तारक: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) दूसरा प्रतिनारायण । यह अवसर्पिणी के चौथे काल में भरतक्षेत्र स्थित गोवर्द्धन नगर के राजा श्रीधर का पुत्र हुआ था । द्विपृष्ट के गंधगज के लोभ में पड़कर यह अपने ही चक्र से मारा गया और नरक में जा गिरा था । पूर्वभवों में यह विंध्यशक्ति नाम का राजा था । चिरकाल तक अनेक योनियों में भ्रमण कर वर्तमान भव में द्वितीय प्रतिनारायण हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 58.91, 102-104, 115-124, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#242|पद्मपुराण - 20.242-244]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#291|हरिवंशपुराण - 60.291]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18, 101, 114-115 </span></p> | |||
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<p id="3" class="HindiText">(3) अर्जुन का एक शिष्य एवं मित्र । वनवास के समय सहायवन में स्थित पांडवों पर दुर्योधन द्वारा आक्रमण किया गया था । उस समय इसने दुर्योधन को नागपाश से बाँध लिया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 17.66, 100-107 </span></p> | |||
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Latest revision as of 12:58, 1 February 2024
सिद्धांतकोष से
- पिशाच जातीय व्यंतर देवों का एक भेद–देखें पिशाच ;
- महापुराण/58/63 भरतक्षेत्र के मलय देश का राजा विंध्यशक्ति था। चिरकाल तक अनेकों योनियों में भ्रमणकर वर्तमान भव में द्वितीय प्रतिनारायण हुआ। विशेष परिचय–देखें शलाका पुरुष - 5;
- पांडवपुराण/17/65 –अर्जुन (पांडव) का शिष्य एवं मित्र था। वनवास के समय सहायवन में दुर्योधन द्वारा चढ़ाई करने पर अपना शौर्य प्रगट किया।
पुराणकोष से
(1) दूसरा प्रतिनारायण । यह अवसर्पिणी के चौथे काल में भरतक्षेत्र स्थित गोवर्द्धन नगर के राजा श्रीधर का पुत्र हुआ था । द्विपृष्ट के गंधगज के लोभ में पड़कर यह अपने ही चक्र से मारा गया और नरक में जा गिरा था । पूर्वभवों में यह विंध्यशक्ति नाम का राजा था । चिरकाल तक अनेक योनियों में भ्रमण कर वर्तमान भव में द्वितीय प्रतिनारायण हुआ । महापुराण 58.91, 102-104, 115-124, पद्मपुराण - 20.242-244, हरिवंशपुराण - 60.291, वीरवर्द्धमान चरित्र 18, 101, 114-115
(2) नक्षत्र-समूह । यह ज्योतिरंग जाति के वृक्षों की प्रभा के लय से सन्मति नामक दूसरे कुलंकर के समय में दिखायी देने लगा था । इससे दिन-रात का विभाजन होने लगा था । महापुराण 3-84-86
(3) अर्जुन का एक शिष्य एवं मित्र । वनवास के समय सहायवन में स्थित पांडवों पर दुर्योधन द्वारा आक्रमण किया गया था । उस समय इसने दुर्योधन को नागपाश से बाँध लिया था । पांडवपुराण 17.66, 100-107