पूर्णभद्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) साकेतपुर निवासी अर्हद्दास श्रेष्ठी का ज्येष्ठ पुत्र मणिभद्र इसका छोटा भाई था । इसने श्रावक की सातवीं प्रतिमा धारण की थी इसके प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में सामानिक देव हुआ । सौधर्म स्वर्ग से च्युत होकर यह साकेत नगरी के राजा हेमनाभ का मधु नामक पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 72.36-37, </span><span class="GRef"> महापुराण 109.131-132 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) साकेतपुर निवासी अर्हद्दास श्रेष्ठी का ज्येष्ठ पुत्र मणिभद्र इसका छोटा भाई था । इसने श्रावक की सातवीं प्रतिमा धारण की थी इसके प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में सामानिक देव हुआ । सौधर्म स्वर्ग से च्युत होकर यह साकेत नगरी के राजा हेमनाभ का मधु नामक पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 72.36-37, </span><span class="GRef"> महापुराण 109.131-132 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक यक्ष । इसने बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि के समय रावण की रक्षा की थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 70.68-95 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक यक्ष । इसने बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि के समय रावण की रक्षा की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_70#68|पद्मपुराण - 70.68-95]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) कुबेर का साथी एक यक्ष । द्वारिका के निर्माण के पश्चात् कुबेर के चले जाने पर उसकी आज्ञा से वहाँ बचे हुए कार्य को इसने संपन्न किया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 41.40 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कुबेर का साथी एक यक्ष । द्वारिका के निर्माण के पश्चात् कुबेर के चले जाने पर उसकी आज्ञा से वहाँ बचे हुए कार्य को इसने संपन्न किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_41#40|हरिवंशपुराण - 41.40]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) विजयार्द्ध की दक्षिण और उत्तर श्रेणी से पंद्रह योजन ऊपर स्थित एक पर्वत-श्रेणी यह दस योजन चौड़ी है । विजयार्ध देव इसका स्वामी है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.24-25 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) विजयार्द्ध की दक्षिण और उत्तर श्रेणी से पंद्रह योजन ऊपर स्थित एक पर्वत-श्रेणी यह दस योजन चौड़ी है । विजयार्ध देव इसका स्वामी है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#24|हरिवंशपुराण - 5.24-25]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का चतुर्थ कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 26, 109-112 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का चतुर्थ कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#26|हरिवंशपुराण - 5.26]], 109-112 </span></p> | ||
<p id="6">(6) माल्यवान् पर्वत का एक कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.219-220 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) माल्यवान् पर्वत का एक कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#219|हरिवंशपुराण - 5.219-220]] </span></p> | ||
<p id="7">(7) किन्नर आदि अष्टविध जातियों के व्यंतर देवों में यक्ष गतियों के न्यंतरों का इंद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) किन्नर आदि अष्टविध जातियों के व्यंतर देवों में यक्ष गतियों के न्यंतरों का इंद्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63 </span></p> | ||
<p id="8">(8) अयोध्या के समुद्रदत्त सेठ का पुत्र । यह अपने पूर्वभव में अग्निभूति था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.148-149 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) अयोध्या के समुद्रदत्त सेठ का पुत्र । यह अपने पूर्वभव में अग्निभूति था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_43#148|हरिवंशपुराण - 43.148-149]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- यक्ष जाति के व्यंतर देवों का एक भेद - देखें यक्ष ;
- इन यक्ष जाति के देवों ने बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करते समय रावण की रक्षा की थी।
- हरिवंशपुराण /43/149-158 ये अयोध्या नगरी के समुद्रदत्त सेठ के पुत्र थे। अणुव्रत धारण कर सौधर्मस्वर्ग में उत्पन्न हुए । यह कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नकुमार का पूर्व का पाँचवाँ भव है। - देखें प्रद्युम्न ।
पुराणकोष से
(1) साकेतपुर निवासी अर्हद्दास श्रेष्ठी का ज्येष्ठ पुत्र मणिभद्र इसका छोटा भाई था । इसने श्रावक की सातवीं प्रतिमा धारण की थी इसके प्रभाव से यह मरकर सौधर्म स्वर्ग में सामानिक देव हुआ । सौधर्म स्वर्ग से च्युत होकर यह साकेत नगरी के राजा हेमनाभ का मधु नामक पुत्र हुआ था । महापुराण 72.36-37, महापुराण 109.131-132
(2) एक यक्ष । इसने बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि के समय रावण की रक्षा की थी । पद्मपुराण - 70.68-95
(3) कुबेर का साथी एक यक्ष । द्वारिका के निर्माण के पश्चात् कुबेर के चले जाने पर उसकी आज्ञा से वहाँ बचे हुए कार्य को इसने संपन्न किया था । हरिवंशपुराण - 41.40
(4) विजयार्द्ध की दक्षिण और उत्तर श्रेणी से पंद्रह योजन ऊपर स्थित एक पर्वत-श्रेणी यह दस योजन चौड़ी है । विजयार्ध देव इसका स्वामी है । हरिवंशपुराण - 5.24-25
(5) ऐरावत क्षेत्र के विजयार्ध पर्वत का चतुर्थ कूट । हरिवंशपुराण - 5.26, 109-112
(6) माल्यवान् पर्वत का एक कूट । हरिवंशपुराण - 5.219-220
(7) किन्नर आदि अष्टविध जातियों के व्यंतर देवों में यक्ष गतियों के न्यंतरों का इंद्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59-63
(8) अयोध्या के समुद्रदत्त सेठ का पुत्र । यह अपने पूर्वभव में अग्निभूति था । हरिवंशपुराण - 43.148-149