कालसंवर: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर का एक विद्याधर राजा । अपनी रानी कांचनमाला के साथ जिनेंद्र की पूजा के लिए आकाश मार्ग से विमान में जाते हुए इसने एक शिला को हिलती हुई देखा । इसका कारण खोजते हुए नीचे उतरने पर इसे शिला के नीचे एक शिशु प्राप्त हुआ था । प्रिया के अनुरोध पर इस शिशु को इसने युवराज पद दिया तथा कांचनमाला ने शिशु का देवदत्त नाम रखा था । शिशु के युवा होने पर कांचनमाला उसे देखकर कामासक्त हुई किंतु जब देवदत्त को सहवास के योग्य नहीं पाया तब उसने छल से कुचेष्टा की । यह भी उसके विश्वास में आ गया । फलस्वरूप इसने अपने पाँच सौ पुत्रों को देवदत्त को मारने के लिए आज्ञा दी थी । युद्ध में इन्हें देवदत्त से पराजित होना पड़ा था । <span class="GRef"> महापुराण 72.54-60, 76-87, 130, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.49-61 </span>इस शिशु का मूलनाम प्रद्युम्न था । <span class="GRef"> महापुराण 72. 48 </span> | <span class="HindiText"> विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर का एक विद्याधर राजा । अपनी रानी कांचनमाला के साथ जिनेंद्र की पूजा के लिए आकाश मार्ग से विमान में जाते हुए इसने एक शिला को हिलती हुई देखा । इसका कारण खोजते हुए नीचे उतरने पर इसे शिला के नीचे एक शिशु प्राप्त हुआ था । प्रिया के अनुरोध पर इस शिशु को इसने युवराज पद दिया तथा कांचनमाला ने शिशु का देवदत्त नाम रखा था । शिशु के युवा होने पर कांचनमाला उसे देखकर कामासक्त हुई किंतु जब देवदत्त को सहवास के योग्य नहीं पाया तब उसने छल से कुचेष्टा की । यह भी उसके विश्वास में आ गया । फलस्वरूप इसने अपने पाँच सौ पुत्रों को देवदत्त को मारने के लिए आज्ञा दी थी । युद्ध में इन्हें देवदत्त से पराजित होना पड़ा था । <span class="GRef"> महापुराण 72.54-60, 76-87, 130, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#49|हरिवंशपुराण - 43.49-61]] </span>इस शिशु का मूलनाम प्रद्युम्न था । <span class="GRef"> महापुराण 72. 48 </span> | ||
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
हरिवंशपुराण/43 श्लोक —मेघकूट नगर का राजा (49−50) असुर द्वारा पर्वत पर छोड़े गये कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का पालन किया था। (43/57−61)
पुराणकोष से
विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के मेघकूट नगर का एक विद्याधर राजा । अपनी रानी कांचनमाला के साथ जिनेंद्र की पूजा के लिए आकाश मार्ग से विमान में जाते हुए इसने एक शिला को हिलती हुई देखा । इसका कारण खोजते हुए नीचे उतरने पर इसे शिला के नीचे एक शिशु प्राप्त हुआ था । प्रिया के अनुरोध पर इस शिशु को इसने युवराज पद दिया तथा कांचनमाला ने शिशु का देवदत्त नाम रखा था । शिशु के युवा होने पर कांचनमाला उसे देखकर कामासक्त हुई किंतु जब देवदत्त को सहवास के योग्य नहीं पाया तब उसने छल से कुचेष्टा की । यह भी उसके विश्वास में आ गया । फलस्वरूप इसने अपने पाँच सौ पुत्रों को देवदत्त को मारने के लिए आज्ञा दी थी । युद्ध में इन्हें देवदत्त से पराजित होना पड़ा था । महापुराण 72.54-60, 76-87, 130, हरिवंशपुराण - 43.49-61 इस शिशु का मूलनाम प्रद्युम्न था । महापुराण 72. 48