मूलस्थान: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"><span class="GRef"> भगवती आराधना/288/503 </span><span class="PrakritGatha">पिंडं उवहिं सेज्जं अविसोहिय जो हु भुंजमाणो हु । मूलट्ठाणं पत्तो मूलोत्ति य समणपेल्लो सो ।288।</span> = <span class="HindiText">आहार, पिछी, कमंडलु और वसतिका आदि को शोधन किये बिना ही जो साधु उनका प्रयोग करता है, वह मूलस्थान नामक दोष को प्राप्त होता है । </span></li> | <li class="HindiText"><span class="GRef"> भगवती आराधना/288/503 </span><span class="PrakritGatha">पिंडं उवहिं सेज्जं अविसोहिय जो हु भुंजमाणो हु । मूलट्ठाणं पत्तो मूलोत्ति य समणपेल्लो सो ।288।</span> = <span class="HindiText">आहार, पिछी, कमंडलु और वसतिका आदि को शोधन किये बिना ही जो साधु उनका प्रयोग करता है, वह मूलस्थान नामक दोष को प्राप्त होता है । </span></li> | ||
<li class="HindiText"> पंजाब का प्रसिद्ध वर्तमान का मुलतान नगर | <li class="HindiText"> पंजाब का प्रसिद्ध वर्तमान का मुलतान नगर <span class="GRef">( महापुराण/ प्रस्तावना 49/पं. पन्नालाल)</span> । </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 11: | Line 11: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] | [[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 22:27, 17 November 2023
- भगवती आराधना/288/503 पिंडं उवहिं सेज्जं अविसोहिय जो हु भुंजमाणो हु । मूलट्ठाणं पत्तो मूलोत्ति य समणपेल्लो सो ।288। = आहार, पिछी, कमंडलु और वसतिका आदि को शोधन किये बिना ही जो साधु उनका प्रयोग करता है, वह मूलस्थान नामक दोष को प्राप्त होता है ।
- पंजाब का प्रसिद्ध वर्तमान का मुलतान नगर ( महापुराण/ प्रस्तावना 49/पं. पन्नालाल) ।