुक्ल लेश्या या.

            उ.

            ऊपर तुल्य

            -

            एकत्व वितर्क अविचारि ध्यान

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            पृथक्त्व वितर्क विचार ध्यान

            उ.

            दुगुना

            -

            अवरोहक सू. संपराय

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            आरोहक सू. संपराय

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            क्षपक सू. संपराय

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            मान कषाय सा.

            उ.

            दुगुना

            -

            क्रोध कषाय सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            माया कषाय सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            लोभ कषाय सा.

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            क्षुद्र भव

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            कृष्टि करण

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            संक्रामक

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            अपवर्तना

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            उपशांत कषाय

            उ.

            दूना

            -

            क्षीण मोह

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            उपशमक

            उ.

            दुगुना

            -

            क्षपक

            उ.

            विशेषाधिक

            -

            4. उपशम व क्षपण काल की अपेक्षा-

            ( कषायपाहुड़ 4/3,22/ $616-626/326-328)

            चारित्र मोह-

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            क्षपक अनिवृत्ति करण

            सा. स्तोक

            -

            क्षपक अपूर्व करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            उपशामक अनिवृत्ति करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            उपशामक अपूर्व करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            दर्शन मोह-

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            क्षपक अनिवृत्ति करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            क्षपक अपूर्व करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            अनंतानुबंधी विसंयोजकका अनिवृत्ति करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            उपरोक्त अपूर्व करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            उपशामक अनिवृत्ति करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            उपशामक अपूर्व करण

            सा.

            सं.गुणा

            -

            5. कषाय काल की अपेक्षा-

            ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/296/640 )

            नरक गति-

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            लोभ

            सा.

            स्तोक अंतर्मु.

            -

            माया

            सा.

            सं.गुणा

            -

            मान

            सा.

            सं.गुणा

            -

            क्रोध

            सा.

            सं.गुणा

            -

            देवगति-

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            क्रोध

            सा.

            स्तोक अंतर्मु.

            -

            मान

            सा.

            सं.गुणा

            -

            माया

            सा.

            सं.गुणा

            -

            लोभ

            सा.

            सं.गुणा

            -

            6. नोकपाय व ध काल की अपेक्षा-

            ( कषायपाहुड़ 3/3,22/ $386-387/पृ.213)

            उच्चारणाचार्य की अपेक्षा चारों गतियोमें अन्य आचार्यों की अपेक्षा मनुष्य व तिर्यंच में

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            पुरुष वेद

            सा.

            स्तोक

            2 (संदृष्टि)

            स्त्री वेद

            सा.

            सं.गुणा

            4 (संदृष्टि)

            हास्यरति

            सा.

            सं.गुणा

            16 (संदृष्टि)

            अरति शोक

            सा.

            सं.गुणा

            32 (संदृष्टि)

            नपुंसक वेद

            सा.

            विशेषाधिक

            42 (संदृष्टि)

            अन्य आचार्यों की अपेक्षा नरक व देव में

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            पुरुष वेद

            सा.

            स्तोक

            3 (संदृष्टि)

            स्त्री वेद

            सा.

            सं.गुणा

            9 (संदृष्टि)

            हास्य रति

            सा.

            विशेषाधिक

            11 (संदृष्टि)

            नपुंसक वेद

            सा.

            सं.गुणा

            22 (संदृष्टि)

            अरति शोक

            सा.

            विशेषाधिक

            23 (संदृष्टि)

            7. मिथ्यात्व काल विशेष की अपेक्षा-

            ( धवला 10/4,2,4,62/284 )

            विषय

            काल

            अल्पबहुत्व

            विशेष

            देवगति में जन्म धारनेवालेके

            -

            स्तोक

            -

            मनुष्य गतिमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            तिर्यंच संज्ञी पंचेंद्रियमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            तिर्यंच असंज्ञी पंचेंद्रियमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            चतुरिंद्रियमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            त्रींद्रियमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            द्वींद्रियमें उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            एकेंद्रिय बा.में उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            एकेंद्रिय सू.में उत्पत्ति योग्य

            -

            सं.गुणा

            -

            8. जीवों के योग स्थानों की अपेक्षा अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ

            लक्षण –

            उपपाद योग = जो उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें एक समय मात्र के लिए हो।

            एकांतानुवृद्धि योग = जो उत्पन्न होने के द्वीतीय समयसे लेकर शरीर पर्याप्तिसे अपर्याप्त रहनेके अंतिम समय तक निवृत्त्य पर्याप्तकोंमें रहता है। लब्ध्यपर्याप्तकोंके आयु बंधके योग्य कालमें अपने जीवितके त्रिभागमें परिणाम योग्य होता है। उससे नीचे एकांतानुवृद्धि योग होता है। इसका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है।

            परिणाम योग = पर्याप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर आगे जीवनपर्यंत सब जगह परिणाम योग ही होता है। निवृत्त्यपर्याप्तके परिणामयोग नहीं होता।

            ( धवला 10/4,2,173/420-421 ) (देखें अल्पबहुत्व - 3.11.7.3)

            नोट - गुणकार सर्वत्र पल्य/असं. जानना

            ( धवला 10/ पृ.420)

            सूत्र स्वामी योग अल्पबहुत्व

            1. योग सामान्यके यव मध्य काल की अपेक्षा-

            ( षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.206-212/503-504)

            सूत्र

            स्वामी

            योग

            अल्प्बहुत्व

            206

            मध्य स्थान 8 समय योग्य

            -

            सर्वतःस्तोक

            207

            दोनों पार्श्व भागों में

            -

            परस्पर तुल्य

            -

            7 समय योग्य

            -

            असं.गुणे

            208

            6 समय योग्य

            -

            असं.गुणे

            209

            5 समय योग्य

            -

            असं.गुणे

            210

            4 समय योग्य

            असं.गणे

            3 व 2 समय योग्य स्थान ऊपर ही होते हैं नीचे नही

            उपरिम भाग-

            सूत्र

            स्वामी

            योग

            अल्प्बहुत्व

            211

            3 समय योग्य

            -

            असं.गुणे

            212

            2 समय योग्य

            -

            असं.गुणे

            2. योग स्थानोंके स्वामित्व सामान्य की अपेक्षा-

            ( धवला 10/4,2,4,173/403 )

            सूत्र

            स्वामी

            योग

            अल्प्बहुत्व

            -

            सात ल.अप.

            3 स्थान

            स्तोक

            -

            एकेंद्रिय सू.बा.

            ऊप.

            परस्पर तुल्य

            -

            तीन विकलत्रय

            एकां.

            स्तोक

            -

            पंचेंद्रिय संज्ञी असंज्ञी

            परि.

            परस्पर तुल्य

            -

            यही सात नि. अप.

            2 स्थान

            परस्पर तुल्य

            -

            -

            ऊप.एका.

            असं.गुणे

            -

            यही सात नि.प.

            1 स्थान परि.

            असं.गुणे

            3. योग स्थान सामान्य में परस्पर अल्पहुत्व-

            ( धवला 10/4,2,4,173/404 )

            सूत्र

            स्वामी

            योग

            अल्प्बहुत्व

            -

            सातों ल.अप.(देखें ऊपर )

            उप.

            स्तोक

            -

            -

            एकां.

            असं.गुणे

            -

            -

            परि.

            असं.गुणे

            -

            सातों नि.अप.

            उप.

            स्तोक

            -

            -

            एका.

            असं.गुणे

            -

            सातों नि.प.

            परि.

            एक ही पदमें अल्पबहुत्व नहीं

            नोट - यह स्व-स्थान प्ररूपणा जानना।

            4. 14 जीव समासोंमें जघन्योंत्कृष्ट योग स्थानों की अपेक्षा -

            ( षट्खंडागम 10/4,2,4/ सू.145-172/396-403)

            सूत्र

            स्वामी

            योग

            अल्प्बहुत्व

            145

            एकेंद्रिय सू. ल. अप.

            ज.उप.

            स्तोक

            146

            एकेंद्रिय बा. ल. अप.

            ज.उप.

            असं.गुणे

            147

            द्वींद्रिय ल. अप.

            ज.उप.

            असं.गुणे

            148

            त्रींद्रिय ल. अप. अप

            ज.उप.

            असं.गुणे

            149

            चतुरिंद्रिय ल. अप.

            ज.उप.

            असं.गुणे

            150

            पंचेंद्रिय असंज्ञी ल. अप.

            ज.उप.

            असं.गुणे

            151

            पंचेंद्रिय संज्ञी ल. अप.

            ज.उप.

            असं.गुणे

            152

            एकेंद्रिय सू. ल. अप.

            उ.परि.

            असं.गुणे

            153

            एकेंद्रिय बा. ल. अप.

            उ.परि.

            असं.गुणे

            154 एकेंद्रिय सू. नि. अप.

            ज.परि.

            असं.गुणे

            155

            एकेंद्रिय बा. नि. अप.

            ज.परि.

            असं.गुणे

            156

            एकेंद्रिय सू. नि. प.

            उ.परि

            असं.गुणे

            157

            एकेंद्रिय बा. नि. प.

            उ.परि.

            असं.गुणे

            158

            द्वींद्रिय नि. अप.

            उ.एकां.

            असं.गुणे

            159

            त्रींद्रिय नि. अप.

            उ.एकां.

            असं.गुणे