क्षायिक भोग: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/4/154/7 </span><span class="SanskritText">कृत्स्नस्य भोगांतरायस्य तिरोभावादाविर्भूतोऽतिशयवाननंतो भोग: क्षायिक:। यत: कुसुमवृष्टय्यादयो विशेषाः प्रादुर्भवंति। निरवशेषस्योपभोगांतरायस्य प्रलयात्प्रादुर्भूतोऽनंत-उपभोगः क्षायिक:। यत: सिंहासनचामरच्छत्रत्रयादयो विभूतय:।</span> = <span class="HindiText">समस्त भोगांतराय कर्म के क्षय से अतिशय वाले '''क्षायिक अनंत भोग''' का प्रादुर्भाव होता है, जिससे कुसुम वृष्टि आदि आश्चर्य विशेष होते हैं। समस्त उपभोगांतराय के नष्ट हो जाने से अनंत क्षायिक उपभोग होता है, जिससे सिंहासन, चामर और तीन छत्र आदि विभूतियाँ होती हैं।<span class="GRef">( राजवार्तिक/2/4/4-5/106/3 )</span>।</span> | |||
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सर्वार्थसिद्धि/2/4/154/7 कृत्स्नस्य भोगांतरायस्य तिरोभावादाविर्भूतोऽतिशयवाननंतो भोग: क्षायिक:। यत: कुसुमवृष्टय्यादयो विशेषाः प्रादुर्भवंति। निरवशेषस्योपभोगांतरायस्य प्रलयात्प्रादुर्भूतोऽनंत-उपभोगः क्षायिक:। यत: सिंहासनचामरच्छत्रत्रयादयो विभूतय:। = समस्त भोगांतराय कर्म के क्षय से अतिशय वाले क्षायिक अनंत भोग का प्रादुर्भाव होता है, जिससे कुसुम वृष्टि आदि आश्चर्य विशेष होते हैं। समस्त उपभोगांतराय के नष्ट हो जाने से अनंत क्षायिक उपभोग होता है, जिससे सिंहासन, चामर और तीन छत्र आदि विभूतियाँ होती हैं।( राजवार्तिक/2/4/4-5/106/3 )।
देखें भोग ।