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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) पाताल लोकवासी भवनवासी देव । इनकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य की होती है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.342 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.63, 65-66 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) पाताल लोकवासी भवनवासी देव । इनकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य की होती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#342|पद्मपुराण -7. 342]] </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#63|हरिवंशपुराण - 4.63]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#65|हरिवंशपुराण - 4.65]]-66 </span></p> | ||
<p id="2">(2) इस नाम का एक नगर । यहाँ के राजा हरिपति और उसकी रानी मनोलूता का पुत्र कुलंकर हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 85.49-51 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) इस नाम का एक नगर । यहाँ के राजा हरिपति और उसकी रानी मनोलूता का पुत्र कुलंकर हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_85#49|पद्मपुराण - 85.49-51]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । भरतेश का सेनापति विंध्याचल के प्रदेशों को जीतता हुआ यहाँ आया था और यहाँ से वह मलयपर्वत पर गया था । <span class="GRef"> महापुराण 29. 88 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । भरतेश का सेनापति विंध्याचल के प्रदेशों को जीतता हुआ यहाँ आया था और यहाँ से वह मलयपर्वत पर गया था । <span class="GRef"> महापुराण 29. 88 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सानत्कुमार युगल का तीसरा इंद्रक । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.48 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सानत्कुमार युगल का तीसरा इंद्रक । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#48|हरिवंशपुराण - 6.48]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.62 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#62|हरिवंशपुराण - 1.62]] </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47 </span></p> | ||
<p id="6">(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह जलक्रीड़ा करता है और युद्ध में इसका अत्यधिक उपयोग होता है । <span class="GRef"> महापुराण 29.122 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह जलक्रीड़ा करता है और युद्ध में इसका अत्यधिक उपयोग होता है । <span class="GRef"> महापुराण 29.122 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
सनत्कुमार स्वर्ग का तृतीय पटल –देखें स्वर्ग - 5.3।
पुराणकोष से
(1) पाताल लोकवासी भवनवासी देव । इनकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य की होती है । पद्मपुराण -7. 342 हरिवंशपुराण - 4.63,हरिवंशपुराण - 4.65-66
(2) इस नाम का एक नगर । यहाँ के राजा हरिपति और उसकी रानी मनोलूता का पुत्र कुलंकर हुआ । पद्मपुराण - 85.49-51
(3) भरतक्षेत्र के आर्यखंड का एक पर्वत । भरतेश का सेनापति विंध्याचल के प्रदेशों को जीतता हुआ यहाँ आया था और यहाँ से वह मलयपर्वत पर गया था । महापुराण 29. 88
(4) सानत्कुमार युगल का तीसरा इंद्रक । हरिवंशपुराण - 6.48
(5) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष के बाद एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में पाँचवें मुनि । हरिवंशपुराण - 1.62 वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47
(6) हाथी की एक जाति । इस जाति का हाथी फुर्तीला, तेज मौर अधिक समझदार होता है । यह जलक्रीड़ा करता है और युद्ध में इसका अत्यधिक उपयोग होता है । महापुराण 29.122