काम: Difference between revisions
From जैनकोष
ShrutiJain (talk | contribs) No edit summary |
Jagrti jain (talk | contribs) mNo edit summary |
||
(6 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 2: | Line 2: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="1" id="1"> काम व काम तत्त्व के लक्षण</strong><br /> | ||
<span class="GRef"> न्या.द./4-1/3 में न्यायवार्तिक से उद्धृत/पृ.230</span> <span class="SanskritText">काम: स्त्रीगतोऽभिलाष:। </span><span class="HindiText">=स्त्री-पुरूष के परस्पर संयोग की अभिलाषा काम है।</span><br /> | |||
<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/21/16/227/15 </span><span class="SanskritText"> क्षोभणादिमुद्राविशेषशाली सकलजगद्वशीकरणसमर्थ:–इति चिंत्यते तदायमात्मैव कामोक्तिविषयतामनुभवतीति कामतत्त्वम्। </span>=<span class="HindiText">क्षोभण कहिए चित्त के चलने आदि | <span class="GRef"> ज्ञानार्णव/21/16/227/15 </span><span class="SanskritText"> क्षोभणादिमुद्राविशेषशाली सकलजगद्वशीकरणसमर्थ:–इति चिंत्यते तदायमात्मैव कामोक्तिविषयतामनुभवतीति कामतत्त्वम्। </span>=<span class="HindiText">क्षोभण कहिए चित्त के चलने आदि मुद्राविशेषों में शाली कहिए चतुर है, अर्थात् समस्त जगत् के चित्त को चलायमान करने वाले आकारों को प्रगट करने वाला है। इस प्रकार समस्त जगत् को वशीभूत करने वाले काम की कल्पना करके अन्यमती जो ध्यान करते हैं, सो यह आत्मा ही काम की उक्ति कहिये नाम व संज्ञा को धारण करने वाला है। (ध्यान के प्रकरण में यह '''काम तत्त्व''' का वर्णन है)। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> समयसार / तात्पर्यवृत्ति/4 </span><span class="SanskritText">कामशब्देन स्पर्शरसनेंद्रियद्वयं। </span>=<span class="HindiText">काम शब्द से स्पर्शन व रसना इन दो | <span class="GRef"> समयसार / तात्पर्यवृत्ति/4 </span><span class="SanskritText">कामशब्देन स्पर्शरसनेंद्रियद्वयं। </span>=<span class="HindiText">काम शब्द से स्पर्शन व रसना इन दो इंद्रियों के विषय जानना।<br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="2" id="2"> काम व भोग में अंतर</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef">मूलाचार आराधना/मूल/1138</span><span class="PrakritGatha"> कामा दुवे तऊ भोग इंदयत्था विदूहिं पण्णत्ता। कामो रसो य फासो सेसा भोगेति आहीया।1138।</span> =<span class="HindiText">दो इंद्रियों के विषय काम हैं, तीन इंद्रियों के विषय भोग हैं, ऐसा विद्वानों ने कहा है। रस और स्पर्श तो काम हैं; और गंध, रूप व शब्द - ये तीन भोग हैं, ऐसा कहा है। <span class="GRef"> (समयसार / तात्पर्यवृत्ति/1138) </span><br /> | |||
</span></li> | </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"><strong name="3" id="3"> काम के दस विकार</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना/893-895 </span><span class="PrakritGatha">पढमे सोयदि वेगे दट्ठुंतं इच्छदे विदियवेगे। णिस्सदि तदियवेगे आरोहदि जरो चउत्थम्मि।893। उज्झदि पंचमवेगे अंगं छठ्ठे ण रोचदे भत्तं। मुच्छिज्जदि सत्तमए उम्मत्तो होइ अट्ठमए।894। णवमे ण किंचि जाणदि दसमे पाणेहिं मुच्चदि मदंधो। संकप्पवसेण पुणो वेग्ग तिव्वा व मंदा वा।895। </span>=<span class="HindiText">काम के उद्दीप्त होने पर </span> | <span class="GRef"> भगवती आराधना/893-895 </span><span class="PrakritGatha">पढमे सोयदि वेगे दट्ठुंतं इच्छदे विदियवेगे। णिस्सदि तदियवेगे आरोहदि जरो चउत्थम्मि।893। उज्झदि पंचमवेगे अंगं छठ्ठे ण रोचदे भत्तं। मुच्छिज्जदि सत्तमए उम्मत्तो होइ अट्ठमए।894। णवमे ण किंचि जाणदि दसमे पाणेहिं मुच्चदि मदंधो। संकप्पवसेण पुणो वेग्ग तिव्वा व मंदा वा।895। </span>=<span class="HindiText">काम के उद्दीप्त होने पर </span> | ||
<ol> | <ol> | ||
<li | <li class="HindiText">प्रथम चिंता होती है; </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> तत्पश्चात् स्त्री को देखने की इच्छा; और इसी प्रकार क्रम से </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> दीर्घ नि:श्वास, </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> ज्वर, </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> शरीर का दग्ध होने लगना;</span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> भोजन न रूचना; </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> महामूर्च्छा; </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> उन्मत्तवत् चेष्टा; </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> प्राणों में संदेह; </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> अंत में मरण। इस प्रकार काम के ये दश वेग होते हैं। इनसे व्याप्त हुआ जीव यथार्थ तत्त्व को नहीं देखता। <span class="GRef"> (ज्ञानार्णव/11/29-31), (भावपाहुड़ टीका/96/246/पर उद्धृत), (अनगारधर्मामृत/4/66/363 पर उद्धृत), (लाटी संहिता/2/114-127) </span><br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 39: | Line 39: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<span class="HindiText"> (1) प्रद्युम्न । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.13, </span><span class="GRef"> महापुराण 72.112 </span></br><span class="HindiText">(2) ग्यारह रुद्रों में दसवाँ रुद्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 571-572 </span></br><span class="HindiText">(3) चार पुरुषार्थी में तीसरा पुरुषार्थ । इंद्रियविषयानुरागियों की मानसिक स्थिति । कामासक्त मानव चंचल होते हैं और मूर्ख ही इनके अधीन होते हैं, विद्वान् नहीं । <span class="GRef"> महापुराण 51.6, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 83.77, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.193, 9.137 </span></br>(4) रावण <span class="HindiText">का योद्धा । इसने राम के योद्धा दृढ़रथ के साथ युद्ध किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 57. 54-56, 62.38 </span></p> | <span class="HindiText"> (1) प्रद्युम्न । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#13|हरिवंशपुराण - 48.13]], </span><span class="GRef"> महापुराण 72.112 </span></br><span class="HindiText">(2) ग्यारह रुद्रों में दसवाँ रुद्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#571|हरिवंशपुराण - 60.571-572]] </span></br><span class="HindiText">(3) चार पुरुषार्थी में तीसरा पुरुषार्थ । इंद्रियविषयानुरागियों की मानसिक स्थिति । कामासक्त मानव चंचल होते हैं और मूर्ख ही इनके अधीन होते हैं, विद्वान् नहीं । <span class="GRef"> महापुराण 51.6, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_83#77|पद्मपुराण - 83.77]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#193|हरिवंशपुराण - 3.193]], 9.137 </span></br>(4) रावण <span class="HindiText">का योद्धा । इसने राम के योद्धा दृढ़रथ के साथ युद्ध किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_57#54|पद्मपुराण - 57.54-56]], 62.38 </span></p> | ||
Line 50: | Line 50: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | [[Category: प्रथमानुयोग]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 09:15, 5 February 2024
सिद्धांतकोष से
- काम व काम तत्त्व के लक्षण
न्या.द./4-1/3 में न्यायवार्तिक से उद्धृत/पृ.230 काम: स्त्रीगतोऽभिलाष:। =स्त्री-पुरूष के परस्पर संयोग की अभिलाषा काम है।
ज्ञानार्णव/21/16/227/15 क्षोभणादिमुद्राविशेषशाली सकलजगद्वशीकरणसमर्थ:–इति चिंत्यते तदायमात्मैव कामोक्तिविषयतामनुभवतीति कामतत्त्वम्। =क्षोभण कहिए चित्त के चलने आदि मुद्राविशेषों में शाली कहिए चतुर है, अर्थात् समस्त जगत् के चित्त को चलायमान करने वाले आकारों को प्रगट करने वाला है। इस प्रकार समस्त जगत् को वशीभूत करने वाले काम की कल्पना करके अन्यमती जो ध्यान करते हैं, सो यह आत्मा ही काम की उक्ति कहिये नाम व संज्ञा को धारण करने वाला है। (ध्यान के प्रकरण में यह काम तत्त्व का वर्णन है)।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/4 कामशब्देन स्पर्शरसनेंद्रियद्वयं। =काम शब्द से स्पर्शन व रसना इन दो इंद्रियों के विषय जानना।
- काम व भोग में अंतर
मूलाचार आराधना/मूल/1138 कामा दुवे तऊ भोग इंदयत्था विदूहिं पण्णत्ता। कामो रसो य फासो सेसा भोगेति आहीया।1138। =दो इंद्रियों के विषय काम हैं, तीन इंद्रियों के विषय भोग हैं, ऐसा विद्वानों ने कहा है। रस और स्पर्श तो काम हैं; और गंध, रूप व शब्द - ये तीन भोग हैं, ऐसा कहा है। (समयसार / तात्पर्यवृत्ति/1138)
- काम के दस विकार
भगवती आराधना/893-895 पढमे सोयदि वेगे दट्ठुंतं इच्छदे विदियवेगे। णिस्सदि तदियवेगे आरोहदि जरो चउत्थम्मि।893। उज्झदि पंचमवेगे अंगं छठ्ठे ण रोचदे भत्तं। मुच्छिज्जदि सत्तमए उम्मत्तो होइ अट्ठमए।894। णवमे ण किंचि जाणदि दसमे पाणेहिं मुच्चदि मदंधो। संकप्पवसेण पुणो वेग्ग तिव्वा व मंदा वा।895। =काम के उद्दीप्त होने पर- प्रथम चिंता होती है;
- तत्पश्चात् स्त्री को देखने की इच्छा; और इसी प्रकार क्रम से
- दीर्घ नि:श्वास,
- ज्वर,
- शरीर का दग्ध होने लगना;
- भोजन न रूचना;
- महामूर्च्छा;
- उन्मत्तवत् चेष्टा;
- प्राणों में संदेह;
- अंत में मरण। इस प्रकार काम के ये दश वेग होते हैं। इनसे व्याप्त हुआ जीव यथार्थ तत्त्व को नहीं देखता। (ज्ञानार्णव/11/29-31), (भावपाहुड़ टीका/96/246/पर उद्धृत), (अनगारधर्मामृत/4/66/363 पर उद्धृत), (लाटी संहिता/2/114-127)
पुराणकोष से
(1) प्रद्युम्न । हरिवंशपुराण - 48.13, महापुराण 72.112(2) ग्यारह रुद्रों में दसवाँ रुद्र । हरिवंशपुराण - 60.571-572
(3) चार पुरुषार्थी में तीसरा पुरुषार्थ । इंद्रियविषयानुरागियों की मानसिक स्थिति । कामासक्त मानव चंचल होते हैं और मूर्ख ही इनके अधीन होते हैं, विद्वान् नहीं । महापुराण 51.6, पद्मपुराण - 83.77, हरिवंशपुराण - 3.193, 9.137
(4) रावण का योद्धा । इसने राम के योद्धा दृढ़रथ के साथ युद्ध किया था । पद्मपुराण - 57.54-56, 62.38