दुर्योधन: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का ज्येष्ठ और दु:शासन आदि सौ भाइयों का अग्रज । इसके साथ युद्ध करना कठिन होने के कारण यह नाम इसे स्वजनों से प्रांत हुआ था । हस्तिनापुर का यह राजा था । इसने कृष्णा के पास यह कहकर दूत भेजा था कि रुक्मिणी और सत्यभामा रानियों में जिसके पहले पुत्र होगा वह यदि मेरी पुत्री हुई तो उसका पति होगा । <span class="GRef"> महापुराण 70.117-118, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.20-21, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 8187 </span>भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य इसके शिक्षा और धनुर्विद्या प्रदातागुरु थे । पांडवों का यह महावैरी था । इसने भीम को मारने हेतु सर्प के द्वारा दश कराया था । तीव्र विष भी भीम के लिए अमृत हो गया था । यह अपने उद्देश्य में असफल रहा । पांडवों को मारने के लिए इसने लाक्षागृह बनवाया था । इसे जलाने ह चांडालों ने निषेध किया तो इसने ब्राह्मणों से उसे जलवाया । पांडव सुरंग से निकलकर बाहर चले गये थे । इसमें भी यह असफल रहा और इसे बड़ी अपकीर्ति मिली । <span class="GRef"> महापुराण 72.201-203, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 8.208-209, 10.115-117, 12.122-168 </span>युद्ध में इसे चित्रांग गंधर्व ने नागपाश मे बाँध किया था । युधिष्ठिर के कहने पर इसे अर्जुन ने छुड़ाया था । एक बार कपटपूर्वक इसने जुएँ में युधिष्ठिर का सब कुछ जीत लिया । इससे उन्हें बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ जिसमें इसे भाग जाना पड़ा था । इससे उसका वैर बढ़ा और पुन: युद्ध में आकर उसने युधिष्ठिर पर ही असि प्रहार किया । भीम बीच में आ गया और उसने इसका वध कर दिया । मरते समय भी इसके परिणाम शांत नहीं हुए थे । अश्वत्थामा को युद्ध के लिए प्रेरित करके ही वह मरा था । <span class="GRef"> महापुराण 72.215, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 16.108-125, 17.102-104, 143, 19.188-190, 20. 163-164, 287-296 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का ज्येष्ठ और दु:शासन आदि सौ भाइयों का अग्रज । इसके साथ युद्ध करना कठिन होने के कारण यह नाम इसे स्वजनों से प्रांत हुआ था । हस्तिनापुर का यह राजा था । इसने कृष्णा के पास यह कहकर दूत भेजा था कि रुक्मिणी और सत्यभामा रानियों में जिसके पहले पुत्र होगा वह यदि मेरी पुत्री हुई तो उसका पति होगा । <span class="GRef"> महापुराण 70.117-118, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#20|हरिवंशपुराण - 43.20-21]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 8187 </span>भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य इसके शिक्षा और धनुर्विद्या प्रदातागुरु थे । पांडवों का यह महावैरी था । इसने भीम को मारने हेतु सर्प के द्वारा दश कराया था । तीव्र विष भी भीम के लिए अमृत हो गया था । यह अपने उद्देश्य में असफल रहा । पांडवों को मारने के लिए इसने लाक्षागृह बनवाया था । इसे जलाने ह चांडालों ने निषेध किया तो इसने ब्राह्मणों से उसे जलवाया । पांडव सुरंग से निकलकर बाहर चले गये थे । इसमें भी यह असफल रहा और इसे बड़ी अपकीर्ति मिली । <span class="GRef"> महापुराण 72.201-203, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 8.208-209, 10.115-117, 12.122-168 </span>युद्ध में इसे चित्रांग गंधर्व ने नागपाश मे बाँध किया था । युधिष्ठिर के कहने पर इसे अर्जुन ने छुड़ाया था । एक बार कपटपूर्वक इसने जुएँ में युधिष्ठिर का सब कुछ जीत लिया । इससे उन्हें बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ जिसमें इसे भाग जाना पड़ा था । इससे उसका वैर बढ़ा और पुन: युद्ध में आकर उसने युधिष्ठिर पर ही असि प्रहार किया । भीम बीच में आ गया और उसने इसका वध कर दिया । मरते समय भी इसके परिणाम शांत नहीं हुए थे । अश्वत्थामा को युद्ध के लिए प्रेरित करके ही वह मरा था । <span class="GRef"> महापुराण 72.215, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 16.108-125, 17.102-104, 143, 19.188-190, 20. 163-164, 287-296 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पांडवपुराण/सर्ग/श्लोक–धृतराष्ट्र का पुत्र था (8/183)। भीष्म तथा द्रोणाचार्य से क्रम से शिक्षण प्राप्त किया (8/208)। पांडवों के साथ अनेकों बार अन्यायपूर्ण युद्ध किये। अंत में भीम द्वारा मारा गया (20/294)।
पुराणकोष से
राजा धृतराष्ट्र और रानी गांधारी का ज्येष्ठ और दु:शासन आदि सौ भाइयों का अग्रज । इसके साथ युद्ध करना कठिन होने के कारण यह नाम इसे स्वजनों से प्रांत हुआ था । हस्तिनापुर का यह राजा था । इसने कृष्णा के पास यह कहकर दूत भेजा था कि रुक्मिणी और सत्यभामा रानियों में जिसके पहले पुत्र होगा वह यदि मेरी पुत्री हुई तो उसका पति होगा । महापुराण 70.117-118, हरिवंशपुराण - 43.20-21, पांडवपुराण 8187 भीष्म पितामह तथा द्रोणाचार्य इसके शिक्षा और धनुर्विद्या प्रदातागुरु थे । पांडवों का यह महावैरी था । इसने भीम को मारने हेतु सर्प के द्वारा दश कराया था । तीव्र विष भी भीम के लिए अमृत हो गया था । यह अपने उद्देश्य में असफल रहा । पांडवों को मारने के लिए इसने लाक्षागृह बनवाया था । इसे जलाने ह चांडालों ने निषेध किया तो इसने ब्राह्मणों से उसे जलवाया । पांडव सुरंग से निकलकर बाहर चले गये थे । इसमें भी यह असफल रहा और इसे बड़ी अपकीर्ति मिली । महापुराण 72.201-203, पांडवपुराण 8.208-209, 10.115-117, 12.122-168 युद्ध में इसे चित्रांग गंधर्व ने नागपाश मे बाँध किया था । युधिष्ठिर के कहने पर इसे अर्जुन ने छुड़ाया था । एक बार कपटपूर्वक इसने जुएँ में युधिष्ठिर का सब कुछ जीत लिया । इससे उन्हें बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ जिसमें इसे भाग जाना पड़ा था । इससे उसका वैर बढ़ा और पुन: युद्ध में आकर उसने युधिष्ठिर पर ही असि प्रहार किया । भीम बीच में आ गया और उसने इसका वध कर दिया । मरते समय भी इसके परिणाम शांत नहीं हुए थे । अश्वत्थामा को युद्ध के लिए प्रेरित करके ही वह मरा था । महापुराण 72.215, पांडवपुराण 16.108-125, 17.102-104, 143, 19.188-190, 20. 163-164, 287-296