कालोदसागर: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> मध्यलोक का द्वितीय सागर । यह कृष्ण वर्ण का है और धातकीखंड द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । इसकी परिधि इकानवें लाख सत्तर हजार छ: सौ पाँच योजन से कुछ अधिक है तथा समस्त क्षेत्रफल पाँच लाख उनहत्तर हजार अस्सी योजन है । यहाँ के निवासी उदक, अश्व, पक्षी, शूकर, ऊँट, गौ, मार्जार और गज की मुखाकृतियों को लिये हुए होते हैं । इसमें चौबीस द्वीप आभ्यंतर सीमा में और चौबीस बाह्य सीमा में इस तरह कुल अड़तालीस द्वीप हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.562-575, 628-629 </span> | <span class="HindiText"> मध्यलोक का द्वितीय सागर । यह कृष्ण वर्ण का है और धातकीखंड द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । इसकी परिधि इकानवें लाख सत्तर हजार छ: सौ पाँच योजन से कुछ अधिक है तथा समस्त क्षेत्रफल पाँच लाख उनहत्तर हजार अस्सी योजन है । यहाँ के निवासी उदक, अश्व, पक्षी, शूकर, ऊँट, गौ, मार्जार और गज की मुखाकृतियों को लिये हुए होते हैं । इसमें चौबीस द्वीप आभ्यंतर सीमा में और चौबीस बाह्य सीमा में इस तरह कुल अड़तालीस द्वीप हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#562|हरिवंशपुराण - 5.562-575]], 628-629 </span> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
मध्यलोक का द्वितीय सागर । यह कृष्ण वर्ण का है और धातकीखंड द्वीप को सब ओर से घेरे हुए है । इसकी परिधि इकानवें लाख सत्तर हजार छ: सौ पाँच योजन से कुछ अधिक है तथा समस्त क्षेत्रफल पाँच लाख उनहत्तर हजार अस्सी योजन है । यहाँ के निवासी उदक, अश्व, पक्षी, शूकर, ऊँट, गौ, मार्जार और गज की मुखाकृतियों को लिये हुए होते हैं । इसमें चौबीस द्वीप आभ्यंतर सीमा में और चौबीस बाह्य सीमा में इस तरह कुल अड़तालीस द्वीप हैं । हरिवंशपुराण - 5.562-575, 628-629