भर्तृहरि: Difference between revisions
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<li> राजा सिंहल के पुत्र व राजा मुंज के छोटे भाई थे। राजा मुंज ने इन्हें पराक्रमी जानकर राज्य के लोभ से देश से निकलवा दिया था। पीछे ये एक तापस के शिष्य हो गये और 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् स्वर्ण रस की सिद्धि की। ज्ञानार्णव के रचयिता आचार्य शुभचंद्र के लघु भ्राता थे। उनसे संबोधित होकर इन्होंने दिगंबर दीक्षा धारण कर ली थी। तब इन्होंने शतकत्रय लिखे। विद्यावाचस्पति ने तत्त्वबिंदु नामक ग्रंथ में इनको धर्मबाह्य बताया है, जिससे सिद्ध होता है कि अवश्य पीछे जाकर जैन साधु हो गये थे। राजा मुंज के अनुसार आपका समय–वि. 1060-1125 (ई. 1003-1038)–विशेष देखें [[ इतिहास#3.1 | इतिहास - 3.1 ]] | <li> राजा सिंहल के पुत्र व राजा मुंज के छोटे भाई थे। राजा मुंज ने इन्हें पराक्रमी जानकर राज्य के लोभ से देश से निकलवा दिया था। पीछे ये एक तापस के शिष्य हो गये और 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् स्वर्ण रस की सिद्धि की। ज्ञानार्णव के रचयिता आचार्य शुभचंद्र के लघु भ्राता थे। उनसे संबोधित होकर इन्होंने दिगंबर दीक्षा धारण कर ली थी। तब इन्होंने शतकत्रय लिखे। विद्यावाचस्पति ने तत्त्वबिंदु नामक ग्रंथ में इनको धर्मबाह्य बताया है, जिससे सिद्ध होता है कि अवश्य पीछे जाकर जैन साधु हो गये थे। राजा मुंज के अनुसार आपका समय–वि. 1060-1125 (ई. 1003-1038)–विशेष देखें [[ इतिहास#3.1 | इतिहास - 3.1 ]]<span class="GRef">( ज्ञानार्णव/ </span>प्र./पं.पन्नालाल)। </li> | ||
<li> आप ई.सं. 450 में एक अजैन बड़े वैय्याकरणी थे। आपके गुरु वसुरात थे। | <li> आप ई.सं. 450 में एक अजैन बड़े वैय्याकरणी थे। आपके गुरु वसुरात थे। <span class="GRef">( सिद्धि विनिश्चय/22/ </span>पं. महेंद्र); (देखें [[ शुभचंद्र ]])</li> | ||
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- राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। तदनुसार इनका समय ई.पू. 57 आता है। (ज्ञा/प्र.4/पन्नालाल)।
- चीनी यात्री इत्सिंगने भी एक भर्तृहरि का उल्लेख किया है। जिसकी मृत्यु ई. 650 में हुई बतायी है। समय–ई 625-650 (ज्ञा.प्र.4/पं. पन्नालाल)।
- राजा सिंहल के पुत्र व राजा मुंज के छोटे भाई थे। राजा मुंज ने इन्हें पराक्रमी जानकर राज्य के लोभ से देश से निकलवा दिया था। पीछे ये एक तापस के शिष्य हो गये और 12 वर्ष की कठिन तपस्या के पश्चात् स्वर्ण रस की सिद्धि की। ज्ञानार्णव के रचयिता आचार्य शुभचंद्र के लघु भ्राता थे। उनसे संबोधित होकर इन्होंने दिगंबर दीक्षा धारण कर ली थी। तब इन्होंने शतकत्रय लिखे। विद्यावाचस्पति ने तत्त्वबिंदु नामक ग्रंथ में इनको धर्मबाह्य बताया है, जिससे सिद्ध होता है कि अवश्य पीछे जाकर जैन साधु हो गये थे। राजा मुंज के अनुसार आपका समय–वि. 1060-1125 (ई. 1003-1038)–विशेष देखें इतिहास - 3.1 ( ज्ञानार्णव/ प्र./पं.पन्नालाल)।
- आप ई.सं. 450 में एक अजैन बड़े वैय्याकरणी थे। आपके गुरु वसुरात थे। ( सिद्धि विनिश्चय/22/ पं. महेंद्र); (देखें शुभचंद्र )