मैथुन: Difference between revisions
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<span class="HindiText"><li><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/16/353/10 </span> <span class="SanskritText">स्त्रीपुंसयोश्चारित्रमोहोदये सति रागपरिणामाविष्टयोः परस्परस्पर्शनं प्रति इच्छा मिथुनम् । मिथुनस्य भावं मैथुनमित्युच्यते ।</span>= चारित्रमोह का उदय होने पर राग परिणाम से युक्त स्त्री और पुरुष के जो एक दूसरे को स्पर्श करने की इच्छा होती है वह मैथुन कहलाता है । <span class="GRef"> राजवार्तिक /7/16/543/29 </span>; विशेष देखें [[ ब्रह्मचर्य#4.1 | ब्रह्मचर्य - 4.1]]। </span><br /></li> | <span class="HindiText"><li><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/16/353/10 </span> <span class="SanskritText">स्त्रीपुंसयोश्चारित्रमोहोदये सति रागपरिणामाविष्टयोः परस्परस्पर्शनं प्रति इच्छा मिथुनम् । मिथुनस्य भावं मैथुनमित्युच्यते ।</span>= चारित्रमोह का उदय होने पर राग परिणाम से युक्त स्त्री और पुरुष के जो एक दूसरे को स्पर्श करने की इच्छा होती है वह मैथुन कहलाता है । <span class="GRef"> राजवार्तिक /7/16/543/29 </span>; विशेष देखें [[ ब्रह्मचर्य#4.1 | ब्रह्मचर्य - 4.1]]। </span><br /></li> | ||
<li><span class="GRef"> धवला 12/4, 2, 8, 5/282/5 </span><span class="PrakritText">त्थी-पुरिसविसयवावारो मणवयण-कायसरूवो मेहुणं ।..एत्थवि अंतरंगमेहुणस्सेव बहिरंगमेहुणस्स आसवभावो वत्तव्वो ।</span> =<span class="HindiText"> स्त्री और पुरुष के मन, वचन व | <li><span class="GRef"> धवला 12/4, 2, 8, 5/282/5 </span><span class="PrakritText">त्थी-पुरिसविसयवावारो मणवयण-कायसरूवो मेहुणं ।..एत्थवि अंतरंगमेहुणस्सेव बहिरंगमेहुणस्स आसवभावो वत्तव्वो ।</span> =<span class="HindiText"> स्त्री और पुरुष के मन, वचन व काय स्वरूप विषय व्यापार को मैथुन कहा जाता है । यहाँ पर अंतरंग मैथुन के समान बहिरंग मैथुन को भी (कर्म बंध का) कारण बतलाना चाहिए । <br /> | ||
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<li | <li class="HindiText"> वेद व मैथुन में अंतर− देखें [[ संज्ञा#6 | संज्ञा 6 ]]। </span></li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं में तीसरी संज्ञा-कामेच्छा । <span class="GRef"> महापुराण 36.131 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं में तीसरी संज्ञा-कामेच्छा । <span class="GRef"> महापुराण 36.131 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- सर्वार्थसिद्धि/7/16/353/10 स्त्रीपुंसयोश्चारित्रमोहोदये सति रागपरिणामाविष्टयोः परस्परस्पर्शनं प्रति इच्छा मिथुनम् । मिथुनस्य भावं मैथुनमित्युच्यते ।= चारित्रमोह का उदय होने पर राग परिणाम से युक्त स्त्री और पुरुष के जो एक दूसरे को स्पर्श करने की इच्छा होती है वह मैथुन कहलाता है । राजवार्तिक /7/16/543/29 ; विशेष देखें ब्रह्मचर्य - 4.1।
- धवला 12/4, 2, 8, 5/282/5 त्थी-पुरिसविसयवावारो मणवयण-कायसरूवो मेहुणं ।..एत्थवि अंतरंगमेहुणस्सेव बहिरंगमेहुणस्स आसवभावो वत्तव्वो । = स्त्री और पुरुष के मन, वचन व काय स्वरूप विषय व्यापार को मैथुन कहा जाता है । यहाँ पर अंतरंग मैथुन के समान बहिरंग मैथुन को भी (कर्म बंध का) कारण बतलाना चाहिए ।
- मैथुन व अब्रह्म संबंधी शंकाएँ−देखें ब्रह्मचर्य - 4 ।
- वेद व मैथुन में अंतर− देखें संज्ञा 6 ।
पुराणकोष से
आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञाओं में तीसरी संज्ञा-कामेच्छा । महापुराण 36.131